कहते हैं, यूनिवर्स में हर इंसान अपनी ट्विन फ्लेम को ढूंढ़ता है. जिस दिन वह अपनी ट्विन फ्लेम से मिल जाता है उसका जीवन चक्र पूरा हो जाता है. कौन जाने इन बातों में कितनी सच्चाई , मगर कुछ तो है शुभ्रा में जो वह उसका साथ पा कर ख़ुद को पूरा महसूस करता है.
ज़िंदगी का यह एहसास भी अजीब है. सब कुछ तो है रवि के पास फिर यह कैसा अधूरापन है, जो शुभ्रा पूरा करती है. किसी इंसान की बाहर दिखती ज़िंदगी और भीतर की ज़िंदगी में बड़ा फ़र्क़ होता है.
अजीब सी बात है, पिछले दस दिन से न जाने क्यों उसे लगातार उसकी याद आ रही थी. उसने फ़ैसला कर लिया था कि अब वह उसे भूल जाएगा. इस तरह की तमाम कोशिश भी तो वह कर चुका था. ऐसा मुश्किल भी नहीं है किसी से रिश्ता तोड़ लेना. वह भी तब जब दोनों ही अपनी-अपनी दुनिया में आज़ादी से सुखपूर्वक जी रहे हों.
यह मामला कब का ख़त्म हो जाता यदि उसके यूट्यूब पर कभी यह नहीं दिखता कि जिसे आप चाहते हैं जाने उसके मन में आपके लिए क्या है. इन नंबरों में से कोई एक नंबर चुनें. इससे बाहर निकले, तो कभी दिखता है वो भी आपको याद कर रहे हैं,:जिन्हें आप लगातार याद कर रहे हैं. फिर एक और मैसेज यदि आपको ऐसे संकेत मिल रहे हैं, तो विश्वास मानिए कोई आपको याद कर रहा है.!अजीब सी बात है यह सारे मैसेज बिना सब्सक्रिप्शन के उसे दिखने लगे थे.
और अभी कल ही तो उसने सुना था आप किसी से मिलते नहीं मिलवाए जाते हैं. उसे लगा उसका दिमाग़ आउट ऑफ कंट्रोल हो रहा है. उससे बात हुए भी तो कोई छह महीने हो गए थे. ऐसा नहीं की उसने कोशिश न की हो, लेकिन जब कोई ख़ुद ही रिश्ता न रखना चाहे तो वह कर भी क्या सकता था.
वह इसी ऊहापोह में गुज़र रहा था कि न जाने उसे ऐसा लगा कहीं कुछ है. वह भी उसे मिस कर रही है. ऐसा न होता, तो आज यह पिछले सात-आठ दिनों से चली आ रही बेचैनी इस कदर न बढ़ जाती. बार-बार उसका हाथ मोबाइल तक जाता और फिर रुक जाता. बस दिलोंदिमाग़ में एक ही नाम गूंज रहा था शुभ्रा.
आख़िर यह मामला क्या है? वह क्यों इतना सब होने के बाद भी शुभ्रा को इतना चाहता है, जबकि वह जानता है उसके और शुभ्रा के बीच मिल पाने के कोई आसार और लक्षण नहीं हैं.
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वह उसे छोड़ भी देता, मगर कहीं उसने ट्विन फ्लेम के बारे में पढ़ा और उसकी सोच एकदम से बदल गई. ट्विन फ्लेम अर्थात् एक आत्मा दो हिस्से में बंट गई. आधा हिस्सा वह ख़ुद है और दूसरा हिस्सा उफ़्फ़ क्या दूसरा हिस्सा शुभ्रा है.
कहते हैं, यूनिवर्स में हर इंसान अपनी ट्विन फ्लेम को ढूंढ़ता है. जिस दिन वह अपनी ट्विन फ्लेम से मिल जाता है उसका जीवन चक्र पूरा हो जाता है. कौन जाने इन बातों में कितनी सच्हैचाई , मगर कुछ तो है शुभ्रा में जो वह उसका साथ पा कर ख़ुद को पूरा महसूस करता है.
ज़िंदगी का यह एहसास भी अजीब है. सब कुछ तो है रवि के पास फिर यह कैसा अधूरापन है, जो शुभ्रा पूरा करती है. किसी इंसान की बाहर दिखती ज़िंदगी और भीतर की ज़िंदगी में बड़ा फ़र्क़ होता है.
रवि आज ख़ुद भी अपने भीतर उतरता चला जा रहा था. जितना वह शुभ्रा को सोचता, उतना ही वह उसके भीतर समाता चला जाता. न जाने कब उसे एहसास होने लगा कि बिस्तर पर उसके साथ कोई है… शुभ्रा?..
आज के इस दौर में जहां चैट करते हुए कोई भी चंद रुपए के लिए वीडियो कॉल पर सब कुछ दिखा देने को तैयार है.. जहां तमाम सोशल ऐप्स और मीटिंग साइट्स आसानी से एक-दूसरे की पसंद के लोग मिलवा रही हैं.. जहां बुकिंग करके थाइलैंड या ऐसे ही देशों में जा कर अपने पसंद के अनुसार एक इंसान अपने शरीर और मन की प्यास बुझा सकता है.. वहां रवि के लिए शुभ्रा इतनी महत्वपूर्ण क्यों हो उठी है, यह बात उसे भी समझ में नहीं आ रही थी.
उसकी पत्नी क्या दुनिया की किसी भी लड़की से कम सुंदर है?.. ऐसा नहीं कि उसे अपनी फैमिली लाइफ़ से प्यार न हो, न ही उसकी पत्नी ने उसे कभी शिकायत का कोई मौक़ा दिया है. फिर ऐसा क्यों है कि वह शुभ्रा के ख़्यालों में इस हद तक डूबा रहता है जैसे वह हर वक़्त उसके साथ हो.
और शुभ्रा, वह भी तो शादीशुदा है. उसका अपना परिवार और बच्चे हैं. भला ऐसा कहीं हो सकता है कि वह रवि के लिए अपना परिवार छोड़ दे. ऐसा कुछ ख़ास तो नहीं है उसमें कोई लड़की या स्त्री उसे प्यार करने लगे.
यह प्यार करने की कोई उम्र है, कोई वक़्त है? भला ऐसे प्यार से क्या हासिल हो सकता है सिवाय दो परिवारों के बर्बाद हो जाने के.
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वह हंसा.. अजीब सा पागलपन है.. उसने शुभ्रा को आज तक आई लव यू तो कहा ही नहीं और न ही उसने ऐसा कोई इशारा दिया कि वह उसे प्यार करती है.सवाल गहरा है, जब कुछ है ही नहीं, तो फिर यह बिस्तर, उसका एहसास.. उसके लिए उसका जिस्म क्यों बन जाता है.. सिर्फ़ जिस्म ही क्यों, उसके ख़्याल शुभ्रा की पूरी पर्सनैलिटी बन उसके ऊपर कुछ इस तरह छा जाते हैं कि वह धीरे-धीरे आंख बंद कर शुभ्रा से बातें करने लगता है. अपने भीतर ज़िंदगी के अधूरे सपने जीने लगता है. लगातार उत्तेजना से भर रहा है और बस उसके साथ जो चाहे वह कर गुज़रने को बिना उससे पूछे बढ़ता चला जा रहा है. शुभ्रा भी तो जीवन के इस अंतरंग क्षणों में उसके साथ किसी प्रेयसी सा व्यवहार कर रही है. किसी चिर यौवना सी, जैसे न जाने कब की अतृप्त प्यास को बुझा लेने को आतुर हो.
आख़िर क्यों है उसके दिल में शुभ्रा के लिए यह तडप. किसी को जिस्म चाहिए, तो वह बाज़ार में भरा पड़ा है. लेकिन जिस्म किसी को किसी के साथ का एहसास नहीं दे सकता. वह किसी की भौतिक प्यास तो बुझा सकता है, पर किसी के मन की प्यास नहीं. अमूमन, हम शादी में अधूरे रहते हैं. बिरला ही कोई होता होगा, जो शादी से पूरा हो जाता हो.
इसकी बहुत बड़ी वजह है हमारे नैतिक मापदंड. एक पति अपनी पत्नी से सिर्फ़ बच्चा ही नहीं चाहता, वह ताउम्र उसका मानसिक साथ भी चाहता है. वह साथ कुछ ऐसा हो कि उसमें उसकी सोच को ग़लत न समझा जाए. उसे कुछ असामाजिक बात पर चरित्रहीन न कह दिया जाए. उसे अनैतिक और गिरा हुआ इंसान न समझ लिया जाए. वैसे ही एक स्त्री भी तो है, वह भी अपने पति से न जाने क्या-क्या चाहती है, मगर एक बार उसने अपनी चाहत ज़ाहिर कर दी, तो लगता है जैसे उसके चरित्र को न जाने क्या-क्या कहा जाएगा. उसे तो तरुणाई की अवस्था से ही ख़ुद को पवित्र साबित करने की चुनौती से गुज़रना होता है.
ऐसे में एक छत के नीचे बहुत क़रीब और साथ जीते पति -पत्नी बस एक-दूसरे को अपने अच्छे और नैतिक होने का सबूत देने में लगे रहते हैं. हमारा समाज भी तो परिवार जैसी संस्था के लिए इसी की मांग करता है. ऐसे में पति-पत्नी एक-दूसरे के पूरक कहां बन पाते हैं, हां ज़रूरत ज़रूर बन जाते हैं.
बस, वही तो एक ऐसा मोड़ है, जहां इंसान को एहसास होता है कि वह वैचारिक, भावनात्मक और शरीर के स्तर पर अधूरा है. ऐसे में कहीं कोई मिल जाए जो उसे जस का तस स्वीकार ले. उसे ग़लत न समझे, तो उसे ख़ुद का अधूरापन मिटता दिखाई देता है.
उसने शुभ्रा से यही तो कहा था, "शुभ्रा मैं तुमसे झूठ नहीं बोल सकता. आई लव यू… कहना एक बचकानी बात है और यह किसी अंज़ाम तक जा भी नहीं सकता. लेकिन यह सच है शुभ्रा कि मैं तुम्हारे प्रति आकर्षित हूं और इस आकर्षण में वह सब कुछ है, जो एक पुरुष एक स्त्री से चाहता है.
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बस यही वह टर्निंग पॉइंट है, जहां उसे एहसास हुआ शुभ्रा और वो ट्विन फ्लेम हैं. आज के भारतीय संदर्भ और नैतिकता की कसौटी पर किसी से इतना स्पष्ट कहना आसान नहीं है. वह भी यह बताते हुए कि रातों को मैं तुम्हारे साथ किस तरह महसूस कर सो जाता हूं. भला यह सुनकर और जानकर क्या हाल होगा किसी सुनने वाले का.. भला कौन स्वीकार करेगा इस तरह की बहकी-बहकी बातें. कितनी देर लगेगी इसके बाद किसी इंसान को बुरा-भला कह देने में, उसे चरित्रहीन और ग़लत समझने में.
लेकिन नहीं शुभ्रा ने उसकी मानव जनित ईमानदार भावना को समझा, उसे स्वीकार किया और महत्व देते हुए उसे ग़लत नहीं समझा. यह सच है कि वह उसके लिए क्या सोचती है, इस बात को लेकर वह कभी रवि से मुखर नहीं हुई. हां, रवि के लिए इतना ही काफ़ी था कि इस संकीर्ण समाज में उसकी कहीं हुई बात को किसी ने बड़ी ईमानदारी से देखा उसका विश्लेषण किया और एक मानव स्वभाव को स्वीकार करते हुए उसे नैतिकता के कटघरे में खड़ा कर दंडित करने के विषय में नहीं सोचा. बस इसी मोड़ पर रवि अपने भीतर ट्विन फ्लेम पर भरोसा करने लगा.
शुभ्रा का साथ उसे अपने व्यक्तित्व में पूर्णता प्रदान करता सा लगाने लगा अर्थात् शुभ्रा उसके जीवन उसके व्यक्तित्व का वह हिस्सा बन गई, जो उसे पूरा कर दे. उसे वैचारिक रूप से संतुष्टि प्रदान करे कि जहां वह सही-ग़लत से परे अपनी भावनाओं की जी सके. जिसके साथ वह बेझिझक अपनी ज़िंदगी, सही-ग़लत बात कह सकें. सच कहें तो ख़ुद को इस विश्वास के साथ बांट सके कि उसका ट्विन फ्लेम उसके साथ उसकी भावनाओं को जिएगा, उसे महसूस करेगा, उसके प्रति जजमेंटल नहीं होगा.
वह जानते हैं कि इंसान जो सोचता है ज़रूरी नहीं कि उसे वह सब करने का अवसर मिल ही जाए. इससे आगे बढ़ कर यदि जीवन में ऐसा अवसर आए, तो वह यह सब कर गुज़रे यह भी ज़रूरी नहीं है. हो सकता है जब वह और शुभ्रा अकेले हों, तो रवि एक शब्द भी न बोल पाए. वह शुभ्रा को बांहों में भरना तो दूर, उसका हाथ ही न छू सके. और यह भी तो ज़रूरी नहीं कि शुभ्रा अपनी लक्ष्मण रेखा लांघे या हो सकता है रवि ख़ुद भी अपने नैतिक दायित्व देखते हुए ऐसी कोई पहल ही न करें. लेकिन इस तरह भावनात्मक रूप से किसी से जुड़कर यदि उसकी स्वीकारोक्ति के चलते वे आज अपने ज़िंदगी के अधूरेपन को कहीं पूरा होता पा रहे हैं, तो ऐसे शख़्स को अपना ट्विन फ्लेम समझ लेना कोई आश्चर्य तो नहीं है.
- शिखर प्रयाग
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