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कहानी- सुनहरे सपने (Short Story- Sunhare Sapne)

“राधिकाजी, आपको और सुननेवालों को नमस्कार! आज यहां आकर एक बहुत बड़ा सपना पूरा हो गया. बचपन से पिताजी से यही सीखा था कि सपने को पूरा करने के लिए जी जान लगा दो, लेकिन फिर भी सफल नहीं हो पाओ तो हिम्मत न हारो. मेहनत करो और ईमानदारी का खाओ. मदद करने का गुण भी पिताजी से ही सीखा.” गांव में राधे के पिता की आंखें भीगने लगीं.

टैक्सी रुकते ही ड्राइविंग सीट पर बैठे राधे का मूड उखड़ चुका था. वो लगभग चिल्लाकर बोला, “मैं ग़लत रास्ते पे लाया कि आपका मैप ऐसा चलता है? मेहनत का खाते हैं. सर कुछ भी फ़ालतू बोलने का नहीं..हां नहीं तो...”

“दूसरों की बातों से अपना मन क्यों ख़राब करना यार.” राधिका की आवाज़ आई.

“कैसे न करें. मेरी ग़लती भी नहीं थी और मुझे चिल्ला कर गया.”

“कई बार लोग ख़ुद इतना परेशान होते हैं कि उनको पता भी नहीं चलता कि वो किसी और को परेशान कर रहे हैं.” राधिका ने समझाकर कहा.

“अब ऐसा भी नहीं होता...”

“मुझ पर विश्‍वास नहीं है? अब ये क्या बात हुई. अच्छा अब चलो मुस्कुरा भी दो.. ये आई... आई... आई हंसी... और अब हंसी आ ही गई है, तो इस हंसी को बरक़रार रखने के लिए सुनते हैं ये मुस्कुराता गीत- आरजे राधिका के साथ.” ऐसा कहते ही रेडियो पर गीत बजने लगा- किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार...

मुकेश की आवाज़ से आवाज़ मिलाता राधे अपनी टैक्सी आगे बढ़ा चुका था. अगले पैसेंजर ने हाथ दिखाया और मरीन ड्राइव चलने के लिए कहा. गाना ख़त्म हो चुका था और आरजे राधिका फिर से बातें कर रही थी.

“ज़रा सोचिए, कोई हमसे ग़ुस्से से बात करे और हम मुस्कुराकर जवाब दें. ये मुस्कान ही तो है, जो हमें लोगों से जोड़ती है.. किसी ग़ैर के लिए मुस्कुराकर देखिए जनाब.. असली ख़ुशी वहीं छुपी है.”

राधे राधिका की बातों में खोया टैक्सी चलाए ही जा रहा था कि पीछे बैठा

यात्री चिल्लाया.

“अरे रोको भई.. कब से कह रहा हूं रुकने के लिए.”

राधे ने नज़र उठाई, तो वो जाने कैसे काफ़ी दूर आ गया था. पैसा देकर जाने तक यात्री उसे कुछ न कुछ कहता जा रहा था. राधे भी उसे जवाब देना चाहता था, लेकिन उसे आरजे राधिका की वो बात याद आ गई, तो उसने बड़े प्रेम से कहा, “आप भी परेशान लग रहे हो सर.”

“परेशान तो कोई भी होगा ही. तेरा रेडियो और तू. दिनभर का हल्ला. इसको बंद करके गाड़ी चला, वरना ठोकेगा किसी दिन.” झल्लाकर कहता हुआ यात्री आगे बढ़ गया.

ये सुनकर राधे को भी ग़ुस्सा आ गया. ये भी कोई बात हुई. कोई भी आ रहा है. कुछ भी सुना रहा है. धमकाना क्या, वो तो अभी दो लगा भी सकता है, पर राधिका ने मना किया है ऐसा करने से. उस रोज़ राधिका ने लोगों की बातों पर ज़्यादा ध्यान न देने के लिए कहा था. राधे सीट से टिका वो गाना याद कर गुनगुनाने लगा. राधे गुनगुना ही रहा था कि उसके दोस्त पप्पू ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, “क्या झक्कास गाता है यार तू.. एकदम किशोर कुमार माफ़िक़. क्या टैक्सी चलाता है. तेरे को फिल्म में जाने का रे?”

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“छोड़ रे पप्पू, फिल्मी दुनिया मेरे लिए नहीं है. मैं कहां इतने बड़े-बड़े लोगों के बीच चल पाऊंगा. अपना गाना अपने लिए और अपने यार के लिए. बोल आज क्या सुनेगा?”

“चार बात सुनेगा. तेरा गाना सुनने बैठा न तो मालिक की चार बात ही सुनेगा. अभी भागता हूं मैं.”

“कहां?”

“अरे मुन्नी का एक्स्ट्रा क्लास शुरू हुआ तो अपना एक्स्ट्रा काम शुरू किया. वो घर के बगलवाले सेठ का काम लिया है. रोज़ दस बजे सवारी लेने का है और छोड़ने का है. बाद में बात करते हैं.”

पप्पू के जाते ही राधे ने फिर रेडियो ऑन किया. लेकिन तब तक राधिका जा चुकी थी और राजू ने अनमने मन से रेडियो बंद कर दिया.

यार ये दोस्त लोग भी एकदम सही टाइम पर छोड़ के जाते हैं. वैसे पप्पू बोलता तो सही है कि मैं गाता बढ़िया हूं. यहां आया भी तो इसी के लिए था, पर क्या मिला? यादों में डूबा राधे एक बार फिर अपने गांव पहुंच चुका था.

जब पहली बार स्कूल में पांचवीं के फेयरवेल में गाना गाया था, तो सभी एक ओर वाह-वाह कर रहे थे और दूसरी ओर आंखों में आंसू भी आ रहे थे. मां के साथ बचपन से भजन गाते-गाते राधे के सुर पक्के होने लगे थे. वो मोबाइल का ज़माना नहीं था, पर रेडियो पर जब भी उसका मनपसंद गीत आता, तो उसे सुनकर उसी तरह गाने की कोशिश करता. पैसे बचाकर गानों के बोल लिखी किताब भी ख़रीद लाया था.

धीरे-धीरे गांव में कोई भी कार्यक्रम राधे के गाने के बिना न शुरू होता न ख़त्म. गांव के अलग-अलग प्रतियोगिताओं में भी राधे गाने लगा था. किशोर कुमार की आवाज़ तो जैसे उसके गले में बस गई थी और रफी को वो पूजता था. राधे के मन में ये सपना बसने लगा कि वो भी एक दिन बड़ा गायक बनेगा और रेडियो पर उसकी आवाज़ सुनाई देगी.

जब मां-पिताजी के सामने मुंबई जाकर गायक बनने की बात कही, तो घर में रोना-पीटना मच गया. फिर भी राधे को विश्‍वास था कि वो उन्हें मना लेगा और मुंबई में बड़ा गायक बनेगा.

वो सपना उसकी आंखों में ऐसा बसा कि रातों की नींद और दिन का चैन ग़ायब हो गया. राधे के गीतों को सराहने वाले गांव के लोग भी अब उसे अजीब नज़रों से देखने लगे थे. उनकी नज़र में राधे पर अब भूत सवार हो चुका था. कहीं ऐसा भी होता है कि युवा लड़का बैठा-बैठा गाता रहे और कामकाज की सुध न ले.

राधे को गायक बनना था. उसने न जाने कितने गायकों के बारे में पढ़ा था और रेडियो पर सुना भी था. गायकों को ये सब झेलना ही पड़ता है. लोगों के इन्हीं तानों की आग में तपकर ही तो वो आज ऐसे कुंदन बने कि उन्हें सब पूजते हैं. एक रोज़ वो भी ऐसा ही बनेगा. परिवारवालों को न मानना था न वो माने.

किंतु राधे ने मुंबई जाकर गाने की ठान ली थी. एक रात बैग में कपड़े और ज़रूरी सामान रखे और मां-पिताजी को दूर से प्रणाम कर घर से निकल ही रहा था कि रागिनी ने उसका हाथ थाम लिया.

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“भैया, तुम कहां जा रहे हो? मां-पिताजी से क्या कहूंगी?”

“कुछ न कहना. अपना ध्यान रखना और मां-पिताजी का भी. हर रविवार चिन्नी के घर जाना. जब भी सुविधा होगी फोन करूंगा.” बहन के सिर पर हाथ फेरकर राधे जाने को हुआ कि रागिनी की आंखों से आंसू बह निकले. राधे कुछ पल को कमज़ोर पड़ गया. भाई-बहन कुछ देर एक-दूसरे को दिलासा देते रहे. आख़िर राधे अपने मंज़िल की ओर निकल पड़ा.

अपना सुनहरा सपना लिए राधे मुंबई पहुंच चुका था. गायकों के इंटरव्यू सुनकर उसे ये अंदाज़ा था कि यहां पहुंचते ही काम नहीं मिल जाता. मेहनत से वो घबराता भी नहीं था. गांव का बचपन का दोस्त श्याम यहां रहता था. उसने कहा था कि रहने की चिंता न करें. किसी तरह उसके पास पहुंचा तो पता चला कि एक छोटे से कमरे में आठ लोग रहते हैं. यहीं एक बिस्तर की व्यवस्था है. राधे ने सोचा ये भी क्या कम है कि आते ही सिर पर छत और बिस्तर मिला, उसे रेलवे स्टेशन पर नहीं सोना पड़ा.

राधे के आत्मविश्‍वास की तरह ही उसका सपना भी पक्का था. घरवालों के दबाव में तो वो न टूटा, लेकिन मुंबई की गलियों ने उसे आटे-दाल का भाव बता दिया. संगीतकारों के घर चक्कर लगाते हुए उसे ये भी पता चल गया था कि बाहर से आया हर तीसरा आदमी फिल्मी दुनिया में अपना नाम कमाने आया है. हर एक को यही लगता है कि उसे बस एक मौक़ा मिलते ही वो कुछ कर दिखाएगा.

राधे ये सोचकर संतोष कर रहा था कि कम से कम गायक बनने वाले तो कम ही हैं. दोस्त श्याम को तो समय ही नहीं था. संगीतकारों के घर के चक्कर लगाते में कई दोस्त बन गए. उनके साथ ही किशोर कुमार, रफी, अमिताभ बच्चन, राज कपूर के घर भी देख लिए. यहां मिलने की उम्मीद लिए रोज़ाना सैकड़ों लोग आया करते और घर देखकर ही चले जाते. गायक, एक्टर बनने का सपना लिए आए दोस्त भी इसी तरह अपने घर वापस लौट जाते तो कुछ वहीं काम पर लग जाते.

आख़िर वो दिन भी आ गया जब राधे को अपने सपने और वास्तविकता के बीच चुनाव करना था. पैसे ख़त्म हो चुके थे और गांव लौटने का रास्ता तो वो बंद करता आया था. मुंबई के दोस्तों से मिलकर राधे ये भी जान चुका था कि ऐसा कोई दिन भी आ सकता है बल्कि ये दिन कई लोगों को देखना पड़ता है. अजनबी बिल्डिंग के सामने चौकीदारी करने से बेहतर उसने मुंबई की गलियों में घूमने का काम चुनकर टैक्सी को अपना लिया.

दिनभर टैक्सी चलाता और अपने मन के लिए गाता. यहीं पप्पू से उसकी दोस्ती हुई और उसे परिवार की कमी कभी नहीं खली. वैसे ये तो बस कहने की बात थी. अपना घर-आंगन, मां-पिताजी, रागिनी हमेशा याद आते. उसके एक सपने ने अब गांव जाने, अपनों से मिलने जैसे संभव काम को भी सपना बना दिया है... लेकिन उन ख़ूबसूरत दिनों की यादें उसकी रगों में बसी थीं.

कंधे पर हाथ की थपथपाहट पर राधे यादों से बाहर आया और उस नए यात्री के साथ एक नई राह निकल चुका था. बस इस पैसेंजर को छोड़ते-छोड़ते राधिका साथ हो जाएगी. आरजे राधिका ही तो है, जो उसे सुकून का एहसास देती है. टैक्सी में एक रोज़ रेडियो घुमाते हुए राधिका का शो सुना और सुनता ही चला गया. उसे लगा जैसे एक बार फिर किसी ने वो गांव वाला रेडियो उसके सामने चला दिया हो. पुराने गानों की मिठास और राधिका का अपनेपन से भरा अंदाज़ राधे को एक अलग ही दुनिया में ले जाते. यही वो समय होता जब उसे चलते जाने का मन करता और यात्रियों से खटपट होती.

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आश्‍चर्य की बात तो ये है कि राधिका हमेशा वही बात कहती है, जो राधे के साथ हो रहा हो. राधे को तो कई बार ऐसा भी लगता था कि राधिका रेडियो पर नहीं, बल्कि उसकी टैक्सी में बैठी उससे बातें कर रही है. फ़िलहाल राधिका का इंतज़ार था. उसी बीच पीछे बैठे अंकल ने राधे का कंधा थपथपाया.

“अंकलजी, पीछे नहीं देख सकता.”

“तुम बच्चे पीछे देखते ही कहां हो. सबको बस आगे जाना है.” एक उदास सी आवाज़ सुनकर राधे ने मिरर से पीछे नज़र दौड़ाई. परेशान चेहरा देख साइड में गाड़ी लगा दी. पीछे मुड़ा कि अंकल नाराज़ होकर बोले, “गाड़ी क्यों रोक दिया? मीटर बढ़ाएगा.. इतने पैसे नहीं हैं मेरे पास.”

“तो मत देना पैसे. लो घुमा देता हूं मीटर. बाद में चालू करेंगे. अब ये बताओ परेशानी क्या है?” राधे अपनेपन से बोला.

“बेटा गांव से आया है. घर जाने का नाम नहीं लेता. मैं तो समझता हूं, लेकिन उसकी मां नहीं मानती. 12 साल इंतज़ार कर ली. अब जाने की तैयारी है. आख़िरी सांस में भी बेटे की रट है. बस एक बार बेटे को देख लेती.” कहते हुए अंकल की आंखें भर आईं.

राधे को अपने पिता याद हो आए. क्या वो भी इसी तरह उसके आने की अनकही उम्मीद लगाए होंगे. रागिनी से बात तो होती है. वो मां-पिताजी के बारे में तो कुछ भी नहीं कहती, बस एक ही रट लगाए रहती है कि भैया एक बार घर आ जाओ. राधे ने एक बार फिर अंकल के चेहरे पर नज़रें टिका दीं. 

“मैं कुछ मदद कर सकता हूं आपकी?”

“सुबह से भटक रहा हूं.” कहकर अंकल ने एक काग़ज़ की पर्ची थमा दी.

राधे ने बिना मीटर डाले गाड़ी उस ओर दौड़ा दी. अंकल को उनके गंतव्य तक पहुंचाकर भी न जाने क्यों राधे वहीं रुका हुआ था. मन नहीं माना तो घर फोन लगा दिया. रागिनी ने फोन पर जैसे ही हेलो कहा कि राधे कह उठा, “मैं जल्दी ही घर आऊंगा.

मां-पिताजी से भी कह देना. अगर पिताजी माफ़ नहीं करेंगे तो भी आऊंगा. मैं उनके सिखाए पाठ को नहीं भूला हूं. मेहनत और ईमानदारी का ही खाता हूं. पिताजी के सामने नज़रें नहीं झुकेंगी मेरी.” कहते हुए फोन पर ही राधे का गला भर आया. दूसरी ओर रागिनी भी सिसक रही थी. इस पल का उसे न जाने कब से इंतज़ार था. फोन रखकर राधे आंसू पोंछ ही रहा था कि अचानक पीछे एक मुसाफ़िर सवार हो गया. जल्दी में कहा, “भाई फटाफट चलो, मुझे देर हो गई है.”

“मैं यहां किसी के लिए रुका हूं. दूसरी गाड़ी ले लीजिए.” राधे अंकल को इस तरह छोड़कर जाना नहीं चाहता था. नया मुसाफ़िर भी काफ़ी उधेड़बुन में दिखा.

“अरे यार, गाड़ी नहीं है कोई भी आसपास. ऑडिशन में पहुंचना है. कितनी मुश्किल से मौक़ा मिला है. छोड़ दे भाई.” राधे को अपने दिन याद आ गए. उसे इस मौ़के की अहमियत पता थी. उसने मुसाफ़िर को उतरने से रोका और गाड़ी बढ़ा दी.

“हां.. हां.. बस मैं आ ही रहा हूं. नहीं बंद मत कीजिएगा. मैं बस आ ही गया सर प्लीज़.” मुसाफ़िर फ़ोन पर मिन्नतें कर रहा था.

राधे ने गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी. आगे चलते ही मुसाफ़िर ने गाड़ी रोकने कहा और सामने ही शूटिंग होती दिखाई दी. लड़का गाड़ी का दरवाज़ा खोल भागता हुआ वहां चला गया. राधे ने भी चैन की सांस ली. आख़िर किसी का तो सपना पूरा होगा. उसने टैक्सी के किराए की बात न सोचते हुए गाड़ी बैक करना शुरू किया.

राधे अपनी ही धुन में गाड़ी आगे बढ़ाने को था कि दो आदमियों ने आकर उसे रोक दिया. बिना कुछ बोले वे राधे को टैक्सी से उतरने का इशारा करने लगे. राधे हैरान था कि तभी पीछे से कैमरा लिए एक आदमी भागता सा आया और उसे रिकॉर्ड करने लगा. राधे कभी इधर देखता कभी उधर. उसने शूटिंग देखी तो थी, पर इस तरह से घिरा पहली बार था.

तभी एक लड़की माइक पकड़े उसकी ओर कहते हुए आई, “कौन कहता है कि आज की दुनिया में कोई किसी की मदद नहीं करता. ये शख़्स एक नहीं, बल्कि दो-दो बार लोगों की मदद को सामने आए. वो भी अपने टैक्सी का किराया लिए बिना. हेलो मैं हूं...”

“आरजे राधिका.” राधे ही बोल पड़ा.

“अरे वाह! आपको हमारा नाम पहले से ही पता है, पर पहचाना कैसे?” राधिका ने आश्‍चर्य से पूछा.

“आवाज़ से. आपका शो सुनते हैं रोज़. बहुत अच्छा लगता है. इस पक्की सड़क में गांव की पगडंडी मिल जाती है.” राधे के मन की भावनाएं सामने आने लगीं.

“शुक्रिया जनाब, आपने हमें लाजवाब कर दिया. लेकिन सवाल-जवाब का सिलसिला आज नहीं, बल्कि एक हफ़्ते बाद होगा आपके साथ, मिस्टर?”

“राधे.. राधे नाम है मेरा.” राधे मुस्कुराते हुए बोला. फिर कुछ संशय में आता हुआ पूछ बैठा, “राधिकाजी, ये बताइए कि ये सब हो क्या रहा है?” ये कहते हुए राधे की नज़र उन्हीं अंकल पर पड़ी, जिन्हें राधे ने बेटे के पास छोड़ा था, “अरे अंकल बात बनी कुछ? बेटा तैयार हुआ?”

राधिका ने मुस्कुराते हुए कहा, “राधे! तैयार तो आप हो जाइए, क्योंकि ये सब एक प्रतियोगिता थी, जिसका नाम है- अजनबी दोस्त. इसमें हम ये देख रहे थे कि आज के ज़माने में कोई किसी अजनबी की मदद करता है या नहीं. आप एक बार नहीं, बल्कि दो बार पास हो गए. पहले अंकल की मदद की और बाद में गौरव की.”

राधे ने देखा अंकल और वो मुसाफ़िर लड़का राधे को देखकर मुस्कुरा रहे थे. राधिका ने राधे को बताया कि लोगों की मदद करने में ज़रा भी न सोचने के लिए राधे उनकी इस प्रतियोगिता का विजेता बन गया है. अब हफ़्ते भर बाद राधे का रेडियो पर इंटरव्यू लिया जाएगा.

“गांव में भी सुन सकते हैं?” राधे ने पूछा.

“हां, पूरे देश में सुना जाएगा.” राधिका ने बताया. ये सुनते ही राधे के चेहरे पर मुस्कान आ गई.

रेडियो पर अपने राधे की आवाज़ सुनने के लिए पूरा गांव सांस रोके बैठा था. जैसे ही रेडियो पर आरजे राधिका की आवाज़ गूंजी सबने कान वहीं लगा दिए, “दोस्तों, आज हमारे साथ हैं हमारी प्रतियोगिता ‘अजनबी दोस्त’ के विजेता मिस्टर राधे, जो मुंबई आए थे गायक बनने का एक सपना लेकर, लेकिन आज यहां की सड़कों पर चलाते हैं टैक्सी. फिर भी मदद करने में नहीं हटते पीछे. तो मिस्टर राधे बताइए अपने सपने के बारे में.”

“राधिकाजी, आपको और सुननेवालों को नमस्कार! आज यहां आकर एक बहुत बड़ा सपना पूरा हो गया. बचपन से पिताजी से यही सीखा था कि सपने को पूरा करने के लिए जी जान लगा दो, लेकिन फिर भी सफल नहीं हो पाओ तो हिम्मत न हारो. मेहनत करो और ईमानदारी का खाओ. मदद करने का गुण भी पिताजी से ही सीखा.” गांव में राधे के पिता की आंखें भीगने लगीं.  

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“और.. आपका सपना क्या था?” राधिका ने आगे पूछा.

“सच कहें तो बचपन से इतना रेडियो सुना राधिकाजी कि बस यही सब कुछ हो गया. इसी से गाना सीखा और रेडियो में गाने का सपना लेकर यहां आया. सबसे कहा था कि रेडियो में आवाज़ सुनेंगे मेरी.. देखिए गायक न सही ऐसे आ गए.” राधे भावुक होने लगा.

“यहां मैं कहना चाहूंगी कि एक गायक बनकर नहीं, बल्कि एक सच्चे नायक बनकर आप आए हैं.” राधिका ने उसकी बात पूरी की.

“वैसे आज आपका स़िर्फ एक सपना ही पूरा नहीं हो रहा है, बल्कि आपका दूसरा सपना भी पूरा होगा. आज आप रेडियो पर अपनी पसंद का गाना गुनगुना दीजिएगा. पर उससे पहले हमारे सुननेवालों के नाम एक संदेश.”

“राधिकाजी, मैं यही कहना चाहता हूं कि हमारे सपने को कोई और पूरा नहीं करेगा. उस सपने के लिए परिवार नहीं मानता, तो हम लड़कर, भागकर यहां आ जाते हैं. पर वापस लौटने की हिम्मत भी रखना होगा. हमारे मां-पिताजी गांव में हमारा रास्ता देखते हैं. वो बोलें चाहे न बोलें.. और हम भी यहां आप सबको याद करते हैं.. बोलें तो किसको बोलें...”

“बहुत ख़ूब, राधेजी.. दोस्तों अपने हमारे दिल के क़रीब हैं. उनके सामने कैसी जीत कैसी हार? हर ज़िद बेकार.. बस फ़ोन घुमाइए और कीजिए आज अपने दिल की बात.. और अब सुनिए अजनबी दोस्त के विजेता, मिस्टर राधे की आवाज़ में ये गीत.” राधिका ने ये कहकर राधे को इशारा किया और राधे का सपना सच हुआ.

घबराते हुए माइक पास लेकर राधे ने गाना शुरू किया. दूर गांव में पिता की आंखों से आंसू छलक उठे. आख़िर बेटे ने उसका मान रखने में कसर नहीं छोड़ी. आज उसका ही नहीं जैसे पूरे गांव का सपना पूरा हो गया था. राधे की आवाज़ रेडियो से पूरे गांव में गूंज रही थी- मैंने तेरे लिए ही सात रंग के सपने...

नेहा शर्मा

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