Close

कहानी- वजूद (Short Story- Wajood)

प्रीति सिन्हा

“एक पुरुष हर पल अपना अस्तित्व जीता है, अपना वजूद नहीं खोता है. भले ही वह कितने ही रिश्तों और ज़िम्मेदारियों में बंध जाए. किंतु प्रायः स्त्रियां अपने रिश्तों और घर-गृहस्थी की असंख्य अपेक्षाओं को पूरा करते-करते अपने पूरे अस्तित्व को खो बैठती हैं या नकार जाती हैं. सालों बाद तो उन्हें अपने नाम भी याद नहीं रहते हैं. ऐसा अक्सर गृहिणियों के साथ होता है.”

“जल्दी करो मनीषा… और कितना देर लगाओगी तैयार होने में?” राज ने लगभग चिल्लाते हुए कहा था. किंतु मनीषा पर इसका कोई असर ही नहीं था. वह तो आईने के सामने जाने कब से लगातार मुंह पर मेकअप थोप रही थी. भारी भरकम सिल्क की साड़ी, भारी गहने और गाढ़े मेकअप में मनीषा कहीं खो गई थी. राज परेशान था.
“मनीषा जल्दी चलो, लौटते व़क्त देर हो जाएगी.”
रात के बारह बज गए थे. राज और मनीषा किसी विवाह समारोह से लौट रहे थे. राज ने ड्राइविंग करते हुए देखा मनीषा बिल्कुल चुप थी. उसने पूछा, “क्या बात है मनीषा?” मनीषा ने चुप्पी तोड़ी, “आज समारोह में सभी मेरी कितनी प्रशंसा कर रहे थे.”
राज ने उसे बीच में ही रोककर उससे चुहलबाज़ी करते हुए कहा, “तुम्हारी या तुम्हारी साड़ी की?” मनीषा ने चिढ़ते हुए कहा, “चुप रहो राज, सभी ने मुझसे यही कहा कि आप पर तो उम्र का कोई प्रभाव ही नहीं है. सभी ने मेरी सुंदरता की कितनी तारीफ़ की, स़िर्फ तुमको छोड़कर. तुम तो पीयूष की प्रेमिका को लगातार घूर रहे थे.”
“वह थी ही ऐसी कि सभी उसकी तरफ़ आकर्षित थे.” राज ने हंसते हुए कहा.
“वही तो विवाह के पहले मुझे भी तुम यही सब कहा करते थे. हर समय मेरे सौंदर्य और मेरे गुणों की तारीफ़ की जाती थी. मुझे याद है विवाह के तुरंत बाद, मैं कहीं भी तैयार होकर तुम्हारे साथ निकलती थी, तब तुम्हें मेरे जितना ख़ूबसूरत कोई दिखता ही नहीं था. आज तुम मुझे ना देखकर पीयूष की प्रेमिका को देख रहे थे.”
राज मज़ाक के मूड में था. उसने कहा, “अरे, प्रेमिका और पत्नी में बहुत अंतर होता है. विवाह से पहले तुम्हारा ज़रा-सा दुपट्टा हवा में लहराता था, तो लगता था मानो तुमने हवाओं में ख़ुशबू बिखेर दी हो. मेरे रोम-रोम में एक अजीब-सी सिहरन होन लगती थी और तुम्हारे खुले बाल… जी चाहता था, उसके साए में मैं अपनी सारी उम्र गुज़ार लूं. तुम्हारी आंखें, तुम्हारे पलकों का उठना-गिरना मुझे ज़िंदगी देती थी. बिना मेकअप के ही तुम कितनी ख़ूबसूरत, मासूम और जीवन से ओतप्रोत दिखती थी.” राज कहीं खो गया.


“क्या आज मैं इतनी बुरी हो गई हूं कि तुम मुझे देखते तक नहीं हो?” मनीषा ने रुआंसी होकर कहा.
“ऐसी बात नहीं है, मैं तो हमेशा तुम्हारी प्रशंसा करता हूं.” राज ने कहा.
“झूठ बोलते हो तुम. मेरा मन रखने के लिए बिना मेरी तरफ़ देखे ही मेरी प्रशंसा कर देते हो.” मनीषा ग़ुस्से में बोली.
“यह तुम कैसे कह सकती हो?” राज ने चौंकते हुए पूछा.
“मैंने उस दिन तुम्हारी चोरी पकड़ी थी.” मनीषा बोली.
“कैसे?”
“मैंने उस दिन पूछा था कि मैं लाल साड़ी में कैसी लग रही हूं. इस पर तुमने बिना देखे ही जवाब दिया था कि बहुत सुंदर… लाल कपड़ों में तुम बहुत ही ख़ूबसूरत दिखती हो.” मनीषा ने मुंह बनाते हुए कहा.
“हां, इसमें ग़लत क्या है. मैंने सही ही तो कहा था.” राज ने स्पष्टीकरण दिया.
“बिल्कुल झूठ औऱ गलत था. मैंने उस दिन लाल नहीं, हरी साड़ी पहनी थी.” मनीषा ने ग़ुस्साते हुए कहा था.

यह भी पढ़ें: हैप्पी रिश्तों के लिए बनें इमोशनली इंटेलिजेंट कपल, अपनाएं ये 7 आदतें (7 Habits Of Emotionally Intelligent Couple Which Will Make You Happy Couple)

राज ने अपनी हंसी किसी प्रकार से रोकी और मनीषा को समझाते हुए कहा, “मनीषा, हमारी शादी को बारह वर्ष हो गए हैं, दो बच्चे हैं. समय के साथ आदमी की ज़िम्मेदारियां और मानसिकता दोनों बदल जाती है. एक-दूसरे पर ध्यान न देकर वो अपनी घर-गृहस्थी और बच्चों के भविष्य पर ध्यान देने लगता है… अब तुम स्वयं को ही देखो ना… क्या तुम पहले जैसी स्वयं को रख पाती हो? तुम्हारे बालों से पसीने की और साड़ी के पल्लू से तेल-मसाले की ख़ुशबू आती है.” राज ने ‘ख़ुशबू’ शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा.
विवाह से पहले तुम जींस, स्कर्ट पहनती थी, लेकिन अब तुम्हारी कमर ने इन सभी के अस्तित्व को नकार दिया है. ऊंचे हील की सैंडल ने, तुम्हारे पैरों में दर्द के कारण सोल चप्पल का स्थान ले लिया है.”
मनीषा और राज घर पहुंच चुके थे. घर में शांति थी, क्योंकि दोनों बच्चे नानी के घर थे. राज के माता-पिता कुछ दिनों के लिए हरिद्वार गए थे. पूरे दिन ऑफिस में मगजमारी और विवाह समारोह के कारण थका-हारा राज बिस्तर पर पड़ते ही खर्राटे लेने लगा था. थकी-हारी तो मनीषा भी थी, किंतु उसकी आंखों में नींद नहीं थी. परेशान सी वह लगातार करवट बदल रही थी.
कुछ दिनों से मनीषा महसूस कर रही थी कि राज उसकी उपेक्षा कर रहा था. पहले की तरह अब राज उस पर ध्यान नहीं देता था. राज के लिए उसका अस्तित्व धीरे-धीरे गौण होता जा रहा था. आज राज की बातों ने उसे भीतर तक उद्वेलित कर दिया था. वह सोने का प्रयास कर रही थी, किंतु एक तरफ़ राज का प्रचंड खर्राटा और दूसरी तरफ़ मनीषा का घायल हृदय, दोनों ने उसकी नींद का हरण कर लिया था.
अचानक मनीषा उठकर बैठ गई और उसके भीतर से आवाज़ आई, कल मुझे पुरानी मनीषा को ढूंढ़ कर लाना है… शायद सालों से सोई प्रेमिका आज जग गई थी.
राज ऑफिस चला गया था.
हल्की-फुल्की कुकिंग तथा अस्त-व्यस्त घर को थोड़ा-बहुत व्यवस्थित करके मनीषा ‘ऑपरेशन प्रेमिका’ को अंजाम देने जा रही थी. ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी वह सोच रही थी- आज मैं कोई काम नहीं करूंगी, ताकि पूरे दिन तरोताज़ा रहूं. शाम में किसी होटल में डिनर के लिए राज को मना लूंगी. बच्चे तो हैं नहीं, इसलिए कोई चिंता नहीं. वह उधेड़बुन में थी कि सबसे पहले मैं क्या करूं? क्या ब्यूटीपार्लर चली जाऊं? नहीं… उसमें तो बहुत समय बर्बाद हो जाएगा. घर में ही मैं सारी कोशिशें करूंगी.
उसने चेहरे पर कई तरह के लेप और उबटन लगाए. बालों को धोकर उन्हें सिल्की बनाया. हाथों और पैरों को सजाया. बहुत
हल्का-सा मेकअप किया और राज के फेवरेट कलर की साड़ी पहनी. पुरानी हाई हील की सैंडल पहन कर मनीषा ने जब स्वयं को आईने में निहारा, तो स्तब्ध रह गई. क्या यह मैं हूं? अनायास ही उसके मुंह से निकल गया कि थोड़ी-सी मोटी अवश्य हो गई हूं, लेकिन मेरी सुंदरता में कोई कमी नहीं आई है. जल्दी ही मैं अपना मोटापा भी कम कर लूंगी. मैंने तो खुद पर ध्यान देना ही छोड़ दिया था. मेरा चेहरा, मेरे हाथ-पांव कितने ख़राब हो गए थे. वज़न पर तो मैंने कभी ध्यान ही नहीं दिया. गहरा मेकअप, भारी-भरकम साड़ियों, जेवरों और तेज परफ्यूम से, मैं अब तक इन्हें ढंकती आ रही थी. कृत्रिम और नेचुरल में कितना अंतर होता है…
मनीषा लगातार सोचती जा रही थी. आज उसने गुलाबजल को पानी में डालकर नहाया था. स्वयं की ख़ुशबू से वह अभिभूत हो रही थी. मंत्रमुग्ध हो वह जाने कब तक अपने को निहारती रही.
अचानक कॉलबेल की आवाज़ से मनीषा की तंद्रा टूटी. वह इसके लिए तैयार नहीं थी. वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठी. उसे लगा जैसे किसी ख़ूबसूरत वादी को छोड़कर शहर के किसी गंदे इलाके में आ गई हो. उसने अपने को किसी तरह से संयत किया और दरवाज़े की तरफ़ दौड़ पड़ी. सामने देखा राज के चाची-चाचा खड़े थे. उन्हें देख मनीषा का चेहरा पीला पड़ गया. इतनी नर्वस हो गई कि उनका पांव छूना भी भूल गई. किसी तरह उन्हें अंदर आने को कहा. बाद में उसे ध्यान आया, तो उसने बात बना दिया कि हाथ गंदे थे, इस कारण पांव नहीं छुआ.


चचिया सास-ससुर आए हुए थे. ससुराल की बात थी. मनीषा सब कुछ भूल कर उनके स्वागत में जुट गई. फिर तो रसोईघर में पकवानों का ढेर लग गया. स्वागत में उसने कोई कसर नहीं छोड़ीे. चचिया सास-ससुर ने ख़ुश होकर ढेरों आशीर्वाद दिए और उसे गुणवंती बहू का ख़िताब मिला.
उन्हें विदा कर वह दरवाज़ा बंद ही कर रही थी कि सामने उसके पिता की गाड़ी रुकी. उसमें से बच्चे उतर रहे थे. ड्राइवर उन्हें छोड़कर चला गया.
मनीषा ने चौंकते हुए पूछा, “तुम लोग तो एक सप्ताह बाद आनेवाले थे, आज कैसे?”
“मम्मी, नाना-नानी को देहरादून जाना था. छोटे मामा ने बुलाया था. वे कल जा रहे हैं, इसलिए उन लोगों ने आज ही हम लोगों को यहां भेज दिया.”
बच्चों की आवश्यकताओं को पूरा करते-करते मनीषा के खुले बाल कब के बंध चुके थे. चेहरे की ताज़गी बासी रोटी के समान हो गई थी. हल्की गुलाबी साड़ी सिलवटों के साथ कमर में खोंस दी गई थी. सजे हुए हाथों से नेलपेंट निकल चुके थे, क्योंकि नेलपेंट सूखने के पहले ही वह किचन में खाना बनाने लगी थी. हाई हील की सैंडल रैक पर बैठकर मनीषा के पांव देख रही थी.
मनीषा को अचानक याद आया कि कामवाली बाई तो अभी तक आई ही नहीं है. उसने जल्दी से फोन लगाकर पूछा, तो पता चला कि वह बीमार है और दो दिन नहीं आ पाएगी. मनीषा के पैरों तले ज़मीन खसक गई. किचन में बर्तनों का ढेर लगा था. उसने सोचा चार बजने को है. पांच बजे तक तो राज भी आ जाएगा. स़िर्फ एक घंटे का समय है. सारे काम को निपटाना और उसके बाद सजना-संवरना कैसे होगा? बहुत देर तक मनीषा शून्य में निहारती चुपचाप बैठी रही. फिर उसने सोचा कि यही तो मुझमें कमी है, तभी तो राज ने मेरी तरफ़ ध्यान देना छोड़ दिया है… भारी मन से वह उठी और किचन में चली गई.


यह भी पढ़ें: अपनी लाइफ पार्टनर में ख़ूबसूरती ही नहीं, ये खूबियां भी चाहते हैं पुरुष (Not only Beauty, Men also look for these qualities in their life partner)

रात के दस बज रहे थे. बच्चे सो चुके थे. राज अपने ऑफिशियल काम में व्यस्त था. गुमसुम-सी मनीषा ने उस दिन का सारा रूटीन निपटाते हुए भारी मन से बिस्तर पर निढाल हो गई, मानो महीनों से बीमार हो. अचानक महसूस हुआ ठंडी बयार चली हो. राज उसके बालों को सहला रहा था. वह भौंचक्की रह गई.
“क्या बात है राज?”
राज हंसने लगा. “अरे तुम मेरी पत्नी हो. क्या मेरा इतना भी हक़ नहीं है?”
मनीषा की आंखों के आंसू इसी पल का इंतज़ार कर रहे थे, जो आंखों से निकल कर बाहर आने को बेताब थे. मनीषा फूट-फूट कर रोने लगी.
“राज, मैं नहीं जानती मैं क्यों रो रही हूं, लेकिन आज अपने को हारा हुआ महसूस कर रही हूं…” उसने रोते हुए कहा.
“लेकिन मैं जानता हूं.” राज ने उसकी आंसुओं को पोंछते हुए कहा. मनीषा ने खोई आंखों से राज को देखा.
“मनीषा, मुझे तुमसे स़िफर्र् दो बातें कहनी हैं. पहली बात यह है कि यह जीवन की सच्चाई है कि हमने एक-दूसरे से प्रेम किया, फिर विवाह के बंधन में बंध गए. विवाह के पहले प्रेम होते हुए भी बाहरी सौंदर्य का आवरण हम पर हावी था. विवाह के बाद बाहरी सौंदर्य गौण हो जाता है. हम आत्मा और हृदय से एक दूसरे से जुड़ जाते हैं और भीतर का सौंदर्य ही वास्तविक सौंदर्य लगने लगता है. यही कारण होता है कि बात-बात पर हम एक-दूसरे की बाहरी सौंदर्य की प्रशंसा करना भूल जाते हैं. उसकी ज़रूरत नहीं पड़ती है और फिर हम अपनी आत्मा और हृदय को एक-दूसरे के हवाले करते हुए घर-गृहस्थी की ज़िम्मेदारियों में उलझ जाते हैं. लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं होता कि हम एक-दूसरे की उपेक्षा कर रहे हैं. जैसे-जैसे हम बुढ़ापे की ओर अग्रसर होते हैें, दो शरीर एक जान बनकर रह जाते हैं.”
राज थोड़ी देर के लिए चुप हो गया, तो मनीषा ने उसकी तरफ़ देखा और उसने सवाल किया, “फिर क्यों तुम कुछ दिनों से मेरी उपेक्षा कर रहे थे?”
राज ने मनीषा का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा, “मैंने अभी तक तुमसे दूसरी बात नहीं कही है, वही कहने जा रहा हूं. यह तुम्हारे लिए महत्वपूर्ण है.”
थोड़ी देर चुप रहकर राज ने बोलना शुरू किया, “एक पुरुष हर पल अपना अस्तित्व जीता है, अपना वजूद नहीं खोता है. भले ही वह कितने ही रिश्तों और ज़िम्मेदारियों में बंध जाए. किंतु प्रायः स्त्रियां अपने रिश्तों और घर-गृहस्थी की असंख्य अपेक्षाओं को पूरा करते-करते अपने पूरे अस्तित्व को खो बैठती हैं या नकार जाती हैं. सालों बाद तो उन्हें अपने नाम भी याद नहीं रहते हैं. ऐसा अक्सर गृहिणियों के साथ होता है. पुराने ज़माने की परंपराओं को तोड़कर स्त्रियों ने जो आज पुरुषों की हमकदम बनकर बाहरी दुनिया को ललकारा है, शायद कहीं ना कहीं इसी वजूद की तलाश में. मनीषा मैं तुम्हारी उपेक्षा नहीं कर रहा था. मैंने नाटक किया था. मैं ईशान की प्रेमिका को घूरने का अभिनय कर रहा था, ताकि मैं खोई हुई मनीषा को वापस ला सकूं. मैंने बहुत बार समझाने का प्रयास किया था, लेकिन तुम नहीं समझ पाई. इसलिए मैंने यह तरीक़ा अपनाया.”
मनीषा विस्मित हो उसे देख रही थी.
“विवाह के बाद तुम स्वयं को भुलाकर, असंख्य रिश्तों की स़िर्फ ज़रूरत बनकर ज़िंदगी को जी रही थी. मनीषा तो कहीं दूर खो गई है. मेरे सामने एक ऐसी स्त्री है, जिसने उत्तरदायित्वों के बोझ तले अपने अस्तित्व को दबा दिया है. बात यहां सजने-संवरने की नहीं है कि हर समय तुम सज-संवरकर मुझे आकर्षित करने का प्रयास करो. बात यहां ख़्वाहिशों के दम तोड़ने की है. तुम्हें सजने-संवरने की ज़रूरत है, स्वयं के लिए, ना कि दूसरों के लिए. स्वयं के लिए जीना सीखो मनीषा. रिश्ते-नाते, घर-गृहस्थी, ज़िम्मेदारियां ये सभी ज़िंदगी के सफर के ख़ूबसूरत मोड़ और पड़ाव हैं. किंतु सफ़र से अभिभूत होकर हम स्वयं को तो नहीं भूल जाते हैं. स्वयं को बिना भुलाए सफ़र का आनंद लेना सीखो. मनीषा के खोल में तुम कोई पुतला नहीं होे, तुम स्वयं मनीषा हो. गृहिणी बनो या नौकरीपेशा- अपनी मर्ज़ी से अपना जीवन जीना सीखो. अपना वजूद कभी मत छोड़ना, उसे हमेशा कायम रखना.” राज ने मनीषा को बांहों में लेते हुए दृढ़ता से कहा. मनीषा बेहद ख़ुश और संतुष्ट थी, मानो उसके भीतर कोई शांत नदी बह रही थी.

अभी सबस्क्राइब करें मेरी सहेली का एक साल का डिजिटल एडिशन सिर्फ़ ₹599 और पाएं ₹1000 का कलरएसेंस कॉस्मेटिक्स का गिफ्ट वाउचर.


अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

Share this article

https://www.perkemi.org/ Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Situs Slot Resmi https://htp.ac.id/ Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor https://pertanian.hsu.go.id/vendor/ https://onlineradio.jatengprov.go.id/media/ slot 777 Gacor https://www.opdagverden.dk/ https://perpustakaan.unhasa.ac.id/info/ https://perpustakaan.unhasa.ac.id/vendor/ https://www.unhasa.ac.id/demoslt/ https://mariposa.tw/ https://archvizone.com/