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लघुकथा- परीक्षा (Short Story- Pariksha)

"कौन-सा निशान? नहीं मम्मा.. ये मेरी है." वो‌ दूसरी ओर मुड़कर 'एस' छुड़ाने की कोशिश में लगा हुआ था. ये मेरे लिए परीक्षा ‌की घड़ी थी, कसौटी वही 'अपना बच्चा होता तो क्या करती?'…
"तड़ाक" से एक थप्पड़ मैंने उसके‌ गाल पर छाप दिया. पहली बार ऐसा हुआ था. मैं रोते हुए कमरे में चली आई.

"तुम कैसे कह सकते हो कि ये तुम्हारी बाॅल है, मोनू की नहीं?"
"आंटी! देखिए ना, इस पर छोटा सा एस बना हुआ है, मेरे नाम वाला!" शोभित रुआंसा हो गया.
मेरी ही ग़लती है. मोनू साल भर का था, जब मैं शादी होकर आई. 'सौतेली मां' का ठप्पा हटाने के चक्कर में, ज़्यादा सख्ती से  पेश नहीं आई. कभी कोशिश भी की तो 'अपना बच्चा होता तो क्या करती' कि कसौटी पर परिवारवालों ने मेरी ममता को रखा… लेकिन अब पानी सिर के ऊपर आ गया था.


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"मोनू, ये शोभित की बाॅल है ना? वो‌ ये निशान दिखाकर गया है अभी."
"कौन-सा निशान? नहीं मम्मा.. ये मेरी है." वो‌ दूसरी ओर मुड़कर 'एस' छुड़ाने की कोशिश में लगा हुआ था. ये मेरे लिए परीक्षा ‌की घड़ी थी, कसौटी वही 'अपना बच्चा होता तो क्या करती?'…
"तड़ाक" से एक थप्पड़ मैंने उसके‌ गाल पर छाप दिया. पहली बार ऐसा हुआ था. मैं रोते हुए कमरे में चली आई.
"मम्मा!.. मैंने ‌उसकी बाॅल वापस कर दी साॅरी बोलकर. प्लीज़ आप रो मत… मैं कभी झूठ नहीं बोलूंगा." मोनू आंसुओं से तर-बतर मेरे सिरहाने आकर खड़ा था. मैंने मुस्कुराते हुए उसकी आंखें पोंछी और उसने ‌मेरी.


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परीक्षाफल आ चुका था… मेरे बेटे ने‌ मुझे उत्तीर्ण कर दिया था; वो‌ भी प्रथम श्रेणी में!

- श्रुति सिंघल

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Photo Courtesy: Freepik

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