हवा में ख़ुशबू-सा उसका बिखर जाना, बहते झरनों की रफ़्तार से ताल मिलाना... चांद-तारों की कहानियों में उसे ढूंढ़ना, क़िताब में बरसों से पड़े सूखे गुलाब में उसे देखना... जी हां, मुहब्बत का ये अफ़साना बड़ी ही ख़ामोशी से दिल पर अपना अक्स छोड़ देता है और उसकी तड़प रूह तक महसूस होती है. प्यार व रोमांस से जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्य व उससे जुड़े मिथ्स व फैक्ट्स (ABC Of Love) जब आप जानेंगे, तो इस अफ़साने को और भी शिद्दत से महसूस कर पाएंगे.
ख़ामोश-सा अफ़साना
एक लहर तेरे ख़्यालों की, मेरे वजूद को भिगो जाती है... एक बूंद तेरी याद की मुझे इश्क़ के दरिया में डुबो जाती है... तू कौन है, पता नहीं, पर तेरे होने की ख़ुशबू मुझे कुछ ख़ास बना जाती है. प्यार से जुड़ी कई बातें हमें अक्सर जानने-पढ़ने को मिलती हैं और हम उसे ही आधार बनाकर अपनी एक राय कायम कर लेते हैं, बिना यह जानने की कोशिश किए कि इन बातों में कितनी सच्चाई है. यहां हम प्रयास करेंगे प्यार से जुड़े कुछ मिथ्स व फैक्ट्स को जानने की, ताकि प्यार की पाक़ीज़गी को और बेहतर तरी़के से महसूस कर पाएं.
- सबसे पहला व सामान्य मिथ प्यार को लेकर यही है कि प्यार के बाद शादी इसलिए ज़रूरी है कि शादी से प्यार ताउम्र बरक़रार रहता है. यानी शादी प्यार को हमेशा के लिए ज़िंदा रखने का सबसे बेहतर उपाय है. हक़ीक़त में प्यार का मतलब होता है अपने मन की भावनाओं को व्यक्त करना, जबकि शादी एक सामाजिक प्रथा है, जिसके होने से प्यार बने रहने की कोई गारंटी नहीं मिलती. प्यार अपनेआप में एक मुकम्मल एहसास है, जिसे पूरा होने के लिए या हमेशा बने रहने के लिए किसी प्रथा या बंधन में बंधने की ज़रूरत नहीं.
- कहते हैं सच्चा प्यार अंधा होता है और उसमें आपको अपने पार्टनर को उसी रूप में स्वीकारना ज़रूरी है, जैसा वो है. लेकिन हक़ीक़त तो यही है कि जब हम किसी के क़रीब आते हैं, तो उसके ग़लत व्यवहार से आहत व परेशान होते ही हैं, तब हो सकता है, प्यार का रिश्ता लंबे समय तक बना न रहे.
- अक्सर कहा जाता है कि रोमांस की गर्माहट बनाए रखने के लिए थोड़ी दूरी भी ज़रूरी है. लेकिन दूसरी तरफ़ सच्चाई यह भी है कि नज़रों से दूर होते ही मन से भी दूर होने में व़क्त नहीं लगता. इसीलिए कहा गया है- आउट ऑफ साइट आउट ऑफ माइंड.
- प्यार के रिश्ते का बनाए रखने के लिए शारीरिक आकर्षण व सेक्स बहुत ज़रूरी है. प्यार की वजह से शारीरिक आकर्षण हो सकता है, लेकिन प्यार स़िर्फ सेक्स पर ही टिका हो, तो उसे ख़त्म होते देर नहीं लगती. प्यार एक भावनात्मक एहसास है, इसे पूरी तरह शरीर से जोड़ना ही सबसे बड़ी ग़लती है.
- प्यार में पैसा भी बहुत ज़रूरी है, ताकि अपने पार्टनर को महंगे तोहफ़ों से ख़ुश रखा जा सके. यह बात पूरी तरह ग़लत है, प्यार में आपसी विश्वास व केयरिंग नेचर सबसे ज़रूरी है, बजाय भौतिक चीज़ों के.
- प्यार व रिश्ते की गहराई बढ़ाने के लिए अतिरिक्त प्रयास बेहद ज़रूरी हैं. सबसे पहली बात तो यह कि जहां अतिरिक्त प्रयास की ज़रूरत पड़े, वहां प्यार की गहराई हो ही नहीं सकती. प्यार एक स्वाभाविक प्रक्रिया व भावना है, जिसमें आप ख़ुद-ब-ख़ुद बहते चले जाते हैं और अपने रिश्ते के लिए जो भी करते हैं, वो स्वाभाविक रूप से करते हैं. प्रयास करने पर ऐसा लगेगा आप ज़बर्दस्ती कुछ कर रहे हैं.
- रोमांस वही सच्चा होता है, जैसा क़िताबों व फिल्मों में दिखाया जाता है. ये भी बहुत बड़ी ग़लतफ़हमी है. ज़रूरी नहीं कि आप फिल्मी स्टाइल में कैंडल लाइट डिनर में आई लव यू कहें या किसी हीरो की तरह हर बार फूलों का गुलदस्ता अपने पार्टनर के लिए लेकर जाएं. प्यार का मतलब होता है अपने पार्टनर के साथ सहज व स्वाभाविक रहना. असहज होने का मतलब है कि आप दिखावा कर रहे हैं.
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जब सारे रास्ते सिमट जाते हैं, तो कुछ मोड़ तन्हा रह जाते हैं... इंतज़ार में पड़े होते हैं कि कभी तो कोई मुसाफ़िर उन तक पहुंचेगा अपनी मंज़िल की चाह में... दुनिया में इतने लोग होते हैं, ऐसे में क्या वजह है कि हमें कोई एक भाने लगता है और वो हमारे लिए सबसे ख़ास हो जाता है. इसके पीछे एक वजह यह बताई जाती है हर कोई अपने स्तर पर ख़ुद से अधिक मज़बूत व आकर्षक व्यक्ति की तरफ़ आकर्षित होता है. अगर किसी को देखकर हमें यह लगता है कि यह हमारी देखभाल करेगा, हमारी रक्षा करेगा, हमारी भावनाओं को समझेगा, तो हम उसकी ओर आकर्षित होते चले जाते हैं.
दूसरी वजह है हमारे हार्मोंस. ये बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं हमारे मन-मस्तिष्क को नियंत्रण करने में. ज़िंदगी के अलग-अलग मोड़ पर व अलग-अलग अवस्थाओं में हार्मोंस कम या अधिक मात्रा में पैदा होते हैं. इन्हीं की वजह से हम किसी की ओर आकर्षित भी होते हैं. एक मशहूर शोध के अनुसार- प्यार की तीन अवस्थाएं होती हैं- लस्ट (लालसा या वासना), अट्रैक्शन (आकर्षण) और अटैचमेंट (जुड़ाव). ये विभिन्न अवस्थाएं हमारे हर्मोंस के बदलाव पर निर्भर करती हैं.
लस्ट: यह पहली अवस्था होती है, जब हम किसी को देखकर उसके प्रति शारीरिक रूप से आकर्षित होते हैं. यह अवस्था सेक्सुअल फैंटसीज़ से अधिक जुड़ी होती है. पुरुष व महिला दोनों की ही इस अवस्था के लिए सेक्स हर्मोंस- टेस्टोस्टेरॉन और इस्ट्रोजेन ज़िम्मेदार होते हैं.
अट्रैक्शन: यह सबसे ख़ूबसूरत अवस्था होती है, जिसमें अक्सर हम कहते हैं कि हमें प्यार हो रहा है. इस दौरान हम अपने साथी के ही ख़्यालों में खोए रहते हैं और धीरे-धीरे भावनात्म रूप से भी उससे जुड़ने लगते हैं. इस अवस्था के लिए जो हार्मोंस ज़िम्मेदार होते हैं, वो हैं-
डोपामाइन: यह हर्मोन न्यूरोट्रांसमीटर की तरह काम करता है. जब यह हार्मोन उत्पन्न होता है, तो व्यक्ति को अजीब-सी ख़ुमारी व ख़ुशी महसूस होती है. इससे अतिरिक्त ऊर्जा महसूस होने लगती है और यहां तक कि नींद व आराम की ज़रूरत भी बेहद कम हो जाती है.
एड्रैनलाइन: जब इस हार्मोन का स्तर बढ़ता है, तो आप किसी और की ओर आकर्षित होने लगते हैं. दिल की धड़कनें तेज़ होने लगती हैं, मुंह सूखने लगता है यानी प्यार की पहले संकेत मिलने लगते हैं.
अटैचमेंट: यह सबसे आख़िरी अवस्था है, जो एक मज़बूत रिश्ते के लिए बहुत ज़रूरी है. वैज्ञानिकों के अनुसार इस अवस्था में जो हर्मोंस अहम भूमिका निभाते हैं, वो हैं- ऑक्सीटोसिन और वैसोप्रेसिन. ये दोनों ही हर्मोंस प्यार की भावना को बढ़ाते हैं. अब सवाल यह उठता है कि अगर सब हर्मोंस का ही खेल है, तो क्यों हम हर किसी की ओर आकर्षित नहीं होकर किसी-किसी की ओर ही प्यार की भावना महसूस करते हैं. इसका जवाब है- सही संयोग. हर्मोंस के सही संयोग जब किसी और के संयोग से मिलते हैं, तो उसी के प्रति प्रेम व आकर्षण जन्म लेता है.
प्यार में होता है क्या जादू...
हल्की-सी ख़ुमारी, चंद बूंदें शबनम की, चांद का थोड़ा-सा नूर और दिल की धड़कनों का सुरूर... इसी का नाम मुहब्बत है. प्यार के जादू और चाहत की ख़ुमारी तो वही समझ सकता है, जो कभी इसके मखमली एहसास से गुज़रा हो, लेकिन आप शायद ही जानते होंगे कि इस ख़ालिस भावना से ओतप्रोत एहसास के कई मनोवैज्ञानिक, शारीरिक व सामाजिक पहलू भी हो सकते हैं. क्या हैं ये पहलू आइए जानें-
मनोवैज्ञानिक पहलूइंसानी रिश्तों में प्यार एक मनोवैज्ञानिक पहलू है, यही वजह है कि किसी के भी मन-मस्तिष्क में प्यार की भावना जबरन नहीं डाली जा सकती. किसी की तरफ़ आकर्षित होने के कई मनोवैज्ञानिक कारण हो सकते हैं, जैसे- किसी के साथ लंबे समय तक व़क्त गुज़ारना, किसी से विचार व सोच मिलना, मानसिक व बौद्धिक स्तर पर समानता आदि. मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर रोमांस दो तरह का हो सकता है- एक है कंपैशनेट लव और दूसरा है पैशनेट लव. कंपैशनेट रोमांस आपसी सामंजस्य, केयरिंग-शेयरिंग और सम्मान से जन्म लेता है, जबकि पैशनेट रोमांस गहरे शारीरिक आकर्षण और प्यार से अधिक बंधा होता है. पैशनेट लव धीरे-धीरे कंपैशनेट रोमांस व गहरे रिश्ते में भी परिवर्तित हो सकता है. बस, दो लोगों की कैमिस्ट्री आपस में कितनी है इस बात पर यह निर्भर करता है.
शारीरिक आकर्षण
प्यार व रोमांस की शुरुआत आकर्षण से भी हो सकती है. यह बहुत ही स्वाभाविक है कि स्त्री-पुरुष परस्पर आकर्षित होते ही हैं, लेकिन वो हर किसी के प्रति आकर्षित नहीं होते और जिनके प्रति होते हैं, वहां भी आकर्षण की तीव्रता कम-ज़्यादा हो सकती है. जिसको जो शारीरिक रूप से अधिक आकर्षक लगता है, वो उसके प्रति अधिक आकर्षित होते हैं. किसी के मस्तिष्क में किसी के सौंदर्य की जो छवि बनती है, वो उसके प्रति आकर्षण महसूस करता है. सौंदर्य की परिभाषा हर किसी के लिए अलग-अलग होती है और उसी परिभाषा के आधार पर लोग अपने अनुसार अपनी पसंद निर्धारित करते हैं.
सामाजिक पहलू
मनुष्य सामाजिक प्राणी है और समाज भी उसे प्यार करना व परिवार बनाने की दिशा में प्रेरित करता है. कोई भी बच्चा शुरुआत से अपने आसपास व परिवार में भी स्त्री-पुरुष के रिश्ते को देखता है और जब वो किशोरावस्था में पहुंचता है, तो हार्मोंस के बदलाव व अपने पूर्व अनुभवों के आधार पर स्त्री-पुुरुष संबंधों को एक साथी व ज़रूरत की तरह लेता है. ऐसे में किसी से प्यार करना उसके लिए बहुत ही स्वाभाविक प्रक्रिया है. कभी-कभी अकेलेपन का एहसास भी एक साथी की ज़रूरत को जन्म देता है. यह सभी वजहें परस्पर आकर्षण का कारण बनकर प्यार के रूप में परिवर्तित हो सकते हैं.
- विजयलक्ष्मी
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