उसने राजा से यमराज की उपस्थिति और उसकी तरफ़ घूर कर देखने की सम्पूर्ण बात कह सुनाई. उसे लगा कि यमराज उसे ही लेने आए हैं. अतः उसने राजा से निवेदन किया कि वह उसे यमराज से बचा लें.
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प्राचीन समय की बात है घनश्याम नाम का एक गणमान्य व्यक्ति रहता था. वह शहर का जाना-माना धनाढ्य एवं संस्कारी तो था ही, पूजा-पाठ भी सब नियमित रूप से करता था. राजा से भी उसकी अच्छी मैत्री थी.
एक दिन वह मंदिर जा रहा था कि राह में उसने पेड़ के नीचे यमराज को खड़े देखा. अजब बात यह थी कि यमराज ने बड़े आश्चर्य मिश्रित भाव से उसकी ओर देखा, जिससे घनश्याम सेठ बहुत घबरा गया और वह भागता हुआ फ़ौरन राजा के दरबार में जा पहुंचा.
उसने राजा से यमराज की उपस्थिति और उसकी तरफ़ घूर कर देखने की सम्पूर्ण बात कह सुनाई. उसे लगा कि यमराज उसे ही लेने आए हैं. अतः उसने राजा से निवेदन किया कि वह उसे यमराज से बचा लें.
राजा के पूछने पर कि यह कैसे संभव है?
घनश्याम सेठ ने कहा कि वह किसी भी तरह फ़ौरन उसे इस शहर से, बहुत दूर कहीं भेजने का प्रबंध कर दे.
राजा के पास एक ऐसा चमत्कारी कालीन था, जिस पर बैठकर व्यक्ति वायु की गति से विश्व के किसी भी कोने में पहुंच सकता था.
और राजा ने अपने मित्र को उसी चमत्कारी कालीन पर बिठा कर बहुत दूर के देश में भेजने की व्यवस्था कर दी.
घनश्याम सेठ को अब तसल्ली हो गई. नए स्थान में उसके पास रहने का स्थान तो था नहीं, रात हुई तो एक धर्मशाला में जाकर सो गया. आधी रात को सहसा उसकी नींद खुली, तो उसने सामने यमराज को खड़ा पाया. सेठजी बहुत घबरा गए.
अब वह कहां जा सकते थे?
यमराज जब उसे मृत्यु लोक ले जा रहे थे, तो राह में उसने अपनी उलझन रखी, “कल तो मैंने आपको विश्व के दूसरे कोने में देखा था, तब आपने मुझे घूर कर देखा भी था. ऐसा क्यों?”
इस पर यमराज ने उत्तर दिया, “तुम्हें वहां देखकर मुझे घोर आश्चर्य हुआ था. मेरी सूचि में आज की तिथि में तुम्हारे प्राण लेना दर्ज़ था. वह भी वहां से कोसों दूर इस शहर में. मुझे आश्चर्य इस बात का हुआ कि तुम वहां पर कैसे हो, क्योंकि मनुष्य के लिए इतनी जल्दी इतनी दूर पहुंचना तो असंभव ही था. मैंने फिर से अपनी सूची को बहुत ध्यान से देखा. तुम्हारे प्राण यहीं लेना दर्ज़ था. और फिर आज तुम्हें इसी स्थान पर पाकर आश्चर्यचकित हूं."
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फिर घनश्याम की इतनी दूर पहुंच जाने की कहानी सुन यमराज ने कहा, "हर मनुष्य की मृत्यु का समय और स्थान दोनों पूर्व निश्चित होते हैं एवं उससे बचना असम्भव ही है."
- उषा वधवा
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