प्लैटो ने अपने गुरु से कहा, “यूनानी समाज आपके उच्च कोटि के विचारों के लायक नहीं है, अतः आप यहां से भाग चलिए. हम आपको लेने आए हैं.
सुकरात चाहते तो आसानी से भाग सकते थे, परन्तु उनका उत्तर था कि “यदि मैं भाग गया, तो मेरा शरीर तो बच जाएगा, परन्तु मेरे विचार मर जाएगें.
469 ईसा पूर्व जन्में सुकरात एक युनानी दार्शनिक थे. पश्चिमी दर्शन के विकास में उनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है.
उन्होंने पुरातन रूढ़ियों पर प्रहार किया. उनके अनुसार ‘यदि ईश्वर है, तो वह एक ही हो सकता है.’ उनकी बातों में दम था और उनकी बातें तर्कसम्मत होती थीं.
सुकरात ने कोई ग्रंथ नहीं लिखा. सूफ़ियों की तरह वह मौलिक शिक्षा देते थे. सुबह-सवेरे घर से निकल पड़ते और युवक-युवतियों को इकट्ठा कर उन्हें ईमानदार, सच्चे और दृढ़ संकल्प रहने का उपदेश देते.
युवक-युवतियां उनकी बातों के दीवाने थे. वह उनकी बातें बड़े ध्यान से सुनते.
युनानी समाज डर गया कि सुकरात सब पुरानी परम्पराओं को तोड़ देंगे. कुछ प्रभावशाली लोग भी इनमें शामिल थे. वह सब सुकरात के विरुद्ध एकजुट हो गए. और उन पर तरुणों को बिगाड़ने, देव निंदा करने के झूठे आरोपों में मुक़दमा कर दिया. और ‘ज़हर द्वारा मारने’ का दण्ड देकर उन्हें कोठरी में बंद कर दिया गया.
उनके प्रिय शिष्य प्लैटो ने अपने अन्य साथियों से मिलकर सुकरात को जेल से भगाने की योजना बनाई. जज और जेलर को घूंस देकर भीतर सुकरात की कोठरी तक जा पहुंचे.
प्लैटो ने अपने गुरु से कहा, “यूनानी समाज आपके उच्च कोटि के विचारों के लायक नहीं है, अतः आप यहां से भाग चलिए. हम आपको लेने आए हैं.
सुकरात चाहते तो आसानी से भाग सकते थे, परन्तु उनका उत्तर था कि “यदि मैं भाग गया, तो मेरा शरीर तो बच जाएगा, परन्तु मेरे विचार मर जाएगें.
और यदि मैं मर गया, तो मेरे विचार ज़िन्दा रहेंगे. और मैं इन दोनों में से अपने विचारों का ज़िन्दा रहना पसन्द करूंगा.”
उन्होंने स्वयं प्याला उठा कर ज़हर पी लिया.
और सच है उनके विचार उनके शिष्य प्लैटो और फिर अरस्तू द्वारा आगे बढ़े. आज वह विश्वभर में जाने जाते हैं.
- उषा वधवा
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