अर्ली प्यूबर्टी के लक्षण
दरअसल, लक्षण तो वही होते हैं, लेकिन समय से पहले उभरने लगते हैं. लड़कियों में स्तनों का विकास सबसे पहला लक्षण होता है. प्यूबिक हेयर का आना और फिर मासिक धर्म की शुरुआत. लड़कों में भी जननांगों का विकास, चेहरे पर दाढ़ी-मूंछ, प्यूबिक हेयर, आवाज़ में बदलाव आदि लक्षण उभरने लगते हैं.कारण
- ऑक्सिटोसिन नामक हार्मोन सबसे बड़ा कारण है. यह हार्मोन गाय-भैंसों को दूध की अधिक निर्माण-क्षमता के लिए दिया जाता है. पोल्ट्री, बकरी और डेयरी एनिमल्स को भी ग्रोथ हार्मोंस दिए जाते हैं. ऑक्सिटोसिन शरीर में स्त्री सेक्स हार्मोन- एस्ट्रोजेन की तरह ही काम करता है, जिससे प्यूबर्टी के लक्षण जल्दी उभरने लगते हैं. दरअसल, देश में फूड रेग्यूलेशन्स की कमी के कारण सब्ज़ियों से लेकर अंडे तक ऑक्सिटोसिन से भरपूर मिलने लगे हैं. हालांकि इसके अलावा भी कई कारण हैं, जिनके कारण अर्ली प्यूबर्टी हो सकती है. - आजकल बच्चे आउटडोर गेम्स न खेलकर घर में टीवी या कंप्यूटर्स पर चिपके रहते हैं. जंक फूड खाने और शारीरिक गतिविधि कम होने से उनमें तेज़ी से मोटापा बढ़ रहा है. इसके चलते फैट सेल्स एनर्जी स्टोर करने की बजाय लेप्टिन नाम का हार्मोन बनाने लगते हैं. जिनमें मोटापे के कारण इस हार्मोन का स्तर अधिक होता है, उनमें अर्ली प्यूबर्टी की संभावना अधिक होती है. - बाहरी कारण भी एक वजह हो सकते हैं. पेस्टिसाइड्स और उनके बायप्रोडक्ट्स हमारे हार्मोनल सिस्टम पर काफ़ी बुरा असर डालते हैं, जिनसे मोटापा बढ़ रहा है और लड़कियों में प्यूबर्टी भी जल्दी हो रही है. जो पेस्टिसाइड्स प्रतिबंधित हैं, उनका अन्य कामों के लिए अब भी इस्तेमाल हो रहा है. मच्छरों के नियंत्रण व जानवरों के बचाव के लिए इनका प्रयोग किया जाता है. - इसके अलावा प्लास्टिक के निर्माण में भी जो तत्व इस्तेमाल होता है, उससे भी हार्मोंस प्रभावित होते हैं. यही वजह है कि लड़कियां कम उम्र में ही सेक्सुअली मैच्योर हो रही हैं. - जीन्स भी इसकी एक वजह हो सकते हैं. यदि मां की प्यूबर्टी जल्दी हुई हो, तो बहुत हद तक संभव है बेटी को भी जल्दी प्यूबर्टी हो. - बढ़ता एक्सपोज़र बच्चों को जल्दी मैच्योर कर रहा है. उस पर अनहेल्दी लाइफस्टाइल से समस्या बढ़ रही है. इंटरनेट के इस युग में कुछ चीज़ों को पूरी तरह से रोकना संभव नहीं, ऐसे में बच्चे बाहरी दुनिया की तरफ़ जल्दी आकर्षित होते हैं, वे ख़ुद भी जल्दी बड़े होना चाहते हैं. लाइफस्टाइल व बदलती मानसिकता भी एक वजह है.साइड इफेक्ट्स
इंफर्टिलिटी: अर्ली प्यूबर्टी से भले ही रिप्रोडक्शन की अवधि बढ़ जाती है, लेकिन अंडों की क्वालिटी बेहद प्रभावित होती है. 35 वर्ष की उम्र से पहले ही इंफर्टिलिटी की समस्या हो सकती है, क्योंकि हार्मोंस लंबे समय से काम कर रहे होते हैं और उस उम्र तक आते-आते उनमें भी बदलाव शुरू हो जाते हैं. साथ ही साथ आज की लाइफस्टाइल इस समस्या को और बढ़ाती है. ग़लत खान-पान, तनाव, देर से शादी व बच्चों की प्लानिंग में और भी देरी से समस्या गंभीर होती जा रही है. अर्ली मेनोपॉज़: प्यूबर्टी जल्दी होने पर जाहिर-सी बात है मेनोपॉज़ भी जल्दी होगा. जहां मेनोपॉज़ की औसत उम्र पहले 50 वर्ष थी, वहीं यह घटकर अब 45 वर्ष हो गई है और अब बहुत-से ऐसे केसेस आते हैं, जहां 35 वर्ष की उम्र में ही मेनोपॉज़ हो जाता है. डिप्रेशन: यह भी लड़कियों में ही अधिक नज़र आता है. प्यूबर्टी में सामान्यत: शारीरिक बदलाव व सेक्सुअल फीलिंग्स को लेकर डिप्रेशन होता ही है, लेकिन जल्दी प्यूबर्टी में डिप्रेशन अधिक होता है. इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि लड़कियों को अपनी हमउम्र लड़कियों से तालमेल बैठाने व दोस्ती करने में समस्या होती है, क्योंकि अन्य लड़कियां उस उम्र में वो बदलाव महसूस नहीं कर रही होतीं, जो अली प्यूबर्टी होने पर होते हैं. यही वजह है कि कंफ्यूज़न बढ़ने लगता है और वैसे भी हार्मोंस के बदलाव से डिप्रेशन सामान्य बात होती है किशोरावस्था में. ऐसे में जल्दी प्यूबर्टी होने पर लड़कियों में डिप्रेशन के साथ-साथ सूसाइड करने की प्रवृत्ति भी बढ़ जाती है. ईटिंग डिसऑर्डर: मासिक धर्म के शुरू होने पर शारीरिक बदलाव थोड़ी तेज़ी से होते हैं. वज़न बढ़ने लगता है और बॉडी शेप लेने लगती है. अर्ली प्यूबर्टी में लड़कियां अपने इस शारीरिक बदलाव को सहजता से नहीं ले पातीं और बहुत ज़्यादा डायटिंग करने लगती हैं. हालांकि सही समय पर प्यूबर्टी होने पर भी इस तरह की समस्या आती है, लेकिन अर्ली प्यूबर्टी में अपनी बॉडी को लेकर लड़कियां और भी अधिक असहज रहती हैं, क्योंकि वो अपने एज ग्रुप से कहीं अधिक मैच्योर दिखती हैं और उन्हें लगता है कि वो मोटी हो गई हैं. सेक्सुअल एक्टिविटी कैंसर: अर्ली प्यूबर्टी से सेक्स हार्मोंस भी जल्दी एक्टिव होते हैं, जिस वजह से अपोज़िट सेक्स के प्रति आकर्षण बढ़ता है. ये लड़कियां अन्य लड़कियों की अपेक्षा कम उम्र में ही डेटिंग करने लगती हैं और सेक्सुअली भी एक्टिव हो जाती हैं. चूंकि इनके बॉडी कर्व्स जल्दी उभरते हैं, तो लड़कों के बीच ये ज़्यादा पॉप्युलर होती हैं. लड़के इनकी तरफ़ अधिक आकर्षित होते हैं, जिससे इनकी सेक्सुअली एक्टिव होने की संभावना भी अधिक बढ़ जाती है. इसके साथ ही शोधों में यह भी पाया गया है कि बड़ी उम्र के लड़कों के साथ इनके संबंध अधिक बनते हैं. सेक्सुअली जल्दी एक्टिव होने पर इनमें ह्यूमन पैपिलोमावायरस (एचपीवी) के केसेस अधिक पाए जाते हैं. यह सेक्सुअली ट्रांसमिटेड वायरस होता है, जिसका संबंध सर्वाइकल कैंसर से होता है. यानी जल्दी प्यूबर्टी के चलते जो लड़कियां बहुत ही कम उम्र में सेक्सुअल एक्टिविटी में इनवॉल्व हो जाती हैं, वो अधिक एचपीवी पॉज़ीटिव पाई जाती हैं. एचपीवी सर्वाइकल कैंसर का रिस्क भी बढ़ा देता है. कुछ शोधों में यह भी पाया गया है कि अर्ली प्यूबर्टी के कारण ब्रेस्ट कैंसर होने की संभावना अधिक होती है. हालांकि यह बहुत ही पक्के तौर पर तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन कुछ केसेस इस ओर ज़रूर इशारा करते हैं कि जल्दी प्यूबर्टी व ब्रेस्ट कैंसर में कहीं न कहीं संबंध हो सकता है. एकेडमिक परफॉर्मेंस: जल्दी मैच्योर होने पर एक तरफ़ कंफ्यूज़न बना रहता है, अपनी बॉडी को लेकर, अपनी मन:स्थिति को लेकर हर चीज़ से शिकायत रहती है, दूसरी ओर अपोज़िट सेक्स की ओर आकर्षण भी होता है. ऐसे में पढ़ाई में कहीं न कहीं मन कम लगता है. भटकाव-बहकाव होने की संभावना अधिक होती है, जिससे स्कूल में इनका परफॉर्मेंस बहुत अच्छा नहीं होता.उपाय
- पैरेंट्स को ऐसे बच्चों पर ख़ासतौर से ध्यान देना होगा. उन्हें समझाएं कि वे जिन बदलावों को महसूस कर रहे हैं, वे नेचुरल हैं और हर किसी को इस प्रक्रिया से गुज़रना ही पड़ता है. बस, उन्हें थोड़ा जल्दी गुज़रना पड़ रहा है. - प्रीकॉशियस प्यूबर्टी से जुड़े कई मानसिक लक्षणों पर भी नज़र रखें. बच्चा कहीं भावनात्मक व मानसिक रूप से कमज़ोर तो नहीं पड़ रहा. इसके लिए आपको इन बातों पर ध्यान देना होगा- स्कूल में परफॉर्मेंस ख़राब हो रहा हो, डिप्रेशन, सामाजिक व रोज़मर्रा की गतिविधियों में दिलचस्पी कम होने लगी हो, व्यवहार में बदलाव, नशे की लत आदि. - बच्चे, ख़ासतौर से लड़कियां अपनी बॉडी को लेकर बहुत ही असहज हो जाती हैं. उन्हें यह बताएं कि उम्र के साथ-साथ शरीर भी बढ़ता है, इसलिए वो मोटी नहीं हैं. - दूसरों के कमेंट्स पर वो ध्यान न दें, यह बात उनके मन में डाल दें. उनके कामों को सराहें. - इन सबके अलावा पैरेंट्स का प्रमुख लक्ष्य होना चाहिए बच्चे को ग़लत दिशा में भटकने से रोकना. उन्हें कम उम्र में सेक्सुअली इनवॉल्व नहीं होने देना, वरना भविष्य में कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं. न स़िर्फ शारीरिक तौर पर, बल्कि भावनात्मक व मानसिक रूप से भी बच्चों को व्यथित कर सकती हैं ये नादानियां. - यदि ज़रूरी लगे, तो बिना हिचकिचाए बच्चे के साथ एक्सपर्ट से सलाह लें.बदलावों के दौर को ऐसे बदलें
- हेल्दी लाइफस्टाइल और हेल्दी डायट पैरेंट्स व बच्चों दोनों के लिए ज़रूरी है. आप हेल्दी होंगे, तो आपका होनेवाला बच्चा भी हेल्दी होगा और यदि आप पैरेंट्स बन चुके हैं, तो आपको देखकर बच्चा भी हेल्दी तरी़के से व अनुशासित ढंग से जीना सीखेगा. - नियमित योग व वज़न पर नियंत्रण बच्चों के लिए ज़रूरी है. - जंक फूड कम खाने दें. हरी पत्तेदार सब्ज़ियों को डायट में बढ़ा दें. पेस्टिसाइड्स से जितना संभव हो सके, बचने का प्रयास करें. - ओमेगा3 फैटी एसिड्स अधिक मिले, इसके लिए ड्रायफ्रूट्स व फिश को भी डायट में शामिल करें. - इंटरनेट पर क्या देखते हैं, उनके दोस्त कौन-कौन हैं, स्कूल में उनकी प्रोग्रेस रिपोर्ट आदि पर नज़र बनाए रखें. - ब्रह्मानंद शर्मा
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