Close

कहानी- लास्ट कॉल (Short Story- Last Call)

मुरली मनोहर श्रीवास्तव

बात वही है कि देखने का नज़रिया बदलते ही सब कुछ बदल जाता है, रूमानियत, प्यार-मोहब्बत, ख़्वाब-ख़्याल इश्क़-मोहब्बत न होकर ’मी टू’ हो जाते हैं. ट्रोलिंग के केस बन जाते हैं. ख़ैर आज उसने फ़ैसला कर लिया था कि वो इस मनःस्थिति से बाहर निकलेगा. चाहे जो भी हो, उस परिस्थिति का सामना करेगा. वो आज रुचि को ज़िंदगी की लास्ट कॉल ज़रूर करेगा.

कोई तीन महीने परेशान रहने के बाद आज उसने फ़ैसला किया था कि वह रुचि को कॉल करेगा. लेकिन इस फ़ैसले के बाद भी उसकी हिम्मत कॉल करने की नहीं हो रही थी. कहीं रुचि ने डांट दिया, कुछ
उल्टा-सीधा कह दिया, उससे ढंग से बात न की तो… उसे डर था कहीं ऐसा न हो कि बात और बिगड़ जाए. सच तो ये है कि उसके और रुचि के रिश्ते के इस कटु मोड़ पर आ जाने के लिए ज़िम्मेदार वही था.
ऐसा वह कई बार सोच चुका था, लेकिन फोन करने की हिम्मत जुटाने के बाद भी वह कॉल नहीं लगा पाता था.
यक़ीनन रुचि उसकी पत्नी नहीं थी, मगर… उफ़! पत्नी से बात करने में किसी को कभी कुछ सोचना ही नहीं पड़ता. भले ही कितनी भी लड़ाई हुई हो, दोनों को यह एहसास तो होता है कि इस मोड़ पर किस तरह बात करके ज़िंदगी की उलझन सुलझा सकते हैं. लेकिन यह रिश्ता तो पति-पत्नी का नहीं था, न ही दोनों के बीच कोई बंधन था. लेकिन कोई रिश्ता तो ज़रूर हो चला था दोनों के बीच, जिसके बिगड़ जाने से वह गिल्ट में जी रहा था और परेशान था. क्या फर्क़ पड़ता है किसी के ख़ुश या नाराज़ होने से जब दोनों की ज़िंदगी के रास्ते ही अलग हैं. मगर नहीं, कहीं कोई फर्क़ ही नहीं पड़ता, तो वह कुछ दिनों से इतना परेशान क्यों है?
कब उसे रुचि पर इतना भरोसा हो गया कि वह उसके साथ अपनी ज़िंदगी के दुख-दर्द बांटने लगा. रुचि उसके ऑफिस में काम करती थी. गुड मॉर्निंग, हैप्पी बर्थडे और हैप्पी न्यू ईयर से होते हुए बातें बढ़ चली थीं.
राकेश की ज़िंदगी में कहीं कोई कमी नहीं थी. शादीशुदा भरा-पूरा जीवन, जिसे वह बड़े ही जोश के साथ जी रहा था… अपने जीवन में वह बेहद ख़ुश था. ख़ुश होता भी क्यों नहीं, उसकी पत्नी वल्लरी बला की ख़ूबसूरत थी, जिसे उसने ख़ुद पसंद किया था… जिसे वह बेहद प्यार करता था. दो छोटे-छोटे बच्चे, घर पहुंच जिनके बीच वह सब कुछ भूल जाता.
और रुचि… उसे ज़िंदगी में क्या कमी थी. बातों-बातों में वह जान चुका था कि रुचि की लव मैरिज है. दोनों एक-दूसरे को प्यार करते हैं और साथ ज़िंदगी बिताने को तैयार होते हैं, तभी तो लव मैरिज होती है.

यह भी पढ़ें: ना बनाएं कोविड सिंड्रोम रिश्ते, ना करें ये गलतियां, रखें इन बातों का ख़याल (Covid syndrome relationship: How much have relationships evolved in the pandemic, Mistakes to avoid in relationships)

लेकिन नहीं ज़िंदगी में सब कुछ होना और सब कुछ होने का भ्रम होना दो अलग बातें हैं. रुचि का स्वभाव उसका राकेश से घुल-मिल कर बातें करना राकेश को न जाने क्यों अच्छा लगने लगा था. वह अनजाने ही रुचि के प्रति आकर्षण का अनुभव करने लगा था.
उसने कई बार हंसी-हंसी में रुचि को यह बात बताई भी थी और उसने भी इसे हंसी में टाल दिया था.
वस्तुत: रुचि के नेचर, उसके बातचीत करने की मधुरता ने राकेश को दीवाना बना दिया था. वह रात-दिन बस रुचि के ख़्यालों में खोया रहता.
यह ज़िंदगी भी अजीब है. आप अपने भीतर कुछ भी सोचते रहिए और चाहे जैसे जीते रहिए, जब तक सामाजिक सीमाएं नहीं लांघते, कहीं कोई फर्क़ ही नहीं पड़ता.
राकेश को इतना पता था कि शादीशुदा जीवन की पहली शर्त है ईमानदारी और नैतिकता. उसने अपनी पत्नी से वादा किया था कि मेरी ज़िंदगी में तुम्हारे सिवा कोई कभी नहीं आएगा और वह अपने इस वादे को बड़ी ही ईमानदारी व शिद्दत से निभा रहा था. लेकिन रुचि उसकी ज़िंदगी में भावनात्मक रूप से तो आ ही गई थी. न जाने क्यों उसे अपनी ख़ुशियां उसके साथ बांटकर बेहद ख़ुशी होती. वैसे ही घर-गृहस्थी में कोई तनाव होने पर जब वह उदास होता, तो रुचि ताड़ लेती और कारण जाने बिना दम न लेती. फिर कहती, “सब ठीक हो जाएगा, भगवान पर भरोसा रखो.”
सच तो यह था कि बड़ी से बड़ी निराशा भी रुचि की मुस्कुराहट और हंसी में खो जाती और उससे बात करते ही राकेश के दुख-दर्द मिट जाते.


धीरे-धीरे वह रुचि के साथ फैंटेसी भी करने लगा. करोड़ों लोग फैंटेसी में जीते हैं. स्त्री हो या पुरुष कोई भी एक तरह सा जीवन जीते-जीते बोर हो जाता है और वह अपनी ज़िंदगी जीने के लिए ढेरों फैंटेसी करता है. वह अपनी छोटी-छोटी फैंटेसी भी रुचि के साथ शेयर करता और रुचि हंसती. वह कभी किसी बात का बुरा नहीं मानती.
वह बेहद सुलझे और खुले विचारों की थी. इतना ही नहीं, उसके पति भी खुले विचारों वाले पुरुष थे, जो ऑफिस के माहौल को जानते-समझते थे. रुचि बड़ी आसानी से अपने किसी भी सहकर्मी को राहुल से मिला देती और उसके पति राहुल भी सभी से बड़ी बेबाक़ी से मिलते. वस्तुतः आधुनिक जीवन में व्यवहारकुशलता सफल जीवन का एक अभिन्न अंग है. जब पति-पत्नी एक-दूसरे पर अटूट विश्‍वास करते हैं, तो क्या फर्क़ पड़ता है कि रुचि के कितने सहकर्मी हैं. ऑफिस में काम करना है, तो यह सब तो चलता रहेगा.
और बस इसी माहौल में धीरे-धीरे राकेश न जाने कौन-कौन-सी बेसिर-पैर की फैंटेसी रुचि से शेयर करता चला जा रहा था.
हर बात की एक लिमिट होती है और फैंटेसी लिमिटलेस. वह अपनी फैंटेसी में आए दिन नैतिकता की सीमा पार कर रहा था और रुचि उन्हें अनदेखा कर रही थी.
अचानक एक दिन रुचि ने राकेश से बिना कुछ कहे दूरी बना ली थी और राकेश परेशान हो गया था.
कुछ भी तो नहीं बदला था ज़िंदगी में. रुचि उसकी कोई रिश्तेदार तो नहीं थी कि उससे बात करना ज़रूरी था. स्त्री पुरुष से अधिक समझदार होती है. राकेश की बढ़ी हुई इच्छाएं रुचि समझ रही थी. वह उसके और क़रीब आना चाहता था. वो रुचि को पा लेना
चाहता था. उसे छूना चाहता था. यह किसी के जीवन में व्यक्तिगत फैंटेसी तक तो ठीक है, लेकिन उसे व्यवहार में बदल देने की कोशिश न जाने कितनी ज़िंदगी बर्बाद कर देगी.
रुचि को इसका आभास था. इतना ही नहीं. वह भी स्त्री थी और राकेश का व्यक्तित्व कोई कम प्रभावशाली नहीं था. उस पर राकेश का बेबाक़ी से खुलते चले जाना और बिना उसे छुए ही अपनी फैंटेसी में उसके साथ कुछ कर गुज़रने की ढेर सारी अधूरी हसरतों को उसे बताना उसे भीतर तक हिला रहा था. वह भी तो न जाने क्या-क्या और कैसे अजीब से सपने देखने लगी थी. उसका चेहरा भी तो राकेश से बात करते-करते लाल होने लगा था. वह भी तो राकेश से बातें करते हुए अपने भीतर पिघल जाती.
न जाने कब और कैसे वह राकेश की बेबाक़ी से डर गई थी. नहीं, इसके आगे बातें नहीं हो सकतीं, क्योंकि कुछ बातें सपनों में ठीक हैं हक़ीक़त में नहीं. इन सबके बाद भी रुचि यह नहीं चाहती थी कि वह किसी के ख़्वाब को छीन ले.
लेकिन जब राकेश की फैंटेसी उसे भी भीतर तक उत्तेजित करने लगी, तो रुचि को सोचना पड़ा. उसने बड़ी ही सफ़ाई से अपना रास्ता बदल लिया. यहां तक कि उसने पास की किसी ऑफिस में अपना ट्रांसफर करा लिया था.
आदमी जब तक बेहोशी में रहता है, उसे कोई चिंता नहीं होती है. चिंता तो तब होती है, जब उसे होश आता है. यह जो दुनियाभर के आकर्षण हैं, हक़ीक़त को देखते ही दम तोड़ देते हैं. आज यही हुआ था राकेश के साथ. वह ऑफिस के लिए बस पकड़ने को निकला ही था कि देखा एक पीसीआर वैन पर तीन पुलिसवाले किसी लड़के को हथकड़ी लगाए लिए जा रहे हैं. साथ में एक लेडी पुलिस भी थी. वह लड़का रो रहा था और कह रहा था, “मेरी ज़ंजीर खोल दो, हाथ में लगती है. मेरा अपराध इतना बड़ा तो नहीं है…” लेकिन कोई उसकी बात नहीं सुन रहा था. तभी जब पीसीआर वैन निकलकर जाने लगी, तो उसने जिज्ञासावश पूछ लिया, “इसने क्या किया है?”
जब से राकेश ने पुलिसवाले का जवाब सुना है, तब से वह बेहद परेशान है. पुलिसवाले ने कहा था, “यह किसी को एकतरफ़ा प्यार करता है. ढेर सारे मैसेज भेजना, कॉल करना, ट्रोल करना और न जाने क्या-क्या?”
राकेश परेशान इसलिए था कि अचानक उसे होश आ गया था. उसका दिमाग़ बड़ी तेज़ी से काम कर रहा था. वो अच्छी तरह
जानता था कि आज सभी क़ानून स्त्रियों के हक़ में हैं. कहीं ग़लती से किसी ने उसकी झूठी शिकायत भी कर दी, तो… और इसके आगे वो सोच नहीं पा रहा था और उसके दिमाग़ में बार-बार रुचि का नाम उभर रहा था.


यह भी पढ़ें: 5 तरह के होते हैं पुरुषः जानें उनकी पर्सनैलिटी की रोचक बातें (5 types of Men and Interesting facts about their Personality)

किसी भी अच्छे से अच्छे इंसान का मन बदलने में कितनी देर लगती है. रही किसी स्त्री की बात, तो किसी भी पराई स्त्री पर कितना भरोसा किया जा सकता है. कौन कब बदल जाए, कहा नहीं जा सकता. कहीं कुछ ऊंच-नीच हो गई, तो वो किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं रहेगा. क्या मुंह लेकर घर जाएगा? वल्लरी, जिसे वह जान से ज़्यादा प्यार करता है, उसके बारे में क्या सोचेगी?
आज की तारीख़ में हर बात का रिकॉर्ड है. यहां तक कि किसी की कॉल डिटेल भी निकाली जा सकती है, ट्रैक की जा सकती है. बस यही वह प्वॉइंट था, जो उसे बार-बार रुचि को कॉल करने से रोक रहा था. वो रुचि के साथ बातों-बातों में न जाने कितनी नैतिक सीमाएं लांघ चुका था.
यह सच है कि उसके फेवर में सिर्फ़ एक बात जाती थी. उसने शारीरिक रूप से कोई भी अनैतिक काम नहीं किया था, लेकिन एक बार इल्ज़ाम लगने के बाद सफ़ाई उसे ही देनी पड़ती. आरोप लगानेवाले को कुछ नहीं करना पड़ता, ख़ासकर स्त्री यदि किसी पुरुष के खिलाफ़ कोई शिकायत कर दे तब…
आज तीन महीने बीत गए थे. सब कुछ शांत चल रहा था, सिवाय एक बात के, केवल उसका मन अशांत था. वो होश में आने के बाद लगातार गिल्ट कॉन्शस से गुज़र रहा था. आख़िर उसने अपनी बातें, अपनी फैंटेसी किसी से भी शेयर क्यों की. जिसे हम इश्क़ समझ लेते हैं, वह कभी-कभी एकतरफ़ा आकर्षण भी तो हो सकता है. जो बातें देखने-सुनने में बहुत रूमानी और दिल को सुकून देती लगती हैं, वे ही अगर देखनेवाले के नज़रिए में फिट न बैठें, तो ग़ैरक़ानूनी भी हो सकती हैं. यहां तक कि लेडीज़ प्रोटेक्शन एक्ट में किसी महिला की तारीफ़ करना भी क़ानूनन अपराध की श्रेणी में आता है, जबकि आम ज़िंदगी में हम सभी किसी के भी अच्छा लगने पर दिल खोलकर उसकी तारीफ़ करते हैं और अमूमन कोई स्त्री इस बात का बुरा भी नहीं मानती है.
बात वही है कि देखने का नज़रिया बदलते ही सब कुछ बदल जाता है, रूमानियत, प्यार-मोहब्बत, ख़्वाब-ख़्याल इश्क़-मोहब्बत न होकर ’मी टू’ हो जाते हैं. ट्रोेलिंग के केस बन जाते हैं. ख़ैर आज उसने ़फैसला कर लिया था कि वो इस मनःस्थिति से बाहर निकलेगा. चाहे जो भी हो, उस परिस्थिति का सामना करेगा. वो आज रुचि को ज़िंदगी की लास्ट कॉल ज़रूर करेगा.
उसने नंबर डायल किया और उधर से जानी-पहचानी मीठी आवाज़ आई, “हैलो.”
राकेश के कानों में जैसे शहद घुल गया. दोनों एक-दूसरे के नंबर क्या, आवाज़ और टोन तक पहचानते थे. राकेश ने कहा, “हैप्पी दिवाली, बहुत दिनों से तुमसे बात ही नहीं हुई सो कुछ अजीब-सा लग रहा था, इसलिए कॉल कर दिया.”
रुचि ने भी बिल्कुल नॉर्मल तरी़के से हंसते हुए बात की, जैसे कोई बात ही न हो.
इसके बाद राकेश ने अपने दिल की बात कही, जिसने उसका जीना मुश्किल किया हुआ था और जिसके चलते डर के मारे उसका बुरा हाल हुआ जा रहा था.
“रुचि बहुत अधिक गिल्ट फील हो रहा था, इसलिए तुम्हें कॉल किया है.”
वह हंसी जैसे कोई बात ही न हो. जैसे उसने राकेश को अनसुना कर दिया हो. वह बोली, “मेरे पास टाइम ही नहीं होता कुछ पढ़ने और देखने का. मैं कुछ देख ही नहीं पाती.”
इतना सुनना था कि राकेश की जान में जान आई. हिम्मत वापस लौटी.
“थैंक्स रुचि, बस तुमसे बात करके बहुत हल्का महसूस कर रहा हूं. न जाने क्यों तुमसे बात करके बहुत अच्छा लगता है, इसलिए कॉल कर लेता हूं. चलो फिर बात होगी.”


उसने कहने को कह तो दिया था, लेकिन वो जानता था यह उसकी लास्ट कॉल थी. अभी ज़िंदगी में कुछ बिगड़ा नहीं था.
और रुचि, वह जानती है कि न जाने कितने लोग सुबह से शाम तक उसके बारे में क्या-क्या सोचते हैं, फैंटेसी करते हैं, राकेश ने बस यही तो किया था कि अपने ख़्वाब उसे बता दिए थे. उसे कभी छूने की कोशश नहीं की थी. उसे पता था राकेश जैसा ज़िम्मेदार व्यक्ति भले ही कैसे भी ख़्वाब देख ले, पर उसे पूरा करने की हिमाकत कभी नहीं करेगा. वह पढ़ी-लिखी मॉडर्न लड़की थी. उसके पास इन बातों में उलझने के लिए समय कहां था. वह अपनी भावनाओं को संभालना और परिस्थितियों को हैंडल करना जानती थी. उसे पता था कि कब, किससे, कितने क़रीब आना है और कब दूर चले जाना है.

अभी सबस्क्राइब करें मेरी सहेली का एक साल का डिजिटल एडिशन सिर्फ़ ₹599 और पाएं ₹1000 का गिफ्ट वाउचर.

अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

Share this article