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कहानी- संभावनाएं (Short Story- Sambhavnaye)

"सुना, कैसा उपहास उड़ाने और नीचा दिखाने वाला लहज़ा है?" फोन काटते हुए विनी बोली तो नीना को अपनी ओर मुस्कुरा कर देखते पाया.
"उन्हें मैंने तो नहीं सुना, लेकिन ये ज़रूर सुना कि तुम्हारी आवाज़ बिल्कुल भी दीन-हीन नहीं थी. यहीं नहीं, तुमने सोम की पार्टी में जाने से मना करके प्रतिवाद भी किया, मुबारक हो."
"अरे, हां नीना. ये… ये कैसे हुआ?" विनी के
स्वर में आश्चर्यमिश्रित ख़ुशी थी.

ये शहर के सबसे महंगे स्कूलों में से एक था. इसके नए प्रधानाध्यापक सुभाष सर स्वभाव से नेक, सजग और अनुशासनप्रिय ये. उनका मानना था कि विद्यार्थियों का चरित्र निर्माण विद्यालय का प्रथम दायित्व है, इसीलिए आते ही उन्होंने इस दिशा में प्रयास आरंभ कर दिए थे. जानी-मानी समाज सेविका और मनोचिकित्सक नीनाजी को भी नैतिक शिक्षा और मनोविज्ञान विभाग की अध्यक्षा का पदभार ग्रहण करने के लिए उन्होंने ही राज़ी किया था. नीना ने आते ही सबसे पहले इसके लिए रूपरेखा तैयार की थी, उसी दिशा में एक कदम था पैरेंटल काउंसलिंग, अध्यापिकाओं से उनकी नज़र में सबसे बिगड़े बच्चों की सूची बनवाकर उनकी मानसिकता में सकारात्मक परिवर्तन लाने का दायित्व उन्होंने स्वयं पर ले लिया था. फिर जिनके लिए ज़रूरत समझी उन बच्चों की मांओं को पर्सनल काउंसलिंग का निमंत्रण पत्र भेज दिया था. आज सर के बुलाने पर नीना उनके कक्ष में पहुंची, तो वे अपनी
चिर-परिचित सौम्य मुस्कान के साथ दो पत्र उसकी ओर बढ़ाते हए बोले, "ये रही आपके सप्रयास के राह की पहली चुनौती, विधायक सोम और उद्योगपति समर्थ की पत्नियों के आपकी शिकायतों से भरे पत्र. आपको नौकरी से निकालने के अनुरोध के साथ बिल्डिंग फंड के लिए लाखों के चेक भी हैं."
"क्या बात है. इसी बहाने स्कूल की कुछ आमदनी भी हो गई." नीना हंसकर बोली. इस पर सुभाष हंस पड़े. "स्कूल क्या करेगा इन सोए हुए लोगों के रुपए का. इन्हें आप अपने जागरूकता अभियान के कोष के लिए रख लें."
"ठीक है, मैं इन दोनों के घर जाकर निमंत्रण पत्र दे आती हूं." नीना के स्वर में आत्मविश्वास था.
"अरे नहीं, कहीं ये और चिढ़ गईं तो..?"
"चिंता न कीजिए सर."
"ठीक है, कोशिश कर लीजिए," कहकर सुभाष सर ने अनुमति दे दी.
"मैम, कोई नीना मैम आई हैं. कह रही हैं कि विकी बाबा के स्कूल से आई हैं." नौकर ने अदब से सिर झुकाकर कहा.
'ओह! तो आ गई मैम लाइन पर.' सोचकर विनी के होंठों मुस्कान आ गई. सुबह से न्यू ईयर पार्टी की तैयारी में व्यस्त थी, पर मन नहीं लग रहा था. कुछ हज़ार रुपए के वेतन पर काम करने वाली टीचर की ये हिम्मत कि विधायक की पत्नी को स्कूल में आकर मिलने का नोटिस दे? कुछ सोचकर उसने कहला भेजा, "अभी समय‌ नहीं है?" फिर‌ सुकून से ब्यूटीशियन से‌ नेल पॉलिश लगवाने लगी. नौकर कुछ देर बाद फिर आ गया.
"मैम, वो मैम आपके लिए ये लेटर दे गई हैं."
"चली गई?.. फिर से मिलने का अनुरोध नहीं किया? नौकरी बचाने‌ नहीं आई थी, फिर क्या करने आई थी?"
विनी के दर्प को जैसे हथौड़ा सा पड़ा. शायद माफ़ीनामा लिखकर दे गई हो. ये सोचकर हाथ बढ़ाया, पर लेटर हाथ में लेते ही जैसे दिमाग़ में बिजली सी कौंध गई. गुलाबी रंग का लिफ़ाफ़ा बीच में बना एक विशेष प्रकार का स्माइली विशेष कैलीग्राफी में नीचे लिखा-
विद बेस्ट विशेस और नीचे बाएं कोने में तिरछा लिखा नीना.
नीना..! वहीं स्माइली, वही ढंग, वहीं नहीं नाम...
क्या ये वही नीना‌ है? उसकी अप्रतिम सखी.
हाथों ने कब लिफ़ाफ़ा खोला और आंखें कब
उसमें कुछ खोया ढूंढ़ने लगी विनी को ख़ुद नहीं पता चला.
आदरणीय विनी मैम,
मैं आपके बेटे के सुखद भविष्य की कामना करते हुए आपको सूचित करना चाहती हूं कि आपका पुत्र,‌ जिसमें एक नेक और योग्य इंसान बनने की सारी संभावनाएं निहित हैं, ग़लत आकार ग्रहण करने लगा है. ये मेरा सविनय आग्रह है कि उसे अभी से अपने स्नेह और अनुशासन का संतुलन दें. ध्यान रखें कि जो समाज के लिए अहितकारी होता है, वो अभिभावकों के लिए भी हितकारी नहीं हो सकता. कांटे का स्वभाव चोट पहुंचाना होता है और गुलाब का ख़ुशबू बिखेरना. कांटा चुभेगा ही, भले ही उसे माली छुए. गुलाब ख़ुशबू ही देगा, भले ही पास से गुज़रने वाला अजनबी ही क्यों न हो. आशा है, अपने पुत्र के उज्ज्वल भविष्य की ख़ातिर इस शनिवार को पर्सनल काउंसलिंग के लिए आप समय ज़रूर निकालेंगी.
शुभेच्छु,
नीना!
अध्यक्षा, नैतिक शिक्षा और मनोविज्ञान विभाग.
'वही तेवर, वही अंदाज़, वही बात करने का संक्षिप्त और प्रभावी ढंग. मिल गई नीना! कितने जतन किए थे अपनी इस बिछडी सखी को ढूंढ़ने के लिए और आज यूं अचानक...' नीना की याद आते ही शीतल पवन के मंद झकोरों की पुस्तक पर पड़ी बरसों की धूल उड़ गई थी और पृष्ठ खुली हवा में फड़फड़ाते चले गए थे. छोटे से पहाड़ी शहर की मनमोहक वादियां और उसमें हंसती-खिलखिलाती दो सखियां. नीना मेधावी होने के साथ गज़ब के आत्मबल और व्यावहारिक ज्ञान की धनी थी. समाजसेवा का शौक और सुलझी हई मानसिकता उसे अपने प्राध्यापक पिता से विरासत में मिले थे. उसकी मानसिक परिपक्वता के कारण हमउम्र साथियों से लेकर अध्यापकों तक सब उसकी इज़्ज़त करते थे. विनी दिमाग़ में औसत, पर लगभग सभी ललित कलाओं में असाधारण प्रतिभाशाली और अद्वितीय सौंदर्य की स्वामिनी थी, लेकिन जाने कितनी सुंदर चीज़ों को ख़रीदने और सभी तरह की कलाएं सीखने की चाह को उसे मन में ही दबा देना पड़ता था, क्योंकि उसे पता था कि पिता फीस के पैसे भी मुश्किल से जुटा पाते थे. ऐसे में थिएटर में डिप्लोमा करने की फीस जुटाने के लिए ट्यूशन की प्रेरणा नीना ने ही तो दी थी उसे. सिर्फ़ प्रेरणा ही नहीं, हर तरह से साथ भी दिया था.
कॉलेज के अंतिम वर्ष में थी विनी, जब वार्षिकोत्सव में विख्यात उद्योगपति अपने परिवार के साथ मुख्य अतिथि थे और वो नृत्य नाटिका की मुख्य नायिका. उनका बेटा सोम उसकी ख़ूबसूरती पर ऐसा मुग्ध हुआ कि उसने अपने पिता द्वारा विवाह का प्रस्ताव भिजवा दिया था. दो और बेटियों के विवाह तथा बेटे की पढ़ाई के ख़र्चे में उलझे उसके ग़रीब पिता को भला क्या ऐतराज़ हो सकता था? फिर तो सोम के पिता के ख़र्चे पर हुआ भव्य विवाह और हनीमून का एक महीना जैसे किसी व्यावसायिक फिल्म की तरह सपनीली दुनिया में बीता था, लेकिन सपनों की उम्र बहुत छोटी हुआ करती है. मानस पटल पर चिपक गया था वो दिन जब हक़ीक़त से सामना हआ था.
छन्न..! अचानक प्लेट टूटने की आवाज़ से विनी की तंद्रा भंग हुई. वो भागकर डायनिग रूम में पहुंची तो देखा कि कांच की प्लेट और कटोरियां बिखरी पड़ी हैं और उसका बेटा विकी नौकरों को डांट रहा है. और कोई दिन होता तो विनी उपेक्षित कर देती, पर आज नीना के पत्र का असर था.
"ये क्या तरीक़ा है बात करने का?" विनी ने बेटे को हल्के से झिड़का.
"देखो, एक तो इसने पिज़्ज़ा नहीं बनाया, ऊपर से उपदेश दे रही है."
"बेटा, ये तुम्हारे भले के लिए कह रही है."
"कोई ज़रूरत नहीं है भला-बुरा बताने की. चलो उठो, जाओ यहां से. मैं ख़ुद निपट लूंगा इन लोगों से." विकी ने चुटकी बजाकर उंगली और आंखों से निकलने का इशारा करके ऐसे लहज़े में कहा कि विनी स्तब्ध रह गई, गवर्नेस, नौकरों और ब्यूटीशियन के सामने अपमानित होने का विनी के लिए ये पहला मौक़ा था. वो तिलमिला उठी.
क्या अपने इस अपमान के लिए वो स्वयं उत्तरदायी है. उसने स्वयं ही तैयार किया है ये कांटा, जो अपने माली को चोट पहुंचा रहा है? नीना ठीक कह रही है? नीना तो हमेशा से ठीक कहती आई थी. जब सोम का रिश्ता आया था तब भी तो उसने समझाया था, "किसी फूल की सुंदरता पर मुग्ध होकर उसे तोड़कर अपने गुलदस्ते में सजा लेने को तत्पर हो जाने वाले उसके बासी होते ही उसे फेंक देने की आदत भी रखते हैं. मुझे नहीं लगता सोम तुझे वो मान-सम्मान दे सकेगा जो एक
जीवनसाथी से हर लड़की चाहती है."
लेकिन तब ये सारी बातें दार्शनिक लगा करती थीं. इनकी सच्चाई का एहसास तो उस दिन हुआ था जब बुखार में बदन टूट रहा था और अपनी तकलीफ़ बताते हुए सोम को क़रीब आने से मना करने पर भड़क गया था वो, "तुम पर लाखों इसलिए नहीं ख़र्च किए हैं कि तुम मुझे अपनी इच्छा या अनिच्छा बताओ."
"ख़र्च करने का मतलब? पत्नी हूं मैं तुम्हारी कोई र..."
"मैंने कब कहा कि पत्नी नहीं हो. पत्नी हो तो पत्नी का फ़र्ज़ निभाओ. पत्नी का ही तो काम ले रहा हूं तुमसे." सोम की दबंग और अहंकारी आवाज़ में उसका अधूरा वाक्य कुचल दिया था, बल्कि उसका पूरा वजूद कुचलकर रह गया था सोम के अय्याश और अहंकारी व्यक्तित्व के नीचे. यही नहीं, उसके गुलदस्ते के दूसरे फूलों के बारे में भी कहानियां उसके कानों में पड़ने लगी थी. वो सच्ची थी या झूठी, इसका पता करने के लिए एक दिन साहस बटोरकर उसने पूछ ही लिया था कि सोम का घर आने-जाने का या रात में घर में रुकने या न रुकने का कोई निश्चित नियम क्यों नहीं है, तो सोम ने उसे ऐसे देखा जैसे उसने कोई बड़ा गुनाह कर दिया हो.
"तुम होती कौन हो मुझसे प्रश्न करने वाली? अगर अपनी इस ख़ूबसूरती की सलामती चाहती हो, तो ध्यान रहे कि मुझे प्रतिवाद सुनने की आदत नहीं है. मैं अपने थप्पड़ों से तुम्हारा हुलिया नहीं बिगाड़ना चाहता." सोम ने हाथ उसके सिर के पीछे ले जाकर उसके बाल अपनी मुट्ठी में पकड़कर कहा और उसे हल्का-सा धक्का देकर चला गया, तो वह भय से पीली पड़ गई, तो क्या सोम हाथ भी उठा सकता है? क्या वह इतनी असहाय है?
अक्सर रोकर मन की पीर आंखों के रास्ते निकाल लेती थी वो कि एक दिन सास और सोम की बातचीत कान में पड़ी.
"ये तेरी बीवी का चेहरा दुखी क्यों रहता है आजकल? एक बात ध्यान से दिमाग़ में बिठा ले. तेरे लिए भले ही उसकी ख़ूबसूरती अय्याशी का साधन और अपनी सोसायटी के लिए स्टेटस सिंबल हो, पर मैंने रजामंदी तुझे पार्टी का टिकट दिलाने के लिए दी है. चुनाव में उसे ही भुनाना है. इसके भाई की पढ़ाई और बहन की शादी के लिए पैसे चाहिए होंगे. वो इसके मुंह पर मार, इसे घुमा-फिरा, जो भी करना है कर, लेकिन तेरी पत्नी समाज के सामने ख़ुश नज़र आनी चाहिए. तू जनता के लिए एक ग़रीब लड़की का उद्धारक है. तेरा वोट बैंक है ये. थोबड़ा ठीक कर इसका. कल शाम को इसे महिला आश्रम के चैरिटी शो में ऐसे ही चेहरे में लेकर जाएगा?"
"डोंट वरी मॉम, मुझे इसका चेहरा ठीक करना आता है." ये सोम के लापरवाह से शब्द थे. तो क्या ये शादी... विनी को सब कुछ समझ में आ गया था. सोम के लिए उसकी ख़ूबसूरती बिज़नेस पार्टियों में स्टेटस सिंबल और गरीबों के बीच वोट बैंक थी. इसीलिए उसका ख़ुश चेहरा दिखाने के लिए यदाकदा सॉरी के साथ तोहफ़ों का कम्पन्सेशन मिलता था उसे. नहीं... वो अब और नहीं सहेगी.
"मैम, आप तैयार हैं. आप कुछ सोच रही हैं? आईना देख लीजिए एक बार." ब्यूटीशियन की आवाज़ से विनी जैसे सोते से जागी. सहसा उसके मन में नीना से मिलने की हूक सी उठने लगी. एक घंटे की ड्राइव के बाद वो नीना के घर पहुंची तो नीना ताला लगाकर कहीं निकल रही थी. सामने ग्लानि से आरक्त चेहरा और आंखों में समाधान की आस लिए खडी विनी का स्वागत उसने ऐसे किया जैसे वर्षों की बिछड़ी सखियां मिलती हैं.
"मैं अभी आश्रम जा रही हूं, जहां मैं सभी वर्कर की तरह काम करती है. वहां एक समस्या आ गई है, तू भी साथ चल. रास्ते में बात करते हैं." नीना ने कहा तो विनी साथ हो ली.
रास्ते में आत्मीयता पाकर विनी के मन के ज्वालामुखी का लावा आंसुओं के रूप में फूट पड़ा. बारह वर्षों की किताब वो एक दिन में नीना को सुना देना चाहती थी. "मेरा जीवन कमरे के किसी कोने में टंगे किसी लेटर पैड की तरह बनकर रह गया है, जिसे जब चाहा इस्तेमाल करके दोबारा कील पर टांग दिया और कुछ दिनों बाद भर चुके पेजों को बेरहमी से फाड़कर फेंक दिया. जो न तो ख़ुद पर लिखी कितनी भी सुंदर चीज़ को अपना कह सकता है, न ही रीतेपन की शिकायत कर सकता है. उस पर लिखा ही जाता है काम हो जाने पर पृष्ठ फाड़कर फेंक दिए जाने के लिए." अपनी कहानी पूरी करते-करते उसकी पलकें भीग गईं.
"मगर बनने क्यों दिया तुमने ख़ुद को एक लेटर पैड? लिखने क्यों देती ही अपने ऊपर कोई झूठी इबारत? प्रतिरोध के परिणाम संभावनाओं के डर से या सोम की पत्नी के रूप में मिलने वाले धन-सम्मान के‌ लालच में?" बड़ी देर से धैर्य के साथ विनी की कहानी सुन रही नीना ने विनी की आंखों में सीधे देखते हुए बात आगे बढ़ाई.
"विनी, इंसान का मन लेटर पैड होता, तो इंसान त्रासद के पन्ने फाड़कर फेंक न देता. इंसानी मन तो एक कंप्यूटर की तरह होता है, जहां अनपेक्षित इबारत ठीक से डिलीट न की जाए, तो रिसाइकिल बिन में पहुंच जाती है. इसे अंतर्मन कहते हैं."
विनी फिर रो पड़ी, "मुझे अपने घर में गृहिणी का स्थान तक नहीं मिला, लेकिन सोम की पत्नी के रूप में जिन लोगों के सामने से जाया जाता उनकी नज़रों में मैं बड़े सम्मान का पात्र हूं. सोम ने मुझे डांसर या कोरियोग्राफर के रूप में अपनी पहचान बनाने की भी अनुमति नहीं दी.
कई बार सोम के व्यवहार से आहत होकर विद्रोह का साहस जुटाने की कोशिश की, पर कभी डर ने ये कहकर कदम थाम लिए कि सोम के सामने मेरी हस्ती हो क्या है और कभी लालच में ये तर्क देकर कि मेरी ज़िंदगी बहुतों से बेहतर है. सोम के रूप में एक दंभी और संवेदनहीन व्यक्तित्व गढ़ने का जो गुनाह मेरी सास ने किया,  वही मैं विकी को गढ़कर दोहराने लगी.
मुझे माफ़ कर दो नीना. मुझे बताओ मैं कहां ग़लत हो गई? मैं दुनिया को एक और सोम नहीं देना चाहती. मैं क्या करूं?"
नीना ने उसे एक अभिभावक की तरह प्यार से चुप कराकर कहा, "फ़िलहाल तो तू एक काम कर. तुझे डांसर बनने की ना सही, समाज सेवा की अनुमति तो है ना? हम हर न्यू ईयर पर आश्रम का वार्षिकोत्सव मनाते हैं. अतिरिक्त ज़रूरतों के लिए पैसा भी इकटठा हो जाता है और इनकी प्रतिभाओं को पहचान भी मिल जाती है. इस शो की पूरी तैयारी और इसमें लगने
वाले धन का ज़िम्मा स्वेच्छा से समाज सेवा करने वाले‌ लोग उठाते हैं. अगले हफ्ते शो है.सारे टिकट बिक गए हैं और कोरियोग्राफर ने आने में असमर्थता जता दी है. क्यों न तू इनकी मदद कर‌ दे?" ये सुनकर विनी की आंखों में चमक आ गई.
ऑडिटोरियम में पहुंचकर कॉलेज वाले माहौल से सामना होते ही विनी के मन का सुंदर और कोमल रूप जाग उठा. घुंघरू पहनते ही मन के सूने कोने झंकृत हो उठे. एक घंटे बाद जब नीना कुछ और काम निपटा कर वहां पहुंची तो विनी के साथ सारी लड़कियां नृत्य में मग्न थीं. उनके घुंघरुओं की झंकार प्रतिध्वनित हो रही थी. इतनी देर में विनी ने न केवल कोरियोग्राफी की थी, बल्कि लड़कियों को स्टेप्स भी सिखा दिए थे. नीना ने तालियों के साथ सबका मनोबल बढ़ाकर लड़कियों को वहां से जाने के लिए कहा. जाते हुए कई लड़कियों ने विनी से लिपटकर थैंक यू बोला.
तभी सोम का फोन आ गया. विनी ने फोन स्पीकर
मोड पर डाल दिया, "कहां हो तुम? यहां पार्टी में
सब मुझसे पूछ रहे हैं मिसेज कहां हैं?" तीखे लहजे में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर में विनी बोली, "एक महिला आश्रम को वॉलिंटीयर डांस टीचर की सख्त ज़रूरत थी. वहीं आई हूं. सॉरी, मैं पार्टी नहीं आ पाऊंगी."
"तुम किसी को क्या सिखाओगी? ख़ैर! गई हो तो लाख रुपए का चेक भी काट के दे देना. सिखाने-दिखाने
का एहसान कोई मानता नहीं है आजकल." सोम ने बड़ी लापरवाही से कहा.
"सुना, कैसा उपहास उड़ाने और नीचा दिखाने वाला लहज़ा है?" फोन काटते हुए विनी बोली तो नीना को अपनी ओर मुस्कुरा कर देखते पाया.
"उन्हें मैंने तो नहीं सुना, लेकिन ये ज़रूर सुना कि तुम्हारी आवाज़ बिल्कुल भी दीन-हीन नहीं थी. यहीं नहीं, तुमने सोम की पार्टी में जाने से मना करके प्रतिवाद भी किया, मुबारक हो."
"अरे, हां नीना. ये... ये कैसे हुआ?" विनी के
स्वर में आश्चर्यमिश्रित ख़ुशी थी.
नीना बड़े प्यार से उसका हाथ अपने हाथों में लेकर बोली, "तुमने सुना होगा कि युद्ध मैदानों में नहीं मन में लड़े जाते हैं. ये सब उस आत्मविश्वास के कारण संभव हुआ जो अभी-अभी अपनी अस्मिता से मुलाक़ात करने और निःस्वार्थ भाव से किसी की सहायता करने से तुम्हारे मन में जगा है. आज तुमने सोम की पत्नी नहीं, विनी बनकर किसी की सहायता की संतुष्टि मिली ना? अकेले में सोचकर देखना, ये भी तो एक रास्ता हो सकता है अपने आहत आत्मसम्मान पर मरहम लगाने का. वैसे मैं भी एक जागरूकता अभियान शुरू करने जा रही हूं, जिसमें नुक्कड़ नाटक और तरह-तरह के कार्यक्रम द्वारा लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया जाएगा, उसमें भी तुम्हारे जैसे क्रिएटिव लोगों की ज़रूरत पड़ेगी. विनी ये तो सब जानते हैं कि संतुलित आहार लेने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है, जो बीमारियों से रक्षा करती है, उसी प्रकार, मन की भी एक प्रतिरोधक क्षमता होती है, जिसे आत्मबल कहते हैं. ये हमारी मानसिकता को बीमार होने से बचाता है, इसी के सहारे हम सब जीवन की समस्याओं से जूझते हैं. इसका विकास अपनी प्रतिभाओं को पहचानकर उन्हें तराशने और दूसरों की सहायता करने से होता है. अब तू अपने जीवन की समस्याओं का क्या निराकरण निकालती है, ये तुझ पर निर्भर है. लेकिन अपनी संतान की मनोवृत्ति को दूषित होने से बचाना तेरा कर्तव्य है. तू उससे मुंह नहीं मोड़ सकती."
प्रफुल्लित विनी घर लौट रही थी. आज ऑडिटोरियम के आईन में अपनी बरसों पुरानी छवि देखकर विनी के मन में एक नया आत्मविश्वास जागा था. घर आते-आते उसने निश्चय कर लिया था कि उसे अपनी संतान की मनोवृत्ति को दूषित होने से हर हाल में बचाना है. इस काम में नीना का मार्गदर्शन उसे मिलता रहेगा, ये आश्वासन उसका मनोबल बढ़ा रहा था. रही बात उसके अपने आत्मसम्मान की, तो वो जानती थी कि समाजसेवा ऐसा क्षेत्र है, जिसके लिए सोम कभी मना नहीं करेगा और अपनी प्रतिभा के ज़रिए भी वो समाजसेवा कर सकती है. इस विचार से ही उसके पैर थिरक उठे थे. पर आकर सबसे पहले उसने अपने सर्टिफिकेट्स ढूंढ़े, फिर अपने घुंघरुओं को दीवान के अंधेरे से बाहर निकालकर झाड़ने-पोछने लगी.

भावना प्रकाश

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