"आह!" उसका मन कराह उठा. कभी घूरे पर कभी गर्भ में और आज धूल और राख में लिपटी पत्थर के नीचे ज़मीन में दबी हुई एक और ज़िंदगी.
सांझ के झुरमुट में वह खेतों पर से काम करके घर लौट रहा था कि पत्थर की ठोकर खाकर गिर गया. उसकी अपनी कराह के साथ ही एक क्षीण रुदन भी कानों में गूंज गया. मानो धरती मां भी उसकी चोट पर रो रही थी. वह चौंक पड़ा. आवाज़ तो भूमि के अंदर से ही आती प्रतीत हो रही थी. उसने तेज़ी से झाड़-झंखाड़ हटाए.
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"आह!" उसका मन कराह उठा. कभी घूरे पर कभी गर्भ में और आज धूल और राख में लिपटी पत्थर के नीचे ज़मीन में दबी हुई एक और ज़िंदगी. कितनी सारी कोमल ज़िंदगियां यह कलयुगी रावण निकल जाएगा.
हज़ारों वर्षों पहले राजा जनक को भी भूमि में दबी एक ऐसी ही कन्या प्राप्त हुई थी जिसके कारण रावण जैसे आतताइयों का अंत हुआ था. उसने बच्ची को अपनी गोद में उठा लिया.
"तू भी सीता की तरह धरती की पुत्री है. तभी अब तक जीवित है. मगर मैं तुझे यूं ही धरती में समाने नहीं दूंगा. मैं जनक बनकर तुझे इस योग्य बना दूंगा कि अबकी बार तू स्त्री का अपमान और असमय उसे मार देने वाले कलयुगी आतताइयों का अंत कर सके."
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और एक बार पुनः जनक ने धरती पुत्री सीता को अपनी छाती से लगाया और घर की ओर चल दिया.
- राजेंद्र

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