Close

कहानी- प्यार का गुलाल (Short Story- Pyar Ka Gulal)

मां की तेज़ आवाज़ सुनकर सभी ने नाचना-गाना बंद कर दिया. विभोर, उसके पिता सभी अंदर भागे. विधि की हालत देखकर विभोर सकपका गया. वो लगातार रोए जा रही थी, “बहुत जलन हो रही है मां.” “कितनी बार मना किया है, यूं जबरन किसी को रंग मत लगाओ, पर ये तो दीवाना हो जाता है होली में. शादी हो गई है, पर समझ अभी तक नहीं आई.”

ससुराल में विधि की यह पहली होली थी. पिछले दिसंबर में ही उसकी शादी विभोर से हुई थी. कुल तीन महीने हुए थे शादी को, घर के सभी सदस्य उससे अभी भी नई नवेली दुल्हन की तरह ही व्यवहार करते और विभोर, वो तो उसे पलकों पर बिठाकर रखता था. इतना प्यार करने वाला पति और इतना अच्छा ससुराल पाकर विधि को अपनी क़िस्मत पर बड़ा नाज़ था.

होली के आठ दिन पहले से ही घर में पकवान बनना शुरू हो गए थे. मीठी, नमकीन, गुझिया जो विभोर को पसंद थी, उसकी सासू मां ने विशेष तौर से बनाई थीं. विधि भी सासू मां का हाथ बंटाकर पकवान बनाना सीख रही थी. उसके छोटे देवर देवेश ने जब बताया कि विभोर भैया को होली खेलने का बहुत शौक है, तो एक बार वो मन ही मन डर गई. उसके पीहर में उसके पापा को होली खेलना पसंद नहीं था, इसलिए घर में मां, दीदी कोई भी होली नहीं खेलता था. होली से एक दिन पहले पापा अपने दोस्तों के फॉर्म हाउस आ जाते थे. दिनभर वे वहीं खेतों के खुले वातावरण में घूमते, खाना खाते, मिठाइयां खाते और देर रात घर वापस आ जाते. विधि ने इतने शौक से होली का त्योहार मनाते कभी नहीं देखा था.

उसने अपनी सासू मां से पूछा, “मां, क्या सचमुच विभोर को होली खेलने का बड़ा शौक है?”

“अरे पूछो मत भाभी, आप देखना विभोर भैया कितना हुड़दंग मचाते हैं.”

“अपने दोस्तों के साथ मिलकर ढोल-बाजा, नाचना… सच, बड़ा मज़ा आता है.” बीच में ही उसके देवर ने ख़ुश होकर बताया.

यह भी पढ़ें: पति-पत्नी का रिश्ता दोस्ती का हो या शिष्टाचार का? क्या पार्टनर को आपका बेस्ट फ्रेंड होना ज़रूरी है? (Should Husband And Wife Be Friends? The Difference Between Marriage And Friendship)

“अरे तू परेशान मत हो बेटा, अगर तुझे पसंद नहीं, तो मैं सबको मना कर दूंगी. कोई तुझे रंग नहीं लगाएगा. तेरा मन हो तो खेलना होली.” सासू मां ने नई बहू को समझाया.

आज होली थी. बाहर आंगन में सुबह से ही ज़ोर-ज़ोर से होली के गाने बज रहे थे. सुबह के नौ बजते-बजते पड़ोसियों, रिश्तेदारों का आना शुरू हो गया था. ससुरजी, सासू मां, मेहमानों की आवभगत में लगे थे. सब एक-दूसरे को गुलाल लगाते, होली की बधाई देते, मिठाई, नमकीन खाते, फिर सभी मिलकर अगले घर का रुख़ करते. ये सब देखना विधि को बड़ा अच्छा लग रहा था, पर विभोर कहीं नज़र नहीं आ रहा था. वो सुबह से ही ग़ायब था. तभी बाहर ज़ोर-ज़ोर से ढोल बजने की आवाज़ आने लगी. ‘होली है-होली है’ का शोर सुनाई दे रहा था. लगा कोई हुड़दंगी बालकों की टोली है, जो हरे, पीले, नीले रंगों में सराबोर झूम-झूम कर नाच रहे थे. “भैया आ गए.” कहकर देवेश बाहर भागा. विधि रसोई में खड़े होकर सारा नज़ारा देख रही थी. उसने कल ही विभोर को मना कर दिया था कि उसे रंग न लगाएं. उसे होली खेलना पसंद नहीं. “कल की कल देखेंगे,” विभोर ने शरारत से उत्तर दिया था. अचानक विभोर अपने दोस्तों के साथ अंदर रसोई में खड़ी विधि के पास आ गया और उसके लाख मना करने पर भी महरा गुलाबी रंग उसके गालों पर मल दिया. एक दोस्त ने तरल रंग की पूरी शीशी उसके बालों में उड़ेल दी. तब तक सासू मां “अरे मानो, बहू को रंग मत लगाओ” कहती हुई अंदर आईं, लेकिन तब तक एक दोस्त ने रंग घुले पानी की पूरी बाल्टी विधि पर डालकर उसे भिगो दिया. विधि की ये हालत देख विभोर अपने दोस्तों के साथ ठहाका लगाकर हंस दिया. ‘होली है.’ कहकर फिर सभी ढोल की थाप पर नाचने लगे. “अरे बहू, क्या हुआ?” सासू मां ने देखा विधि दर्द के मारे चिल्ला उठी थी. उसकी आंख, नाक, मुंह सभी में रंग भर गया था. शायद तेज़ जलन हो रही थी. उन्होंने तुरंत साफ़ पानी से विधि को मुंह धोने को कहा, पर विधि की जलन कम होने की बजाय और बढ़ गई थी. बहू की ये हालत देख वे घबरा गईं. उन्होंने ज़ोर से विभोर को आवाज़ लगाई, “विभोर,  यहां आ… देख, बहू को क्या हो रहा है!” मां की तेज़ आवाज़ सुनकर सभी ने नाचना-गाना बंद कर दिया. विभोर, उसके पिता सभी अंदर भागे. विधि की हालत देखकर विभोर सकपका गया. वो लगातार रोए जा रही थी, “बहुत जलन हो रही है मां.” “कितनी बार मना किया है, यूं जबरन किसी को रंग मत लगाओ, पर ये तो दीवाना हो जाता है होली में. शादी हो गई है, पर समझ अभी तक नहीं आई.”

यह भी पढ़ें: ससुराल के लिए खुद की ऐसे करें मानसिक रूप से तैयार… ताकि रिश्तों में बढ़े प्यार और न हो कोई तकरार (Adapting in A New Home After Marriage: Tips & Smart Ways To Adjust With In-Laws)

“चलो, बहू को डॉक्टर के पास ले चलें.” विभोर के पिता ने नाराज़ होकर उसे डांट लगाई. होली का ख़ुशनुमा माहौल उदासी में बदल गया. विधि को पास के अस्पताल के डॉक्टर को दिखाया गया. डॉक्टर ने बताया रंग में ज़हरीला केमिकल मिला हुआ था, जिसके कारण विधि के पूरे मुंह में लाल-लाल दाने और बड़े-बड़े चकत्ते उभर आए थे. त्वचा बुरी तरह छिल गई थी, “भगवान का शुक्र था कि रंग आंखों में नहीं गया, नहीं तो” सोचकर ही सासू मां घबरा गईं. पूरे बालों में भी रंग ने असर दिखाया था. विधि के सुंदर रेशमी बाल उलझकर टूटने लगे थे. कई दिनों तक इलाज और परहेज़ के बाद भी विधि के मुंह पर, गालों पर छोटे-छोटे निशान अभी भी बाकी थे. पार्लर में बालों का ट्रीटमेंट कराया गया, सुंदर लंबे बाल काटकर छोटे करने पड़े.

“अपनी ख़ुशी के लिए दूसरों का कितना नुक़सान होगा, अक्सर होली की तरंग में आकर हम ये भूल जाते हैं. होली प्यार का, परस्पर सौहार्द का त्योहार है. अबीर-गुलाल से लगाया गया छोटा-सा टीका भी होली की गरिमा बनाये रखता है. यूं इस तरह हुड़दंग मचाना, दूसरों को गिराना, कीचड़ लगाना, केमिकलयुक्त रंग लगाना, ये इस त्योहार का विकृत रूप दर्शाते हैं. परस्पर रंग इसलिए लगाते हैं कि हम सब समान हैं, बराबर हैं, यही इस त्योहार का मूल संदेश है. ख़ुशियों पर सबका बराबर हक़ है, चाहे वो छोटा हो या बड़ा, कुछ समझे?” मां का इतना बड़ा उपदेश सुनकर विभोर अपराधबोध से ग्रस्त हो गया. उसकी एक नादानी की इतनी बड़ी सज़ा विधि को मिली थी. उसने बार-बार विधि से माफ़ी मांगी. दोनों के संबंधों में भी एक तनाव-सा आ गया था. मार्च का महीना फिर आने को था यानी होली फिर आने को थी, लेकिन इस बार विभोर ने कसम खा ली थी कि वो पिछले साल वाली ग़लती अब नहीं दोहराएगा. वो होली ही नहीं खेलेगा. आख़िर होली का दिन आ ही गया, आज विभोर अपने कमरे में ही था. उसने सबसे कह दिया था कि उसके दोस्तों को बाहर से ही विदा कर दें. खिड़की के पास खड़ा वो बाहर का नज़ारा देख रहा था. शरारती बच्चों की टोली ‘होली है’ का शोर मचाती एक-दूसरे को रंग लगा रही थी. “आज होली नहीं खेलोगे?”, विधि की आवाज़ सुनकर विभोर पलटा, उसने देखा हाथ में गुलाल लिए विधि खड़ी थी. उसने थोड़ा-सा गुलाल विभोर के माथे और गाल पर लगा दिया. “होली की हार्दिक शुभकामनाएं!” विभोर ने मुस्कुराकर गुलाल का एक छोटा-सा टीका विधि के माथे पर लगा दिया. प्यार से लगाया गया गुलाल का एक छोटा-सा टीका विधि के सौंदर्य को और बढ़ा गया. “चलो, बाहर सब तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं”

“पर…”

“पर-वर कुछ नहीं.” विभोर का हाथ खींचते हुए विधि उसे बाहर ले आई. पूरे परिवार वाले आपस में अबीर-गुलाल लगा रहे थे. मां-पिताजी के चरणों में गुलाल डालकर विभोर बोला, “होली की शुभकामनाएं आप सभी को.”

यह भी पढ़ें: 35 छोटी-छोटी बातें, जो रिश्तों में लाएंगी बड़ा बदलाव (35 Secrets To Successful And Happy Relationship)

“तुम्हें भी.” छोटे भाई देवेश ने हवा में गुलाल उड़ाकर कहा. ढोल पर हुड़दंग मचाती कोई टोली ‘होली है’ का शोर मचाती, नाचती-गाती जा रही थी, उन्हें देखकर विभोर मुस्कुरा दिया. फिर थोड़ा गुलाल हवा में उड़ाकर वो भी बोला ‘होली है!’

मीनू 'उषा किरण'

अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

अभी सबस्क्राइब करें मेरी सहेली का एक साल का डिजिटल एडिशन सिर्फ़ ₹599 और पाएं ₹1000 का कलरएसेंस कॉस्मेटिक्स का गिफ्ट वाउचर.

Share this article