सारे दिन की मेहनत मुशक्कत के पश्चात एक मुलाज़िम ने झाड़ियों को उपकरणों से टटोलते-टटोलते देखा कि एक डायरी उल्टी झाड़ियों के बीचोंबीच दबी पड़ी है. पुलिस ऑफिसर पण्डित ने वह डायरी अपने क़ब्ज़े में ले ली. उस डायरी की बाहरी जिल्द को नुक़सान पहुंचा था, परन्तु उसके पन्ने ठीक-ठाक बच गए थे.
वे शहर के एक मशहूर बाज़ार में आमने-सामने सब्ज़ी की दुकानें करते थे. दुकानों के दरमियान एक चहल-पहल वाली सड़क जाती थी. जब वे सब्ज़ी बेचते तो ज़ोर लगाकर ऊंची-ऊंची आवाज़ देते. प्रत्येक सब्ज़ी का नाम लेकर आवाज़ें छोड़ते, जैसे कोई मुक़ाबला चल रहा हो. वे दोनों कई वर्षों से सब्ज़ी की दुकानें करते आ रहे थे.
एक का नाम था पण्डित विष्णु कालिया तथा दूसरे का नाम था अमरीक सिंह. बाज़ार में वे दोनों बहुत मशहूर थे. हंसमुख, हास्य ठिठोली वाले तथा उच्च दर्ज़े के लफंगे दिखने वाले. उनको शहर की प्रत्येक वस्तु की जानकारी थी. अगर किसी ने कोई पता पूछना है तो उन दोनों से ही पूछा जाता. अगर कोई रास्ता भूल जाता है तो उनकी मदद ली जाती. जैसे शहर के इनसाइक्लोपीडिया हों.
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वे प्रत्येक आए-गए ग्राहक के ऊपर तथा बाज़ार से गुज़रते प्रत्येक व्यक्ति पर नज़र रखते कौन कहां से आया? कहां गया? किस मण्डी में आया? किधर जाना है? वे दोनों सब की ख़बर रखते. यहां तक कि बाज़ार में परिंदा फड़फड़ाता तो उसके बारे में बता देते उसका रंग-रूप, जीवनशैली, आना-जाना, रैन बसेरा, सब कुछ बता देते. कौन सा परिंदा बाज़ार के वृक्षों पर कितना समय रहता है? कब आता है, कब जाता है? उनको सब मालूम होता.
कभी-कभी उनकी दुकानें बंद भी रहतीं. जब एक दुकान बंद करता तो दूसरे की भी दुकान बंद रहती. सप्ताह में एक-दो दिन उनकी दुकानें ज़रूर बंद रहतीं. सब्ज़ी बेचने में वे बहुत लापरवाह इंसान थे. बासी हो चुकी सब्ज़ियों की कोई परवाह नहीं करते.
साधारण कपड़े, कंधों पर छोटा सा गमछा तथा उनके पास एक कापी-पेन हमेशा रहता था.
शहर के अस्पताल में एक स्मगलर (तस्कर) को जेल से पुलिस लेकर आई. उसको कोई तकलीफ़ थी. जिसकी वजह से उसे अस्पताल ले आना पड़ा. वह नामी गिरामी तस्कर था. उस पर कई इनाम रखे हुए थे. उसकी सिफ़ारिश भी उच्च दर्जे की थी. मंत्री मंडल तक उसकी पहुंच थी. उस पर हाथ डालना कोई आसान नहीं था.
एक इंस्पेक्टर राम सिंह ने उसे गिरफ़्तार किया था. राम सिंह भी बहुत दलेर पुलिस आफिसर था. उसकी महकमे में ख़ूब चलती थी. एक बड़े मंत्री से उसकी ख़ूब बनती थी.
वह उस मंत्री की प्रत्येक ज़ायज-नाज़ायज बात मानता था. उसके इशारे पर चलता था. राम सिंह ने दो नम्बर की कमाई ख़ूब कर रखी थी. क़ानून की धज्जियां उड़ा कर भी साफ़-साफ़ छूट जाता था. ग़लती की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ता था. उस पर कभी कोई इल्ज़ाम साबित नहीं हुआ था, क्योंकि वह कोई सुराख़ छोड़ता ही नीहीं था.
उस तस्कर को राम सिंह ने मत्री के कहने पर ही पकड़ा था. उस मंत्री की उस तस्कर के साथ पुरानी दुश्मनी थी.
शाम के लगभग सात बज चुके थे. अस्पताल का सिविल सर्जन डॉक्टर अपने घर में अकेला ही था. वह एक निहायत ईमानदार डॉक्टर था तथा किसी की भी सिफ़ारिश नहीं मानता था. एकदम शरीफ़ व सरल व्यक्तित्व का मालिक था वह.
सर्दियों के दिन थे. शाम के तक़रीबन सात बज चुके थे. राम सिंह डॉक्टर को मिलने आया. उसने डॉक्टर को शिष्टाचार अनुसार आदाब किया. हालचाल पूछा तो डॉक्टर ने विनम्रतापूर्वक कहा, "बताइए क्या काम है?"
राम सिंह नेअपने ही अंदाज़ में कहा, "जनाब जो तस्कर अस्पताल में है. उसको ज़हर का टीका लगा कर मार दिया जाए. यह हुक्म उच्च साहिब का है. आप तो उन्हे अच्छी तरह से जानते हैं."
डॉक्टर ने थोड़ा क्रोधित होते हुए पर विनम्रतापूर्वक कहा, "देखो किसी का भी हुक्म हो मैं नहीं मानता.
यह ग़ैरक़ानूनी काम मैं नहीं कर सकता. आपको जिससे कहना है कह दो."
राम सिंह ने विनय करते हुए कहा, "सर, आप जितना पैसा चाहें ले सकते हो, परन्तु यह काम करना ज़रूरी है."
सर्जन ने धैर्य से कहा, "प्लीज़, आप यहां से चले जाएं, नहीं तो मैं आपके उच्चाधिकारियों को सारी बात बता दूंगा. मैं यह काम किसी भी क़ीमत पर नहीं करूंगा."
क्रोध से भरा इंस्पेक्टर राम सिंह वहां से चला आया. उसे चिंता होने लगी अगर इसने मेरे बारे में उच्चाधिकारियों को बता दिया तो सारा भांडा फूट जाएगा. मेरे ऊपर केस हो सकता है.
अगले दिन राम सिंह का स्थानांतरण हो जाता है.
कुछ दिनों के पश्चात डॉक्टर की लाश रेलवे लाइन की झाड़ियों में मिलती है.
इस केस की गुत्थी सुलझाने के लिए पुलिस ने बहुत छानबीन और जांच-पड़ताल की, परन्तु कोई सुराख़ हाथ ना लगा. यह पता भी नहीं चला कि उसका क़त्ल किस ने किया है? क्योंकि डॉक्टर का क़त्ल करके उसे चारपाई सहित झाड़ियों में फेंका गया था. उसकी लाश झाड़ियों में थी तथा चारपाई उसके ऊपर थी.
पुलिस कई सप्ताह इस क़त्ल की गुत्थी सुलझाने में लगी रही, परन्तु कुछ हाथ ना लगा. आख़िर यह केस दो सीनियर ऑफिसरों के सुपुर्द कर दिया गया. एक का नाम पण्डित था, जिसे इस केस का इंचार्ज बनाया गया. सारा मामला उसे सौंप दिया गया.
पण्डित बहुत ही विवेकशील तथा निहायत ईमानदार ऑफिसर था. उसने कई पुराने केस को सफलता से निपटाया था.
पण्डित अपने साथियों के साथ डॉक्टर के घर गया. उसने घर-बाहर की एक-एक नुक्कड़ तक छानबीन कर डाली; कोई सुराख़ ना मिला.
फिर पण्डित अपने मुलाज़िमों के साथ उस स्थान पर गया, जहां डॉक्टर की लाश मिली थी. उसने अपने मुलाज़िमों को कहा, "इस जगह का बारीकी से निरीक्षण करो." झाड़ियों के ऊपर तह दर तह धूल-मिट्टी जमी हुई और थी.
सारे दिन की मेहनत मुशक्कत के पश्चात एक मुलाज़िम ने झाड़ियों को उपकरणों से टटोलते-टटोलते देखा कि एक डायरी उल्टी झाड़ियों के बीचोंबीच दबी पड़ी है. पुलिस ऑफिसर पण्डित ने वह डायरी अपने क़ब्ज़े में ले ली. उस डायरी की बाहरी जिल्द को नुक़सान पहुंचा था, परन्तु उसके पन्ने ठीक-ठाक बच गए थे.
पण्डित ने दफ़्तर जाकर उस डायरी को पढ़ा. वह डायरी डॉक्टर की थी. यह उसकी दैनिक डायरी थी. वह अपनी डायरी पर रोज़ाना लिखता होगा.
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डायरी के आख़री पन्ने पर वह सारी बातचीत लिखी थी, जो इंस्पेक्टर राम सिंह से डॉक्टर की हुई थी. लिखा था- एक पुलिस ऑफिसर राम सिंह रात के क़रीब आठ बजे मेरे घर आया. उसने मुझे कहा कि एक स्मगलर को ज़हर का टीका लगाकर मार दो, जो अस्पताल में है. मैंने उसको ऐसा करने से मना कर दिया. मैं यह काम किसी भी क़ीमत पर नहीं करूंगा. सुबह उसकी शिकायत उच्चाधिकारियों को कर दूंगा इत्यादि.
पण्डित ने सारी डायरी पढ़ने-समझने के पश्चात शाम को इंस्पेक्टर राम सिंह का पता लगाया कि वह किस शहर में तैनात है. उसका पता करने के पश्चात पण्डित ने अपने एक मुलाज़िम को राम सिंह के घर भेजा कि राम सिंह को कहे कि वह उस बाज़ार में एक पण्डित की दुकान है. उसका मालिक पण्डित विष्णु है, उससे तुरंत मिले. बहुत ज़रूरी काम है. वह सिविल सर्जन के क़त्ल के बारे में बात करना चाहता है.
मुलाज़िम राम सिंह के घर गया और उससे सारी बात कह दी. राम सिंह के पैरों तले जमीन खिसक गई. वह सुबह-सवेरे ही क़रीब आठ बजे सब्ज़ी की दुकान पर आ गया. राम सिंह को पता चल गया था कि यह पुलिस के ही बंदे हैं.
राम सिंह ने जाते ही पण्डित विष्णु कालिया को नमस्कार करते हुए विनम्रता से कहा, "मैंने आपको पहचान लिया है. मेरे लायक़ कोई भी सेवा हो तो बताएं?"
पण्डित ने कहा, "आपने डॉक्टर का क़त्ल करवाया है."
राम सिंह ने निर्भीकता से कहा, "यह बिल्कुल झूठ है. मैंने उसका क़त्ल नहीं करवाया."
"परन्तु आप डॉक्टर के घर क्या करने गए थे?"
राम सिंह ने थोड़ा घबरा कर कहा, "आप झूठ बोल रहे हैं, आपके पास क्या सबूत है?""देखो यह डॉक्टर की व्यक्तिगत डायरी है, जिसमें आपका नाम लिखा है."
राम सिंह को अपराध छुपाने का तजुर्बा था. इस मामले में वह बहुत चतुर था. वह समझ गया कि अब उसकी खैर नहीं. अब कैसे बचा जाए?
उसने कहा, "पण्डितजी जो भी कहो मैं आपको दे सकता हूं, परन्तु इस घटना के बारे में किसी को कानों कान ख़बर नहीं होनी चाहिए. मैं आपका सारी उम्र ऋणी रहूंगा."
पण्डित ने उसे धैर्य बंधाते ते हुए कहा, "प्लीज़ आप बैठें, बातचीत कर लेते हैं. मैं अपने दूसरे साथी से बातचीत करता हूं."
राम सिंह को कुछ तसल्ली हुई. वह मन ही मन सोचने लगा कि बात बन जाएगी. जो दाना डाला है काम आएगा.
राम सिंह अपराध से बचने का पुराना चतुर खिलाड़ी था. उसको काम लेना आता था.
पण्डित ने कहा, " आप चिंता ना करें. मुझे बातचीत करने दें. काम बन जाएगा."
पण्डित ने सामनेवाली सब्ज़ी की दुकान के मालिक को इशारा किया. थोड़ी देर के पश्चात वहां पुलिस के उच्चाधिकारी पहुंच गए तथा राम सिंह को गिरफ़्तार कर लिया गया.
- बलविंदर
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