"… अन्न आपका, बर्तन आपके, सब चीज़ें आपकी हैं, मैंने ज़रा-सी मेहनत करके सब में भगवदभाव रख कर रसोई बनाकर खिलाने की थोड़ी-सी सेवा कर ली, तो मुझे पुण्य मिलेगा कि नहीं? सब प्रेम से भोजन करके तृप्त और प्रसन्न होंगे, तो कितनी ख़ुशी होगी. इसलिए मांजी आप रसोई मुझे बनाने दें. कुछ मेहनत करूंगी, तो स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा."
सास ने सोचा कि बहू बात तो ठीक ही कहती है. हम इसे सबसे छोटी समझते हैं, पर इसकी बुद्धि सबसे अच्छी है और बहुत संस्कारी भी है.
एक सेठ के सात बेटे थे. सभी का विवाह हो चुका था. छोटी बहू संस्कारी माता-पिता की बेटी थी. बचपन से ही अभिभावकों से अच्छे संस्कार मिलने के कारण उसके रोम-रोम में संस्कार बस गया था. ससुराल में घर का सारा काम तो नौकर-चाकर करते थे, जेठानियां केवल खाना बनाती थीं. उसमें भी खटपट होती रहती थी. छोटी बहू को संस्कार मिले थे कि अपना काम स्वयं करना चाहिए और प्रेम से मिलजुल कर रहना चाहिए. अपना काम स्वयं करने से स्वास्थ्य बढ़िया रहता है.
उसने युक्ति खोज निकाली और सुबह जल्दी स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनकर पहले ही रसोई में जा बैठी. जेठानियों ने टोका, लेकिन उसने प्रेम से रसोई बनाई और सबको प्रेम से भोजन कराया. सभी ने बड़े प्रेम से भोजन किया और प्रसन्न हुए.
इसके बाद सास छोटी बहू के पास जाकर बोली, "बहू, तू सबसे छोटी है, तू रसोई क्यों बनाती है? तेरी छह जेठानियां हैं. वे खाना बनाएंगी."
बहू बोली, "मांजी, कोई भूखा अतिथि घर आता है, तो उसको आप भोजन क्यों कराती हैं?"
"बहू शास्त्रों में लिखा है कि अतिथि भगवान का रूप होता है. भोजन पाकर वह तृप्त होता है, तो भोजन करानेवाले को बड़ा पुण्य मिलता है."
"मांजी, अतिथि को भोजन कराने से पुण्य होता है, तो क्या घरवालों को भोजन कराने से पाप होता है? अतिथि भगवान का रूप है, तो घर के सभी लोग भी तो भगवान का रूप हैं, क्योंकि भगवान का निवास तो सभी में है.
अन्न आपका, बर्तन आपके, सब चीज़ें आपकी हैं, मैंने ज़रा-सी मेहनत करके सब में भगवदभाव रख कर रसोई बनाकर खिलाने की थोड़ी-सी सेवा कर ली, तो मुझे पुण्य मिलेगा कि नहीं? सब प्रेम से भोजन करके तृप्त और प्रसन्न होंगे, तो कितनी ख़ुशी होगी. इसलिए मांजी आप रसोई मुझे बनाने दें. कुछ मेहनत करूंगी, तो स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा."
सास ने सोचा कि बहू बात तो ठीक ही कहती है. हम इसे सबसे छोटी समझते हैं, पर इसकी बुद्धि सबसे अच्छी है और बहुत संस्कारी भी है.
अगले दिन सास सुबह जल्दी स्नान करके रसोई बनाने बैठ गई. बहुओं ने देखा, तो बोलीं, 'मांजी, आप क्यों कष्ट करती हैं?"
सास बोली, "तुम्हारी उम्र से मेरी उम्र ज़्यादा है. मैं जल्दी मर जाऊंगी. मैं अभी पुण्य नहीं करूंगी, तो फिर कब करूंगीं?"
बहुएं बोलीं, "मांजी, इसमें पुण्य की क्या बात है? यह तो घर का काम है."

यह भी पढ़ें: नई दुल्हन के लिए संकोच-शर्मो-हया किन मामलों में ज़रूरी, किनमें ग़ैरज़रूरी! (Dos And Don’ts For Newlywed Bride)
सास बोली, "घर का काम करने से पाप होता है क्या? जब भूखे व्यक्तियों को, साधुओं को भोजन कराने से पुण्य मिलता है, तो क्या घरवालों को भोजन कराने से पाप मिलेगा? सभी में ईश्वर का वास है."
सास की बातें सुनकर सभी बहुओं को लगा कि इस बारे में तो उन्होंने कभी सोचा ही नहीं. यह युक्ति बहुत बढ़िया है. अब जो बहू पहले जाग जाती, वही रसोई बनाने लगती.
पहले जो भाव था कि तू रसोई बना… बारी बंधी थी.. अब मैं बनाऊं, मैं बनाऊं… यह भाव पैदा हुआ, तो आठ बारी बध गई. दो और बढ़ गए सास और छोटी बहू.
काम करने में ʹतू कर, तू कर…ʹ इससे काम बढ़ जाता है और आदमी कम हो जाते हैं, पर ʹमैं करूं, मैं करूं…ʹ इससे काम हल्का हो जाता है और आदमी बढ़ जाते हैं.
छोटी बहू उत्साही थी. सोचा कि ʹअब तो रोटी बनाने में चौथे दिन बारी आती है, फिर क्या किया जाए?ʹ घर में गेहूं पीसने की चक्की थी. उसने उससे गेहूं पीसना शुरु कर दिया. मशीन की चक्की का आटा गर्म-गर्म बोरी में भर देने से जल जाता है. उसकी रोटी स्वादिष्ट नहीं होती. जबकि हाथ से पीसा गया आटा ठंडा और अधिक पौष्टिक होता है तथा उसकी रोटी भी स्वादिष्ट होती है. छोटी बहू ने गेहूं पीसकर उसकी रोटी बनाई, तो सब कहने लगे कि आज तो रोटी का ज़ायका बड़ा विलक्षण है.
सास बोली, "बहू, तू क्यों गेहूं पीसती है? अपने पास पैसों की कमी है क्या."
"मांजी, हाथ से गेहूं पीसने से व्यायाम हो जाता है और बीमारी भी नहीं होती. दूसरे रसोई बनाने से भी ज़्यादा पुण्य गेहूं पीसने से होता है."
सास और जेठानियों ने जब सुना, तो उन्हे लगा कि बहू ठीक ही कहती है. उन्होंने अपने-अपने पतियों से कहा, "घर में चक्की ले आओ, हम सब गेहूं पीसेंगी."
रोज़ाना सभी जेठानियां चक्की में दो से ढाई सेर गेहूं पीसने लगीं.
इसके बाद छोटी बहू ने देखा कि घर में जूठे बर्तन मांजने के लिए नौकरानी आती है. अपने जूठे बर्तन ख़ुद साफ़ करने चाहिए, क्योंकि सब में ईश्वर का वास है, तो कोई दूसरा हमारा जूठा क्यों साफ़ करे!
अगले दिन उसने सब बर्तन मांज दिए. सास बोली, "बहू, ज़रा सोचो, बर्तन मांजने से तुम्हारे गहने घिस जाएंगें, कपड़े ख़राब हो जाएंगें."
"मांजी, काम जितना छोटा, उतना ही उसका माहात्म्य ज़्यादा. पांडवों के यज्ञ में भगवान श्रीकृष्ण ने जूठी पत्तलें उठाने का काम किया था."
अगले दिन सास बर्तन मांजने बैठ गई. उन्हें देख कर सभी बहुओं ने बर्तन मांजने शुरु कर दिए.
घर में झाड़ू लगाने के लिए नौकर आता था. एक दिन छोटी बहू ने सुबह जल्दी उठकर झाड़ू लगा दी. सास ने पूछा, "बहू झाड़ू तुमने लगाई है?"
"मांजी, आप मत पूछिए. आप से कुछ कहती हूं, तो मेरे हाथ से काम चला जाता है."
"झाड़ू लगाने का काम तो नौकर का है, तुम क्यों लगाती हो?"
"मांजी, ʹरामायणʹ में आता है कि वन में बड़े-बड़े ऋषि-मुनि रहते थे. भगवान उनकी कुटिया में न जा कर पहले शबरी की कुटिया में गए थे, क्योंकि शबरी रोज़ चुपके से झाड़ू लगाती थी, पम्पा सरोवर का रास्ता साफ़ करती थी कि कहीं आते-जाते ऋषि-मुनियों के पैरों में कंकड़ न चुभ जाएं."
सास ने देखा कि छोटी बहू, तो सब को लूट लेगी, क्योंकि यह सबका पुण्य अकेले ही ले लेती है. अब सास और सभी बहुओं ने मिलकर झाड़ू लगानी शुरू कर दी.

जिस घर में आपस में प्रेम होता है, वहां लक्ष्मी का वास होता है और जहां कलह होती है, वहां निर्धनता आती है.
सेठ का तो धन दिनोंदिन बढ़ने लगा. उसने घर की सब स्त्रियों के लिए गहने और कपड़े बनवा दिए. छोटी बहू ससुर से मिले गहने लेकर बड़ी जेठानी के पास जा कर बोली, "आपके बच्चे हैं, उनका विवाह करोगी, तो गहने बनवाने पड़ेंगे. मुझे तो अभी कोई बच्चा है नहीं. इसलिए इन गहनों को आप रख लीजिए."
गहने जेठानी को दे कर छोटी बहू ने कुछ पैसे और कपड़े नौकरों में बांट दिए. सास ने देखा तो बोली, "बहू, यह तुम क्या करती हो? तेरे ससुर ने सबको गहने बनवा कर दिए हैं और तुमने उन्हें जेठानी को दे दिए. पैसे और कपड़े नौकरों में बांट दिए."
"मांजी, मैं अकेले इतना संग्रह करके क्या करूंगी? अपनी चीज़ किसी ज़रूरतमंद के काम आ जाए, तो आत्मिक संतोष मिलता है और दान करने का तो अमिट पुण्य होता ही है."
यह भी पढ़ें: सास-बहू के रिश्तों को मिल रही है नई परिभाषा… (Daughter-In-Law And Mother-In-Law: Then Vs Now…)
सास को बहू की बात दिल को छू गई. वह सेठ के पास जाकर बोली, "मैं नौकरों में धोती-साड़ी बांटूगी और आसपास में जो ग़रीब परिवार रहते हैं, उनके बच्चों का फीस मैं स्वयं भरूंगी. अपने पास कितना धन है, अगर यह किसी के काम आ जाए, तो अच्छा है. न जाने कब मौत आ जाए. उसके बाद यह सब यहीं पड़ा रह जाएगा. जितना अपने हाथ से पुण्य कर्म हो जाए अच्छा है."
सेठ बहुत प्रसन्न हुआ. पहले वह नौकरों को कुछ देते थे, तो सेठानी लड़ पड़ती थी. अब कह रही है कि ʹमैं ख़ुद दूंगी.' सास दूसरों को वस्तुएं देने लगी, तो यह देखकर बहुएं भी देने लगीं. नौकर भी ख़ुश हो कर मन लगा कर काम करने लगे और आस-पड़ोस में भी ख़ुशहाली छा गई.
श्रेष्ठ मनुष्य जो आचरण करता है, दूसरे मनुष्य भी उसी के अनुसार आचरण करते हैं. छोटी बहू ने जो आचरण किया, उससे उसके घर का तो सुधार हुआ ही, साथ में पड़ोस पर भी अच्छा असर पड़ा. उनके घर भी सुधर गए. देने के भाव से आपस में प्रेम-भाईचारा बढ़ गया. इस तरह बहू को संस्कार से मिली सूझबूझ ने उसके घर के साथ-साथ अनेक घरों को ख़ुशहाल कर दिया.


अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES