अन्वी दो पल उसे देखती रही फिर बोली, "मेरी सुंदरता देखकर हर किसी के मन में यही इच्छा जाग जाती है, लेकिन सच्चाई जानने के बाद लोग फिर पलट कर भी नहीं देखते."
और वह कुर्सी से उठ कर उसके सामने आकर खड़ी हो गई, "अब देखिए और बताइए क्या अभी भी है हौसला आपमें मुझे अपनी जीवनसाथी के रूप में अपनाने का."
अन्वी कई दिनों से देख रही थी एक लड़का हर दूसरे-चौथे दिन बैंक आ जाता था. कभी पैसे निकलवाने कभी जमा करने, कभी किसी स्कीम के बारे में पूछताछ करने, कभी अपने किसी दोस्त का अकाउंट खुलवाने. एक-एक कर उसने अपने तीन-चार दोस्तों के अकाउंट उसकी शाखा में खुलवा दिए और हर बार अपना काम दूसरे काउंटर पर करवाते हुए भी उसका पूरा ध्यान अन्वी की ओर ही रहता था.
बीच-बीच में वह अन्वी से बातें करने की भी कोशिश करता रहता. हो भी क्यों नहीं अन्वी थी भी तो बेहद सुंदर. दूध से धुले जैसा रंग, सुंदर नयन-नक्श, जो भी देखता, देखता रह जाता. ना जाने कितने लोग उसकी सुंदरता के दीवाने थे.
वैसे वह लड़का भी बहुत स्मार्ट लगता है. हाव-भाव, व्यवहार से पढ़ा-लिखा सुसभ्य और अच्छे घर का लगता है. रहन-सहन से खाते-पीते घर का दिखता है.
मगर अन्वी अपनी भावनाओं पर ताले लगा चुकी थी.
कुछ महीने ऐसे ही लुकाछिपी में बीत गए. एक दिन वह अन्वी के काउंटर पर आकर खड़ा हो गया और बिना भूमिका बांधे सीधे ही उससे शादी की इच्छा प्रकट कर डाली.
यह भी पढ़ें: मास्टरपीस हैं आप (You are masterpiece)
अन्वी दो पल उसे देखती रही फिर बोली, "मेरी सुंदरता देखकर हर किसी के मन में यही इच्छा जाग जाती है, लेकिन सच्चाई जानने के बाद लोग फिर पलट कर भी नहीं देखते."
और वह कुर्सी से उठ कर उसके सामने आकर खड़ी हो गई, "अब देखिए और बताइए क्या अभी भी है हौसला आपमें मुझे अपनी जीवनसाथी के रूप में अपनाने का." कह कर उसने अपना दायां पैर आगे कर दिया. उसका एक पैर नकली था.
"मैं अपाहिज हूं."
"अपाहिज इंसान मन से होता है तन से नहीं, जो सब दृष्टि से सक्षम होते हुए भी जीवन में हारे हुए से रहते हैं वह अपाहिज है. तुमने तो अपने हौसले से सारी मुश्किलों पर विजय प्राप्त कर ली है. मैं जब पहली बार यहां आया था तभी मुझे सब पता चल गया था कि एक एक्सीडेंट में तुम अपना एक पांव गंवा बैठी हो. और तभी तुम्हारे हौसले की मन-ही-मन सराहना करते हुए मैंने तुम्हें जीवनसाथी बनाने की ठान ली थी. मेरी मां भी मेरे फ़ैसले से सहमत है. पिताजी बचपन में ही गुज़र गए. मैं एकलौता हूं.
यह भी पढ़ें: जीवन में ऐसे भरें ख़ुशियों के रंग (Fill Your Life With Happiness In The Best Way)
इंजीनियरिंग कॉलेज में लेक्चरर हूं. अच्छी तनख्वाह ख़ुद का घर-गाड़ी सब है. अब बोलो क्या तुम्हें मैं स्वीकार हूं?" कहते हुए उसने अपना हाथ अन्वी की ओर बढ़ा दिया.
आंखों में ख़ुशी के आंसू भरकर अन्वी ने उसका हाथ थाम लिया.
- अश्लेषा
अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES
Photo Courtesy: Freepik
अभी सबस्क्राइब करें मेरी सहेली का एक साल का डिजिटल एडिशन सिर्फ़ ₹599 और पाएं ₹1000 का गिफ्ट वाउचर.