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कहानी- पोस्ट इट (Short Story- Post It)

उस संदेश में कोई ख़ास बात तो नहीं थी, पर पता नहीं क्यों सुमन के सुखे मुरझाए होंठों पर एक मुस्कान आ गई. यह क्या एहसास था? उसे वह समझ नहीं पा रही थी, पर जो भी था उसे वह अच्छा लग रहा था. एक पोस्ट इट संदेश ने धीरे-धीरे सुमन के जीवन में रंग भरने शुरू कर दिए थे.

कभी-कभी गुलाबी, नीले, पीले रंगों में लिपटे कुछ शब्द, शहद में भीगे हुए से महसूस होते हैं. यह चंद शब्द जीवन में ऐसी जादू की छड़ी घुमाते हैं कि ज़िंदगी का कलेवर ही बदल जाता है. प्रेम और संवेदनाएं ऐसी चीज़ें हैं, जो जीवन में आए बड़े से बड़े अवसाद और दुख को धो देती हैं. जो ज़िंदगी कभी रेंग भी नहीं सकती थी, वह प्रेम के पंख लगते ही उड़ने लगती है. इन्हीं रंगों और मिठास का इंतज़ार करते-करते, सुमन अपने ही जीवन से नाउम्मीद होती जा रही थी.
दोपहर के दो बजे थे, घर पर कोई भी नहीं था. सुमन का कमरा उसकी ही तरह फैला हुआ था. कमरे की हालत देखकर ऐसा लग रहा था मानो यहां कोई जंग लड़ी गई हो, पर असली जंग तो सुमन के मन-मस्तिष्क में चल रही थी.
सुमन 30 वर्षीया युवती थी, जो आज के परिप्रेक्ष्य में सर्वगुण संपन्न थी. स्कूल से लेकर कॉलेज तक हमेशा क्लास में अव्वल आती थी. इंजीनियरिंग की डिग्री भी उसने अच्छे नंबरों से पास की थी. अच्छी कंपनी में नौकरी भी कर रही थी और अच्छा-ख़ासा कमा भी लेती थी. ऑफिस में लोग उसके काम को काफ़ी मानते भी थे. अगर सब कुछ सही था, तो सुमन की ज़िंदगी इतनी बिखरी हुई क्यों थी.
सुमन अपने बिस्तर पर किसी फटी चादर सी बिछी हुई थी. आंखों के नीचे आया कालापन बता रहा था कि वह कई रातों से सोई नहीं थी. बिखरे हुए बाल, सूजी आंखें उसके रूप को भयावह बना रही थे. उस बेहोशी की अवस्था में भी उसके कानों में बड़ी मां के कहे शब्द गूंज रहे थे, “छोटी बहू अपनी बिटिया को अब तुम जोगन ही बना दो. शादी-ब्याह तो इसका होने से रहा. हम कब से कह रहे थे, इतना
पढ़ने-लिखने पर पैसा झोंकने से अच्छा है कि इसका वज़न कम करने के लिए ही दो कौड़ी गंवाते, कम से कम शादी तो हो जाती लड़की की. बोल-बोल कर हमारी तो ज़ुबान ही सूख गई है कि शादी डिग्री देखकर ना होती, उसके लिए रंग-रूप और सुडौल शरीर की ज़रूरत होती है. तीस की हो गई है, हमें क्या छाती पर मूंग दलने दो उम्र भर.”


सुमन के वज़न के कारण न स़िर्फ उसे, बल्कि उसके माता-पिता को भी उलाहनों का सामना करना पड़ता था. सुमन अपने शरीर के वज़न से उतनी परेशान नहीं थी, जितनी परेशान वह समाज और रिश्तेदारों के तानों के वज़न से थी. बार-बार अपने माता-पिता को बिना किसी ग़लती के सबके सामने सिर झुकाकर खड़े देखना उसके लिए अब दूभर होता जा रहा था.
ऐसा नहीं है कि सुमन ने अपना वज़न कम करने के लिए कुछ नहीं किया. उसने जुंबा, जिम, योगा सब आज़माया, पर वज़न है कि हिलने का नाम नहीं ले रहा था. समय के साथ सुमन का यह वज़न उसका अवसाद बन गया. घरवालों के अथक प्रयासों के बावजूद उसका रिश्ता भी कहीं नहीं हो पा रहा था.
शुरुआत में तो सुमन सबसे लड़ती-झगड़ती, सबको उटपटांग जवाब देती, पर धीरे-धीरे वह बिल्कुल चुप हो गई. आज बड़ी मां के कटु शब्दों ने तो जैसे ज़हर का काम कर दिया. यह हलाहल वह आज पचा नहीं पा रही थी. वह कुछ सोचते हुए अपने बिस्तर से उठी. आलमारी से एक दुपट्टा निकाला और उससे पंखे पर एक फंदा बनाया.
उसने आज अपने जीवन को ख़त्म करने का निर्णय ले लिया था. बिस्तर पर स्टूल रखकर उस पर खड़ी ही हो रही थी कि दरवाज़े की घंटी बजी. सुमन ठिठक गई. उसका मस्तिष्क अपनी संवेदनाओं में नहीं था. स्थिति के साथ तालमेल बैठाने में उसे कुछ समय लगा. तब एक बार फिर घंटी बजी. सुमन को लगा कि शायद घरवाले जल्दी लौट आए. उसने अपने आपको संभाला, आंखें पोंछी, पंखे से फंदा उतारा और दरवाज़े की और चल दी. घंटी फिर से बजी.
सुमन ने जैसे ही दरवाज़ा खोला, बाहर खड़ा व्यक्ति झुंझलाहट में बोला, “क्या मैडम, कितना टाइम लगा दिया? अब एक पार्सल के पीछे क्या अपना पूरा दिन बर्बाद कर दें.” ऐसा कहते हुए उसने सुमन के हाथ में एक पैकेट थमाया और चला गया. सुमन ने पार्सल देखा, वह उसी के नाम का था. उसे जिज्ञासा हुई कि उसे कौन और क्या भेज सकता हैे. उसने खाकी रंग का लिफ़ाफ़ा खोला, तो अंदर स़फेद रंग का एक और लिफ़ाफ़ा था. जिस पर हरे रंग का एक पोस्ट इट नोट भी लगा हुआ था. जिस पर कुछ लिखा था. सुमन ने उसे बिना पढ़े ही अलग रख दिया और स़फेद लिफ़ाफ़ा खोला. लिफ़ा़फे में सुमन की डिग्रियां और सर्टिफिकेट्स थे. उसे देखते ही सुमन को याद आया कि अभी कुछ दिनों पहले वह इंटरव्यू देने गई थी और उसकी पूरी फाइल ही कहीं खो गई थी.
उन डिग्रियों को देखते हुए वह सोच रही थी कि अब मेरे यह सब किस काम का? मैं इनका क्या करूं? मेरे लिए अब यह सब बेमानी है. यह काग़ज़ के टुकड़े समाज में मुझे इज्ज़त तो नहीं दिला सकते हैं और ना ही मेरी शादी करवा सकते हैं. चाहे सुमन कुछ भी सोच रही हो, पर आज डिग्रियों के उस पैकेट ने उसका जीवन बचा लिया था.
अब उसका मस्तिष्क कुछ शांत हो गया था. वह हाथ-मुंह धोकर कमरे में लौटी, तो उसे याद आया कि उसे पैकेट के साथ एक पोस्ट इट नोट भी मिला था. वह सफ़ेद लिफ़ा़फे पर चिपके उस पोस्ट इट नोट को पढ़ने लगी. हेलो सुमनजी,
मुझे आपकी फाइल बस की सीट पर मिली. आपका नाम और घर का पता मुझे आपकी फाइल से ही मिला. आप फाइल मिलने की सूचना मुझे जरूर दें. अपना पता व फोन नंबर भेज रहा हू्ं.
आशुतोष
उस संदेश में कोई ख़ास बात तो नहीं थी, पर पता नहीं क्यों सुमन के सूखे मुरझाए होंठों पर एक मुस्कान आ गई. यह क्या एहसास था, उसे वह समझ नहीं पा रही थी, पर जो भी था उसे वह अच्छा लग रहा था. एक पोस्ट इट संदेश ने धीरे-धीरे सुमन के जीवन में रंग भरने शुरू कर दिए थे.


सुबह की घटना को रात तक सुमन भूलती गई. अपने बिस्तर पर जब लेटी, तो पोस्ट इट उसके हाथ में ही था. वह बार-बार संदेश पढ़ रही थी. कुछ सोच कर वह बिस्तर से उठी और अपने टेबल पर गई. उसने दराज़ से पोस्ट इट निकाला और उस पर लिखना शुरू किया.
हेलो आशुतोष,
मेरी फाइल लौटाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद. इसे भेज कर आपने मेरी बहुत मदद की है.
सुमन
लिफ़ाफ़ा सुमन ने एक अनजानी अपेक्षा से भेजा था, अपेक्षा जवाब की.
आठ-दस दिनों तक कोई जवाब नहीं आया, तो सुमन ने ख़ुद को समझाया. ‘मैं भी कैसी पागल हूं. कोई भला धन्यवाद का जवाब क्यों भेजेगा. यह तो बहुत सामान्य सी घटना थी कि किसी राह चलते को मेरी फाइल मिली और उसने इंसानियत के नाते मुझे वह वापस भेज दी. लेकिन यह बात तो है कि वह पोस्ट इट संदेश ज़रूर ईश्‍वर ने ही भिजवाया है, क्योंकि उस एक संदेश ने मुझे उस समय अपनी बेहोशी से बाहर निकाला.’
ख़ुद को ऐसा समझाकर सुमन ने फिर से एक बार अपने थके हुए जीवन को जीना शुरू किया. फिर एक बार वही लोगों के ताने और हर कदम पर वज़न कम करने के उपाय देते शुभचिंतक. वज़न बढ़ने के डर से सुमन ने खाना छोड़ दिया, कसरत करते-करते दर्द से बेहाल हो गई, फिर भी वज़न है कि कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था. उस पर उसे शादी के लिए रिजेक्ट करनेवालों की ़फेहरिस्त बढ़ती ही जा रही थी.
सुमन अक्सर सोचती कि समाज दूसरों से बुरा व्यवहार करनेवाली सुंदर स्त्री को स्वीकार करता है, पर ज़रा रूप-रंग में उन्नीस-बीस हुआ, तो स्त्री रिजेक्ट हो जाती है. उसके मन में यह बात पक्की हो गई थी कि मोटे-भद्दे लोगों का समाज में कोई स्थान नहीं है और ना ही उन्हें कोई स्वीकार करता है.
सुमन की सोच बिल्कुल ग़लत नहीं थी, पर उसे मालूम न था कि जीवन उसे बहुत सुंदर उपहार देनेवाला है. वह कहते हैं ना, जब रात सबसे ज़्यादा काली होती है, तभी ख़ूबसूरत सवेरा होता है और वह सवेरा सुमन के जीवन में भी आया.
दरवाज़े की घंटी बजी. मां ने दरवाज़ा खोला और सुमन को आवाज़ लगाई, “सुम्मी  ओ सुम्मी, देख तेरे लिए कोई लिफ़ाफ़ा आया है. सुमन ऑफिस जाने की तैयारी में थी. वह आवाज़ सुनते ही दरवाज़े की ओर लपकी. उसे अंदेशा हो गया था कि वह लिफ़ाफ़ा किसने भेजा है. उसने लिफ़ाफ़ा लिया और उसे खोला. इस बार लिफ़ा़फे के अंदर दो पोस्ट इट लगे थे. सुमन की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा. उसने कमरे का दरवाज़ा बंद किया और पोस्ट इट संदेश पढ़ने लगी.
हेलो सुमनजी,
आपका जवाब देखकर अच्छा लगा. क्षमा चाहता हूं कि मुझे जवाब भेजने में ज़रा देर हो गई. वैसे आपकी लिखावट बहुत सुंदर है. आपके सर्टिफिकेट्स से पता चला कि आप पढ़ने-लिखने में भी काफ़ी अच्छी हैं. अगर आपको आपत्ति ना हो, तो मैं पूछना चाहूंगा, कि क्या आप कहीं नौकरी करती हैं?

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इस सवाल का जवाब तो सुमन को देना ही था. सुमन ने तुरंत अपने दराज़ से पेन और एक चटकीले रंग का पोस्ट इट निकाला और उस पर अपने बारे में सारी जानकारी लिख भेजी.
अब संदेशों का यह सिलसिला निरंतर चलने लगा. उन दो-तीन पंक्तियों के संदेश का सुमन बेचैनी से इंतज़ार करती. उसके जीवन में एक अनदेखी-अनजानी सी लहर आ गई थी. वह इस पोस्ट इट रिश्ते में खुलकर सांस ले रही थी. उसे पता था, यहां कोई उसके रंग-रूप या वज़न को जज नहीं करेगा.
सुमन के जीवन से निराशा और अवसाद धीरे-धीरे ख़त्म होने लगे थे. पोस्ट इट के उन संदेशों ने जैसे जादू की छड़ी ही घुमा दी थी. अब ना तो उसे अपना मोटापा दिखाई देता और ना ही लोगों के ताने अब चुभते थे, जैसे-जैसे समय गुज़रता जा रहा था, संदेशों में भावनाओं की आंतरिकता और आत्मीयता बढ़ने लगी थी. पोस्ट इट का गुलाबी रंग सुमन के गालों पर भी दिखने लगा था. सुमन ने उन पोस्ट इट संदेशों को अपने संदूक में बड़े प्रेम से सजाकर रखा था.
उसके लिए आशुतोष किसी परी कथा सा था. आशुतोष भी ख़ुद को सुमन की ओर आकर्षित महसूस कर रहा था. संदेशों की चाशनी से दोनों के जीवन में मिठास घुल गई थी. सुमन आजकल चहकी-चहकी रहती थी.
पूरे दो महीना तक संदेशों के ज़रिए बात होती रही. फिर एक दिन आशुतोष ने संदेश में अपना फोन नंबर लिख भेजा और सुमन से बात करने की इच्छा व्यक्त की. सुमन का दिल धड़का… उसके मन में रंग-बिरंगी तितलियां उड़ने लगीं. वह ख़ुशी के सातवें आसमान पर थी.
वह सोचती, जो आज तक शब्दों का ताना-बाना बुनता था, सपनों को सजाता था, अब उसकी आवाज़ सुनने मिलेगी. अब पोस्ट इट संदेशों की कोई आवश्यकता नहीं थी. दोनों हर रोज़ फोन पर काफ़ी देर तक बातें करते. आशुतोष को अब सुमन बहुत पसंद आने लगी थी और सुमन… सुमन बिना किसी यथार्थ की चिंता किए बातों ही बातों में आशुतोष को अपना दिल दे बैठी थी. वह पहला ऐसा व्यक्ति था, जिसने उसे आदर दिया था. उसके गुणों को सराहा था. प्रेम की इस अलौकिक अनुभूति में वह अपने भौतिक शरीर को भूल ही गई थी.

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वह भूल रही थी कि आशुतोष ने अभी उसे देखा नहीं है. वैसे सुमन दिखने में अच्छी थी, घुटनों तक लंबे बाल, जो हमेशा गुथे रहते थे. शांत स्वभाव उसके चेहरे को ख़ूबसूरत बनाता था. मोटी काली पानीदार आंखें और आजकल जो उसके होंठों पर मुस्कान रहती थी, वह उसके रूप में चार चांद लगाती थी. उसकी सुंदरता का तो कोई जवाब ही नहीं था. इतनी सुंदरता के बावजूद वह अपने वज़न के कारण अपने ही शरीर में असहज महसूस करती थी. वह असहजता शायद वज़न की नहीं थी, असहजता थी समाज में मिली अस्वीकृति की.
चाहे जितनी भी बातें कर ली जाएं, पर हर रिश्ते का एक नियत भविष्य होता है. भविष्य के इस मुक़ाम को पाने के लिए प्रत्येक संबंध को आगे बढ़ाना पड़ता है. चाहे जितना सुकून मिले, एक जगह रुका नहीं जा सकता. ऐसा ही कुछ सुमन के साथ भी हुआ.
शाम को सात बजे रोज़ की तरह सुमन के फोन की घंटी बजी. सुमन जानती थी फोन आशुतोष का है. उसने चहकते हुए फोन उठाया कुछ बातचीत हुई और उसके बाद आशुतोष बोला, “सुमन… अब बहुत हुआ यह सब, मैं तुमसे मिलना चाहता हूं. हमारे बीच के इस रिश्ते को एक नाम देना चाहता हूं. एक शहर में ही रहकर आज तक हम मिले नहीं हैं. मुझे तुम बहुत पसंद हो. हमारे बीच की यह डोर मैं और पक्की करना चाहता हूं. तुम्हारी समझदारी, तुम्हारी सहजता मुझे आकर्षित करती है. मैं हमेशा के लिए तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं, मुझसे मिलने आओगी..?” इतना सुनते ही सुमन के हाथ कांपने लगे, गला सूख गया, सांस फूल गई. उसने कोई जवाब दिए बिना ही फोन काट दिया.
आशुतोष उसे बार-बार फोन लगाता रहा और सुमन हर बार फोन काट देती. सुमन को अचानक उसका बेडौल शरीर अधिक कुरूप लगने लगा. उसने फोन पर आशुतोष के संदेश देखे, जिसमें उसने मिलने की ज़िद पकड़ ली थी. वह कुछ और सुनना ही नहीं चाहता था. आशुतोष की बातों ने सुमन को हिला कर रख दिया था.
कुछ दिनों से मिले प्रेम के एहसास को वह खोना नहीं चाहती थी. वह सहमी सी दर्पण के आगे जाकर खड़ी हुई. अपनी छवि दर्पण में देखते ही उसके मन में रोष उत्पन्न हुआ. वह बोली, “तुम एक बार फिर से मेरे और मेरी ख़ुशियों के बीच आ ही गए. मुझे इस मोटापे से नफ़रत है. तुमसे ज़्यादा घृणित वस्तु मैंने आज तक नहीं देखी. क्या मुझे कभी तुमसे छुटकारा मिलेगा?” इतना कहकर सुमन वही टूट कर बिखर गई.
उसे पूरा यक़ीन था कि आशुतोष उसे देखते ही नफ़रत करने लगेगा. तो इससे पहले की बाकी लड़कों की तरह आशुतोष उसे रिजेक्ट करता, सुमन ने आशुतोष के फोन ना उठाने का ़फैसला कर लिया.
आशुतोष ने सुमन से बात करने के लिए फिर से पोस्ट इट संदेशों को भेजना शुरू किया. सुमन ने सभी संदेश बिना पढ़े ही डस्टबिन में डाल दिए. सुमन फिर से एक बार किसी शिला की भांति कठोर बन गई. अपनी भावनाओं को उसने ब़र्फ बना दिया था. आशुतोष से बात किए सुमन को पंद्रह दिन हो चुके थे. अपने ज़ख़्मों के साथ जीवन जीने का संतुलन उसने बना लिया था. कुछ दिनों बाद आशुतोष के फोन आने भी अब बंद हो गए.
एक दोपहर जब सुमन अपने ऑफिस के काम में व्यस्त थी, तो ऑफिस बॉय आया और बोला, “सुमन मैडम, कोई आशुतोषजी आपसे मिलने आए हैं. मैंने उन्हें बाहर रिसेप्शन में बिठाया है.”
यह सुनना था कि कुछ क्षणों के लिए जैसे सुमन की आत्मा शरीर से बाहर निकल गई, वह सुन्न बैठ गई. जैसे ही होश में आई, तो सोचने लगी, ‘अब क्या करूं… जाऊं या ना जाऊं… क्या भाग जाऊं… बहुत सारे ऊलजुलूल विचारों के बाद सुमन धीरे-धीरे चलते हुए बाहर आई?
दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था.
जैसे ही वह बाहर आई, उसकी नज़र आशुतोष पर पड़ी. एक क्षण के लिए तो वह मंत्रमुग्ध हो गई. उसका भोला चेहरा सुमन को फिर से एक बार प्यार की आंधी में उड़ाए ले जा रहा था.

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तभी आशुतोष ने सुमन को देखा और उसकी ओर बढा. उसने पूछा, “आप सुमन हैं  ना..?” सुमन ने हां में सिर हिलाया. आशुतोष ने सुमन का हाथ पकड़ा और उसे खींचकर एक कोने में ले गया. सुमन को आशुतोष का यह स्पर्श रोमांचित कर रहा था. वह होश में आई जब आशुतोष ने उससे पूछा, “सुमन यहीं बात करनी है या कहीं बाहर चलें?” सुमन ने कहा, “बाहर चलते हैं.”
चलते-चलते आशुतोष ने सुमन से पूछा, “क्या चल रहा है यह सब..? फोन क्यों नहीं उठा रही..? मुझसे बात क्यों नहीं कर रही हो?..” सुमन ने बहुत हिम्मत जुटाकर कहा, “क्या मुझे देखने के बाद भी तुम मुझसे बात करना चाहते हो?”
आशुतोष ने कहा, “क्या फ़र्क़ पड़ता है?.. और क्या तुम स़िर्फ इस वजह से बात नहीं कर रही हो… और मैं ना जाने क्या-क्या सोच रहा था. कितना घबरा गया था मैं.” सुमन ने आगे कहा, “मैंने कई बार सोचा कि तुम्हें बता दूं कि मैं सुंदर नहीं हूं. मेरा शरीर बेडौल है. मैं तुम्हारे तो क्या किसी के भी लायक नहीं हूं, पर तुम्हें खो देने के भय ने मुझे कभी कुछ कहने ही नहीं दिया. जब तुमसे बात करती, तो सब कुछ भूल जाती.” इतना कहकर वह फफक कर रोने लगी. आशुतोष ने अपनी दोनों हथेलियां में सुमन का चेहरा उठाया और बोला, “तुम  मुझसे बात करते समय शरीर के बारे में क्यों भूल जाती थी पता है? क्योंकि हमारा रिश्ता शरीर का है ही नहीं. तुम्हारे प्रति मेरा खिंचाव और जुड़ाव तुम्हारी आंतरिक सुंदरता से है. तुम इतनी सुंदर हो कि मैं अपनी पूरी ज़िंदगी तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूं. तुम्हारा मन और शरीर दोनों ही बहुत सुंदर है. मुझे तुम्हारी ज़रूरत है.” सुमन की आंखों से आंसू बहने लगे. उसे आशुतोष किसी फरिश्ते से कम नहीं लग रहा था. वह पथराई आंखों से आशुतोष को एकटक देख रही थी.


आशुतोष ने उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, “सुमन, यह मत सोचना कि मैं तुम पर कोई एहसान कर रहा हूं. इस रिश्ते के लिए हां तभी कहना जब तुम चाहती हो. किसी दबाव में मत आना. मैं भी कोई स्वर्ग से उतरा हुआ तो नहीं हूं. ऐब तो मुझमें भी हैं और फिर मैं किसी फिल्म स्टार जैसा भी तो नहीं दिखता.” आशुतोष की इस बात पर दोनों ही खिलखिला कर हंसने लगे.
जाते समय आशुतोष ने सुमन के हाथ को प्यार से सहलाते हुए कहा, “सुमन, हमारा रिश्ता पोस्ट इट के उन रंग-बिरंगे संदेशों की तरह ही होना चाहिए, जिसके एक-एक शब्द में छिपे रंग और जज़्बात कभी भुलाए नहीं जा सकते.” दोनों एक-दूसरे को अलविदा कहकर जाने लगे, अब पोस्ट इट का गुलाबी रंग फिर से एक बार सुमन के गालों को गुलाबी कर रहा था.                                                                                                                                            

विजया कठाले निबंधे

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