"खाली घर नहीं है, तुम्हारा मन है. उसे भरो. जीवनभर हम आदित्य की परवरिश में, उसकी पढ़ाई आदि में ख़ुद के मन को मारते रहे. अब यही तो समय है जया ख़ुद के लिए जीने का. अपने शौक जो पीछे छूट गए उन्हें पूरे करने का. मन जब आनंदित हो जाएगा तो घर भी भरा-भरा लगने लगेगा. फिर हर साल हम तीन महीने उसके पास रह तो आते हैं."
"आज फिर अंधेरे कमरे में उदास बैठी हो, ऐसे तो अवसादग्रस्त होकर बीमार हो जाओगी जया." तपन ने कमरे में आकर खिड़की का पर्दा हटाकर कहा.
"रहने दो ऐसे ही ठीक है." जया उदास स्वर में बोली.
"क्या ठीक है? एक तुम्हारा ही तो बेटा विदेश में जाकर नहीं बस गया है न. और उस पर यह महत्वाकांक्षा लादने वाले भी तो हम ही है न। याद है दूसरों के बच्चों को विदेश में बसते देख तुम ही उसे उनके उदाहरण दिया करती थी. तब तो वह सब स्टेटस सिंबल लगता था." तपन जरा कठोर शब्दों में बोले.
"हर मां यही चाहती है कि उसके बच्चे जीवन में ऊंचा स्थान प्राप्त करें."
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"तो कर लिया न? अब बेटे के सुख में अपना सुख मानो. देखो वह बाहर नन्ही गौरैया हर साल अंडे देती है, परिश्रम से उन्हें पालती है, उड़ना सिखाती है, लेकिन उड़ जाने के बाद रोती नहीं रहती. उसे अपनी संतान से बदले में कुछ नहीं चाहिए. वह अपना कर्तव्य पूरा कर उन्हें मुक्त कर देती है. हम इंसान ही क्यों इतने स्वार्थी हैं." तपन ने कहा.
"खाली घर काट खाने को दौड़ता है. आप नहीं समझेंगे." जया की आंखों से आंसू बहने लगे.
"खाली घर नहीं है, तुम्हारा मन है. उसे भरो. जीवनभर हम आदित्य की परवरिश में, उसकी पढ़ाई आदि में ख़ुद के मन को मारते रहे. अब यही तो समय है जया ख़ुद के लिए जीने का. अपने शौक जो पीछे छूट गए उन्हें पूरे करने का. मन जब आनंदित हो जाएगा तो घर भी भरा-भरा लगने लगेगा. फिर हर साल हम तीन महीने उसके पास रह तो आते हैं." तपन ने समझाया.
"लेकिन बाकी नौ महीने..."
"बाकी नौ महीने ख़ुद के लिए जिओ. तुम्हारा बेटा तो बस विदेश गया है. उन मांओं के बारे में सोचो जिनके बेटे सरहद पर शहीद हो जाते हैं.
चलो उठो देखो बाहर कितनी प्यारी धूप खिली है, चिड़िया चहक रही है."
जया उठकर खिड़की से बाहर देखने लगी.
"मेरा मन कर रहा है इस धूप को कैनवास पर उतारने का." जया ने अचानक कहा.
"तो चलो शाम को रंग और कैनवास ले आते हैं. वैसे भी मुझे ग़ज़ल की सीडी लेने जाना ही है."
"तो पुराने रोमांटिक गानों की सीडी भी ले लेंगे. आपकी ग़ज़लें सुनकर तो सिर में दर्द हो गया."
"अच्छा बाबा ले लेंगे."
दोनों की हंसी से कमरा गुलज़ार हो गया. आंगन की धूप जया के चेहरे पर खिल कर कमरे में फैल गई.

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