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कहानी- मूक जीव (Short Story- Mook Jeev)

"वाह दादी, मतलब चार छोटे पुण्य के साथ एक बड़ा पाप मुफ़्त!''
विमला, ''सुन अमन! मुझसे ज़्यादा किटपिट न कर. ये आजकल की नई पौध चार किताबें क्या पढ़ने लगी, ख़ुद को बड़ा ज्ञानी समझने लगी, हम्म…''


      

वो ठंड से ठिठुरता एक दिन था, जिस दिन मैं यानी सरिता और मेरी हमउम्र पड़ोसी सहेली विमला हम दोनों घर के बाहर बैठे धूप सेंक रहे थे. तीन दिन बाद आज सूरज देवता ने दर्शन दिए थे. सो गली में रौनक थी. पास वाले खुले मैदान में कुछ गाय पेट पूजा के इरादे से घूम रही थीं. एक गाय मटर के छिलकों के साथ एक प्लास्टिक की थैली खाने लगी तो मेरे नाती अमन ने दौड़कर गाय के मुंह में जाने से पहले प्लास्टिक की थैली खींचते हुए विमलाजी से कहा, ''विमला दादी! आप जानवरों को बचे हुए खाने और सब्ज़ियों के छिलकों के साथ प्लास्टिक की थैली क्यों डाल देतीं हैं? क्या आपको पता नहीं कि यह इनके लिए कितनी घातक होती हैं?'
अमन की इस बात पर नाक चढ़ाती विमला बोली, ''बड़ा आया जानवरों का प्रेमी! कभी-कभार ग़लती से एकाध प्लास्टिक की थैली आ गई तो क्या? मैं जो बचे हुए खाने व अन्य चीज़ों से इनका पेट भरती हूँ उसका क्या?''
अमन, ''वाह दादी, मतलब चार छोटे पुण्य के साथ एक बड़ा पाप मुफ़्त!''

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विमला, ''सुन अमन! मुझसे ज़्यादा किटपिट न कर. ये आजकल की नई पौध चार किताबें क्या पढ़ने लगी, ख़ुद को बड़ा ज्ञानी समझने लगी, हम्म…''
विमला और अमन की बहस बढ़ते देख मैं बीच में कूदी, ''अरे, अमन बेटा! जा अंदर जा, देख तुझे तेरी मां बुला रही है.'' मेरे कहते ही अमन अंदर चला गया, पर विमला की भृकुटि अब भी तनी की तनी ही थी. उसका ग़ुस्सा शांत करने के इरादे से मैंने उसे समझाते हुए कहा, ''छोड़, विमला, अमन तो बच्चा है, और बात भी तो वह सही ही कह रहा है, जब जानती हो की प्लास्टिक की थैली जानवरों के लिए नुक़सानदेह है तो क्यों यहां-वहां फेंक देती हो. रोज़ गाना गाती कचरा गाड़ी आती तो है उसमें डाल दिया करो?''
''वाह! जैसा नाती वैसी दादी, अब तुम भी ज्ञान बांट लो. ख़ूब डालूंगी प्लास्टिक बैग यहां-वहां, तुम लोगों को जो करना है सो कर लो.'' विमला ग़ुस्से में बड़बड़ाती घर जाने को उठ खड़ी हुई ही थी कि उसका नाती राहुल अमन को पूछता आ गया, ''सरिता दादी! अमन है क्या? आज हम दोनों को गली के लावारिश जानवरों के लिए गर्म घर तैयार करने है. देखिए मैं अपने घर से कितनी सारी चीज़ें लेकर आया, ये पुरानी बोरी, दादी के फटे हुए शॉल, पुरानी चटाई आदि.''
विमला के नाती की बात सुनकर मैं मुस्कुराई तो विमला की नाक और चढ़ गई, ''हां, हां.. बांट दो सब इन जानवरों को. अज़ीब नई नस्ल पैदा हुई है. इन्हें इंसानों की तो कोई क़द्र नहीं और जानवरों को सिर पर बैठाए घूम रहे हैं, लाओ मेरा शॉल, अभी यह इतना भी नहीं फटा की गली के पिल्ले इसे ओढ़कर घूमे.'' ग़ुस्से में अपना शॉल छीनती हुई विमला घर चली गई. कुछ ही देर में अमन और राहुल ने गली  के जानवरों के लिए गली के अलग-अलग कोनों में छोटे-छोटे घर तैयार कर दिए, नन्हा टिमटिम (कुत्ते का बच्चा) तो फुदककर अपने नए घर में बैठ भी गया. वहां छत पर खड़ी विमला ने टिमटिम को हेय दृष्टि से देखा. धीरे-धीरे दोपहर से शाम हो गई, दिन जितनी जल्दी से डूबा पारा उतनी ही तेज़ी से लुढ़क गया. हाड़ कपाओ ठंड इतनी तेज़ थी कि घर-घर अलाव जल रहे थे. उस रोज़ विमला के पेट में बड़ी ज़ोर का दर्द उठा. राहुल ने अमन को आवाज़ दी और दोनों कार में विमला को लेकर अस्पताल भागे.
डॉक्टर ने कहा की विमला को ठंड लग गई है, उन्हें ठंड से अपना पूरा बचाव करना होगा. कुछ ही देर में वह दवाई लेकर राहुल और अमन के साथ वापस आ गईं. दूसरे दिन फिर सूरज निकला तो मैंने क्या देखा,  विमला सूरज और अमन के साथ मिलकर गली में पड़ी पोलिथीनों को बीन रही हैं और साथ ही वह जानवरों के लिए अपने तमाम पुराने गर्म कपड़ो को लेकर भी आई हैं. उसे देखकर मैं विमला के समीप जाकर बोली, ''यह ह्रदय परिवर्तन कैसे हुआ विमला?''

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विमला, ''हमारी अमन और राहुल जैसी नई पौध के कारण, सरिता बहन! सोचो ज़रा! जब मुझ जैसी महिला को सर्दी लग गई, जो नीचे से ऊपर तक पूरी तरह गर्म कपड़ों से पैक रहती है तो इन मूक जानवरों का वाकई में क्या होता होगा? हम जो अच्छा-ख़ासा साफ़ और शुद्ध भोजन करते हैं तब भी बीमार पड़ जाते हैं तो इनका प्लास्टिक खाकर क्या हाल होता होगा?'' जिस नई पौध के विचारों पर विमला रूठ जाती थी आज उसी नई पौध की सोच ने उसको बदल दिया था.
मैंने उसके बदले हुए विचार सुनकर उसे गले से लगा लिया. और दौड़ता हुआ नन्हा टिमटिम स्नेहवश धन्यवाद करता विमला के पैरों से चिपक गया.

writer poorti vaibhav khare
पूर्ति खरे

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Photo Courtesy: Freepik

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