माना ज़माना तेज़ रफ़्तार से आगे बढ़ रहा है, लेकिन उससे भी कहीं ज़्यादा तेज़ी से हमारी सोच और लाइफस्टाइल बदल रही है. लेकिन हर बदलाव हमें बेहतर ही बनाएगा ये ज़रूरी नहीं, क्योंकि आजकल युवाओं की जो सोच बदल और बन रही है, वो रिश्तों को तोड़ने का काम कर रही है. जी हां, ये सच है और इस लेख में हम इसी पर चर्चा करेंगे.

- आजकल युवा पीढ़ी घरेलू कामकाज, जैसे- खाना बनाना, घर की साफ़-सफ़ाई या अन्य काम को करना नहीं चाहती, क्योंकि उनको लगता है कि ये सब छोटे स्तर के काम हैं और इससे उनका शोषण होता है.
- दरअसल लड़कियों की आर्थिक आत्मनिर्भरता के बाद ये सोच और बढ़ गई है, वहीं लड़कों की उसी पुरानी पारंपरिक सोच के साथ परवरिश आज भी की जाती है, जिससे समस्या और बढ़ रही है.
- लड़कियों का भी अपना तर्क बहुत ज़्यादा ग़लत नहीं कि वो अगर बाहर जाकर काम कर रही हैं, तो घर के सारे काम की ज़िम्मेदारी उनकी अकेली की नहीं, ये साझा होनी चाहिए.
- युवाओं को ये समझाया ही नहीं जाता कि कुकिंग व अन्य घरेलू काम बेसिक लाइफ स्किल है, जो सभी को आने ही चाहिए और ज़रूरत पड़ने पर करने भी चाहिए.
- परवरिश के दौरान ही लिंग के आधार पर काम का बंटवारा कर दिया जाता है कि ये काम लड़कियों का है और ये लड़कों का.
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- जिन घरों में लड़कियों को आज़ादी और खुले विचारों के साथ बड़ा किया जाता है, तो वहां उनकी सोच यही बन जाती है कि किचन के काम तो कम पढ़ी-लिखी महिलाएं ही करती हैं या ये काम नौकरों का होता है.
- समस्या तब खड़ी होती है जब शादी के बाद ज़िंदगी बदलती है और ज़िम्मेदारियां बढ़ती हैं.
- ससुराल में बहू से बहुत सी उम्मीदें लगा ली जाती हैं, भले ही समाज बदल रहा है, लेकिन आज भी बहू की वही पारंपरिक छवि बनाई हुई है, जो पूरे घर की ज़रूरतों का ख़्याल रखे.
- भले ही बहू कमानेवाली हो, पर घर के काम में उसे कोई रियायत नहीं मिलती, यही वजह है कि आजकल लड़कियां शादी से और घर के काम से भी कतराती हैं.
- वहीं अगर वो ससुराल में ये कहती है कि पति उसके काम में हाथ बंटाए, तो ये बात न पति को पसंद आती है और न ही अन्य घरवालों को.
- लेकिन सबसे बड़ी समस्या अब ये होने लगी है कि भले ही लड़की बाहर काम न करती हो, तब भी वो घर के काम नहीं करना चाहती, अगर घर के किसी बड़े-बुज़ुर्ग ने खाना या कुछ ख़ास चीज़ बनाने को कह दिया, तो आज की युवा पीढ़ी को लगता है कि उनका शोषण किया जा रहा है.
- ऐसा नहीं है कि सभी ऐसी सोच रखते हैं, कई लड़के भी आजकल घरेलू काम करते हैं, लेकिन उनकी तादाद कम है.
- रेवती एक मॉडर्न लड़की है. वो अपने पति के साथ रहती है, जबकि उसके सास-ससुर उसी शहर में अलग रहते हैं. रेवती ने अपना अनुभव सोशल मीडिया पर इस तरह साझा किया, “मेरे सास-ससुर कभी-कभार मिलने के लिए घर आते हैं और मेरे पति मुझे कहते हैं कि मैं उनके लिए खाना बनाऊं, जबकि मैं कुकिंग नहीं करना चाहती. घर पर कुक है, ऐसे में वो कहते हैं कि मम्मी-पापा को तुम्हारे हाथ का बना खाना चाहिए. मैंने उनसे कहा कि मैंने आजतक अपने पैरेंट्स के लिए भी खाना नहीं बनाया, क्योंकि मुझे कुकिंग पसंद नहीं है.” रेवती की इस पोस्ट पर ढेरों कमेंट्स आए और अधिकांश लोगों ने रेवती को सपोर्ट किया.
ऐसे में सवाल ये उठता है कि अगर अपनों की ख़ुशी की ख़ातिर कभी-कभार खाना बना भी लिया जाए, तो क्या बुराई है?
- दरअसल हम घरेलू कामों को महज़ छोटा काम मानकर एक सोच बना लेते हैं, जबकि हर काम में स्किल की ज़रूरत होती है. खाना बनाना भी एक स्किल है.
- कुकिंग तो एक थेरेपी है, पर आजकल युवाओं को हर बात पर बागी होने की सीख सोशल मीडिया या अन्य प्लेटफॉर्म्स से दी जाती है और उनको कन्विंस किया जाता है कि बड़ों को पलटकर जवाब देना या किसी काम को मना करना ग़लत नहीं है.
- इसी तरह से घर की ज़िम्मेदारियों से भी युवा पीढ़ी कतराती है, क्योंकि वो जिस तरह की लाइफस्टाइल जीती है, उसमें स़िर्फ कूल लगना और चिल करना ही फैशनेबल है, भले ही वो कितने भी स्ट्रेस में हों, पर सोशल मीडिया पर हैपनिंग लाइफस्टाइल दिखानी ज़रूरी है.
- आज यंगस्टर्स न तो रिश्तेदारों से मिलना-जुलना पसंद करते हैं और न ही उनका घर आना उनको पसंद आता है.
- वहीं एडजस्टमेंट के नाम पर वो अपने स्पेस और फ्रीडम के राइट्स का बखान करने लगते हैं.
- न लड़की एडजस्ट करने को तैयार होती है और न ही लड़का. नतीजा होता है- टकराव और रिश्ते में बिखराव.
- अब सवाल ये उठता है कि अपना ही काम हम ख़ुद नहीं करेंगे तो कौन करेगा? नौकरों, हाउस हेल्प या फूड ऐप्स के भरोसे कब तक काम चलाओगे?
- अगर अपनों के लिए थोड़ा एडजस्ट करना भी पड़े तो क्यों नहीं करना चाहते आज के यंगस्टर्स? क्योंकि रिश्तों की एहमियत ख़त्म होती जा रही है, ख़्वाहिशें, पैसा कमाने की चाहत, हाई लाइफस्टाइल की इच्छा को ही प्राथमिकता दी जा रही है.
- गीता शर्मा

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