रिश्ते आजकल बदल गए हैं. न पहले जैसा प्यार, न भावनाएं और न ही कमिटमेंट रह गया है. लोग बहुत प्रैक्टिकल हो चुके हैं और ख़ासतौर से युवा वर्ग. बात जेनेरेशन की करें, तो उनका अप्रोच तो और भी अलग है हर चीज़ को लेकर. शादी जैसी प्रथा में भी इनका विश्वास नहीं है. शादी को वो न तो ज़रूरी समझते हैं और न ही इसे सेटल होने की शर्त मानते हैं.
आख़िर क्या कारण हैं कि आज का युवा शादी से कतराता है और रिश्तों को लेकर उनकी क्या सोच है, इस पर चर्चा ज़रूरी है.
कमिटमेंट फोबिया
यंगस्टर्स में कमिटमेंट फोबिया बढ़ता जा रहा है. वो कमिटमेंट से डरते हैं या परहेज़ करते हैं. ये युवाओं में बढ़ता ही जा रहा है. दरअसल, वो ज़िम्मेदारी लेने से डरते हैं, जिसकी कई वजहें हैं, जैसे- रिश्ते से जुड़ी ज़िम्मेदारियां, रिश्ता बिगड़ने या टूटने का डर, आज़ादी खोने का डर आदि. आत्मविश्वास में कमी भी कमिटमेंट फोबिया की एक वजह है.
पैरेंट्स का ख़राब रिश्ता
रिसर्च बताते हैं कि पैरेंट्स का ख़राब रिश्ता बच्चों पर असर डालता है. अगर बच्चे अपने माता-पिता को बचपन से लड़ते-झगड़ते देखते हैं, तो आगे चलकर वो ख़ुद रिश्ता बनाने से डरते हैं. उनके ज़ेहन में शादी को लेकर नकारात्मक बातें घर कर जाती हैं.
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आज़ादी नहीं खोना चाहते
आज़ाद ख़्यालों वाले आज के यंगस्टर्स हर चीज़ में आज़ादी चाहते हैं. शादी उनको बंधन लगती है. अकेले रहना उनको ज़्यादा भाता है. न कोई रोक-टोक और न कोई ज़िम्मेदारी. खुलकर जीना, पार्टी करना और अपने हिसाब से पैसा ख़र्च करना- ये आज़ादी उनको शादी से अधिक पसंद है.
करियर को अधिक तवज्जो
शादी की बजाय युवा अपने करियर और पैसों को अधिक अहमियत देने लगे हैं. करियर के चक्कर में पहले लेट मैरिजेस शुरू हुईं, उसके बाद डबल इनकम नो किड्स, फिर डबल इनकम नो सेक्स और अब सिर्फ़ इनकम नो मैरिज का सिलसिला शुरू हो गया है.
टूटते रिश्ते, बढ़ते तलाक़
अपने आसपास जब युवा वर्ग टूटते रिश्तों और बढ़ते तलाक़ के मामले देखते हैं, तो शादी जैसे रिश्ते से उनका विश्वास उठ जाता है. उनको लगता है कि शादी जैसी प्रथा फेल हो चुकी है, इसलिए बेहतर है कि इसमें फंसा ही न जाए.
नए रिश्तों और माहौल में नहीं बंधना चाहते
शादी के बाद लाइफ पूरी तरह बदल जाती है. नई फैमिली को अपनाना, नए माहौल में ढलना, इन लॉज़ के दबाव में रहना आदि आज के युवाओं को नहीं भाता. उनको अपना सिंगल स्टेटस और सिंगल लाइफ बेहतर लगती है.
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लिव इन का बढ़ता चलन
अन्य देशों की तरह अब भारत में भी लिव इन का चलन बढ़ता जा रहा है. युवाओं में ये काफ़ी पॉप्युलर हो रहा है, क्योंकि इसमें न तो कमिटमेंट होता है और न ही शादी और परिवार की ज़िम्मेदारी. जब तक जमती है साथ रहते हैं, नहीं जमे तो गुड बाय. न शादी, न तलाक़, ये युवाओं को काफ़ी सुविधाजनक लगता है.
पास्ट रिलेशनशिप से मिला बैड एक्सपीरियंस
आजकल अधिकांश युवाओं के गर्लफ्रेंड/बॉयफ्रेंड होते हैं. ऐसे में अपने किसी पास्ट रिलेशनशिप से मिला बुरा अनुभव रिश्तों को लेकर उनके मन में कड़वाहट भर देता है. वो नए रिश्ते बनाने से डरने लगते हैं. यहां तक कि वो अकेले रहना ज़्यादा पसंद करने लगते हैं बजाय रिश्तों में बंधने के.
अपनी शर्तों पर जीने की चाह
आजकल युवाओं को मौज-मस्ती, पार्टी करना, सोशल मीडिया पर चैट करना, अपने हिसाब से सोना-उठना आदि पसंद है. अपनी लाइफ में वो किसी की दख़लअंदाज़ी नहीं चाहते और शादी उनको अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी बाधा लगने लगती है.
बिना शादी के ही आसानी से सेक्स अवेलेबल होना
शादी कई लोगों के लिए सेक्स का आसान ज़रिया होती है. भले ही लोग इसे खुले तौर पर स्वीकार ना करें, लेकिन इसमें काफ़ी सच्चाई है. ऐसे में जब आजकल युवा फ्री सेक्स में बिलीव करते हैं, तो उनको अपनी फिज़िकल नीड्स के लिए शादी करना ग़ैरज़रूरी लगने लगा है.
फाइनेंशियल स्टेबिलिटी
एक सरकारी सर्वे से ये तथ्य सामने आए हैं कि भारत में अधिकांश युवा शादी और बच्चे नहीं चाहते और उनमें लड़के-लड़कियों दोनों की संख्या लगभग समान है. एक वक़्त था जब लड़कियों का कुंवारा रह जाना समाज हज़म नहीं कर पाता था. शादी को सेटल होने की पहली शर्त माना जाता था. लड़कियों के लिए शादी को एक सुरक्षा कवच और आर्थिक तौर पर भी ज़रूरी समझा जाता था, लेकिन आज लड़कियां ख़ुद अच्छा-ख़ासा कमाती हैं. आर्थिक तौर पर वो किसी पर निर्भर नहीं हैं, ऐसे में वो भी अपनी ज़िंदगी अपने हिसाब से जीने को तवज्जो देती हैं, क्योंकि आज के ज़माने में शादी नहीं, करियर और फाइनेंशियल स्टेबिलिटी सेटल होने की पहली शर्त है.
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बोझिल लगते हैं रिश्ते
आजकल युवाओं का रिश्तों के प्रति प्यार और सम्मान कम होता जा रहा है. उनको रिश्ते बोझ लगते हैं. न पत्नी और बच्चों की ज़िम्मेदारी वो उठाने को तैयार हैं और न ही सास-ससुर व इन लॉज़ से जुड़े अन्य रिश्तों को अपनाना उनको भाता है. फ्री रहना उनके लिए ख़ुश रहने का पासवर्ड बन गया है.
- गीता शर्मा
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