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कहानी- तरंग का आकाश (Short Story- Tarang Ka Aakash)

रोहित ने उसे भी कई बार कई तरह से इशारों-इशारों में निमंत्रण दिया था. रोहित मज़ाक में नीलोफर को कहता, "भई, मानते हैं कि तुम सब में सुंदर है तो एक ही, लेकिन क्या करें, वह हमे घास ही नहीं डालती." यह हमेशा वह तभी कहता, जब वह देखता कि तरंग वहीं आसपास ही है.

सबके अपने-अपने कारण थे. नीलोफर को अपना कार्य पसंद था, क्योंकि वेतन अच्छा था. मधु को संसार भर के अनेक स्थलों पर घूमने का आकर्षण. प्रमिला को देश-विदेश में अपनी मनपसंद वस्तुओं को ख़रीदने का मोह और प्रीति से कोई यह पूछ ले कि संसार में किस शहर में किस होटल की कौन सी‌ खाने की चीज़ स्वादिष्ट है.
तरंग के‌ मन में इनमें से किसी के लिए भी कभी उत्सुकता नहीं जागी. उसने तो एयर इंडिया में एयर होस्टेस की नौकरी के लिए आवेदन ही इसलिए दिया था कि उसके मन में बादलों के बीच पृथ्वी से ऊपर उड़ने की इच्छा बचपन से ही थी.
इसी कारण जब दूसरी एयर होस्टेस अपने-अपने कार्य से थक जातीं, तो वह अपने स्थान पर तरंग को सदा आगे कर देतीं. ऊपर नीले आकाश में उड़ते हुए तरंग के मन को एक प्रकार की शांति मिलती थी और इसलिए अपने कार्य में रत रहते हुए भी वह सदा झरोखों से बाहर ही ताकती रहती. वायुयान में आराम गद्‌दों पर सोते हुए लोगों को देखकर तरंग उन पर दया आती कि वह अपना अमूल्य समय इस प्रकार सोते रहकर बरबाद कर रहे हैं. तरंग अपने रोमांचक क्षणों को किसी मूल्य पर भी गंवाने के पक्ष में नहीं थी.
सब यात्री भी उसकी सेवाओं से प्रसन्न रहते, क्योंकि यह उन सबका कार्य हंसते-मुस्कुराते हुए निपटाती. अक्सर उनके अन्य साथियों में वायुयान के कप्तान रोहित खन्ना होते. रोहित को पहली बार देखकर न जाने क्यों वह उसकी ओर आकर्षित हो गई थी. यह आकर्षण कब धीरे-धीरे बढ़ता गया वह समझ न पाई थी. रोहित अपने कार्य में व्यस्त होता, तो उसे किसी बात की सुध नहीं रहती थी. कई बार बीच आकाश में जब मौसम ख़राब हो जाता, तो रोहित सदैव धैर्य से अपना कार्य करता, मानो वायुयान में यात्रा कर रहे सब यात्रियों को सकुशल नीचे उतारना उसका एकमात्र कार्य हो. उसको आज तक किसी ने किसी परिस्थिति में भी घबराते नहीं देखा था.
परंतु तरंग अपनी ओर से भरमक ही प्रयत्न करती कि वह रोहित की ओर से उदासीन रहे. इसके कारण थे. एक तो यह कि वह विवाह करके अपनी इस एयर होस्टेस की नौकरी को छोड़ना नहीं चाहते थी, क्योंकि तब वह नीले आकाश में विचरते रहने का रोमांच कहां से पाएगी.

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दूसरा कारण था, रोहित के विषय में प्रचलित कथाएं.
उन कथाओं के अनुसार रोहित का सुंदर-सलोना चेहरा, गठिला शरीर और उसकी हर लड़की को अपनी ओर आकर्षित कर लेने की अद्भुत क्षमता… सब एयर होस्टेसों में यह प्रचलित था कि रोहित एयर इंडिया की लगभग हर एयर होस्टेस के साथ रंगरेलियां मना चुका है.
उसका प्रमाण तरंग को कई बार मिल चुका था, क्योंकि रोहित ने उसे भी कई बार कई तरह से इशारों-इशारों में निमंत्रण दिया था. रोहित मज़ाक में नीलोफर को कहता, "भई, मानते हैं कि तुम सब में सुंदर है तो एक ही, लेकिन क्या करें, वह हमे घास ही नहीं डालती." यह हमेशा वह तभी कहता, जब वह देखता कि तरंग वहीं आसपास ही है.
एक बार रोहित ने उसे लंदन एयरपोर्ट पर कहा था, "अगर तुम चाहो तो आज यहां एक बढ़िया रेस्तरां में तुम्हें मुर्ग मुसल्लम खिलाया जाए. वह भी इतना बढ़िया जितना तुमने भारत में भी कभी न खाया होगा."
तरंग ने उसे केवल धन्यवाद कहकर सिर हिला दिया था. हालांकि उसका मन उस निमंत्रण को स्वीकार करने का आमंत्रण दे रहा था. तब रोहित ने जाते हुए कहा था, "लगता है तुम किसी करोड़पति की प्रतीक्षा में हो."
उसी शाम सब एयर होस्टेसों ने मिलकर लंदन में एक नाटक देखा था. केवल प्रीति उसके साथ नहीं गई थी. मधु ने कहा था, "लगता है, हमारे रोहित खन्ना आज प्रीति को मुर्ग मुसल्लम खिलाने ले गए हैं."
सुनकर तरंग को बुरा लगा था, क्योंकि उसे लगा था कि रोहित इनमें से सबको मुर्ग मुसल्लम की दावत करवा चुका है. तब नीलोफर ने कहा था, "तरंग, तुम पर तो हमारे कप्तान जी जान से मरते हैं, फिर भी तुम उनके साथ किसी दावत पर नहीं गई हो."
तरंग इस आकस्मिक प्रश्न से घबरा गई थी, परन्तु इससे पूर्व कि वह कोई उत्तर देती, प्रमिला बोल पड़ी, "अरे भाई, तरंग को दो-चार दिनों की दोस्ती नहीं चाहिए, रोहित तो किसी लड़की के साथ पांचवी बार जाता ही नहीं और इधर हम है कि उसकी याद में आहे भरती रहती हैं." तरंग के मन में इस तरह की बातें सुन-सुनकर टीस सी उठती. वह यह भी जानती है कि लोग किस तरह बात का बतंगड़ बनाकर फैलाते हैं. परन्तु फिर भी जब इतनी बातें होती हैं, तो रोहित की ओर से ऐसे काम कुछ न कुछ तो होते ही होंगे.
उस दिन पेरिस से बंबई आते हुए केबिन में रोहित की ही कोई बात हो रही थी. उसी को सोचते हुए तरंग गरम दूध करके बोतल में डालकर ले जा रही थी. तरंग ने दूध की बोतल शालिनी को देते हुए मुस्कुराकर उसको गोद में पड़े नन्हें शिशु को देखा.
"कितना प्यारा बच्चा है." शिशु की ठोड़ी पर उंगली रखते हुए तरंग बोली शिशु मुस्कुरा उठा. शालिनी ने उत्तर दिया, "बस, इसे इसका दूध समय पर मिलता रहे, तो बिल्कुल तंग नहीं करता."
इतना कहते-कहते शालिनी के चेहरे का रंग पीला पड़ने लगा और उबकाई सी आने लगी, "बाप रे, लगता है मुझे उल्टी होगी… क्या थोड़ी देर के लिए इसे..." इतना कहते-कहते शालिनी झट से अपनी सीट से उठी, शिशु को और दूध की बोतल को तरंग के हाथों में थमाते हुए वह बाथरूम की ओर दौड़ी.

अचानक दूध की बोतल मुंह से छिन जाने से शिशु रोने लगा. तरंग ने ठीक से अपनी बांहों में संभालकर दूध की बोतल शिशु के मुंह में लगा दी और प्यार से बोली, "नहीं रोते मुन्ना, दूध चाहिए प्यारे मुन्ने को."

मुंह में दूध आते ही शिशु चुप हो गया.एक बार मुस्कुराया और आराम से दूध पीने लगा. तरंग अब तक शालिनी नारंग के विषय में काफ़ी कुछ जान चुकी थी कि शालिनी के पति व्यापारी है और बंबई में ही रहते हैं. पर बबई में और कोई नहीं है, सो शालिनी पेरिस अपने माता-पिता के पास गई हुई थी. शिशु का जन्म पेरिस में ही हुआ था. अब वह अपने शिशु को लेकर वापस बंबई अपने घर लौट रही थी.

शालिनी जब बाथरूम से लौटी, तो उसकी तबीयत ठीक नहीं थी, सो तरंग ने शालिनी से कहा, "आप आराम से बैठें, मैं इसे थोड़ी देर अपने केबिन में ले जाती है और दूध पिलाकर कुछ देर बाद आपके पास छोड़ दूंगी. तब तक आपकी तबीयत भी ठीक हो जाएगी."अपने केबिन की ओर आते हुए रूक कर तरंग ने पूछा, "अरे हां, शिशु का नाम क्या रखा है?" शालिनी हंसते हुए बोली, "अभी रखेंगे अब तक तो बेबी ही बुलाते हैं."

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बंबई सांताकुज एयरपोर्ट पर जब अपना बैग रखने तरंग एयरपोर्ट पर अपने दफ़्तर गई, तो उसे एक पैकेट मिला उसके साथ एक चिट थी, जिस पर लिखा था, 'आपने मेरी पत्नी एवं बेबी की काफ़ी सेवा की इसका धन्यवाद. मेरो और शालिनी की इच्छा है कि आज शाम का भोजन हमारे साथ करें. हस्ताक्षर अस्पष्ट थे, परन्तु अंत में नारंग सा शब्द बनता था और साथ ही घर का पता और फोन नंबर लिखा हुआ था. और पैकेट में इत्र की एक छोटी सी बोतल भी थो.
इस तरह के कार्य तो तरंग की दिनचर्या में प्रायः होते ही रहते थे, सो उसने उसी समय तय कर लिया कि वह फोन करके उन्हें मना कर देगी. दूसरे दिन प्रातः ही उसने फोन किया, तो उधर शालिनी का ही स्वर था. शालिनी के बहुत आग्रह करने पर तरंग अस्वीकार नहीं कर पाई. उसे शालिनी का स्वभाव भी अच्छा ही लगा था. शाम को वह उस पते पर पहुंच गई.
तो शालिनी ने दरवाज़ा खोला और उसे देखते ही बोली, "तुम सचमुच बहुत सुंदर हो." तरंग मुस्कुरा कर रह गई. शालिनी ने बताया कि उसके पति को किसी कार्यवश कहीं जाना पड़ गया.
इतने में द्वार की घंटी बजी, तो शालिनी जाते हुए बोली, "ओह, भैया आए होंगे."
तरंग के आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उसने देखा कि दोनों बांहों में कुछ पैकेट थामे रोहित खन्ना अंदर आ गया. अंदर आते ही रोहित ने पैकेट मेज पर रखे और बोला, "आश्चर्य, तरंग, तुम यहां?"
तरंग के दिल की धड़कन इतनी तेज हो गई कि उसे लग रहा था कि कमरे में खड़े शालिनी और रोहित दोनों ही उस धड़कन की आवाज़ को सुन रहे होंगे. संभलते हुए बोली, "आप शालिनी के भाई है?"
शालिनी बोली, "तुम दोनों तो काफ़ी असें से एक-दूसरे को जानते होंगे?"
उत्तर रोहित ने दिया, "जी, इसे जानता तो उसी दिन से हूं, जब से इसने एयर इंडिया में कार्य आरम्भ किया था. लेकिन इसने तो मुझसे बात ना करने की कसम ही उठा रखी है."
अब तरंग पूरी तरह से संभल चुकी थी. उसे मन ही मन विश्वास भी हो रहा था कि शालिनी के आज के निमंत्रण के पीछे रोहित का ही हाथ है. उसने उत्तर दिया, "मेरे एक के बात करने, न करने से आपको क्या अंतर पड़ता है. आपसे बातें करने के लिए तो एयर इंडिया की सारी एयर होस्टेस लालायित रहती हैं."
"ओह तरंग, इतना झूठ मेरी बहन के सामने तो न बोलो." बीच में शालिनी बोल पड़ी, "भैया, रास्ते में तरंग ने मेरी बड़ी सहायता की, नहीं तो बड़ी कठिनाई होती."
तरंग ने विषय बदलने की नीयत से पूछा, "बेबी कहां है?"

और फिर बेबी को लेकर उसी की बातें आरम्भ हो गई. खाने की मेज़ पर बैठते हुए रोहित ने कहा, "तरंग, तुम तो किसी पुरुष से बात ही नहीं करती और अब बेबी की बातों में तुम्हें इतना आनंद आ रहा है. यह न भूलो कि बेबी एक पुरुष है?”
और सबने ठहाका लगाया. खाना खाते हुए शालिनी ने पूछा, "तरंग, तुम्हारी आयु क्या है?" तरंग ने बताया, "बाईस वर्ष."
शालिनी ने बताया, "मेरी आयु बीस की थी, मैं भी नौकरी करती थी. नौकरी का अपना आनंद है, परन्तु पत्नी बनने का आनंद भी उससे कम नहीं, विशेष रूप से तब, जब ऐसा जीवनसाथी मिले, जिससे प्रेम हो."
"लेकिन मैंने तो कभी विवाह के विषय में सोचा ही नहीं." कहकर तरंग शालिनी की ओर देखने लगी. रोहित थोड़ा गंभीर हो गया. बोला, "तरंग, तुम सच मानो या न मानो, जब से तुम्हें देखा है, मुझे कुछ हो गया है. तुम दूसरी लड़कियों से भिन्न हो... एयर होस्टेस बनकर अधिकांश तो बाहर जाकर कुछ समय आनंद लेने में विश्वास रखती हैं. परन्तु तुम्हारे विषय में मैंने आज तक ऐसी बात नहीं सुनी. यकीन मानो जब हम सब कप्तान एवं अन्य सहयोगी छु‌ट्टी के समय बैठकर गप्पें मारते हैं, तो सब की बातें होती हैं. सो सबके विषम में कुछ न कुछ पता रहता ही है."
तरंग ने मुस्कुराकर रोहित की ओर देखा और बोली, "अच्छा रहने दो, मेरी और तारीफ़ न करो."

फिर इधर-उधर की बातें होने लग गईं. रात अधिक हो गई थी, सो शालिनी ने कहा, "तरंग अकेले मत जाओ, भैया तुम्हें कार में छोड़ देंगे."
तरंग देख रही थी कि यह सब पूर्व नियोजित सा हो रहा था, परन्तु कोई चारा भी नहीं था.
कार में दोनों चुपचाप बैठे रहे, तो रोहित ने चुप्पी तोड़ी, "अगर इजाज़त हो, तो थोड़ी देर पासवाले पार्क में घूम ले."
तरंग अपने में खोई हुई थी, उसने हामी भर दी. रोहित ने कार किनारे रोक दी. बाहर चारों ओर चांदनी बिखरी हुई थी.
पार्क में घूमते हुए रोहित ने तरंग का हाथ पकड़ लिया, तरंग मना नहीं कर सकी. आज उसके दिल की धड़कन उसका साथ नहीं दे रही थी. उसने भी तो कभी ऐसा ही सपना देखा था कि रोहित उसका हाथ अपने हाथ में लेकर ऊपर-नीचे आकाश पर उड़ रहा होगा. वही ख़्वाब आज सच हो रहा था. हरी-हरी दूब पर चांदनी के प्रकाश में उसे यही लग रहा था मानो रोहित उसके साथ आकाश में उड़ रहा हो.

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उस निद्रा की स्थिति को तोड़ा रोहित ने, "तरंग, तुम्हें देखने के पश्चात मुझे किसी लड़‌की का साथ कभी पसंद नहीं आया. जब तुम शुरू-शुरू में आई थी, तो यही लगा था कि तुम भी कुछ दिन आनंद मनाने के लिए एयर होस्टेस बनी हो. परंतु मेरा भ्रम टूट गया. तब से मैं तुम्हें पत्नी रूप में पाने को व्याकुल रहा हूं. अगर तुम्हें स्वीकार हो तो ठीक, वरना मैं आज के बाद तुम्हें कभी तंग नहीं करूंगा." और तरंग सोच रही थी कि जब उसके मन की सारी बातें स्वय रोहित ही कह रहा है, तो वह इससे अधिक क्या कहे... चुपचाप समीप खिसककर उसने अपना सिर रोहित की सीने पर टिका दिया.

- ब्रहम देव

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