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कथा- संस्मरण: नए शहर में… (Short Story- Naye Shahar Mein…)

मुझे लग रहा था कि मैं सही स्थान पर आ गई हूं. नए शहर में, नए लोगों के बीच अब सामंजस्य आसानी से बिठा पाऊंगी. यही सोचते हुए मैं भी उनकी मंडली में शामिल हो गई.

नया शहर, नई जगह, कितना अजीब सा लग रहा था. यही सोच रही थी कैसे तालमेल बिठा पाऊंगी नए लोगों से. यही सोचते हुए घर से बाहर सामान लेने निकली, तो देखा परचूनिये की दुकान के पास ही पार्क है. सुबह ठंड की वजह से सैर नहीं कर पा रही थी, इसलिए मन किया कि दोपहर की गुनगुनाती धूप में ही थोड़ा टहल लूं.
पार्क के पास आते ही मधुर सा स्वर कानों में पड़ा, शायद कोई भजन गा रहा था. अंदर जाने पर देखा कि कुछ बुज़ुर्ग महिलाएं और कुछ हमउम्र भजन गा रही थीं. सभी किसी मंदिर की कीर्तन मंडली से जुड़ी हुई थीं. मैं भी थोड़ा टहलने के बाद वहां जाकर बैठ गई.

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कीर्तन समाप्त होने पर एक महिला बोली, "क्या आंटी, आज आप पार्क में भी कीर्तन करने लग गईं." इस पर वह बुज़ुर्ग महिला हंसते हुए बोली, "अरे, प्रतिदिन तो हम इधर-उधर की हांकते हैं और समय बर्बाद करते हैं. सोचा आज पार्क का माहौल भी थोड़ा धार्मिक हो जाए." इस पर दूसरी महिला ने कहा, "आपकी सोच बहुत अच्छी है. ईश्वर तो सब जगह है और उसे याद करने के लिए किसी ख़ास समय या जगह की आवश्यकता नहीं होती. आपकी इस सोच ने तो पार्क का वातावरण सकारात्मक बना दिया है. ढोल और मंजीरे की आवाज़ से मन आनंदित हो उठा है."
भजन गाने वाली बुज़ुर्ग महिला हंसते हुए बोली, "जहां हम श्रद्धा से भगवान को याद करें, वहीं वो उपस्थित होते हैं. हम बड़ों को युवा पीढ़ी को अच्छी, सकारात्मक सोच के साथ-साथ ईश्वर की भक्ति का आभास भी करवाना है. यहां खेलने आए सभी बच्चे मंदिर न भी जा पाए तो भी उन्हें इस कीर्तन के माध्यम से कुछ सुंदर भजन सुनने को मिल सकेंगे. जैसा वह सुनेंगे वैसा ही उन पर असर होगा और इस महत्वपूर्ण कार्य में आज से प्रतिदिन हम सब भाग लेंगे." उनकी इतनी विकसित सोच को सुनकर मैं प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाई, लगा ही नहीं कि वह कम पढ़ी-लिखी या ग्रामीण महिला है.

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मुझे लग रहा था कि मैं सही स्थान पर आ गई हूं. नए शहर में, नए लोगों के बीच अब सामंजस्य आसानी से बिठा पाऊंगी. यही सोचते हुए मैं भी उनकी मंडली में शामिल हो गई. घर आकर मेरे मन में किसी प्रकार की उथल-पुथल नहीं थी, वरन् अब इंतज़ार था एक नए दिन का जब मैं अपने घर का काम निपटाकर पार्क में जाकर अपनी नई सखियों से मिल सकूं गुनगुनाती धूप में.
- अलका‌ रेहानी

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Photo Courtesy: Freepik

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