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कहानी- पूर्वाग्रह (Short Story- Purvagraha)

लेकिन पति महेन्द्र से बबीता की मनोदशा व चिड़चिड़ेपन का कारण छुपा नहीं है. वह भली-भांति जानते हैं कि बबीता किस बात को लेकर इतना अधिक परेशान है, किंतु वह भी क्या करें!..
वे समझ ही नहीं पा रहे हैं कि वे बबीता को किस तरह से इस पूर्वाग्रह के जाल से बाहर निकाले.

किटी पार्टी में चल रहे हंसी-ठिठोली और मौज-मस्ती के मध्य अचानक माहौल गंभीर हो गया. जब मिसेज बासु ने हंसते हुए मिसेज जोशी से कहा, "और बबीता बहू कब ला रही हो, अब तो तुम्हारे बेटे की पढ़ाई भी पूरी हो गई है और उसे जॉब करते हुए भी तीन साल हो गए हैं."
मिसेज बासु यानी सुषमा का इतना कहना था कि बबीता के चेहरे का रंग ही बदल गया. अब तक जो हर लतीफे में ठहाके लगा रही थी एकाएक गंभीर मुद्रा में आ ग‌ई और चिढ़ते हुए बोली, "तुम्हें मेरे बेटे की शादी की बड़ी चिंता है, तुम अपने बेटे के बारे में क्यों नहीं सोचती. तुम्हारा बेटा भी तो शादी के लायक हो गया है."
सुषमा ने तो बस यूं ही बबीता से सामान्य सा प्रश्न किया था. उसे इस बात का इल्म भी नहीं था कि उसके इस छोटे से सवाल पर बबीता इस तरह से बिदक या भड़क जाएगी. बबीता का अचानक तैश में आ जाना सभी को हैरान कर गया. सुषमा भी समझ नहीं पाई कि आख़िर उसने ऐसा क्या पूछ लिया कि बबीता इतनी ख़फ़ा हो गई. सुषमा अपना पक्ष रख पाती या कोई जवाब देती इससे पहले ही बबीता वहां से यह कहते हुए ग़ुस्से में तमतमाती हुई निकल गई कि मुझे इस तरह के व्यक्तिगत सवाल बिल्कुल पसंद नहीं है.

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बबीता वैसे तो बहुत ही समझदार, हंसमुख  और खुले विचारों की महिला है, लेकिन कुछ समय से उसके व्यवहार में आ रहे परिवर्तन से सभी हैरान हैं. बेटा मेहूल भी समझ नहीं पा रहा है कि आख़िर उसकी मां किस बात को लेकर इतनी चिंतित रहने लगी है. हर छोटी सी बात पर वह इतना क्यों बिगड़ जाती हैं. लेकिन पति महेन्द्र से बबीता की मनोदशा व चिड़चिड़ेपन का कारण छुपा नहीं है. वह भली-भांति जानते हैं कि बबीता किस बात को लेकर इतना अधिक परेशान है, किंतु वह भी क्या करें!..
वे समझ ही नहीं पा रहे हैं कि वे बबीता को किस तरह से इस पूर्वाग्रह के जाल से बाहर निकाले. बबीता को कैसे समझाए कि उनका बेटा शादी के बाद भी उनका ही रहेगा. शादी के बाद बेटे अपने माता-पिता से दूर नहीं हो जाते और ना ही बेटे की शादी का अर्थ यह होता है कि अब बेटा उनका नहीं बहू का हो गया है.
हर माता-पिता का यह दायित्व बनता है कि वह अपने बच्चों का विवाह समय से कर दें, किन्तु बबीता अपने बेटे को खो देने के डर से उसका विवाह करने के लिए स्वयं को मानसिक रूप से तैयार ही नहीं कर पा रही है, जो बबीता के तनाव व चिड़चिड़ेपन का मुख्य कारण है.
असल में बबीता के दिमाग़ में अपनी बड़ी बहन की कही वह बात घर कर गई है कि आजकल की आज़ाद ख़्याल व कामकाजी लड़किया बड़े-बुज़ुर्गो का सम्मान नहीं करती. उनका ख़्याल नहीं रखतीं, अपने सास-ससुर व पति के परिवार के साथ नहीं रहना चाहती.
आजकल की पढ़ी-लिखी लड़कियां शादी के फ़ौरन बाद ही अपने पति के साथ अलग रहना पसंद करती हैं. बबीता को ऐसा लगता है कि जैसे ही वह अपने बेटे मेहूल की शादी करेगी मेहूल की पत्नी उसके इकलौते बेटे से उसे अलग कर देगी. बबीता के मन के भीतर बैठा यह भय अब उसके व्यक्तित्व  व व्यवहार को प्रभावित करने लगा है.

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किटी पार्टी से बबीता ग़ुस्से में बुदबुदाते हुए बाहर निकल आई, तभी उसे याद आया कि घर के लिए कुछ सामान भी लेना है तो वह टैक्सी ले बाज़ार चली गई. सामान ख़रीदने के पश्चात जब वह टैक्सी स्टैंड की ओर जा ही रही थी, तभी अचानक तेज रफ़्तार से आती हुई बाइक बबीता को पीछे से टक्कर मार कर वहां से निकल ग‌ई. बबीता सामान सहित रोड़ पर गिर पड़ी, यह देख आस-पास के लोगों की वहां भीड़ जमा हो गई. इतने में भीड़ को चीरती हुई एक लड़की वहां आई और बड़े ही आत्मीयता के संग बबीता को सहारा देकर उठाती हुई बोली, "आंटी पहले आप यह पानी पीजिए. शुक्र है आपको ज़्यादा चोट नहीं आई है. आप मेरे साथ मेरी कार में चलिए, यहीं पास में ही एक क्लिनिक है. आपको यह जो छोटी-मोटी चोट आई है उसे हम डॉक्टर को दिखा देते हैं, फिर मैं आपको आपके घर छोड़ दूंगी."

बबीता कुछ समझ नहीं पा रही थी कि वह क्या करें, लेकिन उस लड़की ने बड़ी ही कुशलता के संग सब कुछ सम्हाल लिया. पहले बबीता को डॉक्टर के पास ले ग‌ई और फिर सकुशल उसे घर तक भी छोड़ने आई. जब वह लड़की बबीता को छोड़ कर जाने लगी तो बबीता ने उससे कहा, "थोड़ी देर और रूक जाओ, मेरे पति और  बेटा आते ही होंगे उनसे भी मिल कर चली जाना."
बबीता के ऐसा कहने पर वह बोली, "नहीं आंटीजी फिर कभी आऊंगी, आज मेरा सेकंड शिफ्ट में ड्यूटी है और मैं वैसे भी लेट हो गई हूं."
इतना कह वह चली गई. लेकिन इस घटना और उस अपरिचित लड़की का नि:स्वार्थ सहयोग व अपनत्व बबीता के मन का यह डर निकालने के लिए काफ़ी था कि आजकल की पढ़ी-लिखी व आज़ाद ख़्याल लड़कियां बेपरवाह होती हैं. बड़े-बुज़ुर्ग का सम्मान नहीं करतीं, घर-परिवार व अपने कर्तव्य का महत्व नहीं समझतीं या फिर स्व केंद्रित होती हैं.

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अब बबीता अपने पूर्वाग्रह के बंधन से मुक्त हो चुकी थी और जल्द से जल्द अपने बेटे मेहूल का विवाह निर्भय होकर करने के लिए तैयार थी.

डॉ. प्रेमलता यदु

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