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क्या आपने की है अष्टविनायक की यात्रा? (Yatra Of Ashtvinayaka)

2 गणपति उत्सव के दौरान महाराष्ट्र का कोना-कोना भगवान श्री गणेश की भक्ति में सराबोर रहता है. इस दौरान बप्पा बड़े-बड़े पंडालों से लेकर लोगों के घरों में विराजमान रहते हैं. महाराष्ट्र दर्शन का यह सबसे अच्छा समय होता है. आप भी अगर भगवान गणेश की भक्ति में लीन हो जाना चाहते हैं, तो चलिए, महाराष्ट्र के अष्टविनायक की यात्रा पर. श्री मयूरेश्‍वर ये महाराष्ट्र के पुणे जिले से 80 किलोमीटर दूर मोरगांव में है. मयूरेश्‍वर मंदिर के चारों कोनों में मीनारें हैं और लंबे पत्थरों की दीवारें हैं. इस मंदिर में चार द्वार हैं. इन द्वारों का अपना महत्व है. ऐसी मान्यता है कि ये चारों द्वार चारों युगों का वर्णन करते हैं. ये क्रमशः सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग के प्रतीक हैं. मंदिर के द्वार पर शिवजी के वाहन नंदी बैल की मूर्ति स्थापित है. इसका मुंह भगवान गणेश की मूर्ति की ओर है. नंदी और मूषक दोनों ही मंदिर के रक्षक के रूप में तैनात हैं. मंदिर में गणेशजी बैठी मुद्रा में विराजमान हैं तथा उनकी सूंड़ बाएं हाथ की ओर है. श्री मयूरेश्‍वर की चार भुजाएं एवं तीन नेत्र हैं. क्या है मान्यता? मान्यताओं के अनुसार मयूरेश्‍वर के मंदिर में भगवान गणेश द्वारा सिंधुरासुर नामक एक राक्षस का वध किया गया था. गणेशजी ने मोर पर सवार होकर सिंधुरासुर से युद्ध किया था. इसी कारण यहां स्थित गणेशजी को मयूरेश्‍वर कहा जाता है. सिद्धिविनायक अष्टविनायक में दूसरे गणेशजी हैं सिद्धिविनायक. यह मंदिर पुणे से क़रीब 200 किलोमीटर दूर अहमदनगर में है. यह मंदिर लगभग 200 साल पुराना है. पहाड़ की चोटी पर बने इस मंदिर का मुख्य द्वार उत्तर दिशा की ओर है. मंदिर की परिक्रमा के लिए पहाड़ की यात्रा करनी होती है. यहां गणेशजी की मूर्ति 3 फीट ऊंची और ढाई फीट चौड़ी है. क्या है मान्यता? इस मंदिर को सिद्ध स्थान माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि यहां भगवान विष्णु ने सिद्धियां हासिल की थीं. यह भी पढ़ें: पावर ऑफ हनुमान चालीसा बल्लालेश्‍वर अष्टविनायक में अगला मंदिर है बल्लालेश्‍वर मंदिर. यह मुंबई-पुणे हाइवे पर रायगढ़ जिले के पाली गांव में स्थित है. इस मंदिर का नाम भगवान गणेशजी के भक्त बल्लाल के नाम पर पड़ा है. क्या है मान्यता? ऐसी मान्यता है कि सालों पहले बल्लाल नाम का एक लड़का, जो गणेशजी का परम भक्त था, एक दिन उसने पाली गांव में विशेष पूजा का आयोजन किया. कई दिनों तक लगातार पूजा चलती रही, जिससे वहां बैठे बच्चे अपने घर नहीं गए. ऐसे में उनके माता-पिता ने ग़ुस्से में आकर बल्लाल और भगवान गणेश की मूर्ति को जंगल में फेंक दिया. ऐसी हालत में भी बल्लाल गणेशजी का मंत्र जाप करना नहीं भूला. इससे गणेशजी उसे दर्शन देते हैं और उसके कहने पर सदा के लिए यहीं रुक जाते हैं. 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- श्वेता सिंह 

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