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कहानी- सेल्फी (Short Story- Selfi)

“मैं उस दिन इसलिए नाराज़ हुआ, क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि सबसे अच्छी सेल्फी खिंचाने की चाह में कोई अवांछित प्रसंग घटे. दरअसल, हम सब अपने जीवन के साथ भी यही करते हैं. प्रदर्शन हेतु हम ख़ुद के जीवन की सुंदरतम तस्वीर खींचने के चक्कर में हर प्रकार का ख़तरा उठाते हैं…"

“रिया, तुम्हारी ज़िम्मेदारियां जब बढ़ जाएंगी तब तुम जॉब कैसे कर पाओगी?” स्नेहा का इशारा समझकर वह बोली, “शशांक बाटेंगे ना मेरी ज़िम्मेदारी, उसके लिए जॉब छोड़ने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी. कुछ न कुछ कर लेंगे.” रिया ने प्यार से अपने पेट पर हाथ फेरते हुए कहा तो स्नेहा मुस्कुरा दी.
तभी रिया ने अपनी हमउम्र कज़िन से पूछा, “और बता, अश्‍विन कैसे हैं?”
“बहुत लकी हूं जो अश्‍विन जैसे जीवनसाथी मिले.” ख़्यालों में गुम-सी स्नेहा गले में पहनी प्लैटिनम चेन में हीरे जड़ित एक-दूसरे से लिपटे अक्षर ‘एस’ ‘ए’ को हाथों से टटोलती हुई बोली. रिया का ध्यान ख़ूबसूरत पेंडेंट पर गया तो बोले बग़ैर रह नहीं पाई.
“बहुत सुंदर है ये.”
“हूं, शादी की सालगिरह पर दिया था.” रिया की तारीफ़ पर स्नेहा ने धीमे-से मुस्कुराकर बताया कि तभी वहां शशांक आ गए, “हां भई साली साहिबा, आज कहां घूमने चलें?”
“कहीं नहीं जीजू, आज तो बस गप्प मारेंगे. मूवी, शॉपिंग सब कल से. आज बस, घर में आराम करेंगे.” बैंगलोर से एक हफ़्ते के लिए आई रिया की चचेरी बहन स्नेहा की ख़ातिरदारी में रिया और शशांक पूरी मुस्तैदी से तैयार थे. रिया ने तो एक हफ़्ते की छुट्टी भी ले ली थी. “रिया, अब क्या साली साहिबा का पेट बातों से भरोगी, कुछ खिलाओ भई.”
“हां, बोल ना, क्या बनवाऊं?” रिया के पूछने पर स्नेहा ने कहा, “कुछ नहीं, अभी तो बातों से पेट भर लेते हैं, फिर लंच में जीभर के खा लेंगे.” यह सुन शशांक हंस पड़े, फिर बोले, “रिया बता रही थी कि तुम जॉब छोड़ रही हो.”
“हां बस, अब ऊब गई हूं नौकरी से. लाइफ एन्जॉय करूंगी.” कहकर वह रुकी तो शशांक ने टोका, “एक बार सोच लो, मल्टीनेशनल कंपनी की सॉफ्टवेयर कंपनी के ग्राफिक डिज़ाइनर के पद पर काफ़ी नाम कमाया है तुमने, उसे यूं छोड़ना…”
“ओहो! अब ये इसका निर्णय है. वैसे भी अश्‍विन करोड़ों में खेल रहा है. आए दिन इसे लेकर विदेश घूमता है. जॉब के साथ इसको बंधन होगा.” रिया ने अपनी चचेरी बहन की तरफ़दारी की.
शशांक कुछ देर इधर-उधर की बातें करके वहां से चले गए. जानते थे कि उनके सामने दोनों खुलकर बात नहीं कर पाएंगी और वही हुआ. उनके जाते ही रिया ने पूछा, “और बता, तू कब फैमिली प्लान कर रही है.”


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“अभी नहीं, एक-दो साल और एन्जॉय करूंगी. अश्‍विन का प्यार अभी किसी से बांटना नहीं चाहती. ख़ैर, ये सब छोड़, मैं तुझे अपने मॉरीशस ट्रिप की तस्वीरें दिखाती हूं.” कहते हुए स्नेहा देर तक उसे अपने मॉरीशस, बेल्जियम, जकार्ता जाने कहां-कहां के ट्रिप की तस्वीरें दिखाती रही. रिया के पास उसे दिखाने और कहने को कुछ भी नहीं था. क्या कहती कि शशांक को घूमना-फिरना नहीं, उसके साथ घर पर अकेले समय बिताना पसंद है. स्नेहा के दमकते चेहरे,  ब्रांडेड कपडों और ख़ुशहाल शादीशुदा जीवन की झलक देखकर रिया के मन में एक पल को कुछ चुभा तो फौरन ही उसने अपने मन को धिक्कारा. क्या हो गया है उसे? वह ख़ुद भी तो एक सुकून भरी ज़िंदगी बिता रही है. प्यार और सम्मान देनेवाला पति, अपना कहने को ग्रेटर कैलाश में तीन कमरों का घर, एक अच्छी जॉब और अब मां बनने का सुखद एहसास और क्या चाहिए जीवन से? 
सहसा वह भीतर से सहज उभरी ईर्ष्या से विचलित हुई. पर वह भी क्या करती. ऐसा हमेशा से होता आया है. जिस चचेरी बहन के साथ उसकी सबसे ज़्यादा बनती आई है, उसी से सदा ही कॉम्पीटीशन रहा है, फिर चाहे वह पढ़ाई का क्षेत्र हो या फैशन, करियर, शादी की बात हो. एक-दूसरे को पछाड़ने की मंशा हमेशा ही कहीं न कहीं मन में ज़रूर रही है. कभी-कभी तो विश्‍वास ही नहीं होता कि इस विरोधाभास के बावजूद दोनों को एक-दूसरे का साथ, एक दूसरे से बातें करना भाता है, इसीलिए उनका रिश्ता टिका हुआ है.
“रिया!”, शशांक की आवाज़ पर रिया बाहर आई, तो देखा शशांक कुछ नाराज़ से सामने खड़े थे.
“तुमने मेरी गाड़ी कहां भेज दी है?”
“जरा धीरे बोलो, कल समय नहीं मिला कि तुम्हें बताती. एक हफ़्ते के लिए मैंने तुम्हारी गाड़ी मनचंदा अंकल के घर भेज दी है और जब तक स्नेहा यहां है तब तक के लिए मैंने उनकी गाड़ी मांग ली है. कहीं घूमने-फिरने जाना हो तो उन्हीं की गाड़ी से जाएंगे.”
“पर क्यों?” शशांक हैरान था. मनचंदा फैमिली से उनके रिलेशन अच्छे हैं, पर अच्छे रिलेशन के एवज़ में रिया का उनसे गाड़ी मांगना बेहद अटपटा था. ख़ुुद की गाड़ी होते हुए किसी और की गाड़ी से आना-जाना उसके गले नहीं उतरा.
“तुमने ऐसा क्यों किया? क्या सोचेंगे मनचंदा अंकल.” “कुछ नहीं सोचेंगे वो, बल्कि तुम ये सोचो कि मैं ऐसा नहीं करती तो क्या सोचती स्नेहा? उसके सामने हम अपनी खटारा निकालेंगे तो कैसा लगेगा. ज़रा तो सोचो, इसका इंतज़ाम तुम्हें करना चाहिए. वो तो मनचंदा अंकल मेरे इमोशंस को समझ गए और गाड़ी उधार दे दी, वरना पता नहीं क्या होता.”
“क्या होता मतलब? इस गाड़ी में भी चार पहिए लगे हैं,  उसमें भी उतने ही थे.”
“प्लीज़ शशांक, बात को बढ़ाओ मत.” सतर्कता से इधर-उधर देखते हुए रिया बोली, तो मौ़के की नज़ाकत को समझते हुए शशांक वहां से चले आए. पर एकांत पाते ही रिया पर बरस पड़े.
“देखो रिया, जो अपने पास है वह बहुत है. किसी के आने पर चादर, कुशन और परदे बदलना तो ठीक है, पर अपने रहन-सहन को बदल डालना… ये बिल्कुल ठीक नहीं.” शशांक को आवेश में देख  रिया ने प्यार से उसे दुनियादारी समझाने की कोशिश की.
“रहन-सहन का दिखावा कभी-कभी बहुत ज़रूरी होता है. मैं जानती हूं कि आज हमारे पास पुरानी गाड़ी है कल नई आ जाएगी. पर स्नेहा जो इमेज लेकर जाएगी वो  सालों साल वही रहेगी.”


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“यानी तुम कहीं न कहीं मेरे साथ अपने जीवन को लेकर असंतुष्ट हो?” शशांक ने उसे गहरी नज़रों से देखा, तो रिया ने दृढ़ता से कहा, “नहीं, बिल्कुल नहीं. तुम बेवजह इतने इमोशनल हो रहे हो. मैं अपने जीवन से पूरी तरह न केवल संतुष्ट हूं, बल्कि ख़ुुद को भाग्यशाली समझती हूं जिसे तुम्हारे जैसा जीवनसाथी मिला, पर इसका अर्थ ये भी नहीं है कि अब कोई चाह ही नहीं जीवन से. हमें प्रोग्रेसिव सोच रखनी चाहिए.” उसका तर्क शशांक को संतुष्ट नहीं कर पाया, तो वो प्यार से मनाती हुई बोली, “एक हफ़्ते की तो बात है, मान जाओ प्लीज़.”
“क्या हुआ लव बर्ड्स. यहां अकेले में ऐसी कौन-सी चर्चा हो रही है. कहीं मैंने आकर कोई ग़लती तो नहीं कर दी. क्यों जीजू?” सहसा स्नेहा ने आकर छेड़ा तो दोनों संभल गए. दूसरे दिन रिया को स्नेहा उलाहना देती नज़र आई, “क्या यार रिया, तुम तो किचन क्वीन हुआ करती थी. सोचा था, तुम्हारे हाथ के खाने का लाजवाब स्वाद चखूंगी, पर यहां तो तेरी मेड खाना बना रही है.” स्नेहा के कहते ही शशांक ने गहरी नज़रों से रिया को देखा, तो वह शशांक को नज़रअंदाज़ कर स्नेहा से बोली, “वैसे तो मेड भी अच्छा बनाती है, पर तेरे लिए मैं रसोई संभाल लूंगी. बता क्या खाएगी?” रिया के कहते ही शशांक असहज हो गए. उन्हें याद आया, दो दिन पहले रिया ने बताया था, “सुनो, मैं खाना बनानेवाली मेड रख रही हूं.” रिया के इस अप्रत्याशित निर्णय से शशांक चौंके, फिर कुछ सोचकर बोले, “अच्छा किया, आनेवाले दिनों में तुम्हें हेल्प की ज़रूरत होगी.”
“अरे, वो तो जब होगी तब देखेंगे. वैसे सच कहूं तो मुझे समझ में नहीं आता लोग मेड के हाथ का बना खा कैसे लेते हैं? पर फ़िलहाल तो खाना बनाने के लिए मेड रखनी पड़ेगी. स्नेहा के आगे रसोई में काम करना अच्छा नहीं लगेगा.” रिया के खुलासे पर शशांक उत्तेजित-से बोले, “मतलब, तुम सिर्फ़ ये दिखाने के लिए मेड रख रही हो कि हम मेड अफोर्ड कर सकते हैं?”
“हां, तो और क्या… बस, इतनी मेहरबानी करना कि एक हफ़्तेवाली बात मेड को मत बताना. उसे तो ये कहकर रखा है कि एक हफ़्ते खाना बनवाकर देखूंगी, ठीक लगा, तो हमेशा के लिए रख लूंगी, वरना एक हफ़्ते के लिए वह राज़ी नहीं होती. एक हफ़्ते बाद धीरे से कोई न कोई बहाना बनाकर उसे टाल दूंगी.”
“हां, और तुम्हारी चालाकी जैसे उसे समझ में नहीं आएगी? ये ग़लत है रिया, बिल्कुल ग़लत.”
“ओहो! अब ये ग़लत-सही का पाठ मत पढ़ाओ. ये टेम्परेरी अरेंजमेंट है. इतना सब तो चलता है.” कहकर रिया ने बात ख़त्म की, तो शशांक समझ गए कि मेड रखना ज़रूरत से ज़्यादा स्टेटस सिंबल है. ऐसे में रिया को समझाने का कोई फ़ायदा नहीं है.
“सुन रिया, कुछ चटपटा-सा बना, जैसे सांगरी, गट्टे की सब्ज़ी और दाल ढोकली.” स्नेहा की आवाज़ शशांक के कानों में पड़ी, तो वह बाहर निकल गए. रात को आए तो रसोई से राजस्थानी  व्यंजनों की ख़ुशबू घर में फैली हुई थी. दोनों बहनें अभी भी गप्पे मारने में व्यस्त थीं. रिया ने एक हफ़्ते की छुट्टी ले ली थी. मूवी, शॉपिंग, मस्ती में तीन दिन कहां निकले पता ही नहीं चला.
पांचवें दिन अचानक कुछ ऐसा घटा जो सबकी कल्पना से परे था. अभी बच्चे के बारे में नहीं सोचा है. अपना प्यार बांटना नहीं चाहती हूं, कहने वाली स्नेहा के पीरियड्स की डेट बढ़ गई, तो उसने प्रेग्नेंसी टेस्ट करवाया और वह  पॉज़िटिव आया. उसके बाद स्नेहा ने अश्‍विन को फोन किया. रिया और शशांक ने नोटिस किया कि उन दोनों की देर तक फोन पर बात होती रही, पर फोन करने के बाद स्नेहा उखड़ी-उखड़ी नज़र आने लगी. ऐसे में एक दिन रिया ने टोक दिया, “देख स्नेहा, मेरे हिसाब से इतना टेंशन लेने की ज़रूरत नहीं है. शादी को दो साल हो गए हैं, अब जब ये आ ही गया है, तो ख़ुशी-ख़ुशी इसे एक्सेप्ट करो.” यह सुनकर स्नेहा के मुंह से सहसा निकला, “हां, पर अश्‍विन राज़ी नहीं हैं.” इस बात पर रिया ने आश्‍चर्य से उसे देखा तो उसने धीरे से खुलासा किया.
“दरअसल, प्रॉब्लम मेरी तरफ़ से नहीं है. कभी थी भी नहीं, पर अश्‍विन अभी बच्चा नहीं चाहते.”
“अरे, ये क्या बात हुई. तुम उसे समझाओ.” उसकी बात पर स्नेहा ने उसके दोनों हाथों को पकड़कर जो कहा उसे सुनकर रिया के पांव के नीचे से ज़मीन खिसक गई, “रिया, अश्‍विन को समझाना बहुत मुश्किल है. शशांक जीजू की तरह वह सरल स्वभाव के नहीं हैं. बहुत डॉमिनेटिंग नेचर है उनका. मेरी नौकरी भी वही छुड़वा रहे हैं. बता ऐसे में क्या करूं? और तो और, एक एबॉर्शन भी करवा चुके हैं. मम्मी-पापा ने कितने जतन से ये रिश्ता ढूंढ़ा है, ऐसे में ये सब बताकर उन्हें दुखी कैसे करूं? लोक-लाज के डर से मैं हर बात अपने ऊपर ले लेती हूं. पर इस बार ये बच्चा मैं कैरी करूंगी, चाहे जितनी लड़ाई लड़नी पड़े. सोच रही हूं बैंगलोर की जगह मम्मी के पास पूना चली जाऊं. कुछ सेटेलमेंट होने पर ही वापस जाऊंगी.” स्नेहा को देखकर रिया का मन भर आया. स्नेहा ने अश्‍विन के संग संबंधों की जो छवि बनाई थी, वो छलावा लगी.
स्नेहा दो दिन बाद चली गई थी. इन्हीं दिनों मनचंदा अंकल की गाड़ी में एक डेंट लग गया. शशांक उसे ठीक करवाने में व्यस्त हो गए. रिया ने भी ऑफिस जॉइन कर लिया. व्यवस्था पुराने ढर्रे पर लौट आई. स्नेहा से फोन पर बात हुई तो वह थोड़ी संभली लगी.
“रिया, मम्मी-पापा ने अश्‍विन को समझाया है. शायद अब सब ठीक हो, और हां, कोशिश करूंगी कि जॉब भी ना छोडूं. मम्मी-पापा ने मेरा करियर बनाने के लिए कितनी मेहनत की है. मम्मी ने कहा है कि अश्‍विन हेल्प नहीं करेंगे, तो वो हमारे पास आकर बेबी को संभाल लेंगी. ख़ैर, अभी तो ये दूर की बात है. अब लग रहा है कि सब ठीक हो जाएगा.” अच्छा किया तूने चाचा-चाची को बता दिया. आनेवाले भविष्य की शुभकामनाएं देने के साथ रिया ने थोड़ी बातचीत करके फोन रख दिया.
अपने कमरे में आई तो शशांक को सारी बात बताई. शशांक बिना कुछ बोले डायरी और पेन लेकर कुछ लिखने लगे. कुछ देर बाद रिया ने टोका, “क्या कर रहे हो तुम, कुछ बोलोगे नहीं.”
“इन दिनों हुए तीन पांच सितारा डिनर और उधार मांगी गाड़ी में लगे डेंट पर हुए ख़र्च का हिसाब जोड़ रहा हूं. आनेवाले तीन महीने तक ख़र्च पर कंट्रोल रखना पड़ेगा.” इस पर रिया बोली, “तुम्हें बुरा लगा जो मैंने मेड और मनचंदा अंकल की गाड़ी…”
“छोड़ो, उस पर बात करके अब क्या फ़ायदा.” फिर शशांक उसके हाथों को थामकर बोले, “याद है, उस दिन स्नेहा ने एक सेल्फी ली थी. ख़ूबसूरत और ख़तरनाक बैकड्रॉप था. तुम दोनों ब्रिज के किनारे खड़ी थी, ज़रा-सा संतुलन बिगड़ता और कोई हादसा हो जाता. पर ईश्‍वर का शुक्र है कि ऐसा नहीं हुआ.”


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“हां, और तुम बहुत नाराज़ हुए थे कि ये भी कोई जगह है सेल्फी लेने की. पर देखो, उस सेल्फी पर सबसे ज़्यादा कमेंट आए हैं.” कहकर रिया मोबाइल पर अपनी प्रोफाइल पिक्चर ढूंढ़ने लगी, पर शशांक उसे नज़रअंदाज़ करते हुए बोले, “मैं उस दिन इसलिए नाराज़ हुआ, क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि सबसे अच्छी सेल्फी खिंचाने की चाह में कोई अवांछित प्रसंग घटे. दरअसल, हम सब अपने जीवन के साथ भी यही करते हैं. प्रदर्शन हेतु हम ख़ुद के जीवन की सुंदरतम तस्वीर खींचने के चक्कर में हर प्रकार का ख़तरा उठाते हैं. तुमने मनचंदा अंकल की गाड़ी मांगकर ख़ुद को संपन्न दिखाने की कोशिश की, पर देखो, उनकी गाड़ी में डेंट लग गया. नतीजा, बेवजह दस हज़ार ख़र्च हो गए. बेवजह मेड रखी, अब तुम उसे मना कर दोगी. नतीजा, तुम्हारे प्रति उसका अविश्‍वास. हो सकता है, भविष्य में जब असल ज़रूरत हो तब तुम्हें कोई मदद न मिल पाए. साधारण डीसेंट रेस्टोरेंट की जगह पांच सितारा में लंच और डिनर. नतीज़ा, अपना बजट हिल गया.”
“सॉरी शशांक, मुझे भी लग रहा है कि स्नेहा को दिखाने के लिए ये दिखावा व्यर्थ था. इसके बग़ैर भी स्नेहा उतनी ही ख़ुश और प्रभावित होती जितनी अभी थी.” उसकी बात पर शशांक ने प्यार से उसे सीने से लगा लिया. रिया अभी भी अपनी प्रोफाइल पिक्चर को ध्यान से देखती सोच रही थी कि कमोबेश यही स्नेहा ने भी तो किया, अश्‍विन की समर्पित पति के रूप में छवि प्रस्तुत करके. सही कहा शशांक ने, ख़तरा उठाकर बनावटी-मिथ्या छलावे से परिपूर्ण बैकड्रॉप के आगे खड़े होकर आडंबर भरी मोहक तस्वीर झूठी आत्मतुष्टि ही दे सकती है.

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