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कहानी- मनोरंजन (Short Story- Manoranjan)

इस जीवन यात्रा में मेरे अनेक मित्र रहें. कारोबारियों, ज़मींदारों से मेरा संपर्क घनिष्ठ रहा है. अक्सर मैंने उन्हें दयनीय और असहाय पाया है. सहायकों, नौकरों की दया पर निर्भर. प्रायः असहाय और परेशान. तभी तो उनको जीवन के नाम पर अच्छी-ख़ासी उम्र में भी किसी न किसी आदमी का सहारा हर समय चाहिए था, बस यूं ही उनका अनमोल जीवन बीत गया.

मनोरंजन और तफ़रीह के लिए कुछ युवाओं का दल किसी गांव में भ्रमण करके आनंदित हुआ जा रहा था. एक किसान को अमरूद के पेड़ पर फावडा़ चलाते देखकर वो सभी उत्सुकतावश उसके नज़दीक चले गए और देखते रह गए कि इतनी फुर्ति से काम कर रहा वो किसान, तो पचास से भी ऊपर का ही लगता था. उसने हंसकर उन सभी युवकों का स्वागत किया और वहां से कच्ची मूली, गाजर, अमरूद, अनार आदि तोड़कर खाने की सहर्ष अनुमति भी दे दी.
युवक उस लंबे-चौड़े खेत में घूम-फिरकर प्रकृति के थाल में सजी ताज़ा फल-सब्ज़ी की दावत का मज़ा लेने लगे. किसान के अतिरिक्त दर्जन भर लोग वहां तरह-तरह के काम कर रहे थे. कोई गुडा़ई कर रहा था, कोई खेत सींच रहा था, कोई मेड़बंदी कर रहा था, कोई हरा साग चुन रहा था, कोई टमाटर के फलदार कोमल पौधों को लकड़ियां लगाकर सहारा दे रहा था.
वहां सरसों, सोयाबीन, मूंगफली, मटर, टमाटर, धनिया, पालक आदि सभी की हरी-भरी फसल लहलहा रही थी.
ज़रा-सी देर मे वो युवक यह तो साफ़ समझ गए कि यही किसान यहां का मालिक है और उन सभी को यह भी अच्छी तरह दिखाई दे रहा था कि वो स्वयं दिन-रात मेहनत करता है, मानो किसी मेहनती मजदूर का पुत्र हो. वहां काम कर रहे अन्य सहायकों के प्रति उसकी इतनी आत्मीयता थी कि उस किसान के आज और उस समय के व्यवहार से उसकी हर दिवस की पूरी दिनचर्या और उसके इस कृषक जीवन की सरलता का सुमधुर परिचय मिल रहा था.
उसके आग्रह पर युवक ख़ुशी-ख़ुशी उसके घर भी गए, जो वही खेतों के बीचोंबीच बना था. गोबर से लीपा हुआ आंगन अंदर भी कच्चा फ़र्श था. और बाहर दो बडे-बड़े माटी के चूल्हे सुलग रहे थे. उनमें दाल और भात पक रहा था, अरहर, मूंग, मसूर की दाल से पकने की ख़ुशबू किसी भूख पैदा करनेवाले जादू का काम रही थी.
अब वो सिलबट्टे पर ताज़ा हरा धनिया और पुदीना लेकर पीसने लगा, तो युवकों ने उसको रोककर वह काम अपने हाथ मे ले लिया. सबने ही बारी-बारी से पुदीना और धनिया पीसने का मज़ेदार काम किया. पीसते समय जब धनिये, पुदीने का रस कभी-कभी उनकी आंख या चेहरे पर उछल कर लग जाता, तो वो आनंद से भर उठते.


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"सुनो, अब बीच में एक-दो हरी मिर्च भी कूट लो, पर आंख बचाना." किसान ने स्नान करते-करते पास ही कुंए से आवाज़ देकर कहा, तो उनमें से दो युवक तुरंत ताज़ी हरी मिर्च तोड़ लाए. बहुत देर तक वो बार-बार हरी मिर्च की मादक महक महसूस करने के लिए हथेली को नाक के पास ले जाते रहे. इसी दौरान वो मुड़-मुड़ कर उस क्यारी में उग रहे उन मिर्च के पौधों को देखकर सोचते भी रहे कि इतनी ताज़गी तो महंगा डिओडरेंट भी नहीं दे सकता.
अब वहीं पास में रखा चाकू लेकर ताज़ा टमाटर और मूली का सलाद जब वो युवक काटने लगे, तो चाकू की धार लगने के बाद उसमें से टपकते रस और मूली, टमाटर दोनों की मिली-जुली महक ने उनको दीवाना कर दिया. चूल्हे पर हांडी मे पकी वह दाल को चखते ही उनको ऐसा ज़ायका मिला कि वो किसान को बोले बगैर न रह सके, "आप तो जीते जी स्वर्ग का भरपूर मज़ा ले रहे हैं."
"बिल्कुल मैं ख़ुद से भी हर रोज़ यही कहता हूं." वो किसान हंसते-हंसते बोल उठा.
उसके घर की सजावट और रहन-सहन की सरलता से उसके अंतरमन का आभास अत्यंत सुंदर रूप से उसकी दोनों आंखों में झलक रहा था.
युवक देख ही चुके थे कि उसके हृदय में किसानों के प्रति कैसी आंतरिक सहानुभूति उमड़ी पड़ती है.
"धरती माता भी ऐसे बच्चों को कितना प्यार देती होगी." एक युवक नीम की छांव में लगी खाट पर बैठकर बोला.
अब सबको वापस लौटना था.
उसमें से एक युवक से रहा नहीं गया और वहां से जाते-जाते एक बार सवाल कर ही लिया, "अब आप साठ बरस पूरे कर चुके हो. ये इतनी सारे खेत सब आपकी ही संपत्ति है, तो अब कुछ आराम और सुख-सुविधा से रहने का मन नहीं करता ?"
"मुझे मेहनत से बड़ा मनोरंजन कुछ और लगता ही नहीं." कहकर उन्होंने जब अपनी आंखें ऊपर की ओर उठाई, तो उनमें दैवीय तेज नज़र आ रहा था.
फिर ज़रा-सा रूककर वो बोले, "हां, मैं भी माटी का पुतला ही तो हूं. कभी-कभी तो बहुत ही तीव्रता से आता भी है भोग और ऐशोआराम का लालच, मगर मेरे रक्त में जुझारूपन से भरे पूर्वजों का संस्कार भी है, इसलिए मैं और मेरा संकल्प उसे शासक नहीं बनने देते."
वो सभी उसको कौतूहल से देख-सुन रहे थे.
"बस, एक यही बात नहीं इसके अलावा और भी कारण हैं. इस जीवन यात्रा में मेरे अनेक मित्र रहें. कारोबारियों, ज़मींदारों से मेरा संपर्क घनिष्ठ रहा है. अक्सर मैंने उन्हें दयनीय और असहाय पाया है. सहायकों, नौकरों की दया पर निर्भर. प्रायः असहाय और परेशान. तभी तो उनको जीवन के नाम पर अच्छी-ख़ासी उम्र में भी किसी न किसी आदमी का सहारा हर समय चाहिए था, बस यूं ही उनका अनमोल जीवन बीत गया. मगर जानते हो उनके ही घर पर काम करनेवाले नौकर-चाकर उनकी हालत देखकर जागृत थे.


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सब खुली छूट थी, पर कोई आलसी या लापरवाह नहीं था. वो सब नौकर नब्बे से ऊपर दुनिया को जीकर गए." वो बस अपनी बात कह ही सके थे कि फिर एक सवाल उनकी तरफ़ उछलकर आया कि आप इतने सजग हैं, पर यहां गांव मे ही रहकर आपकी कोई पहचान नहीं बन सकेगी. आप इतना अच्छा उदाहरण हैं, पर आपको कोई सम्मान या नाम यहां रहकर कैसे मिलेगा." यह सुनकर वो हौले-से हंसे फिर तुरंत गंभीर होकर बोले, "आप लोगों के दिलों मे रहना नई पीढ़ी के संग रहना सबसे बडा़ पुरस्कार है." और फिर किसी सवाल का मतलब ही नहीं रह गया था.
शहर में अपने बसेरे की तरफ़ प्रस्थान करते युवक आज के अपने देहात भ्रमण को किसी कार्यशाला से कम नहीं समझ रहे थे.

-पूनम पांडे

Photo Courtesy: Freepik

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