गरीबों का मसीहा- मेडिसिन बाबा (The Incredible Story Of ‘Medicine Baba’)
Share
5 min read
0Claps
+0
Share
मेडिसिन बाबा (Medicine Baba) का एक ही सपना... ग़रीबों के लिए मेडिसिन बैंक हो अपना... जी हां, यह नारा है ओमकार नाथ शर्माजी का. दिल्ली के उत्तम नगर में किराए के छोटे से मकान में रहनेवाले ओमकार नाथ उर्फ़ मेडिसिन बाबा ग़रीबों के मसीहा हैं. अपने किराए के मकान के दो कमरों में वो दवाइयों का स्टॉक रखते हैं, जिसमें सस्ती और महंगी दवाइयां भरी पड़ी हैं.
मेडिसिन बाबा का ये सफ़र शुरू हुआ 2008 में जब लक्ष्मी नगर के निर्माणाधीन मेट्रो पुल के हादसे ने उनकी ज़िंदगी बदल दी. उसमें तीन लोग मारे गए थे और कई लोग घायल हो गए थे. घायलों के लिए हॉस्पिटल में दवाइयों के अभाव को देखकर उनका दिल दहल गया. तब से उन्होंने ठान लिया कि इस मुश्किल का हल निकालना है और फिर अकेले ही ओमकारजी अपने मिशन पर निकल पड़े.
उनके मन में एक ही विचार सतत चल रहा था कि हर घर में दवाइयां इस्तेमाल होती हैं और जब मरीज़ ठीक हो जाते हैं, तो दवाइयां फेंक दी जाती हैं, फिर चाहे वो कितनी भी महंगी क्यों ना हों. ऐसे मेंं क्यों न इन दवाइयों का सही इस्तेमाल किया जाए यानी इन्हें ज़रूरतमंद लोगों तक पहुंचाया जाए. केसरिया रंग का कुर्ता-पायजामा पहने एक झोला लेकर वे निकल पड़े गली-मोहल्ले में भीख मांगने, पर पैसे और रोटी की भीख नहीं, बल्कि दवाइयों की भीख. उनका मानना है कि मैं लोगों से ज़रूरतमंद लोगों की ज़िंदगी मांग रहा हूं, तो इसमें बुराई क्या है. जिनके पास दवाइयां हैं, पर अब उनके काम की नहीं, तो उसे दान में दे सकते हैं.
इस तरह हर गली-मोहल्लेे में बाबा ने फेरीवाले की तरह आवाज़ देकर अपना कार्य शुरू किया. उनसे बातचीत में उन्होंने बताया कि उनकी धर्मपत्नी ने काफ़ी समय तक उनसे बात नहीं की यह कहते हुए कि यह भी कोई काम है, जो आप करते हो, पर वे अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटे. जहां-जहां से वे गुज़रते थे, लोगों के कौतूहल का विषय बन जाते. बाबा ख़ासकर उन इलाक़ों में घूमते, जहां लोग महंगी दवाइयां दान में दे सकते थे. सफ़र लंबा था, पर उन्होंने तय करना ठान लिया था. आलोचना करनेवाालों की भी कमी न थी. वे कहते बाबा दवाइयां बेचकर अपने बच्चों को पाल रहा होगा, पर अपना लक्ष्य पाने की चाह ने उन्हें रुकने न दिया. किसी शायर ने भी तो ख़ूब कहा है कि क़दम क़दम चलेंगे तो मंज़िल पा ही जाएंगे, क्योंकि ठहरे हुए पानी को समंदर नहीं मिलते.
बाबा के केसरिया रंग के कुर्ते पर उनका फोन नंबर और ईमेल आईडी लिखा रहता है. चाहे शादी-ब्याह हो, ख़ुशी-ग़म के मौ़के हों, बाबा सभी में अपना केसरिया कुर्ता पहनकर ही शामिल होते. पहले वे हाथ से अपने कुर्ते पर लिखते थे, पर अब वे प्रिंट करवाते हैं. धीरे-धीरे बाबा के साथ इस सफ़र में
बहुत-से लोग जुड़ने लगे. मीडियावालों ने भी उनके बारे में बहुत कुछ लिखा. उनसे बाबा कहते थे कि मेरा चेहरा नहीं, मेरा फोन नंबर अख़बार में आना चाहिए, ताकि अधिक से अधिक ज़रूरतमंद लोगों की मदद की जा सके. और ऐसा हुआ भी. आज बाबा एम्स हॉस्पिटल, राम मनोहर लोहिया हॉस्पिटल आदि में लाखों की दवाइयां देते हैं. उनके पास 18 मरीज़ ऐसे हैं, जो किडनी ट्रांसप्लांट करवा चुके हैं और उनको हर दवाई बाबा उपलब्ध करवाते हैं. जो मेडिकल स्टोर बाबा से जुड़ गए हैं, वे भी कम पैसों में इंजेक्शन व दवाइयां देकर अपना योगदान दे रहे हैं. हेल्पलाइन फार्मसी तो बाबा को समय-समय पर अपना योगदान देती रहती है.
स्टेट काउंसिल ऑफ एजुकेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर, छत्तीसगढ़ की एक किताब में इंस्पिरेशन नाम से बाबा का एक अध्याय पढ़ाया जा रहा है. 2012 में रीडर्स डायजेस्ट में हीरोज़ के नाम से उनके बारे में लिखा गया है. सभी न्यूज़ चैनल्स ने भी उनकी उपलब्धियों व योगदान को लोगों तक पहुंचाया है. अब तक क़रीब अस्सी देश उनके बारे में लिख चुके हैं. बाबा का एक ही लक्ष्य है कि हर ज़रूरतमंद को दवाई मिल सके, इसके अभाव में कोई अनहोनी ना हो. उनका कहना है कि किसी भी सरकार ने आज तक मेडिसिन बैंक नहीं बनाया, जो कि सरकार को बनाना चाहिए था. उनके इस समर्पण को देखकर सहज ही नतमस्तक होने को मन करता है. उनके इस निस्वार्थ सेवा व जज़्बे को तहेदिल से सलाम!