चलते-चलते हम दौड़ने लगे... दौड़ थोड़ी और तेज़ हुई... फिर और भी तेज़... बहुत-से लोग जब हमसे तेज़ दौड़ने लगे, तो हम भी उनसे आगे निकलने के लिए और तेज़ भागने लगे... इस दौड़-भाग में क्या कुछ पीछे छूटता जा रहा है, क्या कुछ खो रहा है, हमने न देखा, न समझा और न ही जानने की कोशिश की... लेकिन कहीं ऐसा न हो कि जब हम होश में आएं, तब तक बहुत देर हो जाए. बेहतर होगा कि समय रहते संभल जाएं, ताकि ज़िंदगी व रिश्तों में सामंजस्य बना रहे.
क्या-क्या प्रभावित हो रहा है? यह सच है कि बहुत कुछ पाने के लिए बहुत कुछ खोना भी पड़ता है, लेकिन इसका यह अर्थ बिल्कुल नहीं कि कुछ पाने के लिए आप सब कुछ ही खो दें. व्यस्त ज़िंदगी अब हमारी आदत में शुमार हो चुकी है, लेकिन इस व्यस्तता ने हमारे रिश्ते, हमारी सेहत, हमारे निजी क्षण व हमारे बच्चों को भी काफ़ी हद तक प्रभावित किया है. किस तरह, आइए जानें-
रिश्ते - यहां हम स़िर्फ पति-पत्नी के ही नहीं, हर तरह के रिश्तों का ज़िक्र कर रहे हैं. कामयाब ज़िंदगी की चाह और अधिक से अधिक पैसा कमाने की ख़्वाहिश ने हमारी प्राथमिकताएं पूरी तरह से बदलकर रख दी हैं. - हमारे पास अब समय की कमी रहती है. अगर इसके लिए हमें टोका जाता है, तो हमें खीज ही होती है. - सुकून से बैठकर अपनों से बात करना अब हमें समय की बर्बादी लगती है. हमारे तर्क कुछ इस तरह के होते हैं- जो काम फोन पर या मैसेज से हो सकता है, उसके लिए पर्सनली मिलने की क्या ज़रूरत... सोशल नेटवर्किंग साइट्स के ज़रिए तो सबका हाल-चाल पता चल ही जाता है, तो वेकेशन पर उन्हीं के पास जाने की क्या ज़रूरत है... रिश्तेदार के यहां जाने का टाइम नहीं, थकान ही मिटानी है, तो अच्छा होगा दो दिन के लिए किसी रिसॉर्ट में जाकर चिल करें... तुम लोग सारा दिन घर पर आराम करते हो, तुम्हें क्या पता कितना स्ट्रेस होता है... मूवी या डिनर पर बाहर जाने से अच्छा है, घर पर ही कुछ मंगा लेते हैं... इस तरह की बातें हम और आप अक्सर हमारे अपनों से करते हैं, जो हमें तो तर्कपूर्ण लगती हैं, पर उन्हें तकलीफ़ देती हैं. - चाहे भाई-बहन हों या पैरेंट्स हमारी फास्ट लाइफ का प्रभाव सभी पर पड़ रहा है. उनके साथ हमारी बॉन्डिंग ढीली पड़ रही है. उनका हालचाल पूछने तक के लिए हमें एक्स्ट्रा एफर्ट डालकर समय व ़फुर्सत निकालनी पड़ती है. - हमारे क्लाइंट्स, कलीग्स और दोस्त हमारे रिश्तों से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं. अपनों को और ख़ासतौर से पैरेंट्स को हम बहुत ही कैज़ुअली लेने लगे हैं, जिससे रिश्तों में नीरसता पसरती जा रही है. सेहत - ऐसा नहीं है कि स़िर्फ हमारे रिश्ते ही स्लो ट्रैक पर आ गए हैं, हमारी सेहत भी इससे काफ़ी प्रभावित हो रही है. - कम उम्र में ही थकान और तनाव हम पर हावी होने लगता है. - लाइफस्टाइल डिसीज़, जैसे- हार्ट प्राब्लम्स, डायबिटीज़, ओबेसिटी, जोड़ों में दर्द आदि सामान्य सी बात हो गई है. - अल्कोहल, अनहेल्दी फूड, नींद पूरी न होना- ये तमाम तरह की चीज़ें अब रोज़मर्रा की बात हो गई है. - न स़िर्फ शारीरिक, मानसिक थकान भी हम पर हावी रहती है, जिसके परिणामस्वरूप कई मनोवैज्ञानिक व व्यावहारिक समस्याओं क दख़ल हमारे जीवन में अब आम होता जा रहा है. पर्सनल लाइफ - ख़ूबसूरत, निजी पलों को जीना हम लगभग भूल ही गए हैं. - हल्के-फुल्के रूमानी क्षणों से लेकर सेक्स लाइफ तक हमारी फास्ट लाइफ की भेंट चढ़ती जा रही है. - यही वजह है कि रिश्ते कमज़ोर पड़ते जा रहे हैं और उनके टूटने की संख्या भी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. - अपने पार्टनर ही नहीं, ख़ुद अपने लिए भी समय न होने का रोना हम अक्सर रोते हैं, जिससे हमें पर्सनल स्पेस नहीं मिल पाती और इसका असर हमारी क्रिएटिविटी व काम करने की क्षमता पर भी पड़ता है. बच्चे - बच्चों को हम परफेक्ट बनाने की चाह रखते हैं, लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि बच्चे हमें ही फॉलो करते हैं. उन्हें परफेक्ट बनाने के लिए हमें भी अपने व्यवहार में परफेक्शन लाना होगा. - उनके ही सामने हम मनमानी करते हैं. अपने पैरेंट्स को इग्नोर करते हैं, स्मोक-ड्रिंक करते हैं, ऑफिस का टेंशन घर पर लाते हैं, अपने पार्टनर पर उसका ग़ुस्सा निकालते हैं, देर रात तक टीवी देखते हैं और ये उम्मीद करते हैं कि बच्चे वही करें जो हम उन्हें कह दें. - हम अनहेल्दी खाएंगे, अनहेल्दी लाइफस्टाइल अपनाएंगे, तो बच्चों को हेल्दी हैबिट्स कैसे सिखाएंगे. लाइफस्टाइल - फास्ट लाइफ में सब कुछ फास्ट हो गया है और हमारी लाइफस्टाइल भी बहुत हद तक बदल गई है. - गैजेट्स और तकनीक के आदी हो गए हैं. - बिना मोबाइल और लैपटॉप के बेचैनी महसूस होने लगती है. - सोशल नेटवर्किंग साइट्स ही भावनाओं के आदान-प्रदान का ज़रिया हो गई है. - अंजानों के बारे में सब कुछ जानने लगे हैं और अपनों से अनजान होते जा रहे हैं. - मोटापा व आलस्य बढ़ता जा रहा है, जिसके चलते कई तरह की समस्याएं हो रही हैं. - एक अध्ययन के मुताबिक लोग इतने आलसी हो गए हैं कि थोड़ी-सी दूरी तय करने के लिए भी वो चलने की बजाय ऑटो या प्राइवेट गाड़ी ही लेना पसंद करते हैं. - सीढ़ियों की बजाय लिफ्ट ही लेते हैं, भले ही उन्हें पहली या दूसरी मंज़िल पर ही जाना हो. क्या आप बहुत फास्ट जी रहे हैं? फास्ट लाइफ किस तरह से और किन-किन स्तरों पर हमें प्रभावित कर रही है, यह जानने के लिए कई तरह के शोध भी किए गए. 25 वर्ष व इससे अधिक की आयु के 550 लोगों पर किए गए एक शोध के मुताबिक़ तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी ने हमारी द़िक्क़तें हर स्तर पर बढ़ाई हैं, जिसका परिणाम है कि शराब का सेवन कई गुना बढ़ा है, पेट व बदहज़मी की समस्या बढ़ गई है, चिड़चिड़ापन, सेक्स की इच्छा में कमी आदि समस्याएं उत्पन्न हुई हैं. - लाइफ इन द फास्ट लेन नाम की इस रिपोर्ट में यह पाया गया कि 85% लोग बदहज़मी की समस्या से जूझ रहे थे और 62% लोग सेक्स की इच्छा में कमी महसूस कर रहे थे. - पांच में से एक ने यह माना कि वीकेंड में वो ऑफिस का काम घर ले जाते हैं. - जबकि आधे लोगों ने यह माना कि वीकेंड में महीने में एक बार वो काफ़ी ज़्यादा तनाव व थकान महसूस करते हैं. - 61% लोग शाम के खाने के लिए स़िर्फ 15-30 मिनट का ही समय निकाल पाते हैं, जबकि 80% लोग तनाव के कारण अत्यधिक शराब का सेवन करते हैं. - इसके अलावा धैर्य की कमी, ग़ुस्सा, चिड़चिड़ापन जैसे लक्षण उनमें बढ़ रहे हैं. - एक्सपर्ट्स के अनुसार डायट और फिज़िकल एक्टिविटी के बीच सामंजस्य बैठाकर हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाकर तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी के बुरे प्रभावों से काफ़ी हद तक बचा जा सकता है. स्ट्रेस और टाइम मैनेजमेंट के ज़रिए भी तनाव से काफ़ी हद तक मुक्ति पाई जा सकती है, जैसे- यदि आप ट्रैफिक में फंसे हैं, तो झल्लाने से बेहतर है कि कोई ज़रूरी फोन करके उस समय का सदुपयोग करें या घर, दोस्त या रिश्तेदार का हालचाल ही पूछ लें. इसी तरह से लंच टाइम में आप कुछ शॉपिंग कर सकते हैं या ज़रूरी सामान की लिस्ट तैयार कर सकते हैं. - सब कुछ पाने के लिए हम अपनी भूख और नींद तक से कॉम्प्रोमाइज़ कर रहे हैं. समय पर न खाने के कारण जहां कई तरह की हेल्थ प्रॉब्लम्स हो रही हैं, वहीं एक तथ्य यह भी है कि अब लोगों को औसत नींद पहले के मुकाबले कम मिलने लगी है. इस वजह से काम और क्रिएटिविटी पर तो असर होता ही है, लेकिन सड़क दुर्घटनाएं भी अधिक होती हैं. यहां तक कि अल्कोहल यानी शराब पीकर गाड़ी चलाने से जो दुर्घटनाएं होती हैं, उसके मुकाबले नींद पूरी न होने के कारण होनेवाली दुर्घटनाओं की संख्या कहीं अधिक है.- ब्रह्मानंद शर्मा
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