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कहानी- कांटों के बदले फूल (Short Story- Kanton Ke Badle Phool)

मंदिर के पंडितजी यह देखकर आश्चर्य से भर जाते. वह सोचते कि भोला कितना भोला है इनके कांटों जैसे व्यवहार के उत्तर में फूल देता है. उन लड़कों का बर्ताव यही रहता. वे आए दिन भोला को सताते रहते.

भोला नाम का एक गरीब का बच्चा रोज़ नदी किनारे बैठा फूल बेचता था. नदी के पास ही एक मंदिर था तो उसके फूल भी आराम से बिक भी जाते थे. वह अपना काम ख़ुशी-ख़ुशी करता था. उसके चेहरे पर सदा सन्तोष और आनंद का भाव रहता. उसके सन्तोष भाव को देखकर आस-पास के कुछ शरारती लड़कों को बड़ी जलन होती. वे दिनभर यहां से वहां फ़ालतू डोलते-फिरते. उनके घरवाले उनके इस निक्कमेपन पर तंज कसते हुए अक़्सर कहते, "तुम लड़के न पढ़ते-लिखते हो, न ही कोई काम करते हो, देखो उस भोला को, छोटा ही सही पर बड़ी तन्मयता और निष्ठा से कोई काम तो करता है, कुछ सीखो भोला से तुम लोग!"
घरवालों के इन तानों को सुनकर वे लड़के भोला के प्रति और ईर्ष्यालु हो जाते. कभी वे भोला के बिन दाम चुकाए फूल उठा लेते तो कभी वे उसे चिढ़ाते हुए कहते, "फूल बेचकर कितना कमा लेते होगे, बंद करो यह छोटा काम और बड़ी दुकान खोलो कोई."

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उनकी हर बात पर भोला मौन रहता, बस उनके प्रश्नों के उत्तर में वह उन्हें एक-एक फूल पकड़ाते हुए कहता, "ईश्वर आपका भला करे."
मंदिर के पंडितजी यह देखकर आश्चर्य से भर जाते. वह सोचते कि भोला कितना भोला है इनके कांटों जैसे व्यवहार के उत्तर में फूल देता है. उन लड़कों का बर्ताव यही रहता. वे आए दिन भोला को सताते रहते.
एक दिन की बात है जब शहर के सेठ वहां आए. उन्होंने भोला से सारे फूल ख़रीदते हुए कहा, "बेटा, तुम्हारे सारे फूल मेरे हुए, यह लो पैसे और अपने फूल छोड़कर जाओ." भोला पैसा लेकर फूलों को वहीं छोड़कर और फूल तोड़ने को वहां से चला गया.
अभी सेठ की पूजा को समय था तो फूल जस के तस उसी जगह रखे थे. तभी वे लड़के आए और उस जगह भोला को न पाकर उसके फूलों को उठाकर नदी में फेंकने लगे. सेठ को यह देखकर बड़ा ग़ुस्सा आया.  
फिर सेठ ने उन लड़कों की ऐसी कुटाई की कि वे कराहते हुए माफ़ी मांगने लगे. तभी भोला और फूल तोड़कर फिर से वहां फूल बेचने को आ गया.
पंडितजी यह सारा दृश्य देखते हुए उन लड़कों से बोले, "आज मिली तुम सबको तुम्हारे गुनाहों की सज़ा. अब दम हो तो सेठजी को सताओ? बड़े आए मासूम से भोला को सताने वाले."
तभी पंडितजी ने सेठ जी से उनकी रोज़ की शरारतें कह सुनाई कि कैसे वे रोज़ भोला को सताते हैं. सेठ को यह सुनकर बड़ा ग़ुस्सा आया. वे भोला से बोले, "तुम कुछ कहते क्यों नहीं इनसे. पंडितजी तो कह रहे हैं कि तुम तो उलटा इनके ख़राब बर्ताव के लिए इन्हें फूल देते हो, क्या मैं जान सकता हूं कि तुम ऐसा क्यों करते हो?"
तभी भोला बड़े भोलेपन से बोला, "सेठजी, मेरे अंदर इतना सामर्थ्य नहीं कि मैं इनसे शत्रुता मोल लूं. लेकिन मेरे भीतर इतना विवेक है कि मैं इनसे बचकर अपना काम निरंतर बिना बाधा के कर सकूं. आप ही सोचिए मैं यदि इन सबसे लड़ता तो ये मुझे और सताते. शायद ये मेरा काम ही चौपट कर देते, इसलिए मैं इन्हें फूल देकर इन्हें शांत करता रहा."
तभी सेठजी बोले, "पर अत्याचार सहना भी तो कायरता है ना भोला!"

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"जी पता है, पर तन से मैं इतना समर्थ नहीं था इसलिए अपने मन, विवेक और बुद्धि से मैं रोज़ मंदिर में विराजे अपने जगदीश से प्रार्थना करते हुए कहता था कि 'हे जगदीश! आप ही इन्हें सबक सिखाएं' और देखिए मेरे जगदीश ने एक दिन आपको भेज दिया और इन्हें सबक मिल गया."
सेठ, "वाह! भोला कितनी समझदारी से तुमने अपने काम को और अपने विवेक को संभालकर रखा. तुम्हारी यह कांटों के बदले फूल देने वाली सीख को मैं सदा याद रखूंगा और साथ ही याद रखूंगा कि जब हम तन से दुर्बल हों तो कैसे विवेकपूर्ण ढंग से अपनी बुद्धि का प्रयोग कर अपने अस्तित्व की रक्षा करें.''

- पूर्ति खरे

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Photo Courtesy: Freepik

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