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तेनालीरामा की कहानी: अरबी घोड़े (Tenali Rama Story: The Arab Horse Trader)
एक अरब प्रदेश का व्यापारी महाराज कृष्णदेव राय के दरबार में घोड़े बेचने आता है. वह अपने घोड़ों की खूब तारीफ़ करता है, जिससे प्रभावित होकर महाराज कृष्णदेव राय उसके सारे घोड़े खरीद लेते हैं. इतने घोड़ों को खरीदने के बाद एक समस्या यह खड़ी हो जाती है कि इन्हें रखा कहां जाये? क्योंकि महाराज के घुड़साल में इतने अधिक घोड़े रखने की जगह नहीं बचती. महाराज को एक उपाय सूझता है वो घोड़ों को विजयनगर के नागरिकों और राजदरबार के कुछ लोगों को तीन महीने तक देखभाल के लिए दे देते हैं. घोड़ों की देखभाल करनेवालों को घोड़ों के पालन खर्च और प्रशिक्षण के लिए प्रति माह एक सोने का सिक्का दिया जाता है. इसी क्रम में तेनालीराम को भी एक घोडा दिया गया. तेनालीराम ने घोड़े को घर लेजा कर घर के पिछवाड़े एक छोटी सी घुड़साल बना कर बांध दिया और घुड़साल की खिड़की से उसे थोड़ी मात्रा में चारा खिलाने लगे. बाकी लोग भी महाराज की सौंपी गयी ज़िम्मेदारी को निभाने लगे. महाराज क्रोधित हो कोई दंड ना दे दें, इस भय से सभी लोग अपना पेट काट-काट कर भी घोड़े को उत्तम चारा खिलाने लगे. घोड़ों की देखभाल करते-करते तीन महीने बीत गए थे और तय दिन सभी लोग घोड़े लेकर महाराज के सामने आ जाते हैं, पर तेनालीराम बिना घोड़े के ही खाली हाथ आते हैं. तेनालीराम से घोड़ा ना लाने की वजह पूछी जाती है तो वो कहते हैं कि घोड़ा काफी बिगडैल और खतरनाक हो चुका है, इसलिए उसके पास जाना भी मुमकिन नहीं. राजगुरु , महाराज से कहते हैं के तेनालीराम झूठ बोल रहे है. महाराज सच्चाई का पता लगाने के लिए तेनालीराम के साथ राजगुरु को भेजते हैं. यह भी पढ़ें: पंचतंत्र की कहानी: मूर्ख ब्राह्मण और तीन ठग
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