लगता हो जैसे उड़ के पहुंच गया… यही सोचते हुए उसकी ओर देखी. क्या गज़ब की आंखें थीं. उसने शरारतभरी नज़रों से मुझे देखा. मैं झेंप गई. उसके बाद कॉलेज जाती, तो मेरी नज़रें उसे ही ढूंढ़ती. ना देखती तो बेचैनी सी महसूस होने लगती थी.
कॉलेज से निकलते ही हल्की-हल्की बारिश शुरू हो गई थी. हम चारों सहेलियों को रूपा, प्रिया, जिया और मैं चुलबुली, बिल्कुल अपने नाम के अनुरूप चुलबुली, बारिश में भीगना बहुत अच्छा लगता था. छाता जान-बूझकर हम लोग नहीं ले जाते हैं. हम सब चल दिए मस्ती में, ऑटो लिया और भागते-भागते कब घर पहुंच गए पता ही नहीं चला.
घर पहुंचते ही हॉल में ढेर सारे नए चेहरे को देखकर मेरा पैर जैसे चिपक गया हो धरती से.
लेकिन पापा और मम्मी ने मुझे सहज महसूस कराया. वे बोले, "बेटा आ जाओ कमरे में. अपने कमरे में जाकर जल्दी से बाल पोंछ लो वरना सर्दी लग जाएगी." मैं तो मन ही मन ख़ुश हो रही थी कि मैं तो जान-बूझकर भीगी हूं. हां कॉलेज छोड़ना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं था. इसकी वजह हमारे साथ के कुछ साथी थे.
वैसे भी समय पंख लगा कर उड़ता जा रहा है. ज़्यादा समय कहां है इस कॉलेज को छोड़ने में, एक साल बीतेंगे और हमारा ग्रेजुएशन कंप्लीट हो जाएगा. फिर आगे की पढ़ाई… कोई कहीं चला जाएगा, कोई कहीं… हम चारों सहेलियां कितना मस्ती करते रहे हैं इस कॉलेज में हम लोग ही जानते हैं. बिछड़ने का गम तो अभी से ही सता रहा है. खैर एक-एक दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है, अभी तो एक साल बाकी है.
और उससे भी ख़ास वजह है हमारे एक प्रिय मित्र, जिससे मैं बहुत प्यार करती हूं. पता नहीं ज़िंदगी में वो मुझे मिलेंगे या नहीं? खैर जो ईश्वर की मर्जी.
मां ने आवाज़ दिया, "जल्दी से तैयार हो जाओ तुम्हें देखने लड़केवाले आए हैं."
मैं तो जैसे डर सी गई. मैं दौड़ कर सीधे रसोई घर पहुंच मम्मी से लिपट गई.
"यह क्या किया आपने… मुझसे पूछा भी नहीं. कुछ जाना भी नहीं कि मैं क्या चाहती हूं. आगे का क्या करना है…" ढेर सारे सवाल एक साथ कर डाले.
"बस करो मेरी लाडो, अभी से इतने सवाल.. एक-एक करके पूछो."
मेरी आंखों से आंसू बहने लगे.
मां ने कहा, "अच्छे घर का लड़का है. अपने समाज में लोग लड़की के लिए रिश्ता देखने लड़केवालों के यहां जाते हैं और तुम कितनी क़िस्मतवाली हो कि लड़केवाले हमारी गुड़िया को देखने आ रहे हैं. यह हमारे लिए बहुत बड़ी बात है. तुम्हारी मर्ज़ी नहीं होगी, तो हम मना कर देंगे. तुम्हारी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ तुम्हारा विवाह नहीं करूंगी. मैं अपनी चुलबुली का चुलबुलापन नहीं खोना चाहती हूं." मैं मम्मी से लिपट गई.
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फिर आंखों में मोती लेकर अपने कमरे में पहुंच गई. उदास मन से तैयार होते-होते सोचने लगी कि किस तरह से राहुल से मुलाक़ात हुई थी.
मेरा कॉलेज में नामांकन थोड़ा विलंब से हुआ था, लेट फाइन के साथ. मेरा कॉलेज का आज पहला दिन था. मैं डरते-डरते एक लड़के से पूछी, "जियोग्राफी का क्लास किधर है?" उसने कहा, "बाएं से जाओ. वहां एक सीढ़ी मिलेगी. ऊपर पहुंचकर दाएं मुड़ जाना, वही तीसरा क्लास जियोग्राफी का है."
मैंने कहा, "जी शुक्रिया." और अपनी मंज़िल की ओर कदम बढ़ाने लगी. अपने क्लास पहुंच गई. देखती हूं कि वो लड़का मुझसे पहले आकर बैठा हुआ है. यह कैसे हुआ? मैं भी तो सीढ़ी से आई थी. मैंने तो उसे नहीं देखा. लगता हो जैसे उड़ के पहुंच गया… यही सोचते हुए उसकी ओर देखी. क्या गज़ब की आंखें थीं. उसने शरारतभरी नज़रों से मुझे देखा. मैं झेंप गई. उसके बाद कॉलेज जाती, तो मेरी नज़रें उसे ही ढूंढ़ती. ना देखती तो बेचैनी सी महसूस होने लगती थी.
तब तक कई लड़कियों से दोस्ती भी हो गई. वो सभी चिढ़ाने लगीं, "तुम्हें प्यार हो गया है."
मैं बोली, "मुझे तो उसका नाम भी नहीं मालूम."
"चल झूठी. हम लोग एक साथ क्लास में पूरे दिन रहते हैं और नाम भी नहीं मालूम."
"सच्ची मुझे उसका नाम नहीं मालूम."
"पर उसे तो तुम्हारा नाम पता है."
"उसने मेरा नाम क्यों पता किया?" मैंने सवाल किया.
सहेली ने कहा, "वो भी तुम्हें बहुत पसंद करता है. शायद तुमसे प्यार करता है."
तब मैंने अपनी सहेली से उसका नाम पूछा.
उसने कहा, "राहुल."
सहेलियों की बातों को सुन मेरे हृदय में जैसे प्रेम के पंख लग गए और मन राहुल संग विवाह के सपने देखने लगा. तभी मां ने पुकारा, "अरे बेटा, तैयार हो गई क्या?"
"हां आई…" कहते हुए अपनी बुआ के साथ नीचे हॉल में आई, जहां लड़केवाले बैठे हुए थे. साथ में लड़का भी देखने आया था, लेकिन मैं नज़रें इतना नीचे की हुई थी कि मुझे किसी के चेहरे नहीं दिखे.
उधर से जब कहा गया कि हमारी तरफ़ से रिश्ता पक्का है. तब लड़के के बहन-बहनोई ने कहा, "समय बदल गया है, लड़का-लड़की आपस में कुछ देर बात कर लें तो अच्छा रहेगा."
सब ने सहमति दे दी. ऊपर के कमरे में पहले मैं गई पीछे से लड़के को भी लाया गया. मुझे तो यह शादी करनी ही नहीं थी, इसलिए मैं उल्टा मुंह करके बैठ गई. मुझे ना तो लड़का देखना है, ना शादी करनी है.
तभी कानों को एक जाना-पहचाना आवाज़ सुनाई दिया, "हमारे प्यार का पैग़ाम स्वीकार नहीं करोगी चुलबुली."
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मैं पलट गई. देखती हूं सामने राहुल है. मैं झट से उसके गले लग गई.
"यह सब कैसे हुआ?"
"बस कुछ मत पूछो. मैंने दीदी और जीजाजी को सारी बातें बताईं. उन्होंने ही सारा कुछ सेटिंग कर दिया. ज़्यादा मत पूछो. बताओ राहुल के प्यार का पैग़ाम तुम्हें स्वीकार है."
"हां मुझे स्वीकार है."
दोनों परिवारवालों की रजामंदी के बाद हमारा प्यार परवान चढ़ाने लगा.
- डॉ. कुमारी रिचा
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