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कहानी- कुछ तो लोग कहेंगे… (Short Story- Kuch Toh Log Kahenge…)

"वरुण, किसी की बॉडी का अपमान करने का तुम्हारा कोई हक़ नही बनता. ये मेरी बॉडी है एंड आई लव माई बॉडी… आई हेट यू…" बस इतना कहकर मैं रोते-रोते घर आ गई. पर इस घटना ने मेरे भीतर बॉडी शेमिंग की एक गहरी छाप छोड़ दी थी. मेरे कानों में बार-बार "मोटी-मोटी…" शब्द गूंज रहे थे. मैं अपने ही खोल में सिमटने लगी. अवसादग्रस्त होने लगी थी और इसी अवसादग्रस्त में मैंने ऐसा कदम…

हॉस्पिटल में जब होश आया तो अपनी अधख़ुली आंखों से दो चिंतित आंखें नज़र आईं… मां की.
मुझे करहाते हुए उठते देख मां ने तुरंत डॉक्टर को आवाज़ लगाई, "डॉक्टर… डॉक्टर जल्दी आइए… नैना को होश आ गया." माँ ने तुरंत मुझे उठने के लिए सहारा दिया. डॉक्टर आई और मेरा चेकअप करते हुए बोली, "थैंक गॉड तुम्हें होश आ गया. नाउ एवरी थिंग इस अंडर कंट्रोल. अगर ज़रा सी और देर हो जाती तो… ख़ैर… अब सब ठीक है. आप इन्हें एक-दो दिन में घर ले जा सकती हैं." चेकअप करके डॉक्टर ने मां की तरफ़ देखकर कहा. उनकी बात सुनकर मां की उदास पनीली आंखों में एक उजली सी चमक आ गई.
डॉक्टर कुछ क्षण रुकीं और फिर मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए स्नेह से कहा, "मैं एक डॉक्टर होने के साथ-साथ एक औरत भी हूं. हम औरतों को जीवन में हर पल संघर्ष करना पड़ता है. कभी किसी चीज़ में तो कभी किसी चीज़ में… ये ज़रूरी नही है कि परिस्थितियां हमेशा हमारे अनुकूल हों, लेकिन इसका मतलब ये तो नही कि प्रतिकूल परिस्थितियों में हम कायरों की तरह ऐसा कदम उठाएं. नैना, औरत का दूसरा नाम शक्ति है. औरतों का आत्मविश्वास, सहनशीलता और उसकी हिम्मत ही उसका सबसे बड़ा हथियार है. इससे वो दुनिया का निडर होकर सामना कर सकती हैं. ये दुनिया है और दुनिया के लोग कुछ ना कुछ तो बोलेंगे ही. वो कहते हैं ना.. कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना… हां, इन्हीं लोगों के कहने को हम बॉडी शेमिंग कह सकते हैं. ये संकीर्ण सोच वाले लोग ही बॉडी शेमिंग जैसा अपराध करते है. उसके लिए अपने आप को दोषी ठहराना व्यर्थ है. बॉडी शेमिंग का शिकार कोई भी हो सकता. ईश्वर ने हम सभी के शरीर की संरचना अत्यंत ख़ूबसूरत की है और इस शरीर से प्रेम करना ही हमारी ताकत है,‌ जिसके सामने बॉडी शेमिंग के कोई मायने नही रहते. इसलिए हमेशा एक बात याद रखना, कुछ तो लोग कहेंगे… लोगों का काम है कहना… इट्स यूअर बॉडी , लव यूअर सेल्फ एंड यूअर बॉडी, लव यूअर लाइफ टू.. टेक केयर." एक ममत्व भरे अंदाज़ में कहकर वे चली गईं.
धीरे-धीरे समय बीतने के साथ-साथ जीवन सामान्य ढंग से चलने लगा. एक दिन सुबह जब आंख खुली, तो देखा बाहर मौसम बहुत सुहाना हो गया था. काले-काले बादलों ने पूरे आकाश को अपनी बांहों में भरा हुआ था. मैं बालकनी में कॉफी का कप हाथ में लिए सुहाने मौसम और सागर की अठखेलियां करती लहरों की जुगलबंदी में खो गई थी.
पता नही इन लहरों और मौसम की जुगलबंदी में क्या कशिश है कि वे सदा मुझे इनकी गहराइयों में खो जाने को विवश कर देती हैं. मनुष्य के शरीर की संरचना उसके हाथ में है क्या. उसके शरीर के भीतर क्या हो रहा है ये उसे कैसे पता होगा. क्यूं हम इतने कमज़ोर पड़ जाते हैं कि बॉडी शेमिंग जैसे कुकृत्य का शिकार हो जाते हैं और अपना आत्मविश्वास खो बैठते है. ईश्वर ने सभी मनुष्यों को इस धरा का वासी अपने हिसाब से बनाया है. ये तो प्राकृतिक है, फिर हम कैसे प्रकृति के विरुद्ध जा सकते हैं… मैं अभी अपने विचारों के साथ इन लहरों में खोई ही थी कि अचानक मेरे फोन की घंटी बजी.

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"हेलो."
"हेलो नैना… तुम आ रही हो ना आज… ये सभी बुज़ुर्ग तुम्हारी राह देख रहे है." फोन नव जीवन वृद्धालय की संस्थापिका मालिनीजी का था.
"मालिनीजी वो…"
"वो… वो… कुछ नहीं नैना, तुम्हें आना पड़ेगा. अरे, तुम तो जादूगर हो जादूगर. इस हफ़्ते भर में ही तुमने इन सभी पर ना जाने क्या जादू कर दिया, सभी तुम्हारे नाम की माला जपने लगे. रोज़ ही तुम्हारी कहानियां सुनने को व्याकुल हो जाते हैं. तुमने इन बुज़ुर्गों के बुझे चेहरों पर मुस्कान का जो अमूल्य तोहफ़ा दिया है, उसे शब्दों में बयां नही किया जा सकता. पता है नैना, ये बुज़ुर्ग जब यहां नवजीवन में आए थे, तो ये सभी अपने जीवन से हताश और निराश हो चुके थे. सभी अपनों की मार के थपेड़े खाए हुए थे. यहां तक कि ये लोग अपने जीने की जिजीविषा त्याग चुके थे. किंतु तुमने इन्हें जीने की एक नई किरण दिखाई है. जो घाव इनके परिवारवालों ने इनके हृदय को दिए हैं, तुम्हारी कहानियों ने उन घावों पर मरहम लगाई है.
जो दर्द और पीड़ा इन सभी के भीतर करहा रही है, जिसे वे ज़ुबां से बयां नही कर सकते, तुम्हारी कहानियां वो सब कह कर, उनके दर्द को शीतलता प्रदान करती हैं.
पता है नैना, तुम जो कहानियां लिखती हो ना, वो जीवन के आईने जैसी होती है. जीवन के यथार्थ को दर्शाती हैं. कितनी बार तो कहानियों में हमें अपना अक्स दिखाई दे जाता है… और जब तुम उन कहानियों को सुनाती हो, जिस अंदाज़ से सुनाती हो, तो मन करता है कि उसमें डूब जाओ.
देखो नैना, तुम्हारे जीवन में क्या घटित हुआ है, मुझे नहीं पता… और ना ही मुझे जानने की कोई जिज्ञासा,‌ क्योंकि जो बीत गया वो अतीत हो गया है और उसे पीछे छोड़ देना ही अच्छा है. मुझे अत्यंत ख़ुशी है कि तुम स्वयं अपना संबल बन कर अपने माज़ी को पीछे छोड़ आयी हो. आगे ज़िंदगी अत्यंत ख़ूबसूरत है नैना… अपने हौसलों की उड़ान को ऊंचा उड़ने दो… तुम्हें सिर्फ़ उन हौसलों को एक उन्मुक्त गगन देना है.. और तुम देखना एक दिन तुम सफल स्टोरी टैलर बनोगी…“ कुछ पल रुक कर उन्होंने पुनः कहना शुरू किया.
उनके ख़ुशियों से भरे चहकते स्वर में मिश्रित मेरी प्रशंसा मेरे होंठों पर मुस्कान ले आई.
"हेलो… नैना… तुम सुन रही हो ना…" मेरी तरफ़ से कोई उत्तर ना पाकर मालिनीजी बोलीं. 
"जी… जी मालिनीजी, मैं सुन रही हूं… थैंक्यू सो मच. आज मेरी स्टूडियो में रिकॉर्डिंग भी नहीं है, तो मैं थोड़ी देर में आपके पास पहुंच जाऊंगी." मैंने अपने चेहरे पर ओढ़ी उदासी को उतार कर कहा.
मालिनीजी के फोन के बाद अपने भीतर एक नई ऊर्जा का संचार करते हुए मैंने फटाफट घर के सभी काम ख़त्म किए और एक उजाले की नई ऊर्जा को ओढ़ कर मैं नवजीवन वृद्धालय के लिए निकल पड़ी.
आज इत्तेफाक़न सारे सिग्नल भी हरे मिले मानो जैसे मुझसे कह रहे हो कि नैना अब तुम्हारी ज़िंदगी में रेड लाइट की जगह ग्रीन लाइट ने ले ली है. तुम बस आगे बढ़ो… जैसे-जैसे एक एक सिग्नल आंखों के आगे से निकल रहे थे. वैसे-वैसे मेरे, नैना से नैना स्टोरी टैलर, बनने तक का सफ़र भी आंखों के आगे निकल रहा था. मैं नैना- नैना पाठक- गौर वर्ण, तीखे नैन-नक़्श, इकहरी काया और लंबे-घने केशों की स्वामिन थी. कॉलेज में हर विषय में मेरी अच्छी पकड़ होने के कारण मैं अपने सभी शिक्षकों की प्रिय थी.
लेखन क्षेत्र में अत्यंत रुचि होने के कारण मैं कॉलेज के सभी नाटकों की पटकथा लिखने के साथ-साथ, बैक स्टेज पर उनका वर्णन करती. जब भी मैं कोई नाटय पटकथा का वर्णन करती सभी मंत्र-मुग्ध बैठे रहते. कॉलेज के वार्षिकोत्सव के नाटय मंचन के बाद सभी मेरी पटकथा और वर्णन शैली की प्रशंसा कर रहे थे कि अचानक किसी ने मेरे कान में कहा, "ईश्वर ने आपको सौंदर्य के साथ-साथ कला का भी अनुपम उपहार दिया है. कुछ तो बात है आपमें और आपकी कला में. बहुत खूबसूरत." इससे पहले मैं संभल पाती, वो कहकर चला गया. पर उसकी आवाज़ मेरे भीतर एक अजीब सी हलचल पैदा करके मेरे कानों में बस गई थी. शायद वो अपने शब्दों के साथ कुछ और भी मेरे कानों में और मेरे भीतर छोड़ गया था. पर वो कौन था?.. मुझे नही पता था. बस उसकी आवाज़ ही उसकी पहचान थी.
दिन यूं ही बीत रहे थे. एक दिन मैं कॉलेज लाइब्रेरी में बैठी थी अचानक‌, "मैम हिन्दी साहित्य का सेक्शन कहां है. मुझे प्रेमचंद और अमृता प्रीतम का साहित्य संग्रह देखना था." की आवाज़ ने मेरा ध्यान खींचा. वही आवाज़ पुन: सुनी, तो मेरे कानों में वार्षिकोत्सव वाली आवाज़ गूंज गई. उत्सुकतावश मैंने मुड़ कर देखा, तो हमारे सेक्शन का वो नया लड़का खड़ा था जिसके व्यक्तित्व पर हमारे सेक्शन की सभी लड़कियां मंत्र-मुग्ध हो गई थीं.

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मैं उसे देख ही रही थी कि वो आकर मेरे पास बैठ गया. उसे सामने देखते ही मैं वहीं जड़वत हो गई. मेरे सोचने-समझने की शक्ति शून्य हो गई थी और मेरे हृदय की धड़कन कानों तक सुनाई दे रही थीं. वो एकदम बिंदास आवाज़ में बोला, "हाय, आई एम वरुण."
"हाय… नैना." कंठ में अपने शब्दों को नियंत्रित करते हुए मैंने कहा.
"आप तो कमाल का लिखती हैं और उससे ज़्यादा कमाल आपकी आवाज़ और बोलने का अंदाज़. मैं भी हिंदी साहित्य में रुचि रखता हूं, ख़ासतौर पर मुझे कहानियां पढ़ने में अत्यंत रुचि है, जैसे- अमृता प्रीतम की, प्रेमचंद की."  वो अपनी ही धुन में बोले जा रहा था.
फिर कुछ क्षण रुक कर बोला, "अरे वाह! क्या जुगलबंदी है. आपको लिखने का शौक‌ और मुझे पढ़ने का यानी पढ़ाई-लिखाई. ख़ूब जमेगी हम दोनों की. आप रुकिए, मैं ज़रा अभी आया." मुझे बोलने का मौक़ा दिए बिना ही वो बेफ़िक्री, बेतकुल्फ़ी से बोल कर चला गया.
वरुण अपने मस्त-मौला अंदाज़ के लिए पूरे कॉलेज में प्रसिद्ध हो गया था. धीरे-धीरे हम अच्छे दोस्त बन गए. वो बोलता रहता और मैं उसे अपलक निहारती रहती. हमारे दिलों के एक-एक हिस्से कब एक-दूसरे की रूह से जुड़ गए‌ पता ही नहीं चला.
वो हमेशा मेरी ख़ूबसूरती के क़सीदे पढ़ता रहता. ये प्रेम ना, बड़ा ही अद्भुत होता है.. आपको सदा कल्पना लोक की सैर करवाता रहता है. समय अपनी गति से बढ़ रहा था. कॉलेज के अंतिम वर्ष तक आते-आते मेरे शरीर में कुछ हार्मोनल बदलाव के कारण मेरे पीरियड्स अनियमित हो गए, जिसके परिणामस्वरूप मेरा वज़न बढ़ने लगा और मैं मोटी होने लगी थी. वरुण की इकहरे शरीर वाली नैना अब मोटी नैना बन रही थी.
मेरे बढ़ते मोटापे को देख कर शुरू में वो मुझे ‘मोटी-मोटी‘ कहकर छेड़ने लगा. मैं इसे मज़ाक़ में लेकर टाल देती थी. आख़िर मैं उससे प्रेम करती थी. पर धीरे-धीरे उसकी ये छेड़खानी भद्दे मज़ाक़ में बदलने लगी. मैं फिर भी उसकी इस हरकत को उसका प्रेम समझ कर नज़रअंदाज़ करती रही. लेकिन मुझे इस बात का बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि उसके इन भद्दे मज़ाक़ की वजह से मैं बॉडी शेमिंग का शिकार हो रही हूं. मैं हीनभावना से ग्रस्त होने लगी थी. मेरा आत्मविश्वास डगमगाने लगा था.
वो बदल गया था. मुझसे कतराने लगा था. मैं उसे समझाने का निष्फल प्रयास करती की, "वरुण, ये मोटा होना मेरे हाथ में नहीं है. हम लड़कियां बॉडी में कभी-कभी हार्मोनल चेंजेस की वजह से पीसीओडी का शिकार हो जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं और बॉडी में मोटापा बढ़ जाता है.
प्लीज़ वरुण मुझे समझने की कोशिश करो. धीरे-धीरे इसके इलाज के बाद सब सामान्य भी हो जाता है."
मेरी बात सुनकर वो बस एक फीकी सी हंसी हंस दिया. वो मेरे साथ होकर भी साथ नहीं होता था. परीक्षा के रिज़ल्ट वाले दिन उसने मुझे अपनी बर्थडे पार्टी का निमंत्रण दिया. मैं ख़ुशी से बावरी हो गई थी. उसकी मनपसंद वन पीस ड्रेस पहन कर मैं पार्टी में गई.
"हैप्पी बर्थडे वरुण." उसने मेरी तरफ़ देखा और उसकी आंखें क्रोध से लाल हो गई़. वो एकदम बोल पड़ा, "तुम ये क्या पहन कर आई हो नैना. इसे पहनने से पहले एक बार अपने आपको,‌ अपने मोटे शरीर को आईने में तो देख लेती. मोटे लोगों को ऐसी ड्रेस सूट नही करती. ये ड्रेस पहले वाली नैना को सूट करती ना कि मोटी नैना को."
"पर तुम्हें तो ऐसी ड्रेस बहुत पसंद है, मैं तो तुम्हारे लिए…"
"मेरे लिए… कम ऑन… ग्रो अप नैना. वो सब कुछ तो कॉलेज में ही छूट गया था. हां,‌ मुझे ऐसी ड्रेस पसंद है, पर मोटी लड़कियों पर नही. नैना अब तुम मोटी हो चुकी हो मोटी… इस सच को स्वीकारो." कह कर वो बेशर्मों की तरह हंसने लगा. सभी को अपनी तरफ़ हंसता देख, अपमान के कारण मेरी आंखों से अविरल धारा बह निकली. इतने अपमान के बाद मेरी कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या करूं.

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"वरुण, किसी की बॉडी का अपमान करने का तुम्हारा कोई हक़ नही बनता. ये मेरी बॉडी है एंड आई लव माई बॉडी… आई हेट यू…" बस इतना कहकर मैं रोते-रोते घर आ गई. पर इस घटना ने मेरे भीतर बॉडी शेमिंग की एक गहरी छाप छोड़ दी थी. मेरे कानों में बार-बार "मोटी-मोटी…" शब्द गूंज रहे थे. मैं अपने ही खोल में सिमटने लगी. अवसादग्रस्त होने लगी थी और इसी अवसादग्रस्त में मैंने ऐसा कदम…
"दीदी वृद्धालय आ गया." ड्राइवर की आवाज़ से मैं अपने अतीत से बाहर आई. मालिनीजी के ऑफिस में पहुंचते ही मेरे कदम ठिठक गए.
"आओ नैना.. वेलकम. इनसे मिलो, ये हैं मिस्टर वरुण. ये हमारे नवजीवन के सहयोगी हैं. मैंने इन्हें तुम्हारी स्टोरी टैलिंग के विषय में बताया था. ये अपने ऑडियो स्टेशन में तुम्हारी स्टोरी टैलिंग का एक शो रखना चाहते हैं."
वरुण को देखकर बॉडी शेमिंग की किर्चे मुझे एक बार फिर से चुभने लगीं. मेरा मस्तिष्क शून्य हो गया. मालिनीजी की बातें मेरे कानों से टकराकर वापिस जा रही थीं.
"क्या सोचने लगी नैना…" मुझे चुप देखकर वे बोलीं.
कहते है ना शब्दों की भाषा से अधिक प्रबल आंखों की भाषा होती है. आंखें वो सब कुछ बोल देती हैं, जो शब्द नहीं बोल पाते. मेरी आंखें और वरुण की झुकी आंखें देखकर मालिनीजी शायद सब समझ गई थीं.
"यही सोच रही थी मालिनीजी कि एक मोटी लड़की कैसे इनके ऑडियो स्टेशन में शो करेगी…" कहते हुए मेरी आंखें नम हो गईं. मेरे हृदय से वर्षों पुराना बोझ उतर गया था.
एक बोझ रिक्त और सुकून भरे हृदय से चेहरे पर अपार ख़ुशी लेकर मैं स्टोरी टैलिंग के लिए उन लोगों के पास चली गई, जो मेरी राह देख रहे थे, जिन्हें मेरे मोटे होने से कोई फ़र्क़ नही पड़ता था!..

कीर्ति जैन
कीर्ति जैन ‘अवंति‘ 

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Photo Courtesy: Freepik

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