"अरे, आपको ही चाहिए थी बेहद स्मार्ट, ख़ूब पढ़ी-लिखी, नौकरीवाली बहू! लो देख लो अब, आपकी छोटी स्मार्ट बहू चार दिनों के लिए शहर से यहां रहने क्या आई, बड़ी बहू के दिमाग़ में न जाने क्या-क्या भर गई."
बेहद संवेदनशील, विन्रम, सबका मान रखनेवाली, हमेशा दूसरों की फ़िक्र करनेवाली प्राची, अब ख़ुद की भी थोड़ी सी फ़िक्र करना सीख रही थी या यूं कह लें प्राची अब बदल रही थी.
प्राची की सासू मां प्राची के इस बदलाव को कुछ-कुछ समझ रहीं थीं.
ससुरजी के साथ चाय की चुस्किया लेती हुईं सासू मां सुसरजी से बोलीं, "अरे, आपको ही चाहिए थी बेहद स्मार्ट, ख़ूब पढ़ी-लिखी, नौकरीवाली बहू! लो देख लो अब, आपकी छोटी स्मार्ट बहू चार दिनों के लिए शहर से यहां रहने क्या आई, बड़ी बहू के दिमाग़ में न जाने क्या-क्या भर गई."
प्राची रसोई की खिड़की से पकौड़े तलते हुए सब सुन रही थी. एक ट्रे में पकौड़े और मैगजीन लेकर मुस्कुराती हुई प्राची रसोई से बाहर आई और टेबल पर ट्रे रखती हुई बोली, "मांजी, ये लीजिए पकौड़े खाइए."
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सासू मां मुस्कुराते हुए बोलीं, "अरे वाह! पकौड़े और ये मैगज़ीन कौन-सी है? और तू ऐसे ट्रे में सजाकर क्यों लाई है?"
"अरे, मांजी, एक ख़ुशख़बरी है. मेरी काहानी आज इस प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशित हुई है. मेरी प्यारी स्मार्ट देवरानी ने मेरा खोया हुआ शौक वापिस जगा दिया. उसने ही मुझे ये आइडिया दिया. और तो और मेरा ब्लॉग भी तैयार किया है उसने. अब से घर के कामों के साथ मैं भी अपने लिए थोड़ा सा वक़्त निकाल लिया करूंगी, अपने शौक़ के लिए.
सासू मां ट्रे से मैगज़ीन उठाकर फिर से मन ही मन छोटी बहू को कोसने लगी. पर प्राची की छोटी-सी तस्वीर के साथ उसकी सुंदर विचारों से भरी कहानी पढ़ने के बाद वे कुछ मुस्कुराईं. जैसे उस कहानी ने उनके विचारों को परिवर्तित कर दिया हो. वे उठीं और प्राची की पीठ थपथपाकर बोलीं, "मुझे अपनी दोनों बहुओं पर गर्व है. तेरी कहानी बहुत अच्छी है. पड़ोसवाली सरला को दिखाकर आती हूं, जो दिनभर अपनी बहू की नौकरी को कोसती है."
प्राची सासू मां के शब्द सुन ख़ुशी से भर गई. उसकी लिखी कहानी 'यथा शीर्षक तथा गुण' वाली साबित हो गई.
कहानी का शीर्षक था- थोड़ा तुम बदलो, थोड़ा हम…
पूर्ति वैभव खरे
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