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कहानी- ये जो हल्का हल्का सुरूर है… (Short Story- Yeh Jo Halka Halka Surur Hai…)

तुम बताओ किसे अच्छा नहीं लगेगा कि कोई उसे परी समझे कि कोई उसे ख़्वाबों की रानी समझे कि कोई उस पर गीत भेजे उसकी आंखों में नशा ढूंढे़ उसकी बातों में डूब जाए. न जाने किस पर्सनैलिटी के इंसान हो कि चाह कर भी तुम्हें अपने ख़्याल से अलग करना मुश्किल होता है. इस उम्र में भी तुम कुछ न कुछ नया और अनोखा करके चौंका ही देते हो…

'उफ्फ़! यह इंसान है कि इंसान को पागल बनाने की फैक्ट्री. क्या जुनून, क्या दीवानगी है. तुम कमाल करते हो ऐसे-ऐसे गाने-ग़ज़ल लिख भेजते हो कि इंसान क्या पत्थर हो तो वो भी पिघल जाए…
न नमाज आती है मुझको न वजू आता है
सजदा कर लेता हूं सामने जब तू आता है…
हमने उनके सामने अव्वल तो खंजर रख दिया
फिर कलेजा रख दिया, दिल रख दिया, सिर रख दिया
और कहा मेरे बाद किसको सताओगे
कहां जा के तीर चलाओगे…
उसने मन ही मन कहा 'कमीने', सच कहूं, तो वाकई तुम एक बहुत बड़े फ्लर्ट हो!
आह! यह जिस दुनिया में हम रहते हैं, यहां जीने के अजीब नियम हैं, लेकिन आज तुमने मुझे झकझोर के रख दिया क्या करूं?
जब मैं कहती हूं तुम कितने बड़े फ्लर्ट हो, तो भीतर हंसी छूट जाती है. दिल में गुदगुदी भी होती है. जैसे तुम कमीने टाइप के मर्द होते हो न, जो हमारे बारे में न जाने क्या-क्या जानते और सोचते हो, हम लोग भी तुम जैसे लोगों के बारे में न चाहते हुए भी सोचते हैं, सोचना पड़ता है.
क्या-क्या गाने हैं तुम्हारे, न जाने क्या-क्या देखते हो हमारी आंखों में और हमें पता है कि जब हम लोग बात करते हैं, तो तुम्हारी नज़र और ध्यान कहां होता है बात करते वक़्त!
कितनी गहराई से तुम मुझे मेजर करते हो, आह क्या कहूं, कितनी चुभती है तुम्हारी आंखें, लेकिन यही फ़र्क है फ्लर्ट और घूरने में, बोलने में.
तुम सचमुच देखने में भी दिलोंदिमाग़ में एक लहर पैदा कर देते हो, बोलते हो, तो शब्दों को न जाने कहां से चुनते हो कि नशीला बना देते हो और फिर मिनटों में ऐसी भोली शक्ल बनाते हो, ऐसी गंभीरता ओढ़ लेते हो कि पूछो मत.
बड़ा मुश्किल हो जाता है जज करना कि कौन-सा आदमी है यह. वह जो थोड़ी देर पहले मेरे सामने अपना दिल-जिगर खोल कर रख देनेवाला मुझसे फ्लर्ट करनेवाला या यह जो उम्र के साथ अपनी तकलीफ़ें बता कर मुझसे सिम्पैथी लेने की कोशिश कर रहा है कि जो कहीं फंस न जाएं अपनी बातों में इसलिए बीवी-बच्चों की स्टोरी सुना रहा है. उनकी पढ़ाई का हवाला दे रहा है. कई बार सोचती हूं आख़िर तुमने काॅलेज के ज़माने में क्या किया होगा कि आख़िर तुम्हारा बचपन कितना रंगीन होगा कि कितनी गर्लफ्रैंड्स तुमने ज़िंदगी में बनाई होंगी… कितनी लड़कियों से तुम्हारे अफेयर रहे होंगे और आज जब इतनी हिम्मत दिखाते हो, तो तब कितने हिम्मती रहे होंगे…
आह कमीने सच कहूं, तो सोचकर भीतर ही भीतर मुझे भी न जाने क्या-क्या होंने लगता है.
मैं कुछकुछ होता है, नहीं कहूंगी यह कुछ कुछ तो मुझे काॅलेज में होता था.
अब इंटरनेट के ज़माने में क्या-क्या होता है कैसे कहूं. कितनी बार सोचा कि तुम्हारी कंप्लेंट कर दूं, लेकिन तुम्हारी कही हुई बात और उसके तरीक़े में मुझे कुछ ऐसा मिला ही नहीं जो तुम्हें पक्की तरह फंसा सके.
बस ख्वाबो ख़्याल, बस रोमांस, शायरी, बड़ी ख़ूबसूरती से पिरोए हुए गाने…
तुम बताओ किसे अच्छा नहीं लगेगा कि कोई उसे परी समझे कि कोई उसे ख़्वाबों की रानी समझे कि कोई उस पर गीत भेजे उसकी आंखों में नशा ढूंढे़ उसकी बातों में डूब जाए. न जाने किस पर्सनैलिटी के इंसान हो कि चाह कर भी तुम्हें अपने ख़्याल से अलग करना मुश्किल होता है. इस उम्र में भी तुम कुछ न कुछ नया और अनोखा करके चौंका ही देते हो…
मुझे काॅलेज में किसी ने इतने रोमांटिक शेर नहीं भेजे, किसी ने फूल नहीं दिए. ये जो शादी है, वह भी तो साल दो साल ही रोमांटिक होती है. वह भी तुम जैसा रोमांस करना अच्छे अच्छों को नहीं आता. यहां तो बस साल-छह महीने बीते कि गाने, फूल-पत्ती सब ज़िंदगी से गायब.

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उफ्फ़, सच कहूं तो शुरू में मुझे डर भी लगा कि कहीं सनकी टाइप इंसान तो नहीं हो, जो बस एक दिन शोर मचा के इश्क़ का ढिंढोरा पीटे, लेकिन नहीं किस हद तक मैच्योर हो तुम. तुम्हें क्या पता कि तुम्हारी ऐसी बातें मुझे भी बढ़ती उम्र के बाद भी अपने कॉलेज कैम्पस में पहुंचा देती हैं. मैं भूल जाती हूं कि मैं बाल कलर करती हूं, अनजाने ही कुछ ज़्यादा सज-संवर कर शीशे के सामने होती हूं. जानती हूं कि तुम कहीं नहीं हो, तुम मुझे देख नहीं सकते, पर न जाने क्यों यह एहसास होता है कि तुम मुझे देख रहे हो.
मेकअप करती हूं. हल्का गुलाबी लिपस्टिक लगाती हूं, जिसकी तुम अनजाने में तारीफ़ कर चुके हो. कई बार पुराना सूट पहन लेती हूं किसी बीते हुए लम्हे के एहसास को जीने के लिए.
सच कहूं, तो तुम जो करते हो, उसके लिए बहुत हिम्मत चाहिए. वह भी अपनी सोसायटी में. उससे भी बढ़कर तुम दिल के इतने साफ़ हो शीशे की तरह कि न चाहते हुए भी मुझे उसमें अपनी तस्वीर दिख जाती है, जो सचमुच बहुत खूबसूरत होती है. इतनी ख़ूबसूरत कि तुम्हारे देखने के नज़रिए से जब-जब मैंने ख़ुद को देखा है मेरा अपने लिए प्यार और बढ़-सा गया है.
अगर लम्हों की बात करूं, तो जिन लम्हों में तुम होते हो, उन लम्हों पर पूरी तरह कब्ज़ा कर लेते हो.
जब तुम भेजते हो सब तिथियन का चंद्रमा जो देखा चाहो आज धीरे-धीरे घूंघटा सरकाओ सरकार या फिर इश्क़ की ज़ज्बात किसे पेश करू, तो विश्वास मानो दिल, दिमाग और पूरा शरीर भारहीन हो उड़ने लगता है. कितना भी काम का दबाव और तनाव हो, चाहे जितना भारीपन हो, मन जैसे कुछ देर ही सही उन परिस्थितियों से बाहर निकल कुछ और सोचने लगता है. न जाने कितनी बार इन गानों को सुनकर मैंने माथे पर वो छोटी-सी आसमानी बिंदी लगाई है और ख़ुद को निहारा है.
न जाने कितनी बार मुझे जानने वालों ने इसके बाद मेरे चेहरे पर एक्स्ट्रा ग्लो और छाई हुई लाली का राज़ पूछा है. कई तो बेवजह ख़ुशख़बरी आने की बधाई तक दे देते हैं, लेकिन क्या कहूं किसी से नहीं कह सकती अपनी ज़िंदगी का यह ख़ूबसूरत राज़.
न जाने कैसे तुम वह कह देते हो, जो मेरे दिल में छुपा होता है. सच कहूं, तो दुनिया में कोई ऐसा मिल जाना, जो उसे समझ सके क़िस्मत की बात है. मैं तो तुमसे यह नहीं कह सकी और न कह सकूंगी, पर तुम कितनी बेबाक़ी से अपने लिए यह बात कह गए, वह भी बिना किसी मांग किसी डिमांड के. अजीब-सी बात है कि तुम बिना कुछ मांगे ही कह देते हो, मुझे तुमसे बहुत कुछ मिल गया. मुझे तो कभी एहसास ही नहीं हुआ कि मैंने तुम्हें कुछ दिया हो, लेकिन तुम एक ख़्याल और ख़्वाब के साथ को भी मेरा एहसान मानते हो, कहां मिलेंगे इतने ईमानदार लोग जो इतनी ख़ूबसूरती से किसी को शुक्रिया कह दें.
सच कहूं, तो किस लड़की की तम्मना नहीं होती की वह सराही जाए…
एक शेर है जो कहता है-
तुमसे उल्फ़त के तगादे न निबाहे जाते
वरना हमको भी तमन्ना थी कि चाहे जाते…
कितने हैं इस दुनियां में जो उल्फ़त की नज़ाकत को समझते हैं. जज़्बात को संभालते हैं और एहसास के ख़ूबसूरत रिश्ते को निभाते हैं.
मुझे भी तो तुम उम्र के दायरे से बाहर निकाल देते हो मेरे भीतर स्त्री और एक पत्नी होंने के एहसास से बाहर एक लड़की, अल्हड़ काॅलेज में उड़ती परी का एहसास जगा देते हो. कुछ ही देर सही मैं खो तो जाती हूं रंगीन सपनों में. भले ही वे सपने कभी हक़ीक़त न बनें.
समीर न जाने क्यों मुझे आज तक कभी तुम्हारी उम्र महसूस ही नहीं हुई. कभी लगा ही नहीं कि तुम इतने बड़े हो. मैंने बहुत कोशिश की कि तुम्हारे भीतर अंकल ढूंढू, लेकिन तुम मुझे किसी कोने से इतने बड़े नहीं लगे, जाने कौन-सी ताज़गी, कौन-सा उत्साह, कौन-सी उमंग है, जो तुम्हारे भीतर भरी है, जिसे हर बात करनेवाले में बांटते चले जाते हो. तुम्हें ख़ुद नहीं पता होगा कि किस हद तक और कितने लोग तुम्हें चाहते हैं. जानते हो हमारे देश में सब राधा कृष्ण की बातें करते है. प्रेम का राग अलापते हैं. कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं, लेकिन किसी को प्रेम से कुछ लेना-देना ही नहीं है.
सबने बस फोटो टांग रखी है. अरे, हमारे देश में तो शादी होते ही सबसे पहले लड़की के सारे रिश्ते तोड़ दिए जाते हैं. क्या चहेरे भाई-बहन क्या, अड़ोसी-पड़ोसी, क्या दोस्त-क्लासफेलो… ऐसा लगता है शादी होते ही वह बस किसी की प्रॉपर्टी हो गई. और अगर वह किसी से हंसे बोले, कोई अनजान या दूर के रिश्ते से कोई फोन आ जाए, तो लगता है न जाने कितने सवाल उसे खा जाएंगे.
ऐसा लगता है किसी से बात करने भर से लड़की का कैरेक्टर ख़राब हो जाएगा. इतना ही नहीं तुम्हें मैने ज़िंदगी में भरापूरा पाया. तुम्हें अपने परिवार के साथ देखा, तो तुम उन्हें प्यार करते, उनकी केयर करते मिले. किसी की शिकायत नहीं, किसी से शिकायत नहीं, भरी-पूरी हंसती-खिलखिलाती ज़िंदगी. हां, हर किसी की ज़िंदगी के अपने कुछ दर्द होते हैं. किसी का व्यक्तित्व इतना विस्तृत होता है कि वह एक विचारधारा एक चिंतन से पूर्ण नहीं होता और तुम्हारे भीतर तो चिंतन का अथाह सागर है. तुम्हारे व्यक्तित्व को मेरे
भीतर यदि आकर्षण दिखा, तो इसमें ग़लत क्या है. तुमने आज तक मेरे से कोई अनुचित मांग ही नहीं की. इतना ही नहीं, आज तक तुमने न जाने कितनी बातें की. अपना लगाव जताया, लेकिन अंग्रेज़ी के तीन शब्द तो तुमने कभी कहे ही नहीं.
मैं कैसे तुम्हें ग़लत कह दूं. तुम्हें ग़लत कहते ही मैं अपनी नज़रों में छोटी हो जाऊंगी. तुम जानते हो कई बार मैंने तुम्हें ग़ुस्सा दिखाया, लेकिन कितनी ख़ूबसूरती से तुम उसे इग्नोर कर गए. बड़े प्यार से बड़ी साफ़गोई से मुझ से पूछ गए कि सुनो मुझे ख़ुद से बात करने की इजाज़त दोगी. आह, इतनी शराफ़त!
नेचर और व्यवहार में इतनी नजाकत और इरादे में इतना हौसला कि बात करने की इजाज़त मांग कर अपनी रौ में कुछ भी कहते चले जाना.
बहुत कुछ पाया है मैंने भी. तुमसे सच कहूं, तो मुझे भी ज़िंदगी में तुमसे नए डाइमेंशन्स मिले हैं.
न जाने वह अभी और क्या लिखती चली जाती कि उसे होश आया. नहीं यह सब सोचा तो जा सकता है, सामने बातचीत में कहा तो जा सकता है, लेकिन लिख कर एक्सेप्ट नहीं किया जा सकता.
वह जानती है कि प्रेम खाली शरीर से होकर गुज़र जाने का नाम नहीं है.

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प्रेम सिर्फ़ और सिर्फ़ मांग का नाम नहीं है. प्रेम वह भी होता है, जो प्रेमी की केयर करे. उसका ध्यान रखे. उसे होनेवाली किसी भी हानि की आशंका से बचाए.
वह स्त्री है और स्त्री पुरुष से अधिक समझदार होती है. समीर के बच्चे हैं. भरा-पूरा परिवार है. उसका ख़ुद का भी परिवार है. जीवन व समय की अपनी सीमाएं हैं. हम किसी सोसायटी में रहते हैं, जिसके अपने नियम-क़ानून हैं.
वह जानती है समीर कभी कोई सीमा नहीं लांघेगा, लेकिन उसे भी तो अपने जज़्बात छुपाने होंगे. प्रेम और अपनत्व को इस तरह ज़ाहिर नहीं किया जा सकता. आज उसे उसकी भलाई के लिए इस प्रेम के एहसास को जानते-समझते हुए भी दूर रखना होगा. उसने पूरा लिखा हुआ मैसेज एक बार में सिलेक्ट कर डिलीट कर दिया. हां, स्टेटस बदलकर लिखा-
'How beautiful to know that someone wants your company just for nothing…'
सच दिल को कितना सुकून मिलता है यह जानकर कि कोई आपका साथ चाहता है, बस यूं ही…
और हां वह जो एक गाना उसने भेजा था, वही फूलों के रंग से दिल की कलम से तुझको लिखी रोज़ पाती…
उसके जवाब में बोली, “ऐसा कुछ नहीं है."
और समीर ने पूछा, “कैसा? मैं समझा नहीं.” और उसने बात घुमा दी.
"नहीं वो ऐसे ही."
वह हंसा, "मैं जानता हूं, ऐसा कुछ नहीं है, पर सोचता हूं जब कुछ नहीं है, तब यह नशा है कहीं किसी दिन कुछ हो जाए, तो…"
समीर भी हर बात के बीच अपने फ्लर्ट का स्कोप निकाल ही लेता है, वह हंसते हुए सोचने लगी, “ये जो हल्का हल्का सुरूर है, भला इस सुरूर से थोड़ी-सी ज़िंदगी जी ले लेने में कौन-सा गुनाह है."

- शिखर प्रयाग

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