वह बड़ी विनम्रता के साथ बोली, "मम्मीजी, मेरी मां ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है और ससुराल में कैसे रहना है आप सिखा ही रही हैं, पर मुझे लगता है कि कुछ संस्कार आपको अपने बेटे को भी देने चाहिए थे कि दामाद होकर ससुराल में किसी के यहां बिन बुलाए ना पहुंच जाए. और किसी का अपमान करने का अधिकार तो उन्हें बिल्कुल भी नहीं है, क्योंकि संस्कारों की ज़रुरत सिर्फ़ बहू को ही नहीं होती है."
"ये क्या बहू… तुम बिना घूंघट किए बाहर से चली आ रही हो. मोहल्लेवाले देखेंगे, तो क्या सोचेंगे… हमारी इज्ज़त का ज़रा भी ख़्याल नहीं है तुम्हे… हमारे खानदान में बहुएं बिना घूंघट बाहर नहीं निकलती कितनी बार समझाया है तुम्हे, पर तुमने तो सास की बात न मानने की क़सम खा रखी है. तुम्हारी मां ने तुम्हे सिखाया नहीं कि
ससुराल में कैसे रहना है…" निकिता के घर में आते ही सास शोभनाजी ने हमेशा की तरह तानों की बौछार करनी शुरू कर दी.
निकिता की शादी छह महीने पहले ही हर्ष से हुई है. उसकी ससुराल मे सास-ससुर, एक छोटी ननद पूर्वी और उसके पति हर्ष ही थे. छोटा परिवार था.
ससुराल में निकिता के लिए बहू वाले सारे नियम लागू थे. सास तेज स्वभाव महिला थी. घर में उन्हीं का शासन चलता था. घर के सारे कामों की ज़िम्मेदारी निकिता को सौंपकर उन्होंने घर के काम से मुक्ति पा ली थी.
निकिता ससुराल के माहौल में रचने-बसने की पूरी कोशिश करती थी. घर की सारी ज़िम्मेदारी भी बख़ूबी संभालती थी, पर फिर भी कुछ ग़लती हो जाए, तो सास ताने देना शुरू कर देती थी कि तुम्हारी मां ने तुम्हे कुछ सिखाया नहीं… कोई संस्कार नहीं दिए…
बात-बात पर मायकेवालों का अपमान करती थी. निकिता अपने संस्कारों की वजह से चुप रहती थी और कोशिश करती थी कि उन्हें शिकायत का कोई मौक़ा न दे, ताकि उसकी मां के संस्कारों पर शोभनाजी ताने ना मार सके.
निकिता दो दिन पहले मायके गई थी रूकने के लिए. आज जब हर्ष उसे लेने गया था, तो पता चला कि निकिता अपनी मौसी के यहां गई थी, जो थोडी ही दूरी पर रहती थीं. हर्ष वहीं पर रुक कर उसका इतंज़ार कर रहा था कि तभी शोभनाजी का फोन आ गया. हर्ष उन्हें बताता है कि निकिता अपनी मौसी के यहां गई है. उसके वापस आते ही हम दोनों घर के लिए निकलेंगे. ये सुनकर शोभनाजी का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया कि बिना उनकी इज़ाज़त के वह किसी रिश्तेदार के यहां कैसे चली गई. फोन पर हर्ष से न जाने क्या बात हुई हर्ष निकिता को लेने उसकी मौसी के घर पहुंच गया. वो बहुत ग़ुस्से में था.
वहां जाकर वो निकिता को भला-बुरा कहने लगा और बिना बताए मौसी के यहां आने के लिए डांटने लगा और तुरंत ही वहां से चलने को कहा.
वहां उसको अचानक इस तरह आया देखकर सभी आश्चर्यचकित थे. सबने उसे समझाने की कोशिश की, तो उनको भी अपशब्द कहने लगा. बेचारी निकिता के शर्म और अपमान के कारण आंसू नहीं रुक रहे थे.
हर्ष उसे लेकर सीधे अपने घर आ गया था. हर्ष के व्यवहार से दुखी निकिता रोते हुए कब घर आ गई थी उसे पता ही नहीं चल पाया था.
उस पर घर में कदम रखते ही शोभनाजी ने उसे फटकारना शुरु कर दिया, "तुम बिना घूंघट चली आ रही हो… एक तो बिना बताए अपने रिश्तेदार के यहां चली गई. यही सिखाया है तुम्हारी मां ने तुम्हे…"
निकिता जो हर्ष के बर्ताव से पहले ही बहुत क्षुब्ध थी, आते ही सास के ताने सुनकर उसका सब्र का बांध टूट गया.
वह बड़ी विनम्रता के साथ बोली, "मम्मीजी, मेरी मां ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है और ससुराल में कैसे रहना है आप सिखा ही रही हैं, पर मुझे लगता है कि कुछ संस्कार आपको अपने बेटे को भी देने चाहिए थे कि दामाद होकर ससुराल में किसी के यहां बिन बुलाए ना पहुंच जाए. और किसी का अपमान करने का अधिकार तो उन्हें बिल्कुल भी नहीं है, क्योंकि संस्कारों की ज़रुरत सिर्फ़ बहू को ही नहीं होती है."
हर्ष ने निकिता से कहा, "तुम मां से बदतमीजी कर रही हो."
निकिता, "मैं मां से बदतमीज़ी नही कर रही हूं, बल्कि उन्हें बता रही हूं कि जिन संस्कारों की उम्मीद वे अपनी बहू से करती हैं उनके बेटे में भी होने चाहिए. बहू को कैसे रहना चाहिए ये बात तो मम्मीजी हमेशा बताती हैं, पर दामाद को ससुराल में कैसा व्यवहार करना चाहिए ये बात शायद आपको बताना भूल गईं."
निकिता से ऐसे जवाब की दोनो को उम्मीद न थी. उसका जवाब सुन और उसका क्रोध देख दोनो ने शांत रहना ही उचित समझा. शोभनाजी ऐसा दोबारा ना होने का आश्वासन दे अपने कमरे में चली गईं.
- रिंकी श्रीवास्तव
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