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कहानी- हिसाब बराबर… (Short Story- Hisab Barabar…)

“नायरा, ख़र्चे तो कभी ख़त्म नहीं होते. ख़र्चों का क्या है. एक आज ख़त्म हुआ तो दूसरा कल शुरू हो गया. पर इसकी वजह से हम अपनी ख़ुुशियों को तो नहीं रोक सकते.” “आख़िर तुमने कर दी न मिडिल क्लास वाली बातें. अरे बुद्धू, मैं शादी करने से कब मना कर रही हूं, लेकिन इसके लिए सही वक़्त आने दो.” नायरा अपना फ़ैसला ले चुकी थी. मैं नायरा के इस फ़ैसले से ख़ुश नहीं था, परंतु फिर यह सोचकर चुप रह गया कि शादी जैसे अहम फ़ैसले में नायरा की हां होना भी तो ज़रूरी है.

आख़िर हमें वह सब क्यों नहीं मिलता, जिसकी चाहत हमें वास्तव में होती है. क्यों हम तक़दीर के हाथों की कठपुतली बनकर रह जाते हैं. प्यार को तो भगवान की पूजा माना गया है, लेकिन अगर उसमें भी धोखे की मिलावट हो तो सच्चा प्यार भी अपना मतलब खोने लगता है. मैंने तो अपनी ज़िंदगी से बहुत कुछ नहीं मांगा था, परंतु फिर भी मुझे रुसवाई का ही सामना करना पड़ा. कभी-कभी यह सब सोच कर मेरा दिल बहुत भारी हो जाता है, किंतु फिर यह सोचकर अपने मन को तसल्ली दे देता हूं कि शायद इसमें भी ईश्‍वर की कोई मर्ज़ी होगी. अभी मैं यह सब सोच ही रहा था कि धीरे-धीरे डाइनिंग हॉल में लोगों की संख्या बढ़ने लगी.

सभी अपनी पसंद का खाना ऑर्डर कर रहे थे. कुछ लोग अपनी फैमिली के साथ आए हुए थे तो कुछ लोग अकेले ही इस ख़ुशनुमा शाम का मज़ा ले रहे थे. फाइव स्टार होटल का मैनेजर घूम-घूम कर सभी का ऑर्डर ले रहा था. मैं इस समय एक फाइव स्टार होटल के डाइनिंग हॉल में गाना गा रहा हूं. वहां पर बैठे सभी लोग बढ़िया खाने के साथ-साथ मेरी सिंगिंग को एंजॉय कर रहे हैं.

मैं अब तक काफ़ी लोगों की फ़रमाइश पूरी कर चुका हूं. मेरे सुरों की मिठास और माहौल की नज़ाकत लोगों को लुभा रही थी. सामने बैठे लोग स्वादिष्ट खाने का आनंद लेते हुए मेरी आवाज़ में खोए हुए थे. तभी अचानक दरवाज़े से एक नवविवाहित जोड़ा अंदर दाख़िल हुआ. उनकी आंखों में नई-नई शादी की चमक थी, होंठों पर मुस्कान और हाथों में एक-दूसरे की गर्माहट. उन्होंने अपनी पसंद के एक रोमांटिक गाने की फ़रमाइश की.

जैसे ही मैंने अपनी गिटार के तार छेड़े, वे दोनों डांस फ्लोर पर आ गए. उन्हें डांस करते देखकर और लोग भी डांस फ्लोर पर आ गए और मेरी सिंगिंग का मज़ा लेते हुए नाचने लगे. सभी के लिए वह शाम एक यादगार लम्हा बनकर रह गई. हर कोई ख़ुश नज़र आ रहा था. सभी के चेहरे मुस्कान से भरे हुए देखकर मेरे मन को एक अजीब सा संतोष मिला था. उनकी ख़ुशी देखकर मैं मुस्कुरा दिया, लेकिन मेरे दिल के किसी कोने में कुछ चटक सा गया. पता नहीं क्यों अचानक मुझे नायरा की याद आने लगी. मेरी ज़िंदगी... मेरा पहला प्यार और उससे बढ़कर मेरे सुख-दुख की साथी. पर अब वह मेरे साथ नहीं है. रात गहराई, तो मैं भी अपना सामान समेटकर घर लौट आया.

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मेरी आंखों में थकावट थी, किंतु नींद नहीं. बिस्तर पर लेटे-लेटे अतीत की यादों का कारवां फिर से आंखों के सामने उतर आया था. कॉलेज के दिनों में संगीत सिर्फ़ मेरा शौक था, परंतु वही शौक नायरा को मेरी ओर खींच लाया था. कैंटीन में जब मैं दोस्तों के साथ गाने की प्रैक्टिस कर रहा था, तब पहली बार वह मेरे पास आई थी. “तुम बहुत अच्छा गाते हो! सच में, तुम्हारी आवाज़ दिल छू लेती है.” उसकी आंखों की चमक और ताली बजाने की मासूमियत मुझे भीतर तक छू गई. उसके बाद मैं अक्सर उसकी फ़रमाइश पर गाने लगा.

धीरे-धीरे हमारी दोस्ती प्यार में बदल गई. हम दोनों एक-दूसरे से बिल्कुल अलग थे. वह एक अमीर बिज़नेसमैन की बेटी, खुले विचारों वाली, बेबाक़ और आत्मविश्वास से भरी. मैं एक छोटे शहर का लड़का, जिसे अपनी किताबों और संगीत के सिवा ज़्यादा कुछ नहीं आता था. लेकिन प्यार सोच-समझ कर तो नहीं किया जाता. अगर ऐसा होता तो न जाने कितने लोग प्यार से महरूम रह जाते. मैं भी शायद इसका अपवाद ही था, वरना मुझ जैसे गांव के छोरे पर नायरा जैसी शहर की लड़की का दिल आना मुश्किल था.

सच में उसका साथ पाकर मुझे ऐसे लगने लगा था मानो मैंने सब कुछ पा लिया हो. वैसे देखा जाए तो मेरी और उसकी मिसफिट जोड़ी ही हमारी दोस्ती की बुनियाद थी. तभी तो कॉलेज के सभी लड़के और लड़कियां हमारी दोस्ती देखकर जलते थे. मेरी क्लास के तो कई लड़के भी नायरा को शादी के लिए प्रपोज़ कर चुके थे, पर नायरा किसी को घास नहीं डालती थी.

“पता नहीं यार ऐसा क्या देखा नायरा ने तेरे अंदर जबकि हम लोग तो उसे पटाने के सारे हथकंडे अपना चुके हैं. ऐसा क्या अलादीन का चिराग़ मिल गया है तुझे...” उनकी यह बातें सुनकर मैं मन ही मन बहुत ख़ुश होता था. अब उनसे क्या कहता कि इसमें मैंने कुछ नहीं किया है, बल्कि यह तो शायद ईश्‍वर की मर्ज़ी है, वरना मुझ जैसे अंतर्मुखी इंसान से इतनी सुंदर लडकी पटना बेहद मुश्किल था. फिर धीरे-धीरे हमारी दोस्ती पर प्यार का रंग चढ़ने लगा था. जब मुलाक़ातें बढ़ने लगी थी तब हमारी बातचीत भी बढ़ने लगी थी. फिर तो हम अक्सर कॉलेज बंक करके एक-दूसरे से मिलने लगे थे. कभी पिक्चर तो कभी-कभी कैफे. सच में ज़िंदगी बहुत हसीन हो गई थी.

“नायरा, मैं अक्सर सोचता हूं कि मुझ जैसे सीधे-साधे आदमी पर तुम जैसी परी का दिल कैसे आ गया. सच में मैं बहुत क़िस्मत वाला आदमी हूं.” मैं उसका हाथ पकड़ कर कहता.

“मैं बिज़नेसमैन की बेटी हूं इसलिए मैं कोई भी सौदा नुक़सान का नहीं करती. मुझे यह तो पता है कि तुम एकेडमिक्स में बहुत अच्छे हो, इसलिए एक अच्छी कंपनी में तुम्हें नौकरी अवश्य मिल जाएगी. लेकिन उसके साथ-साथ तुम अन्य लड़कियों को घूरते नहीं हो.जबकि तुम्हारे साथ के लड़के किसी भी लड़की के साथ फ्लर्ट करने में पीछे नहीं रहते. बस यही सोच कर मैं तुम्हारे क़रीब आई हूं. कम से कम तुम स़िर्फ मेरे होकर रहोगे. मुझे प्यार में शेयरिंग पसंद नहीं है.”

नायरा की इन बातों को सुनकर मुझे अजीब तो लगता था, परंतु मैं चाह कर भी रिएक्ट नहीं करता था, क्योंकि मैं उससे प्यार जो करने लगा था. वैसे भी, जब आप प्यार में होते हो तब आपको सामने वाले की कोई भी बात ग़लत नहीं लगती. इधर समय अपनी गति से बढ़ता रहा तो उधर मैं और नायरा कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद अपनी-अपनी लाइफ में सेटल हो गए. जहां एक ओर मुझे एक प्राइवेट कंपनी में फाइनेंस एग्जीक्यूटिव की जॉब मिली तो दूसरी ओर नायरा को एक मल्टीनेशनल कंपनी में एचआर मैनेजर का पद मिला.

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हम दोनों दिल्ली में दो अलग-अलग कंपनियों में कार्यरत थे. हमने किराए का एक फ्लैट ले लिया था, जिसमें हम दोनों बिना शादी के साथ-साथ रहते थे. ज़िंदगी बहुत मज़े से कट रही थी. इस बीच अचानक मेरा ट्रांसफर कोलकाता हो गया. कोलकाता आने पर भी मेरा और नायरा का साथ पहले की तरह बना रहा. कभी वीकेंड पर नायरा मेरे पास आ जाती या फिर दिल्ली चला जाता. हम दोनों साथ में अच्छा टाइम स्पेंड करने के बाद अपने-अपने शहर वापस लौट जाते. अब जब मैं सेटल हो गया, तब मुझ पर शादी करने का दबाव बनने लगा था.  

“तेरे लिए एक बहुत अच्छे घर से रिश्ता आया है. लड़की भी बहुत सुंदर है और वह नौकरी भी करती है. तू कहे तो उनसे बात करूं.” यह बातें सुनकर अजीब सा मन हो गया था मेरा. मैं उस समय मां को नायरा के बारे में बताना चाहता था, परंतु चाह कर भी मैं ऐसा नहीं कर पाया, क्योंकि मैं ख़ुद ही इस बारे में नहीं जानता था.

“क्या कहा शादी! अभी तुम ठीक से सेटल तो हो जाओ. शादी के बारे में बाद में सोचेंगे.” नायरा बेफ़िक्री से बोली.

“सेटल... अब कितना सेटल होना है. अच्छी जॉब है मेरी और पे स्केल भी बढ़िया है और क्या चाहिए.”

“वह तो ठीक है. किंतु जब तक तुम्हारी अच्छी सेविंग नहीं हो जाती तब तक हम शादी के बारे में नहीं सोच सकते, क्योंकि शादी होने के बाद हमारे ख़र्च बढ़ जाएंगे. पहले अपना बैंक बैलेंस बढ़ाने पर ध्यान दो.. फिर शादी करेंगे.” नायरा की यह बातें सुनकर मेरा शादी करने का सारा जोश ठंडा पड़ गया था.

“नायरा, ख़र्चे तो कभी ख़त्म नहीं होते. ख़र्चों का क्या है. एक आज ख़त्म हुआ तो दूसरा कल शुरू हो गया. पर इसकी वजह से हम अपनी ख़ुुशियों को तो नहीं रोक सकते.”

“आख़िर तुमने कर दी न मिडिल क्लास वाली बातें. अरे बुद्धू, मैं शादी करने से कब मना कर रही हूं, लेकिन इसके लिए सही व़क्त आने दो.” नायरा अपना फ़ैसला ले चुकी थी. मैं नायरा के इस फ़ैसले से ख़ुश नहीं था, परंतु फिर यह सोचकर चुप रह गया कि शादी जैसे अहम फ़ैसले में नायरा की हां होना भी तो ज़रूरी है. मैं उस समय नायरा से यह कहना चाहता था कि शादी के लिए दिलों में प्यार होना ज़रूरी है. अगर फिर थोड़े कम पैसे भी हो तो चलेगा, क्योंकि प्यार ही तो दिलों को जोड़कर रखता है. पर उसे मैं यह नहीं कह पाया, उसे तो पैसों के आगे कुछ नज़र नहीं आता था.

ज़िंदगी ने अचानक करवट ली और किसी वजह से मेरी नौकरी चली गई. तब अचानक नायरा का मेरे प्रति रवैया बदलने लगा. एक तरफ़ मेरा अचानक बेरोज़गार होने का दुख और उस पर नायरा की बेरुखी, मैं टूटकर बिखरने लगा था. एक नायरा ही तो थी जिसे मैं अपने दिल की बातें खुलकर कह सकता था, परंतु उस समय वह मुझसे बात तक करना पसंद नहीं करती थी. वैसे भी मेरा नायरा के अलावा कोई और ऐसा दोस्त नहीं था, जिससे मैं अपने दिल की बातें शेयर कर पाता. नायरा और मेरे बीच की दूरियां बढ़ने लगी थी. हालांकि मेरी ओर से इन दूरियों को मिटाने की पूरी कोशिश रही, किंतु नायरा ने तो जैसे मेरी शक्ल तक ना देखने की क़सम खा ली थी. पहले नायरा मुझे दिलासा देती रही, पर कुछ ही महीनों में उसके व्यवहार में ठंडापन आ गया. फोन पर कम बातें, मिलना-जुलना बंद. मैं अपनी बेरोज़गारी से पहले ही टूटा हुआ था, ऊपर से उसकी बेरुखी ने जैसे मेरी बची-खुची ताक़त भी छीन ली.

मैंने कई जगह इंटरव्यू दिए, लेकिन सफलता नहीं मिली. घर के ख़र्चे पूरे करने के लिए मैंने अपने सिंगिंग के जुनून को प्रोफेशन बना लिया. पहले छोटे-छोटे कैफे, फिर बड़े होटल और धीरे-धीरे मेरी आवाज़ लोगों को पसंद आने लगी. शो बढ़ने लगे, पैसे आने लगे. सिंगिंग मेरे लिए स्ट्रेस बस्टर भी बन गया. अब मैं पहले से बेहतर महसूस करने लगा था. मैं अब अपने घर भी पैसे भेजने लगा था. इस बीच नायरा पूरी तरह मेरी ज़िंदगी से गायब हो गई. शायद उसे अब मेरी ज़रूरत नहीं थी.

मैंने भी धीरे-धीरे ख़ुद को संभाल लिया. प्यार का दर्द धीरे-धीरे आत्मसम्मान में बदलने लगा था. लेकिन फिर भी मुझे नायरा की याद बहुत आती थी. मैं कई बार सोचता कि क्या पैसा प्यार से बढ़कर होता है? मैंने तो उसे सच्चा प्यार किया था, पर शायद वह प्यार में व्यापार ढूंढ़ रही थी. काश, उसने समझा होता कि प्यार तो हमें बहुत लोगों से हो सकता है, परंतु सच्चा प्यार किसी एक से ही होता है. बीते समय के साथ जहां एक ओर मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था तो वहीं दूसरी ओर नायरा की बेवफ़ाई के कारण मेरे मन की ज़मीन पथरीली होने लगी थी.

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अब तो मुझे उससे मिले एक अरसा बीत चुका था. बस यही सब सोचते हुए कब मेरी आंख लगी मुझे पता ही नहीं चला. अगले दिन की सुबह मेरे लिए एक ख़ुशनुमा पैग़ाम लेकर आई. एक बड़ी कंपनी में मुझे जॉब ऑफर हुआ तो ऐसा लगा कि मानो मुझे फिर से एक नई पहचान मिल गई हो. एक लंबे समय बाद कॉरपोरेट वर्ल्ड में लौटना मेरे लिए आसान नहीं था, लेकिन फिर भी ख़ुद को साबित करने का एक और मौक़ा मैं किसी भी हाल में नहीं छोड़ सकता था. लेकिन साथ ही मैंने अपने सिंगिंग के शौक को नहीं छोड़ा, क्योंकि एक वही तो था जिसने मेरे मुश्किल समय में मेरा साथ दिया. तभी तो मैं ऑफिस से लौट कर भी अपने इस पैशन को अंजाम देता रहा. एक दिन जब मैं गाना गाने के बाद अपना सामान पैक करके घर जाने लगा था, तब अचानक एक जानी-पहचानी आवाज़ सुनकर मेरे कदम रुक गए.

“अब तो तुम्हारे पास एक अच्छी नौकरी है, सब कुछ ठीक हो गया है. फिर क्यों यह गिटार लेकर घूमते रहते हो?” मैंने धीरे से सिर उठाकर देखा. सामने नायरा खड़ी थी, हाथ में कोल्ड ड्रिंक का ग्लास चेहरे पर वही पुरानी मुस्कान. पर अब वह मुस्कान मुझे खोखली लग रही थी.

मैंने एक गहरी सांस ली और कहा, “मत भूलो, मेरे इसी शौक के कारण तुम मेरी ओर आकर्षित हुई थी. और यही शौक मेरे सबसे मुश्किल व़क्त में मेरे काम आया.” वह हंस पड़ी.

“अगर हम फिर से एक हो जाएं तो?” मैंने उसकी आंखों में देखा. जहां कभी प्यार था, अब वहां स़िर्फ एक बिज़नेसमैन की बेटी की चालाकी दिख रही थी. “अब मैं तुमसे कोई रिश्ता नहीं रखना चाहता.”

वह चौंक गई, “क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करते?” मैंने कड़वाहट से कहा, “अपनी बेवफ़ाई को प्यार का नाम मत दो नायरा. जब मुझे तुम्हारी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी तब तुम नहीं थी. पर अब जब मेरे पास सब कुछ है तो तुम वापस आना चाहती हो.” उसका चेहरा उतर गया.

“तुम बिज़नेसमैन की बेटी हो, कोई भी घाटे का सौदा नहीं करती. लेकिन सच्चा प्यार तो मुना़फे-नुक़सान से परे होता है. अगर स़िर्फ पैसा ही सब कुछ होता तो रिश्तों की बैलेंस शीट हमेशा खाली रह जाती.” मैं कठोरता से बोल पड़ा.

नायरा अचानक घबराई हुई सी दिखी, “क्या तुम्हारी ज़िंदगी में कोई और लड़की आ गई है?”

मैं मुस्कुरा दिया, “क्या ख़ुश रहने के लिए किसी और का साथ ज़रूरी है? क्या मेरा ख़ुद का वजूद कोई मायने नहीं रखता?” नायरा की आंखों में अफ़सोस था या शायद पछतावा अंदाज़ा लगाना मुश्किल था. “लेकिन मुझे तुम्हारी ज़रूरत है.” इतना कहकर उसने मेरा हाथ पकड़ लिया. मैंने हल्के से अपना हाथ छुड़ाया और कहा, “पर मुझे तुम्हारी कोई ज़रूरत नहीं है. अब मैं ख़ुद के साथ ख़ुश हूं.” और मैं वहां से चला गया. गाड़ी चलाते हुए मैं सोच रहा था कि कभी जिसे मैंने अपनी दुनिया माना था, आज वही मेरे लिए एक बीता हुआ अध्याय बन चुकी है. मैंने रेडियो ऑन किया तो एक सुरीली आवाज़ मेरे कानों में पड़ी- जीवन के सफ़र में बिछड़ जाते हैं जो हमसफ़र, वो फिर कभी लौटकर नहीं आते... फिर मैंने ख़ुद से कहा, “अब हिसाब बराबर!..” और नई मंज़िल की ओर बढ़ चला.

शालिनी गुप्ता

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