जब एक साउंड रिकॉर्डिस्ट ने 'भाभीजी घर पर हैं' सीरियल की अंगूरी भाभी यानी शुभांगी अत्रे का मज़ाक उड़ाया और कहा कि इनका कुछ नहीं होने वाला, तो इस पर शुभांगी अत्रे ने क्या जवाब दिया. इतनी पॉप्युलर एक्ट्रेस के लिए आखिर एक साउंड रिकॉर्डिस्ट ने ऐसा क्यों कहा? अंगूरी भाभी उर्फ शुभांगी अत्रे से इस बात की सच्चाई जानने के लिए हमने उनसे बात की और सच्चाई का पता लगाया. आइए, हम आपको शुभांगी अत्रे से हुई हमारी बातचीत के कुछ दिलचस्प किस्से बताते हैं.
शुभांगी, आजकल लॉकडाउन में आप क्या कर रही हैं?
जैसा कि आप जानती हैं, लॉकडाउन में घर में कोई डोमेस्टिक हेल्प नहीं है, तो सुबह का आधा दिन तो घर के कामों में ही निकल जाता है. मेरे पति पियूष और बेटी आशी घर के कामों में मेरा हाथ बंटाते हैं, इसलिए मिल जुलकर काम आसानी से हो जाता है. हम मध्यप्रदेश से हैं और आप तो जानती हैं कि मध्यप्रदेश के लोग खाने के लिए जीते हैं. हमारे घर में हम तीनों ही फूडी हैं और मेरी बेटी मुझे लिस्ट दे देती है कि हम क्या-क्या खाएंगे. मुझे भी खाना बनाने का बहुत शौक है इसलिए मैं रोज़ कुछ न कुछ नया बनाने की कोशिश करती रहती हूं. हमारे घर में सबको पनीर बहुत पसंद है इसलिए लॉकडाउन में मैंने कड़ाही पनीर, बटर पनीर मसाला, पनीर दोप्याज़ा जैसी पनीर की बहुत सारी रेसिपीज़ बनाई हैं. कल मैंने अमृतसरी कुलचे और छोले बनाए थे. खाना बनाने के अलावा मुझे डांस का भी शौक है, मैंने कथक सीखा है इसलिए जब भी टाइम मिलता है मैं डांस जरूर करती हूं. सोशल मीडिया पर आप मेरे डांस वीडियो देख सकते हैं. हम लोग बहुत बिज़ी रहते हैं इसलिए हम घर पर चुपचाप बैठ नहीं सकते, लॉकडाउन में भी हम कुछ न कुछ नया ट्राई करते रहते हैं.
लॉकडाउन में आपकी बेटी आपसे क्या सवाल करती है?
मेरी बेटी जब पूछती है कि कब लॉकडाउन खुलेगा, हम बाहर कब जाएंगे, तो मेरे पास उसके सवालों का कोई जवाब नहीं होता. मैं सोचती हूं कि हमने अपने बच्चों के लिए कैसा भविष्य बना दिया है. हमने प्रकृति का इतना नुकसान कर दिया है कि इसका खामियाजा हमारी अगली पीढ़ी को भुगतना पड़ रहा है. इस लॉकडाउन ने बहुत से लोगों का नज़रिया बदल दिया है. अब लोगों को ये समझ आने लगा है कि ज़िंदगी से बढ़कर कुछ नहीं, एक छोटे-से वायरस ने पूरी दुनिया को घरों में बंद होने पर मजबूर कर दिया है. एक वायरस यदि इतनी तबाही मचा सकता है, तो सोचिए, यदि प्रकृति अपने रौद्र रूप में आएगी, तो क्या होगा. हमें अपनी ज़िंदगी के लिए ऊपर वाले को शुक्रिया कहना चाहिए और हर जीव की कद्र करनी चाहिए. हमारे लिए ये सीखने का समय है. यदि हम प्रकृति से कुछ ले रहे हैं, तो हमें प्रकृति को लौटाना भी होगा. अगर आपने एक पेड़ काटा है, तो आपको दो पेड़ लगाने होंगे. एक समय में डायनासोर इतनी भारी मात्रा में इसीलिए बढ़ गए थे, क्योंकि उन्होंने किसी और को पनपने ही नहीं दिया. फिर एक समय ऐसा आया जब इस दुनिया से डायनासोर ही लुप्त हो गए. हम इंसान भी तो यही कर रहे हैं, हमने पेड़ काट दिए, नदियां दूषित कर दी, हवा को प्रदूषित कर दिया, अब प्रकृति हमें सज़ा दी रही है. बाढ़, तूफ़ान, भूकंप के साथ-साथ अब हम कोरोना से भी जूझ रहे हैं. यदि हम अब भी नहीं सुधरे, तो हमें इसके और बुरे परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. लॉकडाउन का एक फायदा ये भी हुआ है कि इस दौरान प्रकृति ने खुद को हील किया है और अब प्रकृति ज्यादा खूबसूरत हो गई है. लॉकडाउन में हमारे कई नए दोस्त भी बन गए हैं. इन दिनों हमारे लॉन में कई नए-नए पक्षी आने लगे हैं, हमने इन्हें पहले कभी यहां नहीं देखा था. पिछले हफ्ते हमारे लॉन में एक किंगफिशर भी आया था. अब हम उन पक्षियों के लिए पानी रखते हैं, उन्हें दाना डालते हैं.
क्या आप बचपन से एक्टर ही बनना चाहती थीं?
हां, ये मेरा बचपन का सपना था कि मैं एक्टर बनूं, लेकिन मेरी फैमिली को लगता था कि ये कैसे हो पाएगा. एक्टिंग में करियर बनाने के लिए मुझे मुंबई भेजने से मेरे पैरेंट्स डरते थे. मैंने कथक सीखा है और बहुत छोटी उम्र से ही मैंने कई शहरों में कथक के परफॉर्मेंस शुरू कर दिए थे. जब मैं ग्यारहवीं में थी, तब मैंने कथक में नेशनल कॉम्पटीशन जीता था. एक्टिंग का चांस मुझे तब मिला जब मेरी बेटी का जन्म हो चुका था. हमारी लव मैरिज हुई है. शादी के बाद पीयूष को पुणे में एक अच्छा ऑफर मिला, तो हम पुणे आ गए. तब तक मैं मां बन चुकी थी. फिर एक दिन पीयूष ने बताया कि एक एडवरटाइजिंग एजेंसी को एक शैम्पू के लिए मॉडल चाहिए, ग्लैमर इंडस्ट्री में वो मेरा पहला काम था. मैंने प्रिया हर्बल शैम्पू के लिए पहला ऐड किया था, जिसके लिए मुझे ढाई हजार रुपये मिले थे. वो मेरी एक्टिंग की पहली कमाई थी. तब मेरे फोटोग्राफर ने कहा कि तुम्हारा इंडियन फेस है, तुम्हें टीवी या फिल्म के लिए ट्राई करना चाहिए. मैंने उनसे कहा कि मैं काम करना चाहती हूं, लेकिन मैं इस इंडस्ट्री में किसी को जानती नहीं हूं.
बालाजी में आपकी एंट्री कैसे हुई?
उस समय (वर्ष 2006) पुणे में बालाजी के ऑडिशन हो रहे थे. इसे आप डेस्टिनी कह सकती हैं, मेरे पहले ऑडिशन में ही मुझे बालाजी में काम करने का मौका मिला और हम मुंबई आ गए. 'कसौटी ज़िंदगी की' सीरियल में एक-डेढ़ महीने काम करने के बाद एकता कपूर ने मुझे 'कस्तूरी' सीरियल का टाइटल कैरेक्टर दे दिया और वहां से मुझे एक नई पहचान मिली. लेकिन वो दौर मेरे लिए आसान नहीं था, मेरी बेटी उस समय 11 महीने की थी और मुझे उसके साथ समय बिताने का टाइम ही नहीं मिलता था. उस समय पीयूष ही आशी की पूरी ज़िम्मेदारी निभा रहे थे. उस वक़्त मैं ख़ुश भी थी, क्योंकि मैं अपने सपने को जी रही थी, लेकिन इसके लिए मुझे मेरी बेटी से दूर रहना पड़ता था. आज मैं जो भी हूं, उसका क्रेडिट मैं एकता कपूर को दूंगी. मैं उस वक़्त बहुत रॉ थी, फिर भी एकता ने मुझे लीड रोल दिया. मुझे लगता है कि कामयाबी का सफर बहुत आसान होना भी नहीं चाहिए, क्योंकि मुश्किल समय आपको स्ट्रॉन्ग बनाता है.
अंगूरी भाभी का किरदार आपको कैसे मिला?
अंगूरी भाभी के लिए बहुत सारे लोगों का नाम सामने आया था. उस समय हर कोई ये जानना चाहता था कि अब अंगूरी भाभी कौन बनेगी. जब इस रोल के लिए मेरी मीटिंग हुई थी, उस वक़्त ही ये एक नेशनल न्यूज़ बन गई थी. अंगूरी भाभी का कैरेक्टर मेरे लिए एक्टिंग से ज्यादा लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरना था. उस वक़्त मेरे शो के प्रोड्यूसर और डायरेक्टर ने मुझसे कहा था कि अगले एक-दो महीनों तक सोशल साइट्स को मत देखना, क्योंकि लोग तुलना करेंगे और इससे आपका स्ट्रेस बढ़ेगा. आप सिर्फ अपने काम पर ध्यान दो. 'भाभीजी घर पर हैं' सीरियल के लिए जब मेरा सलेक्शन हुआ, तो मैं एक अच्छे रोल की तलाश में थी, तब मैंने ये नहीं सोचा था कि मुझ पर इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी है. मैंने अपना काम पूरी ईमानदारी से किया और दर्शकों को मेरा काम पसंद आया. अंगूरी भाभी का कैरेक्टर इतना अच्छा है कि ये रोल करने में किसी भी एक्ट्रेस को बहुत मज़ा आएगा. अंगूरी भाभी भावुक भी है, मासूम भी है, मॉडर्न भी है... इस कैरेक्टर में बहुत सारे शेड्स हैं इसलिए मुझे ये कैरेक्टर बहुत पसंद है.
अंगूरी भाभी के कैरेक्टर के लिए आपको किस तरह के कॉम्प्लिमेंट्स मिलते हैं?
लोग जब मुझे किसी इवेंट या एयरपोर्ट पर देखते हैं, तो कई लोग हैरानी से पूछते हैं कि आप तो अंगूरी भाभी से बिल्कुल अलग हैं. कई दर्शकों को लगता है कि मैं रियल लाइफ में भी भाभीजी वाले गेटअप में ही रहती हूं. एक बार यूपी से स्कूल के बच्चों की ट्रिप हमारे सेट पर आई थी, तब अंगूरी भाभी का कैरेक्टर शुरू किए हुए मुझे एक-दो महीने ही हुए थे. उस समय कई स्टूडेंट्स ने मुझसे कहा था कि अब हम जब आंख बंद करके देखते हैं, तो हमें आप ही अंगूरी भाभी नज़र आती हैं, वो कॉम्प्लिमेंट मेरे लिए बहुत बड़ा था. अब तो मैं अंगूरी भाभी के किरदार में पूरी तरह ढल गई हूं, लेकिन शुरू में लोगों की मुझसे बहुत सारी उम्मीदें थीं.
आपका बचपन कहां बीता है?
मेरा बचपन मध्यप्रदेश में बीता है और मेरी पढ़ाई भी वहीँ हुई है. बचपन की बहुत सारी खट्टी-मीठी यादें हैं. हम तीन बहनें हैं और मैं सबसे छोटी हूं. बचपन में मेरी बीच वाली बहन और मेरी खूब लड़ाई होती थी, यहां तक कि हम मॉस्किटो मैट लगाने को लेकर भी झगड़ते थे. एक दिन वो मॉस्किटो मैट लगाती थी और एक दिन मैं, लेकिन संडे कौन लगाएगा, ये मसला सुलझाने के लिए मेरे उस दिन मेरे पापा मॉस्किटो मैट लगाना पड़ता था. हम सब मिलकर चाट खाने जाते थे. आज हम वो सब बातें याद करके बहुत हंसते हैं. मैंने इंदौर में ही अपनी पढ़ाई की है. बीएससी के बाद मैंने एमबीए किया. मैंने कॉलेज के दिनों में लेक्चर बंक करके बहुत सारी फिल्में देखी हैं और ये बात मैं अब अपने पैरेंट्स को बताती हूं. एक बार जब अटेंडेंस को लेकर मेरा नाम आया था, तो मैं डर गई थी कि अब घर में सबको पता चल जाएगा, लेकिन पैरेंट्स को बुलाने की नौबत नहीं आई और मैं बच गई. मुझे पानीपुरी बहुत पसंद है, लेकिन अब मैं पहले की तरह ठेले पर जाकर पानीपुरी नहीं खा सकती, ये चीज़ मैं बहुत मिस करती हूं. हालांकि कई बार मैं खुद को रोक नहीं पाती और चुपचाप ठेले पर जाकर पानीपुरी खा लेती हूं, जब तक लोग मुझे पहचानते हैं, तब तक मैं 5-6 पानीपुरी खा चुकी होती हूं.
एक साउंड रिकॉर्डिस्ट ने आपका मज़ाज क्यों उड़ाया था?
जब मैं 'कसौटी ज़िंदगी की' सीरियल कर रही थी, तब मैं बिल्कुल रॉ थी, मेरे लिए इस इंडस्ट्री की हर चीज़ नई थी. शुरू में मुझे कैमरे की भाषा समझ नहीं आती थी, मुझे समझ नहीं आता था कि मुझे कहां लुक देना है. डायलॉग याद होते हुए भी कई बार मैं कैमरे के सामने फंबल करने लगती थी. उस वक़्त एक साउंड रिकॉर्डिस्ट ने मेरा मज़ाक उड़ाया था. उन्होंने कहा, "इनका कुछ नहीं होने वाला." उनकी वो बात मुझे इतनी चुभ गई कि मैंने उसे एक चैलेंज तरह लिया और अपने काम पर बहुत मेहनत की. पांच-छह महीने बाद जब मैं 'कस्तूरी' शो कर रही थी, तब वो साउंड रिकॉर्डिस्ट मेरे पास आए और बोले, "मैं अपने उस दिन के शब्द वापस लेता हूं, तुम वाकई एक स्टार हो." उस दिन उन्होंने मुझे बहुत सारी ब्लेसिंग्स दी. कई बार किसी का मज़ाक उड़ाना भी आपके लिए तरक्की के रास्ते खोल देता है, मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ.
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आप शूटिंग में इतनी बिज़ी रहती हैं, फिर बेटी के लिए समय कैसे निकाल पाती हैं?
मैंने हमेशा अपनी बेटी को क्वालिटी टाइम दिया है और वो मेरे काम को समझती है. मुझे लगता है कि जब बच्चे घर में ऐसा माहौल देखते हैं, जहां उनके पैरेंट्स अपना काम बहुत मेहनत से करते हैं, तो वो भी उन्हें देखकर वैसा ही करने लगते हैं. बच्चे मां-बाप को देखकर सीखते हैं, आपको इसके लिए अलग से कुछ करने की जरूरत नहीं होती. वर्किंग मदर के बच्चे जल्दी आत्मनिर्भर बनते हैं. हमारे घर में सबके पास अपनी-अपनी चाबी है और सब अपना काम नियम से करते हैं और सभी अपने काम के लिए बहुत मेहनत करते हैं.
- कमला बडोनी