“हां, आपकी सारी डिटेल्स हमारे पास हैं सिवाय एक चीज़ के.”
“अच्छा, और वो क्या?”
“वो ये कि आपके टैटू के नीचे जो लाइन्स लिखी हैं वो क्या हैं?”
“हा... हा... वो एक राज़ है इतनी आसानी से सबको पता नहीं चलता, उसके लिए ख़ास बनना पड़ता है.”
“अच्छा, तो ठीक है हम कोशिश करेंगे कि उस राज़ को जानने लायक ख़ास बन सकें.”
“ख़ास बनना, तो उस राज़ को जानने से भी मुश्किल है और तुम तो इंश्योरेंस वाले हो, दिनभर में न जाने कितने झूठ बोलते होगे, तुम्हें लगता है मैं तुम पर भरोसा कर लूंगी.”
मीटिंग शुरू होने में कुछ और टाइम लगने वाला था. मैंने एक नज़र घड़ी पर डाली. 12 बजने में करीबन 35 मिनट बाकी थे, मतलब कि अगर मीटिंग अपने निर्धारित समय पर भी शुरू होती है, तो मेरे पास पर्याप्त समय था. हां, एक बार इसके शुरू हो जाने के बाद ख़त्म होने का कोई सुनिश्चित अनुमान नहीं था. हो सकता है तीन-चार बज जाएं या फिर ऐसा भी हो सकता था कि पिछली बार की तरह मीटिंग पांच बजे ख़त्म हो. हमारे सीनियर्स के आने का टाइम तो फिक्स होता था, लेकिन जाने का नहीं. मैं एक जानी-मानी बीमा कंपनी के भोपाल ब्रांच में ब्रांच मैनेजर के तौर पर कार्यरत हूं.
35 मिनट का समय खाली बैठकर बिताने से बेहतर था मैं एक कप कॉफी पीकर आ जाऊं. साढ़े ग्यारह तक मैं अपने केबिन से बाहर निकल पास की एक छोटी कॉफी शॉप में पहुंच गया था. मैं हर दिन लगभग इसी समय यहां आता था. वेटर्स जानते थे कि इस वक़्त मैं क्या लेना पसंद करूंगा. मेरे बिना कहे ही वेटर मेरे सामने एक कप कॉफी रख गया था. हालांकि कॉफी तो मुझे ऑफिस में भी मिल जाती थी, लेकिन वो मशीन की कॉफी पीना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं था.
अपने मोबाइल में मीटिंग की डिटेल्स पढ़ते हुए कॉफी का एक सिप लेकर कप वापस टेबल पर रखने के इरादे से मैंने दाहिना हाथ आगे किया ही था कि नज़र सामने मौजूद कुर्सी पर चली गई. एक लड़की जिसकी पीठ मेरी तरफ़ थी, मेरे टेबल के दूसरी तरफ़ रखी कुर्सी के ठीक बाद वाली कुर्सी पर बैठी थी. अमूमन, इस वक़्त कॉफी शॉप में भीड़ हुआ करती थी, लेकिन आज उस लड़की और मेरे सिवाय नाममात्र के ही लोग मौजूद थे.
कॉफी शॉप की खाली पड़ी कुर्सियों को देखकर कुछ ही दिनों पहले शॉप वाले के कहे शब्द मुझे याद आ गए थे. कुछ दिन पहले जब मुझे बैठने की जगह नहीं मिली थी, तो उसने एक कुर्सी देते हुए कहा, “सर, अभी जल्द ही गर्मी आ जाएगी, फिर देखिएगा यहां पूरा दिन आपको कोई दिखाई नहीं देगा. सारी भीड़ शाम को ही आएगी.”
और आज शायद उसकी बात सच साबित भी हो गई थी. अप्रैल के महीने की इस गर्मी में कॉफी शॉप का खाली होना स्वाभाविक था.
खाली कुर्सियों से होते हुए एक बार फिर मेरी नज़र उस लड़की पर पहुंच गई थी. इस बार उसकी गर्दन के पिछले हिस्से में बने टैटू ने मुझे आकर्षित किया था.
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लड़की ने बालों को बांध एक जूड़े का रूप दिया था और इस तरह से उसकी गर्दन पर बने टैटू को मैं साफ़ तौर पर देख सकता था. टैटू के नीचे संस्कृत में किसी श्लोक की कुछ लाइन्स भी लिखी हुई थीं, जिन्हें मैं इतनी दूर से पढ़ तो नहीं सकता था, लेकिन सामान्य तौर से ज़्यादा गहराई तक पीठ पर नीचे उतरी टी-शर्ट की डिज़ाइन की वजह से मैं उन लाइन्स को देख ज़रूर सकता था. शायद उसने जानबूझकर ऐसी टी-शर्ट पहनी थी और साथ ही बालों को इस तरह से बांधा था कि उसका टैटू लोगों को दिख सके. उसके टैटू को देखते हुए मैंने कॉफी का कप फिर से उठाया और होंठों से लगा लिया. लड़की मेरी नज़र से अनजान अपने मोबाइल में व्यस्त थी. वो अकेली ही थी और शायद किसी का इंतज़ार कर रही थी.
उसके दाहिने पैर पर चढ़े बाएं पैर के लगातार हिलते हुए जूते को देखकर मैं उसकी बेचैनी महसूस कर सकता था. वो कुछ देर ऐसे ही रहती और फिर पलटकर दाएं पैर को बाएं पैर के ऊपर कर लेती और फिर कुछ देर बाद बायां पैर दाएं पैर के ऊपर हो जाता. अपनी कॉफी के साथ मैं उसे ये सब करते चुपचाप देखता रहा. मेरी कॉफी ख़त्म होने को ही थी जब उसने किसी को कॉल करते हुए मोबाइल कानों में लगा लिया. मेरी नज़र उसके टैटू से हटकर उसकी उंगलियों पर चली गई. मेनीक्योर किए हुए लंबे नाख़ून, उन पर उसके जिस्म से मेल खाती बादामी रंग की नेलपॉलिश और दो छोटी अंगूठियां.
मोबाइल पर उसकी बात ख़त्म होने से पहले ही मेरी कॉफी ख़त्म हो गई और साथ ही कॉफी शॉप में ठहरने की मेरी समय सीमा भी. घड़ी में 11 बजकर 55 मिनट हो चुके थे और मुझे पांच मिनट में मीटिंग हॉल पहुंचना था. मैंने जल्दी से कुर्सी छोड़ी और पीछे के दरवाज़े से बाहर निकल आया.
मीटिंग देर तक चली. सीनियर्स ने नए शामिल हुए लड़कों को महीने के अंत तक कम से कम तीन जीवन बीमा लेकर आने का टारगेट दिया था और ज़ाहिर सी बात थी इस टारगेट को हासिल करने में उनकी मदद मुझे भी करनी थी. मीटिंग के बाद मैंने भी कुछ वैसी ही हिदायत उन लड़कों को दी और घर जाने को निकल पड़ा.
घर जाने से पहले एक लड़के, जिसका नाम मनोज था, को मैंने एक एड्रेस देकर बताया कि वो कल एक बजे जाकर इस पते पर मिस्टर गुप्ता से मिल ले. मिस्टर गुप्ता अपनी और अपनी वाइफ का बीमा कराना चाहते थे. मिस्टर गुप्ता मेरे पुराने परिचित थे और उन्होंने इसके लिए मुझे कहा था. मनोज का टारगेट बाकी सबकी अपेक्षा काफ़ी पीछे था, तो मैंने सोचा कि इससे मनोज की कुछ मदद कर देता हूं.
अगली सुबह रोज़ की तरह मैं 10 बजे ऑफिस जाने के लिए रास्ते पर सिग्नल में खड़ा उसके खुलने का इंतज़ार कर रहा था कि एक बार फिर मेरी नज़र सामने स़फेद रंग की एक्टिवा पर बैठी लड़की पर गई. उसको देखते ही मेरी नज़रें थम गईं. वो टैटू वाली लड़की, जो कल मुझे कॉफी शॉप में दिखी थी, मेरे ठीक सामने एक्टिवा पर मेरी ही तरह सिग्नल के खुलने का इंतज़ार कर रही थी. कल की ही तरह उसने आज भी बालों को बांध रखा था और उसका टैटू दिख रहा था. जल्द ही सिग्नल खुल गया और इसके पहले कि मैं आगे होकर उसका चेहरा देख सकता, उसने राइट टर्न ले लिया और एक बार फिर मैं उसे देख नहीं पाया था.
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दोपहर क़रीबन डेढ़ बजे मैं ऑफिस में था जब मनोज का फोन आया. उसने बताया कि मिस्टर गुप्ता उससे इंश्योरेंस कराने के लिए तैयार नहीं हैं.
“तुमने उनसे कहा नहीं कि तुम्हें मैंने भेजा है?” मैंने हाथ में पकड़ी हुई फाइल को बंद करके शेल्फ में रखते हुए पूछा था.
“सर, मैंने बताया, लेकिन उन्होंने फिर भी मना कर दिया.”
“अच्छा, ठीक है. तुम वहीं रुको मैं आता हूं.” कहकर मैंने फोन काटा और बाइक लेकर मिस्टर गुप्ता के घर को निकल पड़ा. मनोज मिस्टर गुप्ता के घर के पास ही मेरा इंतज़ार कर रहा था. इस बार डोरबेल मैंने ही बजाई. गोद में विदेशी नस्ल का कुत्ता उठाए एक लड़की ने दरवाज़ा खोला था.
“हेलो, हम इंश्योरेंस कंपनी से आए हैं.” मैंने दरवाज़ा खुलते ही कहा था.
“हमें कोई इंश्योरेंस नहीं कराना.” मेरी बात ख़त्म होने से पहले ही उस लड़की ने मना कर दिया था और पलट कर जाने लगी.
“मैडम, हम ख़ुद से नहीं आए हैं. हमें मिस्टर गुप्ता ने बुलाया है. एक बार जाकर पूछ तो लीजिए.” इस बार मैंने थोड़ी नाराज़गी से अपने चेहरे को पोंछते हुए कहा था. मेरी बात सुन वो हमें बाहर रुकने का कह अंदर चली गई. कुछ देर में वो वापस आई और हम दोनों को अंदर आ जाने के लिए कहा. मैंने मिस्टर गुप्ता को इंश्योरेंस की डिटेल्स बताई और भरोसा दिलाया कि मनोज का किया इंश्योरेंस मेरी ही ज़िम्मेदारी है.
मेरी बात से वो मान गए और अपना व अपनी पत्नी का बीमा करने की इज़ाज़त मनोज को दे दी. फॉर्म निकाल कर मनोज ने जल्दी से भरना शुरू कर दिया था.
मिस्टर गुप्ता ने बताया कि उनकी एक ही बेटी है, अदिति, जो कुछ देर पहले दरवाज़ा खोलने आई थी. मिस्टर गुप्ता ने नॉमिनी में उसका ही नाम भरने को कहा. नाम बताने के साथ ही मिस्टर गुप्ता ने अदिति को बुला लिया था और जैसे ही टेबल पर रखे फॉर्म पर झुककर अदिति दस्तख़त करने लगी, मेरी नज़र उसकी गर्दन पर चली गई. उसकी गर्दन पर वही टैटू मौजूद था स़िर्फ टैटू नहीं, बल्कि ये तो वही लड़की थी. वही बड़े नाख़ून, बादामी रंग का जिस्म और दो छोटी अंगूठियां.
“अरे, ये जीवन बीमा लेने की क्या ज़रूरत है डैड.” दस्तख़त करते हुए अदिति ने अपने पापा से कहा था और इसके पहले कि मैं उसके सवाल का जवाब देता, मनोज ने जल्दी से रटे-रटाए ऩफे-नुक़सान सुनाने शुरू कर दिए थे. सबके दस्तख़त ले हम जल्द वापस आ गए थे.
शाम एक बार फिर मैं अपने केबिन में ही था जब मनोज मेरे पास आया. पहले तो उसने सॉरी कहा और फिर बताया कि वो जल्दी-जल्दी में मिस्टर गुप्ता के घर से एक पेपर लेना भूल गया था और कहा कि वो कुछ देर में जाकर ले आएगा. मैंने उसे मना कर दिया ये कहते हुए कि मिस्टर गुप्ता थोड़ा ग़ुस्सैल स्वभाव के हैं और वो इस लापरवाही से नाराज़ हो सकते हैं. मैंने उससे कहा कि मैं कल ऑफिस आते समय वो पेपर ले आऊंगा. हालांकि ये बात मैंने मनोज से झूठ कही थी. मैं तो बस एक बार अदिति से इस बहाने मिल लेने की उम्मीद में था.
अगले दिन सुबह 11 बजे मैं मिस्टर गुप्ता के घर जा पहुंचा. दरवाज़ा अदिति ने ही खोला. रोज़ के विपरीत आज वो खुले बालों में थी.
“हाय, सर घर पर हैं क्या?” मैंने उसके दरवाज़ा खोलते ही पूछा.
“नहीं, डैड तो नहीं हैं. वो आज सुबह ही मां के साथ बाहर गए हैं.”
“कब तक आएंगे, कोई उम्मीद?”
“यही कोई तीन-चार दिन बाद.”
“तीन-चार दिन, ये तो बहुत ज़्यादा है. एक्चुअली कल हम एक पेपर लेना भूल गए थे और अभी मैं वही लेने आया हूं. आई एम सॉरी, लेकिन अगर हो सके तो क्या वो पेपर आप मुझे दे सकती हैं?”
“ठीक है आप बैठिए मैं डैड से कॉल करके पूछती हूं.” उसने मुझे बैठने को कहा और अंदर चली गई. वो जल्द ही आई और पेपर मेरे हाथ में देकर सामने सोफे पर बैठ गई.
उसके हाथ से पेपर लेकर मैं चेक करने लगा.
पेपर सही था और अब मुझे चलना था, लेकिन जाने से पहले मैं उसे बताना चाहता था कि मुझे उसका टैटू पसंद आया है, लेकिन कहूं कैसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. मैं जाने के लिए खड़ा हो गया.
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“ओके, थैंक यू फॉर दिस एंड बाई द वे आपका वो टैटू बहुत ख़ूबसूरत है.”
“सॉरी?” मेरे इतना कहते ही उसने मुझे सवालिया नज़रों से देखा था.
“टैटू, वो आपकी गर्दन पर है न, दैट्स रियली वेरी नाइस.”
“ओह, थैंक यू, लेकिन आपने कब देखा?”
“वो मैंने आपको परसों कॉफी शॉप में देखा था और तभी आपका ये टैटू भी. फिर कल जब आप ट्रैफिक सिग्नल पर रुकी हुई थीं, तो मैं आपके पीछे ही था, मगर दोनों ही बार आपका चेहरा नहीं देख पाया था. आपका ये टैटू मुझे सच में बहुत पसंद आया और कल जब आप फॉर्म पर साइन कर रही थीं, तो टैटू देखकर मैं आपको पहचान गया था.”
“ओके, थैंक्स फॉर द कॉम्पलिमेंट.”
उसे बाय कहकर मैं बाहर आ गया.
अगला दिन रविवार था. एक यह दिन ही तो हमें मिलता था, ये महसूस करने के लिए कि हम भी इस दुनिया में हैं. रविवार को मैंने अपने तरी़के से जीने और सारी परेशानियों को भुला मस्ती करने का इरादा किया था. इसमें मेरे दो दोस्त भी शामिल थे. सबसे पहले हमने वॉटर पार्क जाने, फिर उसके बाद कहीं बाहर लंच करने और रात में मूवी देखना तय किया था. पूर्व निर्धारित प्लान के अनुसार हम सुबह 11 बजे ही वॉटर पार्क पहुंच गए थे. क़रीबन एक घंटे तक मस्ती करने के बाद जैसे ही मैं फूड कोर्ट से कोल्ड ड्रिंक की केन हाथ में थामे बाहर आया मुझे अदिति दिख गई.
“ओह! हाय.” वॉटर पार्क की रेड कलर की टी-शर्ट और ब्लैक लोवर में पूरी तरी़के से भीगे हुए मैंने उसे देखते ही कहा था. उसने भी यही कपडे़ पहन रखे थे और शायद फूड कोर्ट ही जा रही थी.
“हेलो, आई होप तुम मेरा पीछा नहीं कर रहे हो?” मुझे वहां देखते ही वो भी कुछ वैसे ही चौंकी थी जैसे उसे देखकर मैं.
“नो यार, मैं ऐसा क्यों करूंगा?”
“क्या पता, कोई भी वजह हो सकती है.”
“ऐसा कुछ नहीं है मैं यहां अपने फ्रेंड्स के साथ आया हूं. एंड बिलीव मी मुझे तुम्हारे यहां आने का ज़रा भी अंदेशा नहीं था.”
“तो फिर यहां आने की वजह? किसी क्लाइंट को पूल में जाकर इंश्योरेंस बेच रहे थे?”
“अरे यार, क्या हम इंश्योरेंस वालों की कोई लाइफ नहीं होती?”
“रिलैक्स, मैं सिर्फ़ मज़ाक कर रही हूं. मैंने तुम्हें पहले ही देख लिया था.”
“ओह तो अब तक मेरी खिंचाई की जा रही थी.
तुम लोग भी सबको ऐसे ही डराते हो न कि न जाने कब, कहां से, कौन सी मुसीबत आ जाए, तो आज मैंने तुम्हें डरा दिया.”
बातचीत करते हुए हम दोनों नज़दीक रखी कुर्सियों पर बैठ गए.
“वैसे नाम क्या है तुम्हारा?” उसने बैठते हुए पूछा.
“वरुण सचदेवा.”
“ओके और मेरा नाम तो तुम्हें पता ही है?”
“हां, आपकी सारी डिटेल्स हमारे पास हैं सिवाय एक चीज़ के.”
“अच्छा, और वो क्या?”
“वो ये कि आपके टैटू के नीचे जो लाइन्स लिखी हैं, वो क्या है?”
“हा... हा... वो एक राज़ है. इतनी आसानी से सबको पता नहीं चलता. उसके लिए ख़ास बनना पड़ता है.”
“अच्छा, तो ठीक है हम कोशिश करेंगे कि उस राज़ को जानने लायक ख़ास बन सकें.”
“ख़ास बनना, तो उस राज़ को जानने से भी मुश्किल है और तुम तो इंश्योरेंस वाले हो, दिनभर में न जाने कितने झूठ बोलते होगे, तुम्हें लगता है मैं तुम पर भरोसा कर लूंगी.”
“वो तो हमारा काम है मिस अदिति और जब कई बार आप मुझे इंश्योरेंस वाला कह ही चुकी हैं, तो मैं आपको एक सुझाव दे दूं कि जिस तरी़के से आप ड्राइविंग करती हैं, एक इंश्योरेंस आपको भी कराना चाहिए.”
“देखो, आ गए न काम की बात पर.”
“अरे, मैं बस मज़ाक कर रहा था.”
“पता है मुझे और वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि मेरे पास पहले से ही इंश्योरेंस है.”
“ओह, मतलब कोई दूसरा हमसे पहले आपकी लाइफ में आ गया.”
“फ्लर्ट कर रहे हो?”
“फ्लर्ट नहीं, मेरे कहने का मतलब यह था कि हमसे पहले कोई दूसरा आपका इंश्योरेंस करके जा चुका है.” मैंने हंसते हुए कहा. वो भी मेरे जवाब से मुस्कुरा पड़ी थी.
वॉटर पार्क की ड्रेस में भीगे हुए हम दोनों बातें कर रहे थे. उसके गालों पर अब तक पानी की बूंदें ठहरी हुई थीं और उसके बोलते ही फिसल कर उसके कपड़ों पर गिर जातीं. कुछ देर में हम दोनों ने बाय कहा और अपने-अपने दोस्तों के पास चले गए.
शाम घर आते ही मैंने फेसबुक पर उसे खोज फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दी थी. कुछ ही घंटों में उसने एक्सेप्ट भी कर ली. मैंने उसकी कुछ पुरानी तस्वीरों पर दिल वाले इमोजी छोड़ दिए. उस दिन के बाद हम कभी-कभार फेसबुक पर चैट कर लेते. उसकी पोस्ट देखकर मुझे पता चल जाता कि वो आज कहां गई थी या उसने क्या किया. मैं उसकी हर तस्वीर पर कमेंट्स करता. वो भी मेरे कमेंट्स का जवाब हंसकर देती. फेसबुक से जल्द ही हम दोनों का रिश्ता व्हाट्सएप तक पहुंच गया था.
ऐसा करते लगभग छह महीने से ज्यादा बीत गए. हम एक-दो बार बाहर मिल भी चुके थे. फिर एक सुबह मैं सोकर उठा ही था कि अदिति ने कॉल किया और मेरे फोन उठाते ही उसने ज़ोर से कहा था, “हैप्पी बर्थडे.”
“थैंक यू सो मच, वैसे आज मेरा बर्थडे है, ये तो मुझे भी याद नहीं था. फिर तुम्हें किसने बताया?”
“फेसबुक ने. वैसे आज भी ऑफिस जाना है या कहीं ट्रीट दोगे?”
“यार कई सालों से न तो किसी ने ऐसे विश किया और न किसी ने ट्रीट मांगी. बाकी रही तुम्हारी बात, तो बोलो कहां चलना है, वहीं ट्रीट दे देते हैं.”
“नहीं पार्टी तो मेरी तरफ़ से है. तुम बस रेडी होकर 12 बजे मिलो.”
“ओके.” कहकर मैंने फोन काट दिया.
12 बजे अदिति ने मुझे ऑफिस से बाहर बुलाया. वहां से हम दोनों अदिति के चुने हुए एक रेस्टोरेंट में गए. अदिति ने मेरे लिए केक ऑर्डर कर रखा था.
मैंने मोमबत्ती बुझाकर केक काटा और एक टुकड़ा अदिति को खिला दिया. उसने भी बदले में मुझे थोड़ा-सा केक खिलाया था.
“तो आज ख़ुद के लिए कोई गिफ्ट लेने वाले हो?” उसने केक खाने के बाद पूछा था.
“ख़ुद के लिए कोई गिफ्ट लेता है क्या?”
“हां, मैं तो हर साल अपने बर्थडे पर ख़ुद के लिए कुछ न कुछ लेती हूं. तुम्हें भी लेना चाहिए. ख़ुद को स्पेशल फील कराने की सबसे पहली ज़िम्मेदारी हमारी ही तो होती है.”
“तो फिर क्या लेने वाले हो?”
“कह दूं?”
“हां कह दो. आज जो भी दिल में हो, सब कह दो.” अदिति ने कहा. उसकी बात सुनकर जाने क्यों मुझे ऐसा लगा जैसे वो भी मेरे बारे में वही सोचती है, जो मैं उसके बारे में सोचा करता हूं.
“तो मैं लेने वाला हूं इंश्योरेंस.”
“इंश्योरेंस?” उसने चौकते हुए दोहराया था.
“हां. पता है अदिति मैंने आज तक बहुत लोगों के इंश्योरेंस किए हैं, लेकिन ख़ुद के लिए एक भी नहीं, क्योंकि कभी इसकी ज़रूरत महसूस ही नहीं हुई. कभी लगा ही नहीं कि अगर मुझे कुछ हो गया, तो मेरे पीछे मेरे परिवार का क्या होगा. ऐसा कोई साथी ज़िंदगी में रहा ही नहीं. लेकिन जब से तुम मिली हो, यह एहसास होने लगा है कि मैं ख़ास हूं. जीने की ख़्वाहिश सी रहने लगी है. ख़ुद का ख़्याल रखने की कोशिश रहती है. लंबी उम्र हो, ताकि तुम्हारे साथ बीत सके. चाहता हूं, आज ख़ुद का एक इंश्योरेंस करूं और नॉमिनी में तुम्हारा नाम दर्ज़ हो. बोलो बनोगी मेरी जीवन संगिनी?” मैंने उसकी आंखों में देखते हुए कहा था.
वो कुछ देर मुझे ही देखती रही और धीरे से अपना हाथ मेरे हाथ में रख उसने साथ रहने का वादा किया था. ये मेरा ख़ुद के लिए लिया हुआ आज तक का सबसे बेहतरीन बर्थडे गिफ्ट था.
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