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कहानी- मुलम्मा (Short Story- Mulamma)

कल के उज्वल भविष्य की बात कौन करें, आज वर्तमान भूखा-प्यासा, निरीह है. नींद में भी उसके मुंह से, "मम्मी, मम्मी, भूख लगी है…" निकल रहा है और ममता देवी बड़े-बड़े नेताओं को मनुहार कर करके खिला रही हैं.

टुबुल छोटा सा प्यारा बच्चा है जिलाधीश साहब का. बड़ी देर से अपनी आया की गोद से मम्मी की गोद में जाने की फिराक में तैयार बैठा था, मम्मी को कहीं जाने की तैयारी करते देखकर उनकी साड़ी पकड़कर मचल उठा, "मैं भी आपके साथ चलूंगा मम्मी."
"छोड़, परे हट, छी: कितने गंदे हाथ हैं तेरे और मेरी साड़ी पकड़ ली. राधा, ओ राधा… कहां मर गई. आ के टुबुल को पकड़." ममता का मूड एकदम से उखड़ गया. कितने मन से तैयार हुई थी, पर इस राधा ने टुबुल को ऐन वक़्त पर उसके पास छोड़कर सब सत्यानाश कर दिया था.
आज महिला मंडल की मीटिंग है. ममता उसकी सभापति है. आज गरीबों की झोपड़ियों में जाकर उसे भाषण देना है. समझाना है कि बच्चों के साथ कैसे व्यवहार करना चहिए. उन्हें प्यार-दुलार के साथ-साथ उचित दंड भी मिलना चाहिए. समाज में ऊंच-नीच की भावना मिटाने का ज़िम्मा लिया है ममता देवी ने. और क्यों न लें, उनके पति कोई क्लर्क नहीं, वरन जिलाधीश है.
"अरे राधा, तू अपने लड़के को तैयार करके लाई या नहीं?"
"वो बीबीजी हमारे पास कोई साफ़ कपड़ा नहीं था, तो हम रामू को कैसे लाते?"
"सब कपड़े बटोरने के बहाने है. मौक़ा मिलते ही अपना दांव लगाने लगी. अब देना तो पड़ेगा ही." बड़ी सी पेटी में से पुराने कपड़े ढूंढ़ते हुए ममता बड़बड़ाती जा रही थी.
"क्यों बिना मतलब की उठा-पटक में लगी हो? टुबुल का कोई सूट दे दो न."
"क्यों दे दूं नया सूट उस कामचोर के बच्चे को? वैसे भी अगर वो भी इतना महंगा कपड़ा पहनेगा, तो उसके और हमारे बच्चे में क्या अंतर रह जाएगा? नौकर को नौकर की तरह ही रहना चाहिए, ज़रा-सी छूट मिलते ही ये सिर पर चढ़ने लगते हैं." ममता का मुंह और हाथ तेजी से चल रहे थे. आख़िर उसे एक पुराना, लेकिन थोड़ा ठीक-ठाक सूट मिल ही गया.


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"राधा, ले ये कपड़े और अपने लड़के को साबुन से नहला-घुलाकर पहना देना और मेरे पास ही खड़ी रहना उसे लेकर."
ममता ने पूरी तैयारी कर रखी थी. अपनी आया के बेटे को साफ़-सुथरा करके आया के साथ ही अपने पास खड़े रहने का आदेश दे दिया था, ताकि ऐन वक़्त पर जब बच्चे को गोद में उठाकर ममता और प्यार लुटाने का मौक़ा आए, तो सामने ही आया का बच्चा खड़ा मिल जाए और उसे कोई गंदा, नाक बहाता बच्चा गोद में न उठाना पड़े. उसे तो ये बात पसंद ही नहीं थी, पर सब ने जब समझाया कि गरीबों के समर्थन से आगे बढ़ने की संभावनाएं है और फिर तस्वीर भी ती खींची जाएंगी, तब ममता मन मारकर तैयार हो गई.
"आया, टुबुल को तैयार कर खाना खिला देना," और शान से सैंडल टकटकाती ममता जब बाहर निकली, तो ड्राइवर ने अदब से कार का दरवाज़ा खोल दिया. राधा भी पीछे से आकर कार की पिछली सीट पर बैठ गई. इतना देखते ही ममता क्रोध से कुछ कहने ही वाली थी कि जिलाधीश साहब ने इशारे से, उसे चुप रहने को कहा. समय की नज़ाकत को समझते हुए ममता ने पुनः मुस्कुराहट का मुखौटा पहन लिया. ममता समाजसेवी संस्था 'प्रेरणा' की प्रेसीडेंट है. पति जिलाधीश है, अतः उसके नाज-नखरे के लिए लोग हाथ बांधे खड़े रहते हैं, पता नहीं कब उन पर कृपा दृष्टि हो जाए.
ममता के‌ लिए समाजसेवा एक खेल ही है. सज-धज कर मीटिंगों में जाना, मुस्कुराकर तस्वीर खिचवाना. वो क्या किसी की सेवा करेगी. उसकी सेवा के लिए दूसरे लोग लालायित रहते हैं.
कार झोपड़ियों के पास पहुंची, तो बस्ती वालों ने चारों तरफ़ से कार को घेर लिया, "आ गई, देखो कार… कार कितनी अच्छी है. देख कितनी चिकनी है, है न?"
"हां, रंग भी बहुत अच्छा
"हटो, दूर हटो." पुलिसवालों ने ममता के बिगड़े मूड को देखकर तुरंत ही बच्चों को दूर हटाया. ममता ने जैसे ही कार से बाहर पैर रखा, बदबू का ऐसा झोंका आया कि उल्टी रोकना मुश्किल हो गया, पर मुंह पर रूमाल रखकर उन्होंने उसे रोका. किसी तरह जगह बनाते हुए ममता स्टेज पर पहुंची और भाषण आरंभ किया, "आज समय बदल गया है, हमें समाज को ऊपर उठाने के लिए आगे आना होगा. मैं आप सभी से विनती करती हूं कि अमीर-गरीब, ऊंच-नीच, छोटे-बड़े के भेद को मिटाकर एकता कायम करें. साफ़-सफ़ाई से रहे. आज के बच्चे कल के युवा और देश के कर्णधार है, उनका लालन-पालन अच्छी तरह से करिए, सबसे पहले बच्चे को आपकी ज़रूरत है. अतः उसको यथाशक्ति प्यार-दुलार दीजिए. उसके साथ समय गुज़ारिए तब दूसरे काम करिए."


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भाषण देते-देते उसने नज़र घुमाकर राधा व उसके बच्चे को ढूंढ़ना चाहा, पर जब वे कहीं नज़र न आए, तब मजबूरी में उन्हें एक गंदे से बच्चे को, जो पास ही खड़ा था, गोद में उठाना पड़ा. मुंह से तो ममता ऊंच-नीच मिटाने की बात कर रही थी, पर चेहरे से असलियत ज़ाहिर हो रही थी. उनके साथ आई अन्य महिलाएं, मन-ही-मन उनकी स्थिति देखकर मज़े ले रही थीं. शोभा ने विनीता से कहा, "ममता का मूड क्यों उखड़ गया है?"
"अरे, मूड तो उखड़ना ही था. जिलाधीश की बीवी है, तो जन्म भी किसी रईस घर में ही लिया होगा न. अब इस गंदी बस्ती में आना ही उसके लिए सज़ा बन गई और उस पर राधा के बच्चे को बुखार चढ़ गया तो उसे लेकर वह घर चली गई. ममता को मन मार कर किसी गंदे बच्चे को उठाकर प्यार करना पड़ा. अचानक इस फेरबदल से और क्या होता. पता है राधा के बच्चे को घर से नहला-धूला कर सेंट लगाकर लाई थी बेचारी ममता."
वाकई ममता उस दिन बेचारी बन गई. घर पहुंचकर बार-बार साबुन से हाथ धोए, पर ऐसा लगता रहा जैसे बस्ती की सड़ांध उसके तन-बदन में भर गई हो.
"ये राधा की बच्ची भी कहां मर गई और मुझे उस नाक बहाते, लार टपकाते बच्चे को गोद में उठाना पड़ा."
"मेमसाब." तभी राधा ने आवाज़ देकर आग में घी का काम किया.
"अच्छा, तो आ गई महारानी और आपके राजकुमार कहां है?"
"क्या बताए मेमसाब, अचानक बेटे को तेज़ बुखार हो गया और पेट भी दर्द करने लगा, तो बिना आपको बताएं जाना पड़ा."
"जाना पड़ा." ममता ने हाथ नचाकर कहा, "अरे थोड़ा बुखार हो तो था, मर तो नहीं रहा था. पता है इतनी अच्छी साड़ी का सत्यानाश हो गया. अब डाई-क्लीनिंग करवानी पड़ेगी."
"मेमसाब कुछ पैसे मिल जाते, तो डॉक्टर की फीस और दवाई का इंतज़ाम हो जाता."
"एक तो कामचोरी करती है और पैसे भी मांगती है. चल निकल यहां से."
"मेमसाब दया करो, मेरी तनख़्वाह में से काट लेना, पर अभी दे दो." राधा ने उसके पैर पकड़ लिए.
"तनख़्वाह का क्या मतलब, तेरे कारण मेरी इतनी क़ीमती साड़ी जो ख़राब हो गई. तनख़्वाह के पैसे तो उसी में कट जाएंगे."
राधा रोती जा रही थी और सोच रही थी कि अगर ऐसे ही लोग नेता बनकर देश चलाएंगे, तो हम गरीब तो भूखे-नंगे ही रह जाएंगे. दिखावे के लिए गंदी बस्तियों में जाकर बच्चों को फल-बिस्किट बांटेंगे और घर में हम जो उनकी दिन-रात सेवा कर रहे हैं, हमारे बच्चों के दवाई तक का पैसा नहीं. हमारी मेहनत की कमाई पर राज कर रहे हैं. कैसा मुलम्मा चढ़ाकर जाती हैं बाहर दयालु, प्रेमी, सेवाभावी का और घर में… अरे, ये हमें क्या देखेंगी, इनसे तो अपना बच्या नहीं संभाला जाता बेचारा रोते रोते सो गया. ये देश संभालेंगी!

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"ममता देवी को वोट दीजिए, ममता देवी का चुनाव चिह्न है 'बच्चा'. बच्चा, जो कल के राष्ट्र का कर्णधार है. बच्चा, जो मासूम है. छल-कपट भ्रष्टाचार आदि से अनभिज्ञ हैं, तभी तो ममता देवी ने अपना चुनाव चिह्न बच्चा रखा है. मतदाताओं से अनुरोध है कि अपने बच्चों के भविष्य के लिए ममता देवी को वोट दें."
ममता देवी के प्यार का प्याला छलक पड़ रहा है. अब ये अलग बात है कि उसकी चंद बूंदें भी उनके बेटे टुबुल के हिस्से में नहीं आ रहीं. क्या करे बेचारी, मजबूर है, सुबह से शाम तक झुग्गी-झोपड़ियों के बच्चों को संभालने में, चुनाव प्रचार से, बड़े-बड़े नेताओं के मीटिंगों से, समय मिले तब तो घर देखेंगी. देश के लिए इससे बड़ा त्याग और क्या हो सकता है भला. जहां-तहां ममता देवी के बैनर लगे हैं. आज यहां, तो कल वहां सभाएं आयोजित की गई है.
ममता देवी ममता लुटाती अपना प्रचार कर रही हैं. ममता देवी ज़िंदाबाद, हमारी नेता ममता देवी, ममता लाओ देश बचाओ…"
चुनाव समाप्त हुए और ममता बहुमत से जीत गईंं. जगह-जगह उनका अभिनंदन हो रहा है. घर पर भव्य पार्टी का आयोजन है, जिसमें शहर के गणमान्य व्यक्ति आमंत्रित है. पार्टी पूरे ज़ोर-शोर से चल रही है. बाहर गरीब बच्चों का रेला उनसे मिलने, उनका अभिनंदन करने हार लिए घंटों से खड़ा है और अदर उनका बेटा टुबुल, "मम्मी के हाथ से खाऊंगा की रट लगाते-लगाते रो-रो कर सो गया है. उसके गालों पर आंसुओं के दाग़ अभी भी दिखाई पड़ रहे हैं. कल के उज्वल भविष्य की बात कौन करें, आज वर्तमान भूखा-प्यासा, निरीह है. नींद में भी उसके मुंह से, "मम्मी, मम्मी, भूख लगी है…" निकल रहा है और ममता देवी बड़े-बड़े नेताओं को मनुहार कर करके खिला रही हैं. प्रवेश द्वार पर ममता देवी का चुनाव चिह्न बच्चा बड़े आकार में लगा है.

- शशि श्रीवास्तव

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