मैंने आज पूरी रात सोचा कि तुम शायद सही कह रहे थे, आज तक मैंने किया ही क्या है? कौन हूं मैं? क्या है मेरी पहचान? चाहती तो थी मैं भी आसमान में उड़ना, मगर उडने से पहले ही मेरे पंख काट दिए गए. सपना देखने से पहले ही सपना तोड़ दिया गया.
शादी के तीस साल बाद आज उन्होंने बातों ही बातों में किसी बात से नाराज़ होकर सब के सामने कहा, "तूने आज तक किया ही क्या है? सिर्फ़ घर पर खाना बनाना और बच्चों को संभालना और वह भी ठीक से नहीं कर सकी. बच्चे भी तुम्हारी सुनते कब हैं? वो अपने मन की ही तो करते हैं. इतने सालो में तुमने उनको कुछ नहीं सिखाया, तभी इतने बिगड़ गए है दोनों बच्चे."
अपने पति की ऐसी बात सुनकर आज पूरी रात सुनीता को नींद नहीं आई, सुनीता सोचती रही, रोती रही और बुदबुदाने लगी, "सच में मेंने आज तक किया ही क्या है? अगर मेंने आज तक इस घर के लिए सच में कुछ नहीं किया, तो अब मेरा यहां रहने का कोई मतलब नहीं. कहां जाना है पता नहीं, मगर बस अब और नहीं. ये सोचते हुए सुनीता अपने पति विशाल को एक चिट्ठी लिखने लगी-
मैंने आज पूरी रात सोचा कि तुम शायद सही कह रहे थे, आज तक मैंने किया ही क्या है? कौन हूं मैं? क्या है मेरी पहचान? चाहती तो थी मैं भी आसमान में उड़ना, मगर उडने से पहले ही मेरे पंख काट दिए गए. सपना देखने से पहले ही सपना तोड़ दिया गया.
बाबा ने कहा, "शादी की उम्र बीती जा रही है..." मुझसे पूछे बिना ही मेरी शादी करवा दी गई. बाबा का तो मानो, बहुत बड़ा बोझ उतर गया. ससुराल में मेरे लिए हर कोई अजनबी सा था, मगर मां ने सिखाया था कि अब यही तुम्हारी दुनिया है, यही तेरे अपने. अब से इन सबको ही तुम अपने मां, बाबा और भाई-बहन समझना. पति तेरे लिए परमेश्वर है. इनकी कही कोई बात मत टालना. सब को प्यार दे के अपना बना लेना."
मां की बात मान के मैंने सबको अपना बनाया. मुझे क्या पसंद था और क्या नापसंद, इसके बारे में कभी सोचा ही नहीं...
इतना लिखते-लिखते उसकी आंख डबडबा उठीं. अक्षर झिलमिलाने लगे. चश्मा उतारकर आंखें पोंछी, फिर लिखना शुरु किया.
सुबह को आपकी कॉफी और नाश्ता, बच्चों का लंच बॉक्स, बाबा की डायबिटीज़ की अलग से दवाई, नाश्ता, मां के घुटनो की तेल मालिश, आपका टिफिन, मार्केट जाना, शाम की खाने की तैयारी करना, मां को इलाज के लिए बार-बार अस्पताल ले जाना, बच्चों को पढ़ाना, उनकी शैतानी बर्दाश्त करना, आपके दोस्त मेहमान बनकर अचानक से आए तो उनके लिए खाना बनाना... बस इतना ही तो किया मैंने! और क्या किया? इसलिए अब मुझे कुछ और करना है. अब मैं जा रही हूं. ये तो नहीं जानती कि कहां जाऊंगी, मगर मुझे जाना है. पर तुम अपना ख़्याल रखना.
फिर सुनीता चिट्ठी टेबल पर रखकर चुपचाप घर से बाहर निकल पड़ीं.
सुबह होते ही बाबूजी अपनी दवाई, नाश्ता और अख़बार के लिए बहू को आवाज़ देने लगे. उसके साथ ही मां भी अपने घुटनों के मालिश के लिए बहू को आवाज़ देने लगी. बच्चे भी, "मां, हमारा ब्रेकफास्ट कहां है?" कोई जवाब न पाकर चिंतित हो उठे कि आज मां कहा चली गई?
इतना शोरगुल सुनकर सुनीता के पति की भी ंखें खुल गई.
'क्या हो गया...' यह सोचते हुए वो बाहर आया. "इतना शोर क्यों मचा रखा है सुबह सुबह?"
"पापा, देखो ना, मां कहीं नहीं दिख रही. हमको कॉलेज जाने में देरी हो रही है. अभी तक ब्रेकफास्ट भी नहीं किया. लगता है आज भूखा ही जाना पड़ेगा." दूसरे ने कहा, "मेरी किताबें भी नहीं मिल रही, मां तुम कहां हो?" बाबूजी ने आवाज़ लगाई, "बहू ज़रा देखो तो, मेरा चश्मा किधर है?" मां आवाज़ लगा रही थी, "बहू, मेरे मालिश की बोतल और दवाइयां कहां है?"
सारा घर जैसे बिख़रा हुआ था. सुनीता का पति ज़ोर से चिल्लाया, "सब लोग चुप हो जाओ. मैं देखता हूं वो कहां है. यही कहीं होगी, कहां जाएगी?" वो सुनीता को फोन करने लगा, मगर उसका फोन तो कमरें में टेबल पर ही पड़ा हुआ था. उसने देखा फोन के पास एक चिट्ठी भी थी. उसे आश्चर्य के साथ बेचैनी भी होने लगी. उसने जल्दी से चिट्ठी खोल कर पढ़ी. चिट्ठी पढ़कर ही उसे याद आया कि उसने कल शाम अपनी पत्नी का कैसे अपमान किया था, वो भी सब के सामने! ओह! उसे अपनी ग़लती का एहसास हुआ. वो उस से माफ़ी मांगना चाहता था, मगर कैसे? उसका कोई अता-पता नहीं था. उसने उसके मायके और उसकी सहेलियां, सबको फोन करके पूछा, मगर किसी को नहीं पता था कि वो कहां है? किस हाल में है?
घर में कोहराम सा मच गया था. बाबूजी और मां तो जैसे अचानक ही और बूढ़े हो गए थे. उनकी दवाएं, उनका तेल, उनका चश्मा सब कुछ जैसे भूल गए थे. उनकी भूख-प्यास भी बंद सी हो रही थीं. बच्चे घर से बाहर ही नहीं निकल रहे थे. बच्चे अचानक जैसे बड़े हो गए थे. मजबूरी में वे घर का काम संभालने लगे थे, मगर बहुत सारी चीज़ें उनको मिल ही नहीं रही थीं.
सुनीता के पति का दिमाग़ ही काम नहीं कर रहा था. वह करे तो क्या करे और जाए तो कहां जाए. पुलिस में रिपोर्ट करने में भी बात फैलने से बदनामी का डर था, मगर रिपोर्ट तो करना ही होगा. उसने सोचा कि एक बार ससुरालवालों से बात करने के बाद ही पुलिस में सुनीता के गायब होने की रिपोर्ट देगा.
बिना नहाए-धोए, भूखा-प्यासा वह बदहवास सा अपनी ससुराल जा पहुंचा. ससुरालवालों ने उसकी हालत देखकर उसकी बात को गंभीरता से सुना. उसे बात करते-करते आंखों से आंसू बहते देख सुनीता से नहीं रहा गया और वह सामने आकर खड़ी हो गई. सुनीता का पति जैसे नई ज़िंदगी पा गया हो और उठकर उसका हाथ पकड़ कर उसे भरी आंखों से देखने लगा.
विशाल ने सब के सामने सुनीता से अपनी ग़लती की माफ़ी मांगी और वापिस घर चलने को कहा. नारी का दिल तो वैसे भी बड़ा होता है, इसलिए वह अपने परिवार को कैसे अकेला छोड़ देती? सुनीता ने विशाल को आंखों ही आंखों में माफ़ कर दिया और पति के साथ घर चली आई.
घर में सब लोग बहुत ख़ुश हुए, सबको सुनीता की क़ीमत का पता भी चल चुका था. अब सभी सुनीता को काम में मदद भी करने लगे थे. अब सारे काम का बोझ सिर्फ़ सुनीता पर नहीं था. बच्चे अपनी मां को काम में मदद करने के साथ ही अपनी मां का सम्मान भी करने लगे थे. सुनीता के पति विशाल ने अब जान लिया था कि सुनीता ने आज तक जो किया था, उसे कोई और कर पाने में सक्षम भी नहीं था!
साभार: सोशल मीडिया
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