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कहानी- जुनून (Short Story- Junoon)

लौटते वक़्त सुशि सफ़ाई देने लगा, “मुझे बार-बार शक़ हो रहा था कि उसके ब्लू स्कार्फ में ही ख़ून से सनी छुरी छिपी है, तो मैंने चुपके से वह स्कार्फ खींच लिया था.” हम उसे पूरे रास्ते समझाते रहे कि वह अपने जासूसी के जुनून पर अंकुश लगाए, वरना किसी दिन बहुत बड़ी मुसीबत खड़ी हो जाएगी.

सुशांत के इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेस में सफलता की ख़बर जंगल में आग की तरह फैल गई थी. आए दिन उसके लिए अभिनंदन समारोह आयोजित हो रहे थे. मेरे पैर ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे. आज भी हम ऐसे ही एक समारोह में आमंत्रित थे. काश! सुयश भी आज हमारे बीच होते. सुयश की स्मृति के साथ ही मेरा मन अतीत में गोते लगाने लगा.
“सुशि, तुम अभी तक तैयार नहीं हुए? पार्टी के लिए देर हो रही है. याद है ना, तुम्हारे फेवरेट रेस्तरां स्टारबक्स कैफे में पार्टी है!” मैं तैयार होकर बाहर आई और बेटे सुशांत को अभी तक टीवी में आंखें गड़ाए बैठे देखा, तो मन ही मन झल्ला उठी, पर टीनएजर संतान को झिड़कना उचित न समझते हुए मैंने अपने स्वर को भरसक कोमल बना लिया था.
“बस ममा, अभी ख़ूनी का पता चलने ही वाला है. मुझे लगता है, वो ब्लू स्कार्फ वाली लेडी क़ातिल है.”
मेरा धैर्य अब जवाब देने लगा था.
“ओफ् ओ! तेरे ऊपर से डिटेक्टिव सीरियल्स का भूत कब उतरेगा? सीरियल ख़त्म होगा तब तक तो पार्टी ही ख़त्म हो जाएगी. पापा कार निकालने नीचे भी चले गए हैं. अब चल जल्दी से.” कहते हुए मैंने टीवी बंद कर दिया तो सुशि को मजबूरन उठना ही पड़ा.
शहर के सबसे महंगे और आलीशान रेस्तरां स्टारबक्स कैफे में आयोजित हो रही पार्टी में इन्विटेशन मिलना ही अपने आप में गर्व की बात थी और चूंकि इन्विटेशन मेरी सहेली माया की ओर से था, तो मैं कुछ ज़्यादा ही प्राउड और एक्साइटेड फील कर रही थी. उसके पति को बिज़नेस में अच्छा फ़ायदा हुआ था, इसी ख़ुशी में पति के बिज़नेस मित्रों के अलावा उसने अपने सभी रिश्तेदारों और हम कुछ चुनिंदा सहेलियों को सपरिवार आमंत्रित किया था. रास्ते भर मैं उत्फुल्ल मन से अपनी और माया की दोस्ती के क़िस्से ही बयां करती रही, जिन्हें पति सुयश तो दिलचस्पी लेकर सुनते रहे, पर सुशि का मूड अभी भी उखड़ा हुआ ही था. मैंने उसे उसके मनपसंद सीरियल के बीच से जो उठा दिया था. अभी अपने फेवरेट रेस्तरां में पहुंचते ही इसका मन ख़ुश हो जाएगा, सोचकर मैंने अपने मन को तसल्ली देने का प्रयास किया था.


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लेकिन रेस्तरां पहुंचकर मैं अपनी सहेलियों में ऐसी डूबी कि बेटे और पति किसी का ख़्याल ही नहीं रहा. एक वेटर द्वारा 2-3 बार किसी को पुकारने पर मेरा ध्यान उस ओर आकर्षित हुआ. देखा, 2-3 टेबल छोड़कर बैठे सुशि को एक वेटर बार-बार पूछ रहा था. “सर, आप कुछ लेंगे?” लेकिन सुशि था कि अपनी ही सोच में डूबा जाने कहां नज़रें ग़ड़ाए बैठा था?
“सुशि, कहां ध्यान है बेटे तुम्हारा? लो तुम्हारा फेवरेट फ्रूट पंच.” मैंने वेटर की ट्रे में से सुशि का मनपसंद ड्रिंक उठाकर उसके सामने रख दिया था.
“ओह! मम्मा आप..! मम्मा, वो जो उधर खिड़की के पास एक लेडी बैठी है ना…” सुशि ने इशारा किया तो मेरी नज़रें भी उधर ही उठ गईं. एक लेडी खिड़की के बाहर देखते हुए कॉफी पी रही थी.
“वो ही किलर है! देखो, उसके हैंडबैग के पास ब्लू सिल्क स्कार्फ भी रखा है. मुझे लगता है इसी में उसने वो ख़ून से सना चाकू छुपा रखा है.”  सुशि मेरे कान में फुसफुसाया तो मैंने अपना सिर पकड़ लिया.
“वो टीवी सीरियल है.”
“मम्मा, वो सत्य घटनाओं पर आधारित है और किलर अभी तक पकड़ा नहीं गया है.” सुशि का दिमाग़ भ्रमजाल से बाहर आने का नाम नहीं ले रहा था, जबकि मेरा मन सहेलियों की बातों में अटका हुआ था.
“अच्छा, अब जल्दी से यह फ्रूट पंच ख़त्म करो, फिर मैं तुम्हें तुम्हारे हमउम्र दोस्तों से मिलवाती हूं.” अपनी ज़िम्मेदारी ख़त्म मान मैं फिर से सहेलियों के झुंड में पहुंच गई थी.
अचानक टन्न से कुछ गिरने की आवाज़ हुई और फिर तुरंत एक परिचित स्वर, “यही है, यही है…” गूंजा तो मैं बुरी तरह चौंक गई. सुशि की ओर नज़रें घुमाईं, तो पाया वह अपनी सीट से नदारद था. खिड़की वाली टेबल के आसपास भीड़ जमा होने लगी थी. मैं और सुयश लगभग भागते हुए वहां पहुंचे. वहां का नज़ारा देखकर मैं सन्न रह गई. सुशि के हाथ में ब्लू स्कार्फ लहरा रहा था. ज़मीन पर सॉस से सनी छुरी पड़ी थी. घबराई हुई वह लेडी बार-बार गुहार लगा रही थी, “मैंने चोरी नहीं की, मैंने चोरी नहीं की! मुझे तो छुरी का डिज़ाइन पसंद आ गया था.” माया और उसके रिश्तेदार भी आ गए थे. मुझे मामला कुछ तो समझ आ रहा था, पर काफ़ी कुछ अभी भी समझ से परे था.
“टीना, शांत हो जा. मुझे पता है, तूने चोरी नहीं की. तुझे यह स्टाइलिश छुरी बहुत पसंद आ गई थी और इसी डिज़ाइन का पूरा सेट बनवाने के लिए तूने यह छुरी उठाई थी. तूने मुझे सब बता तो दिया था. बच्चे को कुछ मिसअंडरस्टैंडिंग हो गई है. आप सब चलिए, पार्टी एंजाय कीजिए.” माया ने कहा तो उसके पति और बाकी घरवाले भी मेहमानों को समझाते-बुझाते दूर ले जाने लगे, मानो कुछ हुआ ही न हो.

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सुशि की बदतमीज़ी के लिए मैं माया से माफ़ी मांगना चाहती थी, पर वह सफ़ाई करवाने और वहां के स्टाफ से बात करने में लग गई. मेहमानों में चल रही खुसर-फुसर से मुझे इतना ही पता चल पाया कि वह लेडी टीना माया की सगी छोटी बहन है और आदतन चोर है. इतनी संभ्रात फैमिली की, महंगे कपड़ों और मेकअप में सजी लेडी चोर भी हो सकती है? मुझ सहित अन्य गेस्ट्स के गले भी यह बात नहीं उतर रही थी, पर सभ्यता के नाते हम खा-पीकर चुपचाप लौट आए.
लौटते वक़्त सुशि सफ़ाई देने लगा, “मुझे बार-बार शक़ हो रहा था कि उसके ब्लू स्कार्फ में ही ख़ून से सनी छुरी छिपी है, तो मैंने चुपके से वह स्कार्फ खींच लिया था.” हम उसे पूरे रास्ते समझाते रहे कि वह अपने जासूसी के जुनून पर अंकुश लगाए, वरना किसी दिन बहुत बड़ी मुसीबत खड़ी हो जाएगी.
“मुझे लगता है, इस घटना से तुम्हारी सहेली और उसके परिवारवाले काफ़ी अपसेट हो गए हैं.” सुयश चिंतित थे.
“हां, मुझे भी ऐसा ही लगता है, पर तुम चिंता मत करो, मैं कल उसके घर जाकर सारी सिचुएशन समझाकर माफ़ी मांग लूंगी.”
अगले दिन ही मैं माया के घर पहुंच गई. उसने बुझे मन से मेरा स्वागत किया. रात वाली घटना की पीड़ा उसके चेहरे पर स्पष्ट परिलक्षित हो रही थी. सुशि के जासूसी के जुनून का हवाला देते हुए मैंने उसके सम्मुख आरंभ से अंत तक का सारा घटनाक्रम एक ही सांस में परोस डाला. पूरी बात जानकर वह भी गंभीर हो गई थी.
“टीना के साथ भी तो कुछ ऐसी ही प्रॉब्लम थी. मेरी छोटी लाड़ली बहन है वो! बचपन से ही उसे जो चीज़ पसंद आ जाती थी वह उसे लेनी ही होती थी. हम मॉल में घूम रहे होते और वह अपनी पसंद की चीज़ उठा लेती. जब शॉपकीपर पीछे-पीछे भागता हुआ आता तब हमें पता चलता. मम्मी-पापा शर्मिंदा होते हुए या तो वो चीज़ लौटा देते और यदि टीना ज़्यादा ही ज़िद्द पर उतर आती, तो फिर ख़रीद लेते. बड़ी होती टीना को जल्द ही समझ आ गया कि ऐसा केवल बाजार में ही संभव है. किसी के घर पसंद आई चीज़ को पैसे देकर नहीं लाया जा सकता. उसकी बाल सुलभ बुद्धि ऐसी हर चीज़ को चुपके से उठाकर घर लाने लगी. घर में इतने कपड़े, खिलौने आदि थे कि काफ़ी समय तक तो हम में से किसी को पता ही नहीं चला. फिर एक दिन मुझे ही शक हुआ. मेरा और टीना का एक ही रूम था.
उसे एक पपेट से खेलते देख मैंने पूछा, “ऐसी पपेट तो अंजू के घर थी ना? तू उठा लाई?” वह डर गई और रोने लगी. मुझे दया आ गई.
“दीदी, मम्मी-पापा को मत बताना. मुझे मार पड़ेगी. कितनी सुंदर है ना यह? कैसे आंखें मटकाती है? हम इससे खेलेंगे. इसे उंगलियों पर नचाएंगे.” वह नचाने लगी. मैं भी थी तो उसी उम्र की! मेरे मन में भी उसे नचाने की ललक जाग उठी. मैंने मुंह सिल लिया. तब कहां इतनी समझ थी कि चोरी में सहभागी होना भी चोरी करने जितना ही बड़ा ज़ुर्म है.
मेरे मौन से टीना का साहस बढ़ता चला गया. वह जहां जो पसंद आता चुपके से उठा लेती. एक-दो बार भेद खुल जाने पर मुझे उसका बचाव भी करना पड़ा. जैसे कल करना पड़ा था. मम्मी-पापा पर जब यह भेद खुला तब तक टीना काफ़ी बड़ी हो चुकी थी. अब इस आदत को बचपना कहकर नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता था और अधिक समय तक छुपाया भी नहीं जा सकता था. चिंतित मम्मी-पापा साइकाइट्रिस्ट से मिले.
डॉक्टर ने बताया कि बढ़ते बच्चों में आजकल किसी न किसी चीज़ के प्रति जुनून आम हो गया है. क्रिकेट का जुनून, सिनेस्टार या मॉडल बनने का जुनून, सिक्स पैक ऐब्स का जुनून, सेल्फी का जुनून, नए-नए मोबाइल, बाइक का जुनून… ये शौक या जुनून एक सीमा में रहें तब तक तो सही है, पर जब पागलपन की हद तक पहुंच जाएं तो ख़तरनाक साबित होने लगते हैं. दरअसल, इस उम्र में शरीर में एनर्जी बहुत ज़्यादा आ जाती है, फिज़िकली भी और मेंटली भी, जिसे वो पूरी तरह अपने जुनून को पूरा करने में झोंक देता है. समय रहते इस जुनून को यदि सही दिशा दे दी जाए तो बच्चा आगे चलकर मिरेकल कर सकता है, पर यदि वह ग़लत दिशा की ओर अग्रसर होकर दूर तक चला गया, तो फिर उसे लौटा पाना कई बार मुश्किल ही नहीं, नामुमक़िन हो जाता है, क्योंकि तब उसे सही-ग़लत का भेद ही नहीं रहता. उसका एकमात्र लक्ष्य  अपने जुनून को पाना हो जाता है. बड़े होकर ऐसे बच्चे या तो क्रिमिनल बन जाते हैं या मनोरोगी. टीना के बचपन का जुनून उचित दिशानिर्देश के अभाव में मनोरोग में तब्दील हो चुका है. अब भरपूर प्यार, दुलार और समझाइश के साथ-साथ दवाइयों का भी सहारा लेना होगा.
हम सब यह जानकर सन्न रह गए थे. विशेषतः मैं अपने आपको गुनहगार मान रही थी. तब से टीना का इलाज चल रहा है. काफ़ी सुधार भी है, पर अभी और वक़्त लगेगा. डॉक्टर के अनुसार, हमें टीना को टीनएज में ही प्रोत्साहित करना चाहिए था कि उसे जो चीज़ पसंद आ रही है उसे अपने बलबूते पर जायज़ तरी़के से पाने का प्रयास करे. मसलन पपेट के लिए उसे समझाया जा सकता था कि थोड़ी मेहनत कर ऐसी पपेट वह ख़ुद बना सकती है या अपनी बचत से नई ख़रीद सकती है या टेस्ट में अच्छे नंबर लाने पर मम्मी-पापा दिला सकते हैं, तो वह अपनी समस्त एनर्जी उस ओर झोंक देती और चोरी जैसी ग़लत राह पर जाने से बच जाती."

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माया से मिलकर घर लौटने तक मेरे दिमाग़ में भयंकर उथल-पुथल चलती रही. सुशि भी तो उम्र के इसी ट्रांजीशन पीरियड से गुज़र रहा है. उसे जासूसी का शौक है. शौक क्या पूरा जुनून है. बड़े होने तक उसका यह जुनून बरक़रार रहे, न रहे, वह इसे एक प्रोफेशन के तौर पर अपनाए, न अपनाए, पर अभी समय रहते उसके इस जुनून को सही दिशा नहीं दी गई, तो आगे जाकर टीना की तरह उसका भी यह जुनून मनोरोग में न बदल जाए.
सुशि का दिमाग़ तार्किक है, वह हर बात की तह तक पहुंचकर ही दम लेता है, तो क्यों न इस विलक्षण दिमाग़ को रचनात्मक, सकारात्मक बातों में लगा दिया जाए. उसे साइंस-मैथ्स के जटिल सवालों में उलझा दिया जाए. पहेलियों की भूलभुलैया में भटकने छोड़ दिया जाए. वहां सवालों के जवाब निकालने में वह अपनी सारी एनर्जी खपा देगा और दिमाग़ दूसरी खुराफ़ातों में नहीं भटक पाएगा. ‘आफ्टर ऑल एम्पटी माइंड इज़ डेविल्स वर्कशॉप.’
मैंने उसी वक़्त एक शॉप से उसकी उम्र के अनुकूल ज्ञान-विज्ञान और मैथ्स के जटिल सवालों वाली कुछ बुक्स, कुछ पज़ल्स, रॉबिक क्यूब आदि ख़रीदे और घर लौटकर उसकी टेबल पर सजा दिए. मेरे आश्‍चर्य और ख़ुशी का ठिकाना न रहा जब मैंने पूरी शाम उसे इसी में लगा पाया. बड़ी मुश्किल से उसे ‘हेल्दी माइंड लाइज़ इन हेल्दी बॉडी’ का सबक सिखाते हुए बाहर खेलने भेजा, पर तब से जब भी उसे फ्री टाइम मिलता वह इन्हीं सब में लग जाता. बढ़ती एनर्जी को सही दिशा मिली, तो अपने मुक़ाम पर पहुंचकर ही उसने दम लिया.
तालियों की गड़गड़ाहट के साथ ही कैमरे का फ्लैश मेरी ओर चमका, तो मैं वर्तमान में लौटी. स्टेज पर माइक थामे खड़ा सुशि अपनी सफलता का श्रेय मुझे देते हुए मुझे स्टेज पर आमंत्रित कर रहा था.

Anil Mathur
अनिल माथुर

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Photo Courtesy: Freepik

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