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कहानी- जज़्बा (Short Story- Jazbaa)

ख़ुशी के आंसू पोंछते हुए राधिका ने जब फोन लगाया तो वहां से आंटी ने हैलो कहा, पर ख़ुशी के मारे कुछ बोल न सकीं. राधिका बोली, “आंटी,  उस दिन मैं भी ज़रूर आऊंगी, आप जिया को बता देना.”“बेटा, ये सब तुम्हारी वजह से…” उनकी बात बीच में ही काटते हुए राधिका बोली, “नहीं आंटी, यह सब आपके कारण संभव हुआ है. आज उस पालनाघर का नाम विश्‍वभर में गूंज रहा है. इसका श्रेय आपको ही जाता है.”

गुजरात का एक छोटा-सा गांव बालिखेड़ा जहां भयंकर तूफ़ानी रात और चारों तरफ़ पानी ही पानी था. आज एक हफ़्ते से लगातार बारिश हो रही थी और दिल दहला देने वाला अंधेरा छाया हुआ था. सारे गांव में एकदम सन्नाटा पसरा हुआ था. कहीं दूर कुत्ते की भौंकने की आवाज़ आ रही थी. लग रहा था यहां कोई बाशिंदा ही नहीं है, पर पास के एक मकान में हल्की-सी रोशनी दिखाई दे रही थी. इतने में किसी के रोने की आवाज़ आई. किसी ने धीरे से कहा, “फिर लड़की हुई है.” चारों तरफ़ ख़ामोशी छा गई. सहसा रोने की आवाज़ भी बंद हो गई.
सुबह के 4 बजने को थे. हल्की रोशनी दस्तक देने लगी तो उसने राहत की सांस ली. उसे आज ही शहर के लिए गाड़ी पकड़नी थी. कुछ देर बाद चाची ने आवाज़ लगाई, “बिटिया, चाय बन गई है, आकर पी लो.”
वो अंगड़ाई लेती हुई बोली, “आ रही हूं चाची, रात में ढंग से सो न सकने के कारण काफ़ी भारीपन लग रहा था.” बिस्तर से उठकर वो चाचाजी के पास आ गई और बोली, “चाचाजी, पानी तो बंद होने का नाम ही नहीं ले रहा है. मैं वापस कैसे जाऊंगी?”
“बिटिया, आई हो तो तीन-चार हफ़्ते रुककर जाओ. पानी बंद होने के बाद मैं तुम्हें आसपास घुमा लाऊंगा. तुम्हारे प्रोजेक्ट का क्या हुआ?”
“वो तो पूरा होने से रहा इस बारिश में, पर मेरा जयपुर पहुंचना ज़रूरी है.” कहते हुए वो नहाने चली गई. जयपुर जाने की हड़बड़ी में वो रात में रोने की आवाज़ के बारे में पूछना ही भूल गई. चाची भी उसके लिए नाश्ता बनाने की तैयारी में जुट गई.  
नाश्ता करने के बाद वो चाचाजी के साथ निकल गई. तब तक बारिश कुछ कम हो गई थी इसलिए दोपहर तक उसने अपने बचे हुए काम पूरे किए. फिर चाचा-चाची से जल्दी वापस आऊंगी का वादा करके वो शहर चली गई.
घर पहुंचने पर जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला, ढेर सारे काग़ज़ यहां-वहां पड़े हुए थे. उन्हें उठाकर वो आराम से उलट-पलट कर देखने लगी. एक लिफाफा देखते ही उसकी आंखों में चमक आ गई.

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“अरे! ये तो बीना दीदी का पत्र है.” कहते हुए उसने तुरंत पत्र खोलकर पढ़ना शुरू कर दिया. पत्र पढ़ते ही उसके चेहरे पर मुस्कान खिल गई. वो सोचने लगी, चलो, आख़िर बीना दीदी विदेश से वापस आ रही हैं. अब वो अपनी इस सहेली के साथ घूम-फिर सकेगी. वो अपनी पढ़ाई के साथ-साथ सर्विस भी करती थी, क्योंकि जब राधिका छोटी थी तभी उसके माता-पिता गुज़र गए थे, उसकी परवरिश उसके चाचा-चाची ने बड़े प्यार से की थी. वो जब कॉलेज गई तो उसने पार्ट टाइम नौकरी भी शुरू कर दी. फिर भी उसके दिल को सुकून नहीं था, वो अपनी तरह अनाथ बच्चों के लिए कुछ करना चाहती थी.
एक दिन बीना दीदी से उसकी मुलाक़ात हो गई. उनके विचारों से वो इतनी प्रभावित हुई कि उनकी अच्छी सहेली बन गई, जबकि बीना दीदी की उम्र 35-36 के आसपास थी, पर वो उसे बहुत अच्छी लगती थीं. उल्टे पल्ले की साड़ी, बड़ा-सा जूड़ा, आंखों पर चश्मा, बड़ी-बड़ी रौबदार आंखें, चेहरे पर आत्मविश्‍वास की झलक अलग ही दिखती थी. राधिका को वो पहली मुलाक़ात में ही भा गईं.

बीना दीदी एक एन.जी.ओ. चलाती थी, जिसमें एक पालनाघर भी था और वो वहां की हेड थीं. उस पालनाघर की विशेषता यह थी कि उसमें केवल लड़कियां ही थीं. राधिका भी कभी-कभी वहां जाकर उनकी हर तरह से मदद करने की कोशिश करती थी, उसे वहां जाकर बहुत अच्छा लगता था. कुछ महीने से बीना दीदी विदेश गई हुई थीं, तो उन्होंने सारी ज़िम्मेदारी राधिका को दे रखी थी. राधिका अपनी ही सोच में डूबी हुई थी कि तभी दरवाज़े से आवाज़ आई. “अरे राधिका बिटिया, कब आई?” उसने मुड़कर देखा तो अंकल-आंटी थे, जो उसके बगल के घर में रहते हैं. उनके दो बेटे हैं, जो विदेश में पढ़ते हैं. आंटी-अंकल उसका बहुत ख़्याल रखते थे. राधिका-राधिका करते आंटी अंदर ही आ गईं. वो उसे देखने के लिए आतुर थीं. कुछ देर आंटी से बात करने के बाद जब राधिका बाहर जाने के लिए तैयार होने लगी, तो आंटी ने शिकायत की, “ये क्या बेटा, आते ही फिर चल दी?”

“आंटी, मैं पालनाघर जा रही हूं. आज बीना दीदी वापस आ गई हैं.” कहते हुए वो दरवाज़े की तरफ़ मुड़ी ही थी कि आंटी ने कहा, “बेटा, पालनाघर से लौटकर आओ, फिर तुमसे कुछ बात करनी है.” राधिका ने एक पल को घूरकर आंटी की तरफ़ देखा, लेकिन जाने की जल्दी थी इसलिए वो बिना कुछ कहे आंटी के साथ ही बाहर आ गई. ताला बंद करते हुए वो आंटी से बोली, “आंटी, शाम को मिलते हैं, फिर आपके हाथ का खाना भी खाऊंगी.” आंटी ने हां कहते हुए सिर हिलाया और अपने कमरे में चली गईं.

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पालनाघर पहुंचते ही बाहर तक बच्चों की आवाज़ आ रही थी- ‘चल मेरे घोड़े टिक-टिक-टिक’ जिसे सुनते ही राधिका के चेहरे पर मुस्कान बिखर गई. अंदर आते ही सारे बच्चे दीदी-दीदी कहते हुए उससे लिपट गए. बच्चे उसे देखकर ख़ुश हो रहे थे. कोई उसे अपनी कार, तो कोई अपनी गुड़िया की नई ड्रेस दिखा रहा था. दूर कोने में एक छोटी-सी लड़की चुपचाप खड़ी थी. राधिका मुस्कुराते हुए बोली, “अरे, मेरी मुनिया अपनी दीदी से बात नहीं करेगी क्या?” राधिका उसके पास गई तो उस लड़की ने चहकते हुए कहा, “दीदी, आप मेरे साथ चलो मुझे आपको कुछ दिखाना है.” वो लगभग घसीटते हुए राधिका को अंदर ले गई. वह राधिका को एक पालने के पास ले गई और आंखें मटकाते हुए बोली, “कैसी लगी मेरी गुड़िया आपको?” उसने देखा पालने में एक प्यारी-सी बच्ची थी, जिसने हरे रंग की फ्रॉक पहनी थी. उसने झुककर उसके गालों को छुआ, “वाह! कितनी प्यारी है, ये कब आई?”
“अरे, तुम आ गई!” बच्चों का शोर सुनकर बीना दीदी बाहर आईं, तो राधिका को देखकर ख़ुश हो गईं. बीना दीदी को देखते ही राधिका उनके गले लग गई. फिर पालने की तरफ़ देखते हुए बोली, “कितनी प्यारी बच्ची है ना?”
“हां, बहुत प्यारी है, लेकिन ये अन्य बच्चों की तरह नॉर्मल नहीं है. इसे कोई परेशानी है इसलिए आज डॉक्टर को बुलाया है. ख़ैर छोड़ो, तुम बताओ, तुम्हारा काम कैसा रहा?”
“ठीक ही था, बारिश की वजह से काफ़ी परेशान हो गई, पर काम पूरा हो गया.” तभी सारे बच्चों ने आकर दोनों को घेर लिया, तो राधिका ने अपने साथ लाए खिलौने बच्चों में बांट दिए. उस समय उन बच्चों के चेहरे की ख़ुशी देखने लायक थी, ऐसा लग रहा था मानो सारा जहां पा लिया हो. इतने में चाय और गरम-गरम समोसे आ गए. “अरे वाह! इसकी तो बहुत आवश्यकता थी, वैसे भी मुझे बहुत भूख लग रही थी.” राधिका चहकते हुए बोली. चाय पीते हुए दोनों ने ख़ूब सारी बातें की.
घर लौटकर जब राधिका आंटी के पास गई, तो उसे आंटी काफ़ी ख़ुश लगीं. उसने भी छेड़ते हुए पूछ लिया, “आंटी, सुबह तो कुछ और ही मूड था और अभी कुछ और?” आंटी शर्माकर उसके गाल पर प्यार से थपकी देते हुए बोलीं, “हट बदमाश कहीं की.” और दोनों खिलखिला कर हंस दीं. इतने में अंदर से अंकल भी आ गए और उससे बातें करने लगे. फिर आंटी खाना लगाने में व्यस्त हो गईं, तो उसने अंकल से पूछा, “अंकल, सोनू-मोनू की पढ़ाई कैसी चल रही है?”
“पढ़ाई तो बहुत बढ़िया चल रही है, लेकिन अब वो वापस नहीं आना चाहते. वहीं अमेरिका में ही जॉब करना चाहते हैं.”
“आपने मना नहीं किया?”

“तुम्हें लगता है वो हमारी बात सुनेंगे?” फिर अंकल ने कुछ सोचते हुए कहा, “बेटा, मैंने तुम्हारी आंटी की ख़ातिर एक फ़ैसला लिया है. हम एक बेटी गोद लेना चाहते हैं, इसलिए तुमसे मिलना चाहते थे. तुम्हारे पालनाघर में कोई छोटी सी बिटिया हो तो गोद दिला दो.”
आंटी बोलीं, “बेटा, तुम्हारा बहुत एहसान होगा. ये तो अपने काम में व्यस्त रहते हैं, पर मैं सारा दिन घर में पड़ी-पड़ी बोर हो जाती हूं. उसके आने से हमारे घर में ख़ुशियां आ जाएंगी.”

“वो सब तो ठीक है आंटी, पर आप अपने बच्चों से बात कर लीजिए.”
“बेटा, हमने बहुत सोच-समझकर फ़ैसला लिया है.” अंकल ने आंटी का साथ देते हुए कहा.
“ठीक है अंकल, कल सुबह आप मेरे साथ चलिए. देखते हैं, मैं क्या कर सकती हूं.” अपने कमरे में लौटते समय भी राधिका यही सोच रही थी कि अंकल-आंटी ठीक कर रहे हैं?
सुबह 8 बजे डोर बेल की आवाज़ से बिस्तर से उठी, तो देखा सामने अंकल-आंटी खड़े थे. “ये क्या, तुम तो तैयार भी नहीं हुई, ये कोई सोने का टाइम है?” अंकल प्यार से डांटते हुए बोले. “सॉरी, बस दो मिनट में आती हूं.” वो जल्दी-जल्दी तैयार हुई और फिर सब साथ-साथ पालनाघर के लिए रवाना हो गए.
वहां पहुंचकर अंकल-आंटी बहुत ख़ुश थे. उसने सारी बात बीना दीदी को फोन पर पहले ही बता दी थी. फिर उन्होंने एक-एक कर सारी लड़कियों से अंकल-आंटी को मिलाया. उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि किसे  पसंद करें. तभी किसी के रोने की आवाज़ आई. आंटी ने पीछे मुड़कर देखा, झूले में बड़ी प्यारी बच्ची थी. दोनों उसे एकटक देखते लगें. आंटी ने उसे अपनी गोद में उठा लिया और प्यार से चूमकर बोलीं, “बेटा, हमें यही बेटी चाहिए.”

“पर आंटी, ये तो सिर्फ़ 15 दिन की है और शायद बीमार भी है. आज ही डॉक्टर इसे देखने आए थे.” इतने में बीना दीदी बोली, “देखिए, मैं आपसे साफ़-साफ़ बता दूं, इसके पैर ख़राब हैं, ये विकलांग है.” आंटी ने अंकल की तरफ़ देखा, तो उन्होंने हां में सिर हिला दिया. फिर बोले, “हमें चैलेंज पसंद है. आसान ज़िंदगी तो सभी जीते हैं,  मैं कुछ अलग करने में विश्‍वास रखता हूं.” दीदी बोलीं, “जैसी
आपकी इच्छा.”
उसे लेकर जब अंकल-आंटी घर आए, तो दोनों बहुत ख़ुश थे. उनके घर में जैसे जान आ गई थी. सारे घर में खिलौने बिखरे रहते थे और अब आंटी के पास किसी के लिए वक़्त नहीं था. राधिका जब भी सुबह-शाम घर से निकलती तो जिया से मिलती, उसके साथ खेलती. ऐसे ही 6 महीने बीत गए और राधिका की पढ़ाई पूरी होते ही उसे नौकरी मिल गई. उसे नौकरी दूसरे शहर में मिली थी, इसलिए उसे सबको छोड़कर जाना पड़ा. हां, अंकल-आंटी से उसका संपर्क बना रहा. वो दो-तीन दिन में उन्हें फोन करती, तो अंकल-आंटी बस जिया की ही बातें करते कि वो ऐसा करती है, वैसा करती है, उसे डांस का बड़ा शौक है आदि.

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ऐसे ही कब 15 साल बीत गए पता ही नहीं चला. राधिका की शादी हो गई और अब वो एक बच्चे की मां है, पर कुछ नहीं बदला तो आंटी का वैसे ही फोन करना और जिया के बारे में ढेर सारी बातें करना. राधिका को लगता कि वो भी जिया के साथ-साथ ही बड़ी हो रही है. जिया इस समय 12वीं की परीक्षा दे रही थी.
उस दिन वो ऑफिस से आकर बैठी ही थी कि आंटी का फोन आया, “राधिका बेटी, जिया को सारे जयपुर में बेस्ट डांसर का अवॉर्ड मिला है. अब दूसरा कॉम्पटीशन प्रदेश स्तर पर है.” सुनकर राधिका बहुत ख़ुश हुई. जिया के बारे में बातें करना उसे बहुत अच्छा लगता था. जिया के डांस के प्रति लगाव ने उसे कई पुरस्कार दिलाए.
फिर एक रोज़ पता चला कि 26 जनवरी के अवसर पर जिया को पुरस्कृत किया जाएगा. उसे कथक में सर्वश्रेष्ठ डांसर का अवॉर्ड मिला था, जो मंत्री जी अपने हाथ से देने वाले थे. हर चैनल पर जिया की ही न्यूज़ थी. उसने अपनी विकलांगता को अपने आत्मविश्‍वास से हरा दिया था. विश्‍वास नहीं हो रहा था कि जो लड़की ठीक से चल नहीं सकती थी, उसने अपने साथ प्रतियोगिता में भाग लेने वाली सामान्य लड़कियों को कैसे पराजित कर दिया. ख़ुशी के आंसू छलक आए. राधिका को अभी भी यक़ीन नहीं हो रहा था कि वो छोटी-सी लड़की जब बचपन में डांस करती तो उसे देखकर सब उसका मज़ाक उड़ाते, पर आंटी ने हमेशा उसका साहस बनाए रखा और ये साबित कर दिया कि इंसान ठान ले, तो वो कुछ भी कर सकता है.
दरअसल, जिया ने एक दिन टीवी पर फेमस कथक डांसर डॉ. पद्मावती को डांस करते देखा और तभी ठान लिया कि मैं भी डांस करूंगी. उसने उन्हें अपना रोल मॉडल मान लिया था. डांस करते हुए जब वो बार-बार गिरती तो उसके टीचर और मां (आंटी) हमेशा उसका हौसला बनाए रखते थे.
ख़ुशी के आंसू पोंछते हुए राधिका ने जब फोन लगाया, तो वहां से आंटी ने हेलो कहा, पर ख़ुशी के मारे कुछ बोल न सकीं. राधिका बोली, “आंटी,  उस दिन मैं भी ज़रूर आऊंगी, आप जिया को बता देना.”
“बेटा, ये सब तुम्हारी वजह से…” उनकी बात बीच में ही काटते हुए राधिका बोली, “नहीं आंटी, यह सब आपके कारण संभव हुआ है. आज उस पालनाघर का नाम विश्‍वभर में गूंज रहा है. इसका श्रेय आपको ही जाता है.”
फिर वो दिन भी पास आ गया जब जिया को पुरस्कृत किया जाना था. राधिका को जयपुर के लिए निकलना था कि अचानक गांव से चाचा-चाची इलाज के लिए आ गए. राधिका ने उन्हें पूरा वाक़या सुनाया. जिया की फोटो दिखाई, तो उस फोटो को देखते ही चाची चौंक गई. बोली, “बेटा, यह तो हमारे गांव की पद्मा की बेटी लगती है.”
राधिका बोली, “अरे नहीं चाची, ये हो ही नहीं सकता. मैं इसे अच्छी तरह जानती हूं. ये हमारे पालनाघर की बच्ची है.”
फिर राधिका ने उन्हें डॉ. पद्मावती की फोटो तथा उनका पूरा परिवार नेट पर सर्च करके दिखाया, तो वो चाची के गांव की ही थी. पहले वो उसी गांव में रहती थी, मगर जब पैसा और नाम हो गया तो गांव छोड़कर शहर आ गई. उनकी दो बेटियां थी, उनका चेहरा जिया से काफ़ी मिलता है. राधिका आश्‍चर्य से चाची को देखने लगी. चाची बोली, “बेटा, मैं सब समझ गई. राधिका, तुमको याद होगा जब तुम गांव में अपने प्रोजेक्ट के लिए आई थी, तो बरसात में एक बच्चे की रोने की आवाज़ आई थी. जानती हो बेटा, उस दिन पद्मा ने एक अपाहिज लड़की को जन्म दिया था. पहले से ही उनकी दो बेटियां थीं और वो अपनी बेटियों को अपनी तरह डांसर बनाना चाहती थी, पर अपाहिज देखकर उन्होंने अपनी नवजात बच्ची को जयपुर के अनाथालय में छोड़ दिया था. गांववालों को जब पता चला तो उनके सवालों से बचने के लिए पद्मा ने गांव छोड़ दिया. एक अपाहिज बच्ची की परवरिश करने से अच्छा उन्होंने गांव छोड़ना ज्यादा उचित समझा.”
ये सब सुनकर राधिका के पैरों तले ज़मीन खिसक गई. उसने चाची से पूछा, “आपको दिन, तारीख कुछ याद है?” वो बोलीं, “सब कुछ याद है. ये कोई भूलने वाला वाकया नहीं है. मुझे ख़ुद पद्मा ने बताया था कि बच्चे को कहां छोड़कर आई है. मैंने उसे बहुत समझाया भी था, पर वो अपनी बात पर अड़ी रही. भाग्य की विडंबना देखो, जिसे वो अपने डांस की सबसे बड़ी दुश्मन मानती थी कि उसकी परवरिश के लिए सब कुछ छोड़ना पड़ेगा, उसी लड़की ने उसका नाम रोशन किया. बाकी दो लड़कियां, एक डॉक्टर है और दूसरी अध्यापिका.” राधिका बिना पलकें झपकाए चाची के चेहरे के भाव पढ़ रही थी.
फिर चाची ने पूछा, “राधिका बेटा, तुम मुझे उनका नंबर दे सकती हो?” राधिका ने तुरंत नेट पर सर्च करके फोन लगाया. फोन पद्माजी ने ही उठाया. राधिका ने जब चाची का ज़िक्र किया, तो उनका नाम सुनते ही उन्होंने कहा, “मेरी बात कराओ.” राधिका ने फोन चाची को थमा दिया. चाची क़रीब एक घंटा फोन पर बात करती रहीं. मैंने चाची को जो कुछ बताया, वो उन्होंने सब कुछ पद्माजी को बता दिया.
फोन रखने के बाद चाची बोलीं, “बेटा, ये उन्हीं की लड़की है.”
मैंने फौरन बीना दीदी को फोन लगाया और कहा जिया का रिकॉर्ड चेक कराएं. मेरी बेसब्री को भांपते हुए दीदी ने कहा, “राधिका, रिकॉर्ड चेक करने की कोई ज़रूरत नहीं है. पद्मा मेरी अच्छी सहेली है, इसलिए मैंने उसकी मदद की थी, पर मुझे क्या पता था आज यह नौबत आ जाएगी. मां-बेटी आमने-सामने होंगी.”

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“ये आप क्या कह रही हैं दीदी?”
“तुमने शायद आज का अख़बार नहीं पढ़ा. जिया ने उन्हें अपना रोल मॉडल माना था, इसलिए वो उन्हीं के हाथों से ट्रॉफी लेना चाहती है. पद्मा भी इस समारोह में होगी और उसे पता भी नहीं होगा कि वो अपनी ही बेटी को सम्मान दे रही है.”
“ऐसा कुछ नहीं है बीना दीदी. उन्हें पता चल गया है कि वो उनकी बेटी है.” उसने चाची और पद्मा की सारी बातें बीना दीदी को बता दीं.
राधिका की बातें सुनकर बीना दीदी सन्न रह गईं. “हे भगवान! परसों क्या होने वाला है? राधिका, मुझे बहुत चिंता हो रही है.”
“अब कुछ नहीं हो सकता दीदी. परसों ही पता चलेगा क्या होने वाला है.”
“हां, तुम सही कह रही हो. वही होगा जो ईश्‍वर की मर्ज़ी होगी. अच्छा राधिका, अब फोन रखती हूं. परसों मिलते हैं, फिर देखते हैं क्या होता है.”
आख़िर वो दिन आ ही गया जिसका सबको इंतज़ार था, पर जिया इन सबसे अनजान अपनी दुनिया में मस्त थी. गांधी हॉल में चारों तरफ़ चहल-पहल थी. चारों तरफ़ करीने से सजी कुर्सियां रखी थीं. चीफ गेस्ट और परिवार के लोगों के बैठने की अलग से व्यवस्था थी. स्टेज फूलों से सजा हुआ था, लेकिन कुछ लोगों की धड़कन तेज़ हो रही थी, न जाने अब ज़िंदगी क्या मोड़ लेगी. जिया के माता-पिता और भाई सबसे आगे कतार में बैठे थे. ठीक उसके पीछे राधिका, चाची, बीना दीदी बैठी थीं. प्रोग्राम शुरू होने वाला था. सारे चीफ गेस्ट आ गए. डॉ. पद्मा भी आ गईं और चाची की तरफ़ देखकर हौले से मुस्कुरा दीं.
प्रोग्राम अपने निश्‍चित समय से शुरू हो गया था. एक-एक विजेताओं के नाम घोषित होते गए. अंत में जिया की बारी आई. जैसे ही जिया स्टेज पर गई तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी. जिया को जब अवॉर्ड मिला तो डॉ. पद्मा बोलीं, “आप सबसे मैं एक बात कहना चाहती हूं कि जिया के ख़ून में नृत्य शामिल है. इसे प्रेरणा मुझसे मिली है. ये मेरी ही बेटी है. आज मुझे गर्व हो रहा है इसे अपनी बेटी कहते हुए. मैं अपने किए के लिए माफ़ी मांगती हूं.” और रोते हुए जिया के सामने हाथ जोड़कर पद्माजी बोलीं, “बेटा, मुझे माफ़ कर दे. क्या अपनी मां को गले नहीं लगाएगी?” जिया शून्य-सी खड़ी रही. सारे कैमरे, रिपोर्टर उसकी तरफ़ दौड़ पड़े. जिया ने (आंटी को) आवाज़ दी, “मां, आप मेरी इस ख़ुशी में मुझे गले भी नहीं लगाएंंगी?” आंटी दौड़कर अपनी बेटी जिया के गले लग गई.
फिर जिया पद्मा की तरफ़ घूमकर बोली, “मैडम, आप मेरी रोल मॉडल हैं, ये मेरी मां हैं.”
जिया अपने माता-पिता और दोनों भाइयों के साथ स्टेज से उतरकर बाहर की तरफ़ चल दी. डॉ. पद्मा उसे दूर से देखती रहीं और वो अपने परिवार के साथ उनकी आंखों से ओझल हो गई. 

नीतू मुकुल

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