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कहानी- सेटलमेंट (Short Story- Settlement)

उसका अत्यधिक आत्मविश्वास और उसकी चंचलता उसे प्रिय थे. वह कब क्या कर बैठे और कहां क्या प्रोग्राम बना ले, यह जानना कठिन होता था. इसी अनिश्चितता के कारण ही तो वह जहां जाता पार्टी में जान डाल देता. इसी कारण तो जीवन सदा उसके साथ ताज़ा रहता था. उसके साथ वह एक जीवन तो क्या कई जीवन साथ बिताने पर भी बोर नहीं होगी.

एलिस ने अपना सामान एक ही सूटकेस में बंद कर लिया. वह केवल अच्छा और ज़रूरी सामान ही ले जाना चाहती थी और अपने प्रिय पति को अंतिम पत्र लिखने बैठ गई. पत्र छोटा होना चाहिए, दो टूक, क्योंकि पीटर के लिए यही उपयुक्त रहेगा और वह पसंद भी करेगा.
उसने कलम उठाई और लिखा, "मैं हेनरी से प्रेम करती हूं और उसके साथ जा रही हूं. तलाक़ की कार्यवाही बाद में होती रहेगी. मुझे यक़ीन है तुम्हें आपत्ति न होगी, क्योंकि तुम सदा ही यह कहते रहते हो कि जब भी हम दोनों में से कोई साथ रहना पसंद न करेगा, हम तलाक़ ले लेंगे. बच्चे हमारे है नहीं, इसलिए किसी की चिन्ता की आवश्यकता नहीं है. और कोई राह नहीं है, हालांकि तुम्हें आरंभ में शायद दुख हो और एकाकी अनुभव करो.
बस, और अंत में हस्ताक्षर. यही तो तरीक़ा होना चाहिए. न जाने कितने लोग व्यर्थ में जीवन काट देते हैं एक ही व्यक्ति के साथ. जबकि साथ रहना पसंद नहीं होता, तब भी. काश, सब उनकी तरह समझदार हो सकते. वह उठी, अपना सूटकेस उठाया और द्वार पर ताला लगाया. इस समय दोपहर में सारे पड़ोसी तो काम पर होते हैं और उनकी बीवियां आराम कर रही होतीं. पड़ोसिन की लड़की बाहर खेल रही थी, उसे चाभी दे दी, जैसे प्राय: वह दे जाती है.
कोई बाहर न था. वह सड़क तक आई. उसे आशा थी कि कोने में टैक्सी स्टैंड पर टैक्सी मिल जाएगी, पर सड़क पर आते ही उसे टैक्सी सामने से आती दिखाई दी. टैक्सी रोककर बैठी और एक अंतिम दृष्टि अपने मकान की खिड़की पर डाली और उसे पालम हवाई अड्डे की ओर जाने का आदेश दिया. उसी खिड़की की दूसरी ओर मेज पर टेबल लैंप के सहारे उसकी चि‌ट्ठी पड़ी थी.

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पीटर शाम को आकर देखेगा, खिड़की में प्रकाश नहीं है तो वह समझेगा कि वह कहीं पिक्चर, बाज़ार या किसी सहेली के यहां गई होगी. वह पड़ोसिन से चाभी लेकर ताला खोलेगा, दरवाज़े के साथ लगे स्विच को दबाएगा, जिससे खिड़की के पास पड़ा टेबल लैंप जल उठेगा.
सबसे पहले उसकी दृष्टि उसके पत्र पर जाएगी. पढ़कर वह क्या करेगा? उसे अफ़सोस तो होगा, क्योंकि वह उसे प्यार करता है. पर ऐसा नहीं कि दिल टूट जाए. न जाने क्यों उसे यक़ीन था कि पीटर उसे शीघ्र भूल जाएगा. वह अभी जवान है, सुंदर है. उसे भी कोई अन्य युवती मिल ही जाएगी.
उसका दोष भी क्या जब से यह हेनरी अमेरिका से पढ़कर लौटा है और उससे मिला है, उसका मन क़ाबू में ही नहीं रहा. हेनरी के पिता मिशनरी में है और उसी के कारण किसी अमेरिकी ने उसकी पढ़ाई का और उसके बाद इंजीनियरी की शिक्षा का ख़र्च भी दिया और उसे पढ़वाया. अब हेनरी मुंबई में काम करने जा रहा है.
अब तक काम की तलाश में दिल्ली में ही था. वह उसे प्यार करती है, अत्यधिक. यहां तक कि उसकी कमज़ोरियों से भी उसे प्यार है. कमज़ोरियां हेनरी जैसे आदमी को और भी प्रिय बना देती हैं. उसका अत्यधिक आत्मविश्वास और उसकी चंचलता उसे प्रिय थे. वह कब क्या कर बैठे और कहां क्या प्रोग्राम बना ले, यह जानना कठिन होता था. इसी अनिश्चितता के कारण ही तो वह जहां जाता पार्टी में जान डाल देता. इसी कारण तो जीवन सदा उसके साथ ताज़ा रहता था. उसके साथ वह एक जीवन तो क्या कई जीवन साथ बिताने पर भी बोर नहीं होगी.
ड्राइवर ने कहा, "मेमसाब, हवाई अड्‌डा आ गया." तब कहीं एलिस का ध्यान भंग हुआ. अरे, इतनी देर तक वह हेनरी के विषय में सोचती रही क्या?
टैक्सी से उतर कर उसने पैसे दिए, सूटकेस उठाया और अंदर चली गई. सूटकेस एयरलाइंस के पास जमा करवा के वह हेनरी की खोज करेगी. हेनरी ने कहा था कि प्लेन तो जाएगा छह बजे, लेकिन तुम पांच बजे पहुंच जाना. पहले वहां बैठकर चाय पिएंगे, गपशप करेंगे.
सामने रेस्तरों में उसे हेनरी नहीं दिखा, तो वह बाहर की ओर मुड़ गई. दरवाज़े के पास ही पुस्तकों की दुकान पर वह खड़ी होकर पुस्तकें देखने लगी. पर उसका ध्यान तो द्वार से प्रवेश करते आगंतुकों पर था. कोई सूट-बूट सुसज्जित व्यक्ति अंदर घुसता, तो एक बार को उसकी धड़कन बढ़ ही जाती. पर वह निराश हो जाती, जब देखती कि वह व्यक्ति हेनरी न होकर और कोई है.
उधर माइक पर घोषित हो रहा था, "छह बजे मुंबई जाने वाले मुसाफ़िर अंदर चलें."

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थोड़ी देर बाद उसने उ‌द्घोषक द्वारा अपना नाम पुकारा जाता सुना. जब दुबारा उसका नाम लेकर कहा गया, "मिसेज़ एलिस पिंटो के नाम एक संदेश हमारे पास है, वह इंडियन एयरलाइंस के काउंटर पर आ जाएं." तो ख़ुशी-ख़ुशी वह उस ओर बढ़ी. ज़रूर हेनरी का ही संदेश होगा. वहां गई, तो एक व्यक्ति ने उसका नाम सुनकर एक पत्र उसे थमा दिया. एलिस ने पत्र खोला. वह हेनरी का ही था. लिखा था.
मेरी प्रिय,
मुझे क्षमा करना. मैं बहुत सोचने पर इसी परिणाम पर पहुंचा हूं कि हमें यह नहीं करना चाहिए. कारण कई हैं, पर तुम्हें दो टूक बात पसंद है, इसलिए समझ लो कि मैं जो कुछ कह रहा हूं, ठीक ही है. मैं साढ़े चार बजे के प्लेन से मु़बई न जाकर कोलकाता जा रहा हूं.
पत्र पढ़कर उसे न क्रोध आया, न रोना. उसने उस पत्र के टुकड़े-टुकड़े किए और फेंक दिया. वह बाहर आई. उसके होंठों पर एक पतली सी मुस्कुराहट खेल रही थी. ऐसा ही तो था स्वभाव हेनरी का. सदा अनिश्चित. इसी से तो कई जीवन वह बोर न होती.
टैक्सी में बैठकर उसने घर का पता बताया. अंधेरा बढ़ रहा था. उसे अपने मनोभावों पर संयम रखना ख़ूब आता है. तभी तो उसे कुछ महसूस नहीं हो रहा है.
पीटर में बुराई ही क्या है. कितना प्यार करता है. अच्छी सरकारी नौकरी है और जो वह चाहे फौरन ला देता है.
इतने में उसने घड़ी देखी. समय देखकर उसकी घबराहट बढ़ गई, "ड्राइवर ज़रा तेज़ी से चलाओ." उसने कहा, "जितने तेज़ जा सकते हो, उतने तेज."
ड्राइवर ने कहा, "अच्छा बादशाहो, तेज़ ही लो."और टैक्सी की चाल तेज़ हो गई.
वह आगे बढ़कर सीट पर उचक कर बैठ गई, मानो इससे कार की गति में कुछ अंतर आ जाएगा. वह सोच रही थी, अगर वह समय पर पहुंच कर टेबल लैंप के सहारे पड़े पत्र को फाड़ दे, तो सब ठीक हो जाएगा. पीटर को कभी पता भी नहीं लगेगा पर उसके आने का समय होता जा रहा है. कई बार बस में भीड़ हो जाती है, तो वह दूसरी बस से आता है. कभी टैक्सी ले लेता है, तो कुछ जल्दी आ जाता
है. अगर वह पहुंच गया हो और पत्र पढ़ चुका हो, तब तो उसका उस घर में जाना असंभव ही है. क्या मुंह लेकर वह जाएगी और किस मुंह से प्यार की बातें कर सकेगी?
"और तेज़ चलाओ भाई…" उसने ड्राइवर से कहा. उसके घर की सड़क आ गई. टैक्सीवाले ने उन घरों की क़तार के सामने लाकर टैक्सी खड़ी की. पर वह बैठी रही. ड्राइवर ने पीछे मुड़ कर देखा उसे बैठा देखकर बोला, "आप तो जल्दी में थीं?"

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पर वह सामने, अपने मकान की खिड़की की ओर देख रही थी. उसमें से बत्ती का प्रकाश छन कर बाहर आ रहा था. पीटर आ गया होगा.
"नहीं, अब कोई जल्दी नहीं है." वह बोली. कुछ रुककर बोली, "चलो, धीरे चलाना, अब कोई जल्दी नहीं है." और निढाल सी पीछे की सीट के साथ सट कर बैठ गई.
ड्राइवर ने पूछा, "अब किधर जाना है?"
उत्तर था, "कहीं भी चलो. इंडिया गेट ही चलो."
उधर उसके कमरे में धोबिन ने कपड़े रख दिए. पड़ोसिन की लड़की ने दरवाज़ा खोल दिया था. घोबिन कह रही थी. "मेमसाब ने कपड़े आज मंगवाए थे, कहा था दो बजे ज़रुर ले आना, लेकिन मुझे देर हो गई."
"कोई बात नहीं, वह बाहर गई हैं. आएंगी तो मैं कह दूंगी." कहते हुए पड़ोसिन की लड़की ने टेबल लैंप का स्विच ऑन कर दिया और बाहर निकलकर दरवाज़े पर ताला लगा दिया.

- ब्रह्म देव

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