सिकंदर ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा, “एक लोटे पानी के लिए मैं उसे मुंहमांगी क़ीमत देने को तैयार हूं.”
“तब भी यदि वह पानी देने को तैयार न हुआ तो?” फ़क़ीर ने फिर पूछा.
“मैं उसे अपना आधा साम्राज्य दे दूंगा.”
यूनानी सम्राट सिकंदर ने अनेक राज्यों पर विजय पा ली थी और थक कर अब वह स्वदेश लौट रहा था. राह में उसकी मुलाक़ात एक पहुंचे हुए फ़क़ीर से हुई. बातचीत के दौरान सिकंदर उसके सामने अपने साम्राज्य की विस्तृत सीमाओं, नए जीते देशों की गिनती इत्यादि का बखान करने लगा.
फ़क़ीर ने बड़े ध्यान से सिकंदर की सब बातें सुनीं और फिर एक प्रश्न किया.
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प्रश्न था- “तुम किसी मरुस्थल में फंस जाते हो. प्यास के मारे बुरा हाल है, पर आसपास पानी की कोई उम्मीद नहीं. तभी सामने से एक व्यक्ति पानी का लोटा लिए आता दिखाई देता है. परन्तु वह पानी देने से इनकार कर देता है. तब तुम क्या करोगे?
सिकंदर ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा, “एक लोटे पानी के लिए मैं उसे मुंहमांगी क़ीमत देने को तैयार हूं.”
“तब भी यदि वह पानी देने को तैयार न हुआ तो?” फ़क़ीर ने फिर पूछा.
“मैं उसे अपना आधा साम्राज्य दे दूंगा.”
“और तब भी वह न माना तो?” फ़क़ीर ने एक बार फिर प्रश्न किया.
“यहां तो जीवन-मरण का सवाल है. मैं उसे लोटा भर पानी के बदले अपना पूरा साम्राज्य भी दे दूंगा.”
फ़क़ीर हंसने लगा.
“तुम्हारे साम्राज्य की क़ीमत महज़ एक लोटा पानी है, इससे अधिक कुछ नहीं. यह बात कभी मत भूलना सम्राट.”
फ़क़ीर की बात सुन विश्व विजय का सपना देखने वाले सिकंदर महान निरुत्तर रह गए.
- उषा वधवा
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