धीरे-धीरे कली कर्ज़ से मुक्त हो गई और उसने पढ़ाई शुरू कर दी. आसपास के रिक्शेवाले और अन्य कामवाले अक्सर कली के सामने पुनर्विवाह का प्रस्ताव रखते, लेकिन कली ने अपना सारा ध्यान अपनी पढ़ाई और नौकरी पर लगा दिया.
कृष्णकली नाम था उसका. प्यार से सब कली ही बुलाते थे. ग़रीबी के साये में ही आंख खोली थी उसने. कली अपने मां-पिता की सबसे बड़ी संतान थी. उससे छोटी तीन बहिनें और थीं.
जीवन की कठिनाइयों में शिक्षा प्रायः गौण ही हो जाती है. दसवीं की परीक्षा में कली पूरक आई थी. पिता पर चार बेटियों की ज़िम्मेदारी होने के कारण पिता ने दसवीं के बाद ही नन्हीं कली के हाथ पीले करने का निश्चय कर लिया और पंद्रह वर्षीय कली का विवाह कली से दस साल बड़े हेमंत से कर दिया. हेमंत एक दफ़्तर में गार्ड की नौकरी करता था.
बाली उमर की कली जब पहली बार अपने पति से मिली, तो हेमंत शराब के नशे में चूर था. नन्ही कली हेमंत को देखकर सहम गई.
गरीबी से आई कली यहां भी रोटी के लिए तरसने लग गई. नियति मान के कली अपने दायित्व का निर्वाह करती रहती और हेमंत आए दिन उसकी मार-पिटाई करता रहता है. साल भर बाद कली गर्भवती हो गई. कली ने दो जुड़वा लड़कों को जन्म दिया. बाली उमर में ही कली दो जुड़वा बच्चों की मां बन गई.
हेमंत का नशे से लिवर ख़राब हो गया और उसका स्वास्थ्य दिन-ब-दिन गिरने लगा.
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जुड़वा बच्चों को देखने के साथ कली अपने पति की भी सेवा करती थी, लेकिन गरीबी के कारण वह इलाज भी नहीं करवा पा रही थी.
जुड़वा बच्चे एक साल के ही हुए थे कि हेमंत चिरनिद्रा में सो गए. कली के पैरों तले ज़मीन खिसक गई. वह कुछ समझ नहीं पा रही थी कि वह कहां से अंतिम संस्कार के पैसे लाए. कली ने अपने पड़ोसी से पैसे उधार लेकर अंतिम संस्कार और अन्य सारे काम किए.
पंद्रह दिन बाद कली ने एक स्कूल में चपरासी की नौकरी कर ली.
स्कूल जाती, तो सास के उलाहने सुनती कि सज-धज कर पता नहीं कहां जाती है.
जीवन की पीड़ाओं को झेलते हुए कली ने चुप्पी ही साध ली थी.
कुछ समय पश्चात कली ने अपने बच्चों का भी स्कूल में दाखिला करवा दिया .
धीरे-धीरे कली कर्ज़ से मुक्त हो गई और उसने पढ़ाई शुरू कर दी. आसपास के रिक्शेवाले और अन्य कामवाले अक्सर कली के सामने पुनर्विवाह का प्रस्ताव रखते, लेकिन कली ने अपना सारा ध्यान अपनी पढ़ाई और नौकरी पर लगा दिया.
धीरे-धीरे कली ने स्नातक कर लिया. अब कली का एकमात्र उद्देश्य सरकारी नौकरी पाना था. कली दिन-रात एक करती और उसने कई प्रतियोगी परीक्षा भी दी.
पहले प्रयास में कली को असफलता ही मिली, लेकिन कली ने हिम्मत नहीं हारी. वो दिनभर मेहनत करती और रात में पढ़ाई करती.
धीरे-धीरे कली की मेहनत रंग लाई और कली को प्रतियोगी परीक्षा में सफलता मिल गई. कली तहसीलदार बन गई उसके सामने मीडिया की कतार लग गई.
कली के इंटरव्यू अख़बारों में आने लग गए. कली के लिए पुनर्विवाह के लिए भी एक से एक उच्च पद के लोगों के प्रस्ताव आने लग गए.
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कली के लिए एक उच्च अधिकारी का विवाह प्रस्ताव आया. कली के मन में कशमकश होने लग गई. जीवनसाथी की चाह तो उसे भी थी, लेकिन वह बच्चों का भविष्य सुरक्षित करना चाहती थी.
अधिकारी ने कली को दो दिन का समय दिया था. कली के मन में ममता और स्वयं के जीवन के बीच युद्ध चल रहा था. कली रातभर सो नहीं पाई थी.
दूसरे दिन का सूर्य ढल रहा था. इधर कली के जीवन की भी शाम होती नज़र आ रही थी. वह ममता और अपने जीवन में फ़ैसला नहीं कर पा रही थी. फिर कली ने उस अधिकारी को दृढ़ता के साथ फोन लगाया और ना में जवाब दे दिया. उसकी ममता उसके स्वयं के जीवन से जीत गई थी. मां की ममता ने उसके आंखों के कोरों को गीला कर दिया था. वह विजयी महसूस कर रही थी. सोच रही थी मां की ममता में तो सौ कली न्यौछावर है. अंदर ही अंदर अपने साहस की जीत का जश्न मना रही थी.
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