मेरे हाथ से केक का डिब्बा छूटते-छूटते बचा… मैंने महसूस किया, महक अभी भी थी… लेकिन मुझे डर नहीं लगा, बस दोनों हाथ उनको प्रणाम करने के लिए उठ गए. बच्चों को छोड़कर मां जाती नहीं है; अतृप्त ममता भटकती रहती है उन्हीं के आसपास..
आज फिर वही हुआ; बस मैं बच्चों को पढ़ाने बैठी ही थी कि चंदन की महक पूरे कमरे में फैली महसूस हुई! कौन है ये भला मानुष, जो ठीक उसी वक़्त अगरबत्ती या धूपबत्ती जलाता है, जब मैं ट्यूशन पढ़ाने बैठती हूं… ख़ैर! क्या करना..
"आज टेस्ट है, याद है ना…" मैंने याद दिलाया.
"नहीं मैम, नहीं मैम" की फ़रियाद के बीच बस एक चेहरा था, जो टेस्ट देने के लिए हामी भर रहा था.
"सबको फेल होना है क्या इस साल? बोर्ड की परीक्षा देनी है कि नहीं? देखो, केवल अनु पढ़कर आई है!" मैंने अनु के सिर पर प्यार से हाथ फेरा.
मुश्किल से १५ साल की भोली-भाली बच्ची, क़रीब एक महीना पहले इसकी मम्मी नहीं रहीं.
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कैसे इसने अपने को संभाला, पढ़ने भी आने लगी. मैं इसको जान-बूझकर देर तक रोकती थी, ज़्यादा से ज़्यादा पढ़ाने की कोशिश करती थी… कुछ ही दिनों पहले इसके पापा मिले थे,"कविताजी, आप बहुत ध्यान रखती हैं अनु का. अक्सर तो आपके यहां से खाना खाकर आती है… धन्यवाद." हाथ जोड़ते हुए उनकी आंखें डबडबा आई थीं.
आज भी उसको मैंने रोक लिया, "ये चाॅकलेट केक खाकर बताओ कैसा बना है?"
"बहुत अच्छा है मैम. मम्मी भी बिल्कुल ऐसा…" वो बोलते-बोलते रुक गई.
"हां, हां बताओ ना बेटा… मम्मी ऐसा ही बनाती थीं ना! जब भी याद आए, मुझसे आराम से उनकी बातें कर लिया करो. बहुत मिस करती हो ना मम्मी को." मैंने धीरे से पूछा.
उसका भोला चेहरा एकदम से चमकने लगा, "मिस नहीं करती हूं. मम्मी हमेशा मेरे आसपास रहती हैं. अभी भी हैं… आपको अगरबत्ती की महक नहीं आती मैम?"
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मेरे हाथ से केक का डिब्बा छूटते-छूटते बचा… मैंने महसूस किया, महक अभी भी थी… लेकिन मुझे डर नहीं लगा, बस दोनों हाथ उनको प्रणाम करने के लिए उठ गए. बच्चों को छोड़कर मां जाती नहीं है; अतृप्त ममता भटकती रहती है उन्हीं के आसपास!..
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