बच्चे मासूम और निश्छल होते हैं. छोटेपन में उनके साथ किया गया व्यवहार आमतौर पर ताउम्र उन पर हावी रहता है. ऐसे में माता-पिता द्वारा प्यार-दुलार हो या मारना-पीटना, सबका बच्चों के दिलोदिमाग पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है. अक्सर देखा गया है कि कुछ पैरेंट्स अपने बच्चों को बात न मानने, ज़िद करने, अनुशासित न रहने पर ख़ूब पीटते हैं. वे एक पल को भी यह नहीं सोचते कि उनके ऐसा करने से बच्चे के कोमल मन पर कितना बुरा असर पड़ता है.
बच्चा इसे नकारात्मक तौर पर लेने लगता है. यदि बच्चे की हर छोटी-बड़ी बात पर पिटाई होती रहती है, तो आगे चलकर इसके काफ़ी बुरे असर देखने को मिलते हैं. आख़िरक़ार पैरेंट्स को अपने बच्चों की पिटाई क्यों नहीं करनी चाहिए, इसी से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर एक नज़र डालते हैं.
बच्चों को मारने-पीटने से होने वाले दुष्प्रभाव
- बच्चों में आत्मविश्वास की कमी आ जाती है.
- उनके दिलोदिमाग़ पर इसका बुरा असर होता है.
- अधिकतर मामले में वे अभिभावकों का सम्मान करना बंद कर देते हैं.
- कुछ केसेस में तो वे पैरेंट्स से नफ़रत तक करने लगते हैं.
- बच्चे का स्वभाव ग़ुस्सैल हो जाता है.
- कई परिस्थितियों में बच्चे विद्रोही भी बन जाते हैं.
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पैरेंट्स की दुविधा
ऐसा नहीं है कि माता-पिता जानबूझकर बच्चों के साथ मार-पीट करते हैं. आमतौर कई बार समझाने और रोकने-टोकने के बावजूद बच्चे नहीं सुनते. ऐसे में पैरेंट्स की सहनशक्ति भी जवाब देने लगती है. तब उन्हें लगता है कि उनके पास एकमात्र समाधान मारपीट ही बचा है और वे बच्चे की जमकर धुलाई कर देते हैं. वे चाहते हैं कि उनका बच्चा अनुशासन में रहे. आज्ञाकारी बने. उनका कहना माने. जबकि अक्सर रिज़ल्ट उल्टा हो जाता है.
बच्चे मनमानी करते हैं और अपनी ज़िद अभिभावकों से मनवाते हैं. बच्चों की यही ब्लैकमेलिंग पैरेंट्स को चुभ जाती है. वे अपने बच्चे के भविष्य को लेकर चितिंत हो जाते हैं. वे इस बात को बख़ूबी जानते हैं कि बच्चे को सही-ग़लत की अभी समझ नहीं है. उसकी डिमांड सही नहीं है. भविष्य में इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा. इन्हीं सब विचारों के चलते वे बच्चे को पहले प्यार से समझाते हैं. कई मिसाल भी देते हैं, पर बच्चे फिर भी कहां मानते हैं. तब उनके सब्र का बांध टूट जाता है और वे बच्चे को समझाने के लिए उसे जमकर पीट देते हैं. उन्हें अपने तमाम दुविधाओं का समाधान मार ही लगता है.
सबसे पहली बात बच्चों को मारना किसी भी तरह से ठीक नहीं है. यहां पर पैरेंट्स को धैर्य से काम लेना होगा. उन्हें बच्चे की मनोस्थिति को बारीक़ी से समझना होगा. इसकी तह तक जाना होगा कि आख़िर क्या वजह है, जो बच्चा मनमानी कर रहा है, इतना उद्दंड होता जा रहा है. जब वे विभिन्न पहलुओं पर गंभीरता से ध्यान देने लगेंगे, तो समाधान के रास्ते भी निकलते चले जाएंगे.
बदलते वक़्त के साथ बिगड़ते बच्चे
आज के दौर में बच्चों का उल्टा जवाब देना सबसे बड़ी समस्या बनता जा रहा है. लेकिन पैरेंट्स को समझना होगा कि इसकी वजह कहीं न कहीं उनका बच्चों को मारना-पीटना भी है. दरअसल, बच्चों को मारने से उन पर इसका भावनात्मक व शारीरिक दोनों ही तरह से ग़लत असर पड़ता है. एक समय ऐसा आता है कि वे हिंसक भी हो जाते हैं. उन्हें लगता है कि मारना ही समस्या का निवारण है. वे इसे अपने छोटे भाई-बहन पर आज़माते हैं. जिस तरह मम्मी-पापा उनके साथ ग़ुस्सा करना, थप्पड़ मारना, छोटे-मोटे दबाव बनाते हैं, ठीक उसकी तरह वो अपने से छोटे भाई-बहन पर करने लगते हैं.
पैरेंट्स द्वारा बच्चे को अधिक मारने-पीटने से बाहरी लोगों, पड़ोसियों आदि को भी लगता है कि इनका बच्चा इतना बदमाश है कि उसे ठीक करने का उपाय मार ही है. कई मामले में तो वे भी बच्चों को पीट देते हैं. ऐसे में बच्चे के मन में डर पनपने लगता है. उसका ख़ुद से विश्वास उठने लगता है. वह मम्मी-पापा से बातें छिपाने लगता है. साथ ही उसे यह भी लगने लगता है कि छोटों को मारना ग़लत नहीं है और मौक़ा मिलने पर वह अपने से छोटे, दोस्तों, भाई-बहनों को मारने से भी हिचकिचाता नहीं है.
कॉन्फिडेंस कम होने लगना…
जब पैरेंट्स बच्चों को अक्सर ही मारने-पीटने लगते हैं, तो बच्चे को यह महसूस होने लगता है कि वो बुरा इंसान है. ग़लतियां उससे ही होती हैं. उसका आत्मविश्वास डगमगाने लगता है. वह कई बार बुरी संगति में पड़ जाता है. ग़लत आदतों को अपनाने लगता है. यहां मार से बच्चे को सुधारने का आपका फॉमूर्ला फेल होने लगता है और वो सुधरने की जगह और भी बिगड़ने लगता है. इमोशनली बच्चा इस कदर आहत हो जाता है कि इन सबसे वो जल्दी उबर नहीं पाता है.
रिस्पेक्ट न करना…
बच्चों को मारने का सबसे बुरा असर यही होता है कि पैरेंट्स उसकी नज़र में अपना सम्मान खो देते हैं. वो पैरेंट्स से दूर होने लगता है. उसके मन में यह बात घर कर जाती है कि मैं तो बुरा हूं ही, मेरे मम्मी-पापा भी वैसे ही हैं, इसलिए वे अक्सर मुझे पीटते रहते हैं. मम्मी-पापा के सवालों का जवाब नहीं देना, लोगों के सामने उनके साथ मिस बिहेव करना उसकी आदत में शुमार हो जाता है. कहीं न कहीं बच्चे को दूसरों के सामने ख़ुद को प्रस्तुत करने में भी द़िक्क़तें आने लगती है. यदि बच्चा अधिक इमोशनल है, तो कुछ केसेस में वो दूसरे बच्चे को पिटते देख ख़ुद भी रोने लगता है. वो अपनों से इतना डर जाता है कि अपनी बात कहने या कोई प्रॉब्लम बताने से भी डरने लगता है.
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उद्दंड व विद्रोही अवतार…
बच्चों को मारते रहने से उन्हें भी इसकी आदत होती चली जाती है. पहले वे आपसे डरते हैं, पर जैसे-जैसे वे बड़े होते जाते हैं, उनका डर ख़त्म होता जाता है. अब आपके मारने पर उन्हें क्रोध आता है, वे उल्टा जवाब देने लगते हैं, उद्दंड व विद्रोही होने लगते हैं. बच्चे के द्वारा अपमान करना, उल्टा जवाब देना आपको दुखी करने लगता है. एक समय ऐसा भी आता है कि वो अपनी मनमानी करने लगता है, आपकी बातों को नकारने लगता है. आपको रिस्पेक्ट नहीं देता. यह सब कुछ पैरेंट्स व बच्चे दोनों के लिए ठीक नहीं है.
ग़ुस्सैल बन जाता है
यह तो जगज़ाहिर है कि बच्चे पैरेंट्स से ही बहुत कुछ सीखते हैं. यदि आप ग़ुस्से में बच्चे को मारते-पीटते हैं, तो वो भी भविष्य में ऐसा करने लगता है. उसका भी क्रोधी स्वभाव बनता चला जाता है. तब घर ही नहीं, बाहर भी दूसरों पर वो ग़ुस्सा दिखाने लगता है.
बच्चे को सुधारने और सबक सिखाने के लिए मारना-पीटना सही रास्ता नहीं है. माना बच्चे की शैतानियां व ग़लतियां आपको हाथ उठाने पर मजबूर करती हैं. लेकिन मारने की बजाय प्यार व धैर्य से भी काम लिया जा सकता है. बच्चे को उनकी ग़लतियों के बारे में प्यार से समझाएं. उससे बातचीत करें. यदि समस्या गंभीर रूप लेने लगे, तो काउंसलर की मदद भी ली जा सकती है. लेकिन ध्यान रहे कि समस्या का समाधान प्यार, बातचीत और सुलझे व्यवहार से हो सकता है, बजाय मारने के.
- ऊषा गुप्ता