"समीर, तुम बच्चे पर हाथ नहीं उठाते हो, लेकिन वही डर तुम आगे बढ़ा रहे हो! नीलू ने शिकायत नहीं की है, हफ़्ता भर हो गया है मुझे आए, सब समझ में आ रहा है… तुम्हारे ऑफिस से आने के समय कर्फ्यू क्यों लग जाता है? घर साफ़ होने लगता है, चिंटू के दोस्तों को भगा दिया जाता है…"
"मां, मैं और चिंटू स्कूल के लिए निकल रहे हैं… आप इनके साथ नौ बजे तक पहुंच जाइएगा, ठीक साढ़े नौ बजे प्रोग्राम शुरू हो जाएगा… मां, इनका मन नहीं है… लेकिन…" बहू की चिंता स्वाभाविक थी. सुबह से घर में कोहराम मचा हुआ था. चिंटू 'शिक्षक दिवस' को लेकर अति उत्साहित और उसके पापा इसी बात को लेकर झुंझलाए हुए.
गाड़ी में बैठते ही समीर फिर से बड़बड़ाने लगा, "सोचा था आज छुट्टी है, आराम करूंगा, लेकिन ये स्कूल वाले भी ना. अब टीचर्स डे मनाना हैं, तो मनाएं, बच्चे के साथ पूरा खानदान आए, ये क्यों ज़रूरी है? मां, आपके कहने से जा रहा हूं, मैं जाता नहीं हूं वैसे!"
मैंने बात बदली, "आज चिंटू कितना ख़ुश है. सुबह से लगा हुआ है.. दादी, अपनी फेवरेट टीचर के लिए कार्ड बना रहा हूं, गुलाब का फूल भी लेकर गया है… उसकी चंचलता देखकर मुझे तेरा बचपन याद आ जाता है समीर!"
समीर थोड़ा सामान्य हुआ, "सही कह रही हैं आप, वो मेरी तरह होता जा रहा है…"
"और तुम अपने पापा की तरह… गाड़ी किनारे लगाओ, मुझे कुछ बात करनी है तुमसे." मेरे स्वर की गंभीरता से समीर थोड़ा घबरा गया.
"क्या हुआ मां? आपसे नीलू ने शिकायत की होगी.. लेकिन मैं पापा की तरह… बिल्कुल नहीं, आज तक मैंने चिंटू पर हाथ नहीं उठाया है और मैं अपना बचपन याद करूं, तो डर के सिवा कुछ याद नहीं आता है." समीर के चेहरे पर क्रोध, विद्रोह और बेचैनी के मिलेजुले भाव उभर रहे थे.
"समीर, तुम बच्चे पर हाथ नहीं उठाते हो, लेकिन वही डर तुम आगे बढ़ा रहे हो! नीलू ने शिकायत नहीं की है, हफ़्ता भर हो गया है मुझे आए, सब समझ में आ रहा है… तुम्हारे ऑफिस से आने के समय कर्फ्यू क्यों लग जाता है? घर साफ़ होने लगता है, चिंटू के दोस्तों को भगा दिया जाता है… जब तक तुम खाना शुरू ना कर दो, नीलू परेशान घूमती रहती है कि पता नहीं खाना तुम्हें भाएगा या नहीं… और ये क्या लगा रखा है तुमने आज सुबह से? आज छुट्टी है ना तुम्हारी! क्यों इतना चिल्ला रहे हो स्कूल जाने के नाम पर?.."
समीर सीट पर सिर टिकाए सुनता रहा.. सोचता रहा… अचानक बाहर चला गया. कहां गया ये? शायद मैं कुछ ज़्यादा बोल गई… गाड़ी से उतरकर देखा, बड़ा सा गुलदस्ता लिए मुस्कुराते हुए चला आ रहा था, "अच्छा! ये लेने गए थे तुम… चिंटू ने मंगवाया था क्या अपनी फेवरेट टीचर के लिए?"
"चिंटू की नहीं, मेरी फेवरेट टीचर के लिए… जो हमेशा मुझे सिखाती रहीं, सुधारती रहीं." समीर ने मेरे पैर छूकर गुलदस्ता मेरे हाथ में दिया, "हैप्पी टीचर्स डे मां!"
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Photo Courtesy: Freepik
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