म्यूज़िक इंडस्ट्री के जाने माने सूफी सिंगर कैलाश खेर की लाइफ आज से कुछ साल पहले काफी अलग थी. आज दुनिया भर में फेमस हो चुका ये सिंगर कभी गरीबी से त्रस्त होकर सुसाइड तक करने पर उतारू हो गया था. आपको जानकर हैरानी होगी, कि जिस सिंगर की आवाज के लोग इतने बड़े दीवाने हैं, वो कभी इसी आवाज़ को पहचान देने के लिए ठोकर खाया करते थे. लेकिन उत्तर प्रदेश के मेरठ में जन्मे कैलाश खेर का म्यूज़िक इंडस्ट्री में आज अपना अलग ही मुकाम है. अपनी जादुई आवाज़ से वो अच्छे-अच्छों का दिल चुरा लेते हैं.
कैलाश खेर ने संगीत की शुरुआती शिक्षा अपने पिता से ली थी. उनके पिता का नाम मेहर सिंह खेर था, जो कि एक पुजारी हुआ करते थे. वो घरों में आयोजित होने वाले छोटे-मोटे कार्यक्रम में ट्रेडिशनल फोक गीत गाया करते थे. संगीत में कैलाश खेर के पहले गुरु उनके पिता ही थे. उन्हें संगीत से काफी ज्यादा लगाव था, लेकिन फिर वो कभी बॉलीवुड के गाने नहीं सुनते थे. दरअसल वो संगीत से पैसे कमाने की चाहत नहीं रखते थे और ना ही वो चाहते थे कि उनके बेटे कैलाश भी संगीत को अपने इनकम का सोर्स बनाए. हालांकि कैलाश खेर की सोच पिता से अलग थी. जिसकी वजह से आज वो इस मुकाम पर पहुंच पाए हैं. लेकिन इस मुकाम पर पहुंचने के लिए उन्हें काफी ज्यादा मेहनत करने की जरूरत पड़ी.
बचपन से ही कैलाश खेर म्यूज़िक इंडस्ट्री में अपनी अलग पहचान बनाना चाहते थे. उनका संगीत के प्रति प्रेम ही था, जिसकी वजह से उन्होंने मात्र 13 साल की छोटी सी उम्र में घर छोड़ दिया, ताकि वो संगीत के आगे की शिक्षा प्राप्त कर सके. अपने पिता के खिलाफ जाकर उन्होंने घर छोड़ने का फैसला लिया और दिल्ली आ गए. दिल्ली आने के बाद उन्होंने संगीत सीखने की शुरुआत कर दी. पैसों की कमी को पूरा करने के लिए वो छोटा-मोटा काम भी कर लेते थे. कई विदेशी लोगों को संगीत सिखाकर कुछ पैसे कमा लेते थे.
संगीत सिखाने के साथ ही खेर ने अपना एक छोटा सा बिजनेस भी शुरु कर लिया, ताकि उनके संगीत की शिक्षा में पैसों की कमी की वजह से कोई रुकावट न आए. लेकिन बिजनेस में उनकी किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया. जो भी पूंजी लगाया था सब डूब गया. ऐसे में खेर अंदर से पूरी तरह से टूट गए थे. उन्हें काफी निराशा हाथ लगी. वो इतने परेशान हो गए कि डिप्रेशन में चले गए थे. और दुखी होकर सुसाइड तक करने का मन बना लिया. लेकिन उनके किसी करीबी ने उनका साहस बढ़ाया, जिसके बाद उन्होंने खुद को नकारात्मकता से निकालकर नई राह पर चलने की ठान ली.
आर्थिक और मानसिक परेशानी से खुद को उबारने के लिए कैलाश खेर ने भारत से बाहर जाने का मन बना लिया. इसके बाद वो सिंगापुर और फिर थाइलैंड चले गए. वहां वो करीब 6 महीने रहे, फिर इसके बाद वापस वो भारत लौट आए. भारत में आकर वो रिशिकेष चले गए. यहां वो साधु संतों के साथ रहकर भजन गाने लगे. उनके गानों को सुन हर कोई झूम उठता था. जब उन्हें अपने संगीत के ऊपर भरोसा जगा, तो उन्होंने मुंबई का रुख करने का मन बना लिया.
अपने सपनों को नई उड़ान देने के ख्याल से कैलाश खेर सपनौं की नगरी मुंबई चले गए. मुंबई में उन्हें काफी स्ट्रगल करना पड़ा. जादुई आवाज़ के मालिक होने के बावजूद उनके लिए काम पाना आसान नहीं था. देश की इस आर्थिक नगरी में खेर को काफी गरीबी के दिन भी गुजारने पड़े. उन्हें काफी समय तक चॉल में रहना पड़ा था. हालात ऐसे थे कि, कैलाश खेर के पास पहनने के लिए एक ढंग का चप्पल भी नहीं था. दिन रात एक कर बस वो स्टूडियो के चक्कर काटते रहते थे, ताकि कहीं कोई काम मिल जाए.
आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और एक दिन उन्हें राम संपत ने एक एड में जिंगल गाने का ऑफर दे दिया. उस गाने के लिए उन्हें 5000 रुपये पेमेंट के तौर पर मिला था. हालांकि इसके तुरंत बाद ही उन्हें दूसरा काम नहीं मिल गया था. इसके लिए उन्हें सालों का इंतज़ार करना पड़ा. तब जाकर उन्हें फिल्म 'अंदाज' में बड़ा ब्रेक मिला था. इस फिल्म में उन्होंने 'रब्बा इश्क न होवे' गाने को गाया. इस गाने ने हर ओर धूम मचा दी. अब कैलाश को जानने वाले इंडस्ट्री में बहुत लोग हो गए.
हालांकि जब कैलाश खेर ने फिल्म 'वैसा भी होता है' में 'अल्लाह के बंदे गाने को गाया', तब जाकर उन्हें असली पहचान मिली थी. इस गाने ने उनके करियर को काफी ऊंची उड़ान दी थी. इसके बाद उन्होंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. बता दें कि कैलाश खेर ने अब तक 300 से भी ज्यादा बॉलीवुड गानों में अपनी आवाज़ दी है. तो वहीं अब तक वो पूरे 18 भाषाओं में गाना गा चुके हैं.