“मैं उन्हें दोष नहीं दे रही, वे तो ज़रूरत से ज़्यादा कर रही हैं हमारे लिए. लेकिन हम हनीमून मनाने आए हैं, एक-दूसरे से खुलने के लिए, प्यार-रोमांस के लिए. हमें जो उन्मुक्त वातावरण चाहिए... मैं तो सोच रही थी, हम किसी आलीशान होटल के सूइट में ठहरेंगे, जहां बस तुम और मैं... मैं और तुम होंगे, तीसरा कोई नहीं.” मेघना भावनाओं में बहने लगी थी.
“सुनो जी, प्रतीक आ रहा है अपनी नई नवेली दुल्हन को लेकर हनीमून के लिए, अभी उसी का फोन था.” नम्रता ने उत्साह के साथ कहा.सुमंत बिना कोई प्रतिक्रिया व्यक्त किए अख़बार में नज़रें गड़ाए चाय की चुस्कियां लेते रहे. नैनीताल जैसे हिल स्टेशन पर रहनेवालों के लिए मेहमानों के आने की ख़बर अख़बार की चटपटी ख़बरों की तुलना में मामूली-सी बात होती है.“अपने यहां ही ठहरेंगे.” नम्रता ने फिर से ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया.“हूं... कब आ रहे हैं?” ख़बर पूरी पढ़कर अख़बार रखते हुए सुमंत ने निर्लिप्त भाव से पूछा.“इसी महीने की 16 तारीख़ को, तीन दिन का कार्यक्रम है.”“पर मैंने तो इसी दौरान मयंक के यहां जाने का कार्यक्रम बनाया था. बेचारा इतने सालों से कह रहा है.”मयंक सुमंत के घनिष्ठ मित्र हैं. अलमोड़ा में उनका फॉर्म हाउस है. काम के सिलसिले में वे अक्सर नैनीताल आते रहते हैं और हर बार दोस्त से मिलने उनके घर अवश्य आते हैं. दो-तीन बार तो पत्नी के साथ भी आ चुके हैं. वे भी मियां-बीवी, दो ही प्राणी हैं. सुमंत की तरह उनके बच्चे भी विदेश में बस चुके हैं. वे जब भी आते हैं, इतने आग्रह से सुमंत और नम्रता को अपने फॉर्म हाउस पर आने का निमंत्रण देते हैं कि अब तो न जा पाने पर उन्हें शर्मिंदगी होने लगी है. पर क्या करें? सुमंत को अपने काम से फुर्सत ही नहीं है. अब इतने सालों में कार्यक्रम बना, तो प्रतीक के आने की सूचना आ गई.प्रतीक नम्रता की मौसेरी बहन का बेटा है. नम्रता उसकी शादी में नहीं जा पाई थी, पर फ़ोन पर बधाई देते हुए उसने आग्रह किया था कि वह हनीमून मनाने नैनीताल आ जाए. और अब जब वह आ रहा है, तो वे कहीं और कैसे जा सकते हैं? नम्रता ने सुमंत को अपनी मजबूरी बताई तो वे मान गए.“ठीक है, फिर कभी सही.” कहकर वे तैयार होने चले गए और नम्रता ख़ुशी-ख़ुशी प्रतीक और बहू के स्वागत की तैयारियां करने लगी.‘अतिथि देवो भव’ के भारतीय संस्कार नम्रता में कुछ ज़्यादा ही गहरे पड़े हुए हैं. इसीलिए आए दिन आनेवाले मेहमानों की आवभगत करते उसे ज़रा भी उकताहट नहीं होती, बल्कि दिल उल्लास और स्फूर्ति से भर उठता है. वरना वही नित्य की नीरस दिनचर्या.
सुमंत तो सुबह के गए देर रात तक घर लौटते हैं. नम्रता भला टीवी, मैगज़ीन और बाई के संग कितना व़क़्त बिताए? फिर ज़्यादातर मेहमान घूमने आते हैं, जो सवेरे नहा-धोकर निकलते हैं तो देर रात तक खाना खाकर ही लौटते हैं. इसलिए काम का ज़्यादा बोझ भी नहीं बढ़ता और उनसे हंस-बतिया कर नम्रता तरोताज़ा हो जाती. इसी बहाने उसे चाय-नाश्ते के संग अपनी पाक कला के गुर प्रदर्शित करने के मौ़के भी मिल जाते.सुमंत भी ऐसे मौक़ों का पूरा लुत्फ़ उठाते हैं और खान-पान के दौरान कई बार मज़ाक़ करने से भी नहीं चूकते.“आप लोग आते रहा कीजिए. इसी बहाने हमें भी अच्छा खाने को मिल जाता है.”नम्रता झूठ-मूठ आंखें तरेर देती. ‘पर सच ही तो है. दो लोगों के लिए कुछ बनाने का मन ही नहीं करता. फिर सुमंत को डायबिटीज़ भी है, इसलिए परहेज का पूरा ध्यान रखना होता है. पर मेहमानों के आने पर दो दिन उन्हें भी थोड़ी छूट मिल जाती है.’ सोचते हुए नम्रता जल्दी-जल्दी पानी भरने लगी. हिल स्टेशन पर पानी की बड़ी किल्लत रहती है. बड़ी मुश्किल से कुछ देर के लिए पानी चढ़ता है.‘अरे हां, उन्हें कुछ उपहार भी तो देना है. शादी में तो जा नहीं पाई, अब यहां आ रहे हैं, तो अच्छा मौक़ा है. पर क्या दूं? कोई अच्छा-सा ज़ेवर या कपड़े या सौंदर्य-प्रसाधन... या नई गृहस्थी बसाने का कोई सामान? पर ये सब तो उनके पास होगा ही. फिर क्या दूं? सुमंत से पूछना तो बेकार है, वे तो इन बातों को झमेला मानकर दूर ही रहते हैं. सब कुछ मुझ ही पर छोड़ रखा है.’ नम्रता ऊहापोह में थी.उधेड़बुन में उलझी वह घर के काम निबटाती रही. ‘चलो आने पर उन्हीं से पूछूंगी या टोह लेने की कोशिश करूंगी कि उन्हें क्या चाहिए’ सोचकर नम्रता थोड़ी निश्चिंत हुई.निश्चित समय पर प्रतीक दुल्हन के संग आ गया. मेघना सचमुच गुड़िया-सी थी. नाज़ुक, संकोची, धीमी आवाज़. आदर्श नई बहू की तरह वह हर काम में नम्रता की मदद करती. दुपट्टा सर पर डाले रखती. नम्रता ने उसे व्यर्थ तकल्लुफ़ के लिए मना भी किया, पर वह चुप रहती.नम्रता ने सुमंत से दबे स्वर में शिकायत भी की, तो वे बोले, “अरे, तुम सास हो उसकी! उम्र और अनुभव का लंबा फ़ासला है तुम दोनों के बीच. क्या उम्मीद करती हो, वह सहेलियों की तरह तुमसे हंसी-ठट्ठा करेगी?”नम्रता मन मारकर रह गई. शायद सुमंत ठीक ही कहते हैं. रात को वह उनके कमरे में पानी का ग्लास देने गई, तो अंदर हो रही बातों को सुन बाहर ही ठिठक गई.“तुमने मुझे पहले बताया क्यूं नहीं कि यहां हम किसी फाइव स्टार होटल के हनीमून सुइट में नहीं, वरन् तुम्हारी मौसी के यहां रुकने वाले हैं?” मेघना का नाराज़गी भरा स्वर सुनकर नम्रता चौंक उठी.“यहां कोई तकलीफ़ है तुम्हें? मौसी कितना ख़याल रखती हैं हमारा!” प्रतीक की दबी-दबी आवाज़ थी.“मैं उन्हें दोष नहीं दे रही, वे तो ज़रूरत से ज़्यादा कर रही हैं हमारे लिए. लेकिन हम हनीमून मनाने आए हैं, एक-दूसरे से खुलने के लिए, प्यार-रोमांस के लिए. हमें जो उन्मुक्त वातावरण चाहिए... मैं तो सोच रही थी, हम किसी आलीशान होटल के सूइट में ठहरेंगे, जहां बस तुम और मैं... मैं और तुम होंगे, तीसरा कोई नहीं.” मेघना भावनाओं में बहने लगी थी.“बंदिश तो यहां भी कोई नहीं है मेघना. मौसी तो कुछ नहीं कहतीं.” प्रतीक का अपराधी-सा स्वर उभरा.“तुम समझ नहीं पा रहे, मैं क्या चाहती हूं. मौसी तो नहीं कहेंगी, लेकिन मुझे तो लगता है न! नई ब्याहता हूं, ससुराल है यह मेरा. संकोच जकड़े रहता है हर व़क़्त! तुमसे चुहल करते भी डर लगता है, कोई देख न ले. मैं तो इतनी उमंग से जींस, स्कर्ट, पारदर्शी नाइटी और जाने क्या-क्या संग लाई थी, पर अब यहां...?” मेघना के स्वर में हताशा छलक उठी थी. नम्रता का मन न चाहते हुए भी उसके प्रति सहानुभूति से भर उठा.
‘ठीक ही तो कह रही है बेचारी! हनीमून को लेकर नवविवाहिता के दिल में कितने अरमान होते हैं, यह भला मुझसे बेहतर और कौन समझ सकता है?’ नम्रता अतीत की वादियों में गुम होने लगी.‘शादी से कुछ दिन पूर्व ही सुमंत की छोटी-मोटी नौकरी लगी थी. हनीमून पर जाने जितने पैसे उनके पास नहीं हैं, यह जान कर मुझे बहुत आघात लगा था. सिनेमा देखकर, सहेलियों से सुनकर हनीमून के जो ख़्वाब संजोए थे, उन्हें बिखरता देखकर मुझे घोर पीड़ा हुई थी. आज सुमंत हर तरह से संपन्न हैं. हिल स्टेशन पर हमारा घर है. हर दो-तीन साल में हम विदेश घूमने जाते हैं. लगभग पूरा विश्व घूम चुके हैं, पर हनीमून न मना पाने का संत्रास आज भी दिल में शूल की तरह चुभता है. मैगज़ीन्स में जब हनीमून से जुड़े संस्मरण पढ़ती हूं, तो दिल में एक खालीपन उतर आता है, इस मधुर एहसास से मैं क्यूं वंचित रही?’ आगे का वार्तालाप सुने बिना, नम आंखें लिए नम्रता जाकर अपने बिस्तर पर लेट गई.सवेरे वह सोकर उठी, तो सिर भारी हो रहा था. मेघना को उसकी बिगड़ी हुई तबियत का एहसास हो गया.“लाइए, मुझे बताइए क्या करना है? मैं बना देती हूं नाश्ता.”“अरे नहीं, अभी रमिया आकर बना देगी. तुम नहा-धो लो. यहां पानी की थोड़ी किल्लत रहती है. कब नल आता है, कब बंद हो जाता है, पता ही नहीं लगता.”“ठीक है. मुझे बाल धोने हैं और कुछ कपड़े भी. थोड़ी देर लगेगी.” कहकर मेघना नहाने चली गई. सुमंत ऑफ़िस निकल चुके थे.तभी प्रतीक का एक दोस्त, जिसकी हाल ही में यहां नौकरी लगी थी, उससे मिलने आ पहुंचा. नम्रता चाय-नाश्ता तैयार करने रसोई में घुस गई. दोनों दोस्त बातों में तल्लीन हो गए.“और बता यार, कैसा लग रहा है शादी करके? तू कुछ उखड़ा-उखड़ा क्यों लग रहा है? कहीं भाभी से झगड़ा तो नहीं हो गया? अरे यार, हनीमून मनाने आया है, तो मस्ती कर न.”“नहीं... बस ऐसे ही.”“मुझसे छुपा रहा है, अपने यार से छुपा रहा है? ठीक है भाई, शादी के बाद दोस्त पराए हो ही जाते हैं.”चाय-नाश्ते की ट्रे रखकर नम्रता लौट तो आई, लेकिन कान उधर ही लगे रहे, ‘देखें, प्रतीक क्या कहता है?’“ऐसी बात नहीं है यार. उसे दरअसल शिकायत है कि हम किसी फ़ाइव स्टार होटल में क्यों नहीं रुके जहां खुलकर रोमांस किया जा सकता था.” प्रतीक ने धीमी आवाज़ में कहा.“हां तो, इसमें ग़लत क्या है? ठीक ही तो कह रही है भाभी.”“अरे, क्या ख़ाक ठीक कह रही है? तू भी उसी का पक्ष लेगा. अभी जुम्मा-जुम्मा सालभर हुआ है नौकरी लगे. बड़ी मुश्किल से इतना बचा सका हूं कि उसे एसी में यहां ला सका और अच्छे से घूमने-फिरने, खाने-पीने का ख़र्च उठा पा रहा हूं. फाइव स्टार होटल में रुकते तो सारा पैसा सुइट के किराए में ही निकल जाता.”“तो यह बात भाभी को क्यों नहीं बताता?”“बताई थी कल रात. कहने लगी कि पहले बताना चाहिए था. उधार ले लेते किसी से या नहीं आते. अब बताओ, गृहस्थी की नींव ही उधार के हनीमून पर कैसे रखता? लौटकर उधार चुकाने में हनीमून का सारा नशा ही निकल जाता. और आते क्या नहीं? अरे, शादी कोई रोज़-रोज़ होती है क्या? ज़िंदगी में एक बार शादी होती है और एक ही बार हनीमून. रोमांस के ऐसे मधुर पल भला और कब मिलेंगे?”“लेकिन तुम लोग तो मधुर पलों का आनंद लेने के बजाय आपस में लड़ रहे हो.”“इसीलिए तो रात से मन ख़राब है. यहां बताने की हिम्मत नहीं पड़ी. सोचा, अभी से क्यों उसका मूड ख़राब करूं? पहुंचकर अपनी मजबूरी समझा दूंगा, समझ जाएगी. आदमी को जितना मिल रहा है, क्या उसी में संतोष नहीं करना चाहिए? कल को और कमा लूंगा तो देखना, उसे प्लेन में देश-विदेश घुमाऊंगा. महंगे से महंगे होटल में ठहराऊंगा. पर दोस्त, अभी ये सब मेरी सामर्थ्य से बाहर है. चादर से बाहर पांव निकालूंगा, तो दुनिया के सामने नंगा हो जाऊंगा.” प्रतीक के स्वर में हताशा उभर आई थी. दोस्त ने सांत्वना में उसकी पीठ थपथपाई और चला गया.अपनी आंखों में नमी महसूस कर नम्रता ने उन्हें तुरंत पोंछ डाला. प्यार भी कभी-कभी कितना मज़बूर हो जाता है. रात में नम्रता को मेघना से सहानुभूति हो रही थी, तो अब प्रतीक से.‘शायद दोनों अपनी-अपनी जगह सही होते हुए भी कुछ मायनों में ग़लत हैं. मेघना को समझना चाहिए कि पैसा बहुत कुछ होते हुए भी सब कुछ नहीं होता. सुखी गृहस्थ जीवन के लिए एक स्त्री को पग-पग पर समझौता करना होता है. अभी तो शुरुआत मात्र है. दूसरी ओर, प्रतीक को चाहिए था कि वह मेघना को विश्वास में लेकर ही यहां आता. आकाश में ऊंची उड़ान भरते पंछी के अचानक पर कतर दिए जाएं, तो वह लड़खड़ाएगा ही. फिर भले ही आप कितना ही सहारा दो, संभलने में व़क़्त तो लगेगा ही.’ नम्रता गहन सोच में डूब गई थी. वे दोनों घूमने निकलें, इससे पूर्व ही वह एक फैसला ले चुकी थी.“बच्चों, कहते हुए अच्छा तो नहीं लग रहा, पर मजबूरी है. दरअसल, इनके एक घनिष्ठ दोस्त की बेटी की शादी अचानक तय हो गई है. अं... लव कम अरेंज्ड वाला मामला है. तो हमें कुछ दिनों के लिए वहां जाना पड़ रहा है... तुम चाहो, तो यहां रुक सकते हो, मैं चाबी दिए जाती हूं. लौटते व़क़्त पड़ोस में दे जाना.”“नहीं मौसी, उसकी ज़रूरत नहीं है. आप निश्चिंत होकर जाइए. हम अभी होटल में श़िफ़्ट हो जाते हैं. वैसे भी पूरा दिन तो हम बाहर ही रहते हैं.” प्रतीक ने बीच में ही अपना मत रख दिया.
सब कुछ नम्रता की योजनानुसार ही हो रहा था.“अच्छा बेटा, जैसी तुम्हारी मर्ज़ी. पर यदि तुम्हें होटल में ही श़िफ़्ट होना है, तो इनके एक दोस्त का यहां फाइव स्टार होटल है, वहां सही क़ीमत पर हम तुम्हारे लिए सुइट बुक करा देते हैं. यह तुम दोनों को हमारी ओर से शादी का तोहफ़ा है. अब इसके लिए इंकार मत करना, वरना मैं नाराज़ हो जाऊंगी.”“पर मौसी... इतना महंगा तोहफ़ा!”“ना-ना, तोह़फे की क़ीमत नहीं आंकते. अच्छा, मैं सुमंत से बात करती हूं. तुम अपनी पैकिंग करो, मैं अपनी पैकिंग करती हूं.”प्रतीक के चेहरे से ख़ुशी टपकी पड़ रही थी. वहीं मेघना के चेहरे पर शर्मिंदगी और पश्चाताप के मिले-जुले भाव थे. शायद उसे स्थिति का कुछ-कुछ अनुमान हो गया था. नम्रता ने स्नेह से उसके सिर पर हाथ फेरा, तो वह भावुक होकर उसके सीने से लग गई.फॉर्म हाउस जाते व़क़्त नम्रता ने सुमंत को सारी बात बताई, तो वे ठठा कर हंस पड़े.“वाह मैडम, आपने तो एक ही तीर से कई शिकार कर डाले. हमें भी ख़ुश कर दिया और उन दोनों को भी.”लेकिन सबसे ज़्यादा ख़ुश तो नम्रता स्वयं थी. एक गृहस्थी को शुरुआत में ही दरक जाने से बचाकर उसने ज़माने भर की ख़ुशियां हासिल कर ली थीं.
- अनिल के. माथुर
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